मैं कौन हूँ ? भाग -११
तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि डॉ.सुमन ने अनाम के कमरे में देखा, तो अनाम शांति से कुर्सी पे बैठ के नॉवेल पढ़ रहा था और बिच-बिच में कुछ लिख भी रहा था। डॉ.सुमन अनाम को वृद्धाश्रम और अनाथालय दिखाने ले जाती है, वहां सब से अनाम की पहचान कराती है। डॉ.सुमन अनाम को सिर्फ़ इतना समझाना चाहती थी, कि दुनिया में तुम एक अकेले ही नहीं हो जिसके ऊपर मुसीबत आई है और वह दुनिया में एक अकेला ही नहीं है, जिसका इस वक़्त इस दुनिया में कोई नहीं। अब आगे...
डॉ.सुमन को याद आता है, कि आज उसके पापा ने अनाम को अपने साथ घर लेके आने को कहा था।
डॉ.सुमन : अनाम मेरे पापाने तुझे आज हमारे घर खाने पे बुलाया है, इसी बहाने तुमसे मिलना भी हो जाऐगा, मैंने तुम्हारे बारे में पापा को सब बताया है, वह भी तुमसे मिलना चाहते है। क्या तुम आओगे मेरे साथ ?
अनाम : अच्छा ! ऐसी बात है, तो चलो, मुझे भी शायद उनसे मिलके अच्छा लगे।
डॉ.सुमन : अच्छा ठीक है, तो चलो।
अनाम को धीरे-धीरे डॉ.सुमन के साथ अच्छा लगने लगा था। अब अनाम अपने बारे में कम सोचता था।
तो दोस्तों, आज लिखते-लिखते मुझे एक और बात याद आई है, वो ये कि अगर हमें हमारी ज़िंदगी में कोई बात परेशान कर रही होती हो और हम चाहने पर भी उस बात को उस लम्हें को भुला ना सके, तब हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ उस बात को भुलाने के लिए किसी दूसरे काम में लग जाना चाहिए, अपने मन को उस बात से, उस परेशानी से, उन लम्हों से आज़ाद करने के लिए अपने मन को कहीं और लगाना है।अगर हम वहीं हाथ पे हाथ ढरे बैठ के सोचते रहेंगे, तो वहीं बात हमें और परशान करेगी और हम उस में से कभी बाहर नहीं निकल पाएँगे।
डॉ.सुमन को यह बात अच्छे से पता है, इसलिए डॉ.सुमन अनाम का ध्यान कहीं और ले जाने के लिए ये सब कुछ कर रही है, ताकि अनाम अपने बीते हुए कल के बारे में नहीं, बल्कि अपने आनेवाले कल के बारे में सोचे। वक़्त रहते अनाम को सब कुछ याद आ ही जाएगा। मगर तब तक यूँ परेशान रहने से कोई फ़ायदा नहीं। बस यही बात डॉ.सुमन अनाम को समझाना चाहती है, अब आगे...
डॉ.सुमन अनाम को लेकर अपने घर जाती है। घर में आते ही डॉ.सुमन अपने पापा को आवाज़ लगाते हुए
डॉ.सुमन : पापा, पापा कहाँ हो आप ? देखो हमारे घर आज कौन आया है ?
( अनाम का हाथ खींचते हुए ) आओ अनाम। इसे अपना ही घर समझो। मेरे पापा बहुत अच्छे है। देखना ! तुमको उनसे मिलके बहुत अच्छा लगेगा।
अनाम के पापा अपने कमरे से बाहर आते हुए डॉ.सुमन से कहते है।
पापा : अरे, आता हूँ, आता हूँ। कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था, मुझे लगा आज भी तुम्हें देर हो ही जाएगी इसलिए में ज़रा कमरे में आराम कर रहा था।
डॉ.सुमन : हाँ, अच्छा किया आपने।
( अनाम को अपने पापा की और खींचते हुए ) इनसे मिलिए पापा। ये है अनाम। जिसके बारे में मैंने आपको बताया था।
पापा : ( अनाम से हाथ मिलाते हुए ) अच्छा तो तुम हो अनाम। मेरी बेटी ने तुम्हें ज़्यादा परेशान तो नहीं किया ना, इसकी तो आदत है, सब को परेशान करने की और पूरा दिन बातें करने की। इसकी बातें कभी ख़त्म ही नहीं होती।
अनाम : जी नहीं, अंकल, डॉ.सुमन बहुत अच्छी बातें करती है, शायद ही कभी मैंने ऐसी बातें पहले कभी सुनी होगी।
ये बात कहकर अनाम कुछ पल के लिए फ़िर से सोच में पड़ जाता है, कि इस से पहले उसने ऐसी बातें कब और किसी से सुनी हुई लगती है। मगर कौन ? पता नहीं, कुछ भी याद नहीं आ रहा।
डॉ.सुमन : आप का तो पता नहीं, मगर मुझे बहुत ज़ोरो सी भूख लगी है, ( मीना को आवाज़ देते हुए ) मीना मुझे बहुत भूख लगी है, आज खाने में क्या बनाया है ? मुझे जल्दी खाना देदो, मैं अभी फ्रेश होके आती हूँ।
कहते हुए डॉ.सुमन अनाम को अपने पापा के पास बैठाते हुए ऊपर की ओर जाने लगती है। तभी डॉ.सुमन के पापा डॉ.सुमन को कहते है,
पापा : मीना को घर जाने में देरी हो रही थी, इसलिए आज मीना ज़ल्दी ही खाना बना के चली गई। आज उसने तुम्हारे मनपसंद छोले-भटूरे और गाजर का हलवा भी बनाया है। तुम फ्रेश होके आ जाओ, तब तक मैं खाना गरम करके टेबल पे लगाता हूँ।
डॉ.सुमन : ठीक है, पापा। मैं अभी आई।
कहते हुए डॉ.सुमन फ्रेश होने चली जाती है। डॉ.सुमन के पापा अनाम को भी फ्रेश होने को कहते है और वह kitchen में खाने की तैयारी में लग जाते है। अनाम अपने हाथ-मुँह धोकर फ्रेश होके आता है, अनाम डॉ.सुमन के घर की सब चीज़े गौर से देख रहा होता है, जैसे पहली बार किसी के घर में आया हो और घर ऐसा भी होता है, ये महसूस भी किए जा रहा था।
घर के अंदर एक बड़ा सा दीवानखंड है, दरवाज़े के पीछे shoe rek है और उसके ऊपर एक flower pot रखा है, जिसमें कुछ फूल रखे हुए है, जो शाम होते-होते मुरझा गए है। उसके सामने सोफ़ा, कुर्सियाँ और साइड टेबल रखा हुआ है, जिस पे कुछ newspaper और magazine रखी हुई है, जिस से पता चलता है, कि डॉ.सुमन के पापा को भी डॉ.सुमन की तरह पढ़ना अच्छा लगता हो। सोफे के सामने बड़ा सा t.v है, टी.वी. केस के ऊपर एक रेडियो है, जो दिखने में थोड़ा पुराना सा है, मगर गाने अच्छे बजाता होगा, इस से पता चलता है, कि डॉ.सुमन और उनके पापा को रेडियो पे गाना सुनना अच्छा लगता होगा। तभी कोई अपने घर में रेडियो रख़ता है, उस के आगे जाए तो बगल में एक कमरा है, जिसमें सिर्फ़ कान्हा जी की मूर्ति है, मतलब की वो कमरा एक देरासर जैसा है, जिसमें भगवान और उनकी सारी चीज़े रखीं हुई है, जिसमें पूजा का सारा सामन और कुछ धार्मिक पुस्तकें भी है। इस से पता चलता है, कि डॉ.सुमन और उनके पापा भगवान् में भी मानते है और रोज-बरोज भगवान् की पूजा भी करते होंगे। दीवानखंड के पीछे की ओर रसोई है, रसोई के बिच में चार ख़ुर्शी वाला बड़ा डाइनिंग टेबल है। रसोई के करीब दूसरा एक बड़ा कमरा जोड़े हुआ है, जो शायद डॉ.सुमन के पापा का ही होगा, ऐसा अनाम ने अंदाज़ा लगाया, क्योंकि उसी कमरे से डॉ.सुमन के पापा आवाज़ लगाने पे बाहर आए थे। डॉ.सुमन के घर में सब चीज़े अपनी-अपनी जग़ह ऐसे सजी हुई है, मानो कोई यहाँ पे रोज़ सफाई करता हो, इस से पता चलता है, कि डॉ.सुमन और उनके पापा को सफाई पसंद है। दीवानखंड के करीब से एक सीढ़ी है, जो ऊपर तक जाती है और ऊपर दो कमरे है, जो काफी बड़े होंगे, ऐसा अनाम को नीचे से देख के लगता है। अनाम बड़े गौर से सारी चीज़ें देखें जा रहा है, जैसे पहली बार अनाम ने कोई घर देखा हो। सीढ़ियों से नीचे उतरते वक़्त डॉ.सुमन चुपके से ये देख रही थी, कि अनाम सब कुछ बड़ी गौर से देखे जा रहा है, जैसे कोई नन्हा बच्चा पहली बार ये सब देख रहा हो।
तो दोस्तों, अनाम जैसे ये सब कुछ पहली बार देख रहा था, मतलब की वो इन सब से अभी भी अनजान है, अनाम के लिए अपना ये जीवन भी एक नए जन्म जैसा है, जिस में उसका दूसरा जन्म हुआ है और एक छोटा बच्चा जो दुनिया में आने पे सब चीज़े और लोगो को पहचानने की कोशिश कर रहा है। वैसे ही अनाम भी हर तरफ जहाँ भी नज़र जाऐ, सब कुछ नया और जैसे पहली बार देख रहा हो, ऐसा उसे लगता है। आप ही सोचिए दोस्तों, उस इंसान को कैसा लग रहा होगा, जिसके लिए ये सब नया सा हो। क्या आप सब ने कभी ऐसा सोचा है दोस्तों, कि सच में अगर किसी इंसान की याददास्त चली जाए तब उसके साथ ऐसा भी होता होगा। कितना अजीब लगता है, उसके लिए हर चीज़ और हर बात नई होती है। अब आगे...
डॉ.सुमन चुपके से अनाम को सब कुछ गौर से देखते हुए देख रही है, फ़िर सीढ़ियों से उतरते हुए डॉ.सुमन आवाज़ लगाती है,
डॉ.सुमन : अनाम क्या देख़ रहे हो ? हमारा छोटा सा घर पसंद आया की नहीं ?
अनाम : जी, डॉ.सुमन आपका घर तो बहुत अच्छा है, मेरे लिए तो जैसे एक सपना हो। क्या मेरा घर भी ऐसा ही होगा, डॉ.सुमन ?
अनाम डॉ.सुमन से बड़ी मासूमियत से पूछ लेता है।
पापा : ( जिन्होंने भी पीछे से अनाम की बातें सुन ली थी। ) हाँ, हाँ ज़रूर क्यों नहीं। तुम्हारा घर भी होगा और एक ना एक दिन तुम अपने घर भी ज़रूर जाओगे, तब तक तुम इसे अपना ही घर समझना। है ना सुमन बेटा ?
डॉ.सुमन : हां, पापा। आपने बिलकुल ठीक कहाँ।
( डॉ.सुमन बात को घूमाते हुए )
अब चलो खाना खाते है, मुझे तो बहुत भूख़ लगी है।
पापा : ( डॉ.सुमन का इशारा समझ जाते है। ) हाँ, मुझे भी बहुत भूख़ लगी है, अब पहले खाना खा लेते है, बातें बाद में करेंगे।
सब साथ में खाना खाने बैठ जाते है। डॉ.सुमन ने अपनी, अनाम की और अपने पापा की प्लेट लगा ली। अनाम को सब कुछ अजीब लगा रहा था। इसलिए डॉ.सुमन अनाम को अपनी बातों में उलझा रही थी।
डॉ.सुमन : ( खाते-खाते ) आज तो मीना ने बहुत ही अच्छी सब्जी बनाई है। क्यूँ अनाम, तुमको पसंद आया के नहीं ?
अनाम : हाँ, पसंद आया ना ! सब्जी तो और भी अच्छी बानी हुई है।
इससे ये पता चलता है, कि अनाम को खाने में तीख़ा ज़्यादा पसंद आता है। खाना खाके अनाम और उसके पापा घर के बाहर छोटा सा बगीचा है, वहां चले जाते है, जिसमें चौरों ओर बहुत फूल उगाए गए है और एक कोने में बैठने के लिए चार कुर्सियाँ और उसके साथ एक छोटा सा झूला भी है, जिस पे सिर्फ़ एक ही इंसान बैठ सकता है, उसी झुले पे डॉ.सुमन थोड़ी देर में आके बैठ जाती है।
डॉ.सुमन के पापा कुर्सी पे बैठते हुए
पापा : अनाम तुम यहाँ मेरे पास इस कुर्सी पे बैठ जाओ। वैसे भी सुमन अपने झूले पे किसी को भी बैठने नहीं देती।
तीनो आराम से बातें करते है, एक तरफ रेडियो भी चलाए रखा है। जिसमें इस वक़्त पुराने गाने बज रहे है। शायद अनाम के लिए ये पुराने गाने भी अब नए है, क्योंकि अनाम ने शायद पहली बार ऐसे गाने सुने। ऐसा उसे लगा।
दोस्तों, अब आप समज ही गए होंगे, कि याददास्त चली जाने से कितनी सारी चीज़े उस इंसान के लिए नई होती जा रही है, अब आगे...
बाते करते-करते वक़्त कहाँ बीत गया, किसी को पता ही नहीं चला। थोड़ी देर बाद अनाम का चेहरा देख़ डॉ.सुमन को लगा जैसे, अनाम को नींद आ रही है। बातों-बातों में डॉ.सुमन ये भूल ही गई, कि अनाम को वापस अस्पताल ले जाना है। रात भी बहुत हो चुकी है। इसलिए डॉ.सुमन के पापा ने कहा,
पापा : अनाम को आज रात यही सो जाने दो। कल सुबह अपने साथ उसे भी अस्पताल लेके चली जाना।
डॉ.सुमन को भी अपने पापा की बात सही लगी। डॉ.सुमन ने अनाम को अपने गेस्ट रूम में सो जाने को कहा, अनाम के लिए तो सब जग़ह एक जैसी थी, इसलिए अनाम डॉ.सुमन के घर रुक जाता है। डॉ.सुमन अनाम को गेस्ट रूम में चद्दर ओढ़ाके सुला देती है। डॉ.सुमन के पापा भी अपने कमरे में सो जाते है। डॉ.सुमन अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर नॉवेल पढ़ते-पढ़ते सो जाती है।
आधी रात को अनाम नींद में अचनाक से ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगता है। आज तक अनाम ने ऐसा पहले कभी नहीं किया। किसी के चीखने की आवाज़ सुनते ही डॉ.सुमन और उसके पापा भागे-भागे गेस्ट रूम तक जाते है। उन्होंने गेस्ट रूम का दरवाज़ा खोल के देखा, तो अनाम नींद में ही कुछ कह रहा था, उसकी साँसे फूल रही है, जैसे कोई इंसान के तेज़ दौड़ने से उसकी साँसे फूल जाती है, बिलकुल वैसे ही। अनाम काँप रहा है और उसे पसीना भी बहुत आ रहा है। ये देख़ डॉ.सुमन अनाम को आवाज़ लगाते हुए अनाम के चेहरे पे पानी की छींटे डालती है। अनाम के चेहरे को थपथपाते हुए
डॉ.सुमन : अनाम, अनाम क्या हुआ ? अपनी आँखें खोलो।
अनाम दूसरे ही पल गभराया हुआ तुरंत खड़ा हो जाता है, उसकी साँसे अब भी फूल रही है। डॉ.सुमन के पापा अनाम को पानी पिलाते है, कुछ देर बाद अनाम थोड़ा अच्छा महसूस करता है।
डॉ.सुमन : ( अनाम से ) क्या हुआ ? इतना ज़ोर से क्यों चिल्लाए ? कोई बुरा सपना देखा क्या ? डॉ.सुमन ने अनाम से बात करने की कोशिश की।
अनाम : जी! ( अनाम कुछ याद करते हुए ) शायद एक बहुत बुरा सपना देखा, जैसे कुछ लोग घने जंगल में मेरा पीछा कर रहे थे, मैं उनसे बचने के लिए इधर-उधर भाग रहा था। शायद वो लोग मुझे मारना चाहते थे, कि मैं ऊँचे पहाड़ पे से गिर जाता हूँ। आगे क्या हुआ मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है।
डॉ.सुमन : कोई बात नहीं, मगर क्या तुम उनका चेहरा देख पाए, कि वह लोग कौन थे ?
अनाम : नहीं, मुझे कुछ भी याद नहीं, मेरा सिर फ़िर से दर्द से फटा जा रहा है, मैं सो जाना चाहता हूँ।
डॉ.सुमन : ठीक है, अपने दिमाग पे ज़्यादा ज़ोर मत डालो, तुम आराम से सो जाओ। मैं यहीं तुम्हारे पास हूँ। कोई यहाँ तुम्हें मारने नहीं आ रहा। कहते हुए डॉ.सुमन फ़िर से अनाम को चद्दर ओढ़ाके सुला देती है।
डॉ.सुमन वही अनाम के पास रुक जाती है, डॉ.सुमन अपने पापा से सो जाने को इशारा करती है। डॉ.सुमन के पापा अपने कमरे में चले जाते है। डॉ.सुमन एक नज़र से अनाम को देखें जा रही है, डॉ.सुमन को याद आ रहा है, जो वैदजी ने अनाम के बारे में कहा था। डॉ.सुमन को अनाम की बातों से लगता है, कि अनाम को वो सब सपने में याद आ रहा होगा, जो उसके साथ हुआ था। ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी। सोचते-सोचते डॉ.सुमन की आँखें वही लग जाती है, मतलब डॉ.सुमन अनाम के पास ही बैठे-बैठे सो जाती है।
अनाम अभी भी गहरी नींद में सोया हुआ है। इसलिए सुबह होते ही डॉ.सुमन रोज़ की तरह गार्डन में walk के लिए चली जाती है, थोड़ी देर में डॉ.सुमन के पापा रोज़ की तरह उनके मंदिर में कान्हाजी की आरती करने लगे, घंटी की आवाज़ सुनते ही अनाम की आँखें खुल जाती है। अनाम धीरे से अपने बिस्तर से खड़ा होकर दरवाज़े के पीछे से बाहर की और देखता है, जहाँ से मंदिर कि घंटी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। तभी बाहर से डॉ.सुमन walk करके वापस घर आती है, डॉ.सुमन ने पानी पिते हुए अनाम को दरवाज़े के पीछे खड़ा हुआ देख लिया। डॉ.सुमन चुपके से अनाम के पास जाती है और
डॉ.सुमन : कमरे के बाहर बारिश नहीं हो रही है, तुम चाहो तो बाहर आ सकते हो।
डॉ.सुमन और अनाम दोनों ज़ोर से हसने लगे। डॉ.सुमन अनाम का हाथ खींचते हुए अनाम को कमरे से बाहर ले आती है। डॉ.सुमन अनाम को डाइनिंग टेबल पे बैठने को कहती है। डॉ.सुमन kitchen में जाकर खुद नास्ता बनाने लगती है। उतनी देर में डॉ.सुमन के पापा अपनी पूजा पूरी कर के नास्ते के लिए आ जाते है। पापा और अनाम बातें करते है।
मीना : दीदी, आप रहने दो, मुझे बता दो, क्या बनाना है मैं करती हूँ ना !
डॉ.सुमन : हां, हां, ऐसा करो तुम पापा और अनाम के लिए चाय और पराठे बना दो, तब तक में कॉर्नफ़्लेक्स चाट बना देती हूँ। मुझे भी तो कभी वक़्त मिले तो कुछ कर लेने दो।
डॉ.सुमन को कभी-कभी खाना बनाना अच्छा लगता है, इसलिए वक़्त मिले तब वो अपने लिए खुद भी नास्ता बना लेती है।
डॉ.सुमन ने प्याज़ और टमाटर काट दिए, एक बाउल लिया, उसमें डॉ.सुमन ने कटे हुए प्याज़, टमाटर, थोड़ा सा उबला हुआ और मेश किया हुआ आलू, थोड़ा सा काला नमक, थोड़ा सा निम्बू, थोड़ी सी लाल मिर्च, थोड़ा सा चाट मसाला डाला, सब कुछ एक चम्मच से मिक्स किया, बाद में उस में डॉ.सुमन ने कॉर्नफ़्लेक्स, सेव, धनिया और मायोनीज़ दाल के फिर से एक बार चम्मच से मिक्स किया। फ़िर मीना को कहा,
डॉ.सुमन : लो हो गई मेरी मनपसंद चाट तैयार। its soo yyuumm . देखते ही मुँह में पानी आ जाता है।
डॉ.सुमन अपनी चाट की खुद ही तारीफ़ करते हुए आगे डाइनिंग टेबल की ओर जाती है, जहाँ उसके पापा और अनाम बैठ के चाय, नास्ते का इंतज़ार कर रहे है। डॉ.सुमन दोनों को चाट और चाय-नास्ता देती है। तीनों साथ मिलके नास्ता करते है।
अनाम : ये कॉर्नफ़्लेक्स चाट बहुत अच्छी है।
डॉ.सुमन : है, ना ! सच में मुझे भी बहुत पसंद है,
नास्ता करने के बाद डॉ.सुमन अनाम से कहती है,
डॉ.सुमन : तुम भी अब फ्रेश हो जाओ, हम थोड़ी देर के बाद अस्पताल चलते है। ठीक है ?
अनाम : जी जरूर।
डॉ.सुमन अस्पताल जाने के लिए तैयार हो जाती है। फ़िर दोनों साथ में अस्पताल के लिए निकलते है। रास्ते में अनाम कार की खिड़की से बाहर आती-जाती हर चीज़ को बड़ी गौर से देख रहा है। जैसे की वो ये दुनिया पहली बार देख रहा हो। डॉ.सुमन कार चलाते वक़्त बिच-बिच में अनाम को देखती रहती है, कि अनाम क्या कर रहा है ?
अस्पताल पहुँचने पे अनाम कार से उतरकर
अनाम : मैं थोड़ी देर यहाँ बाहर रुकना चाहता हूँ।
अस्पताल के बाहर छोटा सा गार्डन है और गार्डन में बैठने के लिए कुर्सियाँ भी है।
डॉ.सुमन : अच्छा, ठीक है, तुम यहाँ बैठो, थोड़ी दे बाद अंदर आ जाना। तुम्हारी दवाई का वक़्त हो गया है, तुमने कल भी दवाई नहीं ली, इसलिए।
अनाम : जी थोड़ी देर में ही मैं अंदर आ जाऊँगा।
डॉ.सुमन अपना सफ़ेद कोट और पर्स लेके अपने कंसल्टिंग रूम में जाती है। एक तरफ अनाम बाहर गार्डन में इधर-उधर सब देखे जा रहा है। पेड़-पौधे, पंछी, सूरज की सुबह की धूप, साथ में चलती ठंडी हवाएँ। अनाम कुर्सी पे बैठ देखें जा रहा है। अनाम मन ही मन शायद सोच रहा होगा, कि अब मुझे क्या करना चाहिए ? में क्या कर सकता हूँ ? कब तक यूँ अस्पताल रहूँगा ? कभी तो जाना ही होगा, तो फ़िर आज क्यों नहीं ?
तो दोस्तों, क्या आप बता सकते हो, कि अनाम अब क्या करेगा ? और क्या डॉ.सुमन अनाम को अस्पताल से जाने देगी ?
अब आगे क्रमशः।
Bela...