"इति" और "अंत"
समाहृत जीवन पर्यंत
मैं कोई हूँ नहीं- संत
है यही-"वाक्य आप्त"
सद् गति करुँगा प्राप्त
यह है मेरे ''मन की बात''
चक्र 'नौ' है, नहीं हैं 'सात'
दिन हो या फिर हो- रात
करना उसी एक बस बात
"मानव" मेरी एक है जात
सत्-संग यही, आज बाँट
डॉ. कवि कुमार निर्मल