राग रागनी सुन तंद्रा उनकी भागे,
टूट जायें स्वप्न के जाल निराले।
हाला के असर, दिखता मधुवन,
राजा रानी दिखते बेहाल बिचारे।।
दिखते बेहाल बिचारे, सौच हैं करते।
खोल शयन कक्ष के कपाट,
मंदीर शिवाले जा, वे पूजन करते।।
झुग्गी झोपड़ियों के, ऐसे नहीं होते,
खटर पटर बर्तन की सुन, अँगडाई लेते।
अँगड़ाई लेते, पानी सर पर गिरा कर,
कुदाल काँधे पर, आते पसीना बहा कर।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
DrKavi Kumar Nirmal