स्वप्न की गहराई में देखा कि
तुम मेरे बारे में सोच रहे हो!
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ओ’ मेरे परम प्रिय,
ओ’ परम पुरुष!
तुम्हारी कृपा से
मैंने अपनी प्रगाढ़ निद्रा की
गहराई में देखा कि
तुम मेरे बारे में सोच रहे हो!
हे मेरे परम अराध्य!
तुम सचमुच कितने कृपालु हो!!
अब तक मैं तुम्हारी
प्राप्ति हेतु तरस रहा था!
अपने आप को तुमने,
मुझसे दूर किये हुए हो,
ये मैं सोच रहा था!!
अनेक युग आये और गये
और
पूरे समय मैं अपने दुःखों के
सागर में डूबा रहा!
तुम मेरे बारे में
जानते ही नहीं हो,
ये मैं सोचता रहा!!
उस निराशाजनक अवस्था में
मुझे कैसा हीं लग रहा था!
मेरे उस दुख के स्तर को
कोई नहीं समझ सकता था!!
मेरे प्रभु!
दिन लगातार आ-जा रहे थे!
मैं अपने आँसुओं में
डूबा हुआ सोचता रहता था!!
मेरी चिंता करने वाला
कोई नहीं है!
परंतु ओह!
आज देखा कि
कोई मेरे बारे में सोच रहा है!!
यह देख कर
मेरा संपूर्ण अस्तित्व
आह्लाद से भर गया!
तुम कितने कृपालु हो,
मैं धन्य हो गया!!
हे दिव्य परम पुरुष!
तुम्हारी कृपा से मैं
आज सत्य मेरी
समझ में आ गया है !
तुम मेरे हो और
तुम्हारा हृदय मेरे लिये
असीम श्नेह से भरा हुआ है,
यह भली भांति अब
समझ गया हूँ!!
किसलिये तुम मेरे बारे में
सोचते हो,
यह मैं जान गया हूँ!!!
मैं अपनी साधना,
ध्यान, सेवा और
कीर्तन की सहायता से
तुम्हारे निकट और
अधिक निकट आता जाऊंगा!
तुम्हारी ओर चलता जाऊंगा
क्योंकि मैं जानता हूँ कि
आंतरिक रूप से तुम मेरे हो,
तुम्हें मैं शीध्र हीं पा जाउँगा!!
तुम हृदय से मेरी चिंता
अहिर्निश करते हो!
तुमने प्यार से
अपने हृदय में
एक विशेष स्थान
मेरे लिये रिक्त छोड़े हुए हो!!
तुम्हारी अहेतुकी कृपा से
मैं यह जान चुका हूँ,
“हमारा बहुत निकटता का, अन्तरंग संबंध है!”
तुम प्रेमस्वरूप हो!
करुणामय हो और
दिन रात मेरी चिंता करते हो!!
तुम मेरे हृदय के
सर्वाधिक प्रिय,
अन्तरंग हो!!!
【अपने अनवरत उपस्थिति
का परम सुख यूँ हीं हम
भक्तों को तुम देते रहना】
प्र• सं• २३६
अनुवाद एवं प्रस्तुति:
🙏डॉ. कवि कुमार निर्मल🙏