चराग़ जलता रहा रात भर।
मदहोश परवाना न मंडराया मगर।।
बाति उजाला देख बुझने को थी।
बातें बहुत मगर ख़्वाबों की थी।।
तेल में दम था बहुत मगर।
एक फूंक से अँधेरे में डुबा शहर।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
12 नवम्बर 2019
चराग़ जलता रहा रात भर।
मदहोश परवाना न मंडराया मगर।।
बाति उजाला देख बुझने को थी।
बातें बहुत मगर ख़्वाबों की थी।।
तेल में दम था बहुत मगर।
एक फूंक से अँधेरे में डुबा शहर।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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