मैं कौन हूँ ? भाग - १२
तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि डॉ.सुमन अनाम को लेकर अपने घर जाती है। बातों-बातों में रात बहुत हो जाने की बजह से डॉ.सुमन और उसके पापा अनाम को उनके घर पे ही रुक जाने को कहते है। रात को गेस्ट रूम में सोने के थोड़ी देर बाद अनाम नींद में चिल्लाने लगता है। डॉ.सुमन और उसके पापा गेस्ट रूम में जाकर देखते है, तो अनाम एक दम डरा हुआ सा था और नींद में भी कुछ बड़बड़ा रहा था। डॉ.सुमन अनाम पे पानी की कुछ छींटे डालकर अनाम को होश में लाती है। अनाम अपने सपने के बारे में डॉ.सुमन को बतलाकर सो जाता है, सुबह फ़िर दोनों साथ में अस्पताल के लिए निकलते है। अस्पताल पहुंचकर अनाम कुछ अस्पताल के बाहर के छोटे गार्डन में रुक जाता है, वहां अनाम सोचता है, कि अब मुझे क्या करना चाहिए और कैसे जीना चाहिए। अब आगे...
डॉ.सुमन अपने कंसल्टिंग रूम में जाकर अपने काम में लग जाती है। डॉ.सुमन थोड़ी देर बाद अपने दूसरे patient को देखने अस्पताल के राउंड लगाने चली जाती है। सब से बातें करते-करते डॉ.सुमन आख़िर में अनाम के कमरे तक पहुँचती है। वहां अनाम को ना पाकर पहले डॉ.सुमन थोड़ी परेशान हो जाती है, थोड़ी देर बाद डॉ.सुमन को याद आता है, कि सुबह अनाम अस्पताल के बाहर ही थोड़ी देर रुकने वाला था। डॉ.सुमन मन ही मन सोचती है, कि " अनाम अभी तक आया क्यों नहीं ?" डॉ.सुमन अस्पताल के बाहर गार्डन में जाकर देखती है, तो अनाम अब भी वही गार्डन में कुर्सी पे बैठ के कुछ सोच रहा है ! मगर क्या ?
डॉ.सुमन : ( अनाम को आवाज़ देते हुए )
अनाम, चलो अंदर आ जाओ। क्या कर रहे हो कब से बाहर ? ( मज़ाक करते हुए ) कहीं भागने का तो इरादा नहीं ?
अनाम : जी नहीं। अभी आता हूँ।
( अनाम डॉ.सुमन के पास जाते हुए )
आज ऐसा लगा, जैसे पहली बार घर से बाहर निकला हूँ और सब कुछ नया-नया सा लग रहा है।
डॉ.सुमन : हाँ, लगेगा ही, क्योंकि तुम नई जगह पे जो हो। तुम्हें पता भी है, कि तुम कहाँ हो ? कसोल गांव से कुछ किलोमीटर दूर शिमला में है हम। यहाँ ठण्ड कुछ ज़्यादा ही रहती है। इसलिए अब चलो अपने कमरे में। वार्ना सर्दी लग जाएगी, तो फ़िर से दवाई खानी पड़ेगी।
अनाम को अपने साथ अंदर ले जाते हुए।
डॉ.सुमन : अच्छा तो बताओ, इतनी देर से क्या सोच रहे थे?
अनाम : हाँ, कुछ सोच तो रहा था वो ये, कि अब मैं क्या करूँगा ? मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा। में बैठे-बैठे bore हो जाता हूँ। मुझे कुछ करना है। जैसे मैं किसी की मदद कर सकू। मेरा ये जीवन अगर किसी के काम आऐ तो इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है। मगर समज नहीं आ रहा, क्या करूँ ?
डॉ.सुमन : ओह्ह ! तो ये सोच रहे थे तुम। बहुत अच्छे। अब मुझे भी कुछ सोचना पड़ेगा तुम्हारे लिए। अभी के लिए तुम मेरी नॉवेल पढ़ो और हाँ वैसे भी मैं भी तुम्हें कब तक यहाँ रखूंगी ? ( थोड़ा मज़ाक करते हुए ) ये कमरा किसी और के भी तो काम आ सकता है ना ? और सच कहु, तो अब तक की तुम्हारी दवाई का और ये अस्पताल का ख़र्चा भी तो तुम्हें चुकाना है। ऐसे कैसे जाने देंगे तुझे यहाँ से ? ( डॉ.सुमन हस्ते हुए )
अनाम भी हस पड़ता है। तभी एक नर्स वहां आती है और डॉ.सुमन से कहती है, कि
नर्स : डॉ.सुमन, रूम नंबर ४०२ में जो पेशेंट है, उसकी तबियत और बिगड़ती जा रही है, कल आप नहीं थे तो डॉ.अजित ने उन्हें देखा था, उन्हें दवाई और इंजक्शन भी लगाया था। मगर उनके घुटनों का दर्द बढ़ता ही जा रहा है, ऑपरेशन के बाद वह खड़ी भी नहीं हो पा रही है।
डॉ.सुमन : अच्छा ठीक है, तुम जाओ, मैं आकर देख लेती हूँ।
नर्स : जी डॉ.सुमन और हाँ, डॉ.अजित ने कहा है, कि अगले दो दिन शायद वो अस्पताल में ना आए। उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं है।
डॉ.सुमन : ok
डॉ.सुमन उस पेशेंट को देखने जाति है, जिसके घुटनों का ऑपरेशन हुआ था। वह सच में दर्द में थी। डॉ.सुमन ने उनकी दवाई और इंजेक्शन बदल दी और उतने वक़्त में डॉ.सुमन ने उसे बातों में उलझाए रखा। थोड़ी देर बाद उसे अच्छा लगने लगा। वो अपना दर्द भी भूल गई।
तो दोस्तों, " अपने दर्द को दूर करने के लिए कभी-कभी सिर्फ़ अपना ध्यान कहीं और लगाने की ज़रूरत है। दर्द अपने आप दूर हो जाएगा। "
अब अनाम बस यही सोच में है, कि मेरे साथ किस्मतने जो मज़ाक किया है, उसे मैं स्वीकार करते हुए अपनी ज़िंदगी शुरू करना चाहता हूँ, " मैं कौन हूँ ? " इस सवाल का जवाब ढूँढने से अच्छा है, " मैं अब क्या कर सकता हूँ ? " ये अगर सोचु, तो मेरे लिए ज़्यादा बेहतर होगा। जिस से की मेरा जीवन किसी के काम भी आ जाए और किसी की ज़िंदगी में मैं ख़ुशी भी ला सकूँ। इसलिए अनाम डॉ.सुमन से कहता है,
अनाम : जी डॉ.सुमन, मैंने अपने बारे में कुछ सोचा है।
डॉ.सुमन : अच्छा, बहुत अच्छे ! तो अब क्या सोचा है आपने ? ( डॉ.सुमन कॉफ़ी पीते हुए )
अनाम उम्र में डॉ.सुमन से शायद छोटा लगता है, मगर है वो समझदार। इसलिए डॉ.सुमन अनाम के साथ एक छोटे बच्चे की तरह बातें करती है। अब आगे...
अनाम : जी, मैंने सोचा है, कि आज के बाद मुझ से जितना भी बन सके मैं अपना जीवन दुसरों की सेवा में गुज़ारना चाहता हूँ। क्योंकि " मेरा इस दुनिया में कौन है ? मैं कहाँ से हूँ ? " अब तक मुझे कुछ भी पता नहीं। मगर मुझे पक्का यकींन है, कि एक ना एक दिन मुझे सब याद आ ही जाएगा और मेरे अपने भी शायद मुझे मिल ही जाएँगे। मगर तब तक मैं यूँही बैठा नहीं रह सकता। इसलिए क्यों ना मैं उस अस्पताल में लोगो की सेवा करू, जहाँ आप मुझे लेकर गए थे। उनके साथ बातें करूँगा, उनकी दवाई का और खाने का ख्याल रखूँगा। शायद वही मुझे मेरी मंज़िल भी मिल जाए।
डॉ.सुमन : बहुत अच्छे ख़याल है तुम्हारे। मगर अनाम, क्या तुम ऐसा कर सकोगे ? क्योंकि ये सब तुम समझ रहे हो, उतना आसान भी नहीं है।
अनाम : जी डॉ.सुमन, वैसे भी आसान तो ज़िंदगी में कुछ भी नहीं। आप भी तो ये सब करती ही है ना, मुझे उस दिन आपकी बातें सुनकर बड़ा अच्छा लगा, मैं भी आपके जैसा ही बनना चाहता हूँ। वैसे भी मेरी ज़िंदगी में अब रखा ही क्या है ? मेरी ये ज़िंदगी किसी के काम आ जाए, तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ?
डॉ.सुमन को अनाम की ऐसी समझदारी भरी बात सुनकर बहुत अच्छा लगा, डॉ.सुमन को लगा, कि जैसे अनाम को सब कुछ सच-सच बता कर उसने अच्छा ही किया। अब वो अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीना चाहता है, तो मुझे उसे सपोर्ट करना ही चाहिए। अब उसकी तबियत भी ठीक हो गई है, अगर वो बाहर जाएगा, किसी से बातें करेगा, तो उसे अच्छा भी लगेगा।
डॉ.सुमन : अच्छा ठीक है, अगर तुम्हारी यही मर्ज़ी है, तो यही सही। मैं वहां के डॉक्टर प्रशांत से बात करके तुम्हें वहां जाने की परमिशन दिला दूँगी, वहां पे तुम्हें क्या करना होगा, वो भी मैं तुम्हें समजा दूँगी। ताकि वहां पे तुम्हें कोई परेशानी ना हो।
अनाम : जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।
डॉ.सुमन : मगर अब तुम रहोगे कहाँ ? तुम ऐसा करना, कुछ दिन तुम हमारे साथ मेरे घर पे रुक जाना, मैं तुम्हें रोज़ सुबह अस्पताल छोड़ दूँगी। शाम को घर जाते वक़्त तुम मेरे साथ ही आ जाना। तब तक मैं तुम्हारे लिए दूसरे घर का भी इंतेज़ाम कर लुंगी। ठीक है ?
( डॉ.सुमन अनाम के बालों को सराहते हुए )
अनाम : ठीक है, और मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं।
डॉ.सुमन : अच्छा बाबा, अब तुम अपने कमरे में जाकर बुक पढ़ो, या आराम कर लो, तब तक मैं अपना काम निपटाती हूँ और डॉक्टर प्रशांत से तुम्हारे बारे में पूछ भी लेती हूँ।
अनाम : जी, जैसा आप कहे।
कहते हुए अनाम वहां से चला जाता है।
डॉ.सुमन अनाम को यूँ जाता हुआ, देख़ते सोच रही है, वैसे तो अनाम बहुत सीधा-साधा और सरल है, ज़रा सा समझाने पर अनाम सब समझ जाता है।
आज अस्पताल में ज़्यादा कुछ काम भी नहीं था, इसलिए अनाम के जाने के बाद डॉ.सुमन आराम से अपनी डायरी निकालकर कुछ लिखने लगती है।
" ए खुदा, वक़्त बे वक़्त किसी पे यूँ ज़ुल्म मत करना, कभी किसी को यूँ अपनों से जुड़ा मत करना, अगर जुड़ा किया है तो तू ही एक दिन उसे मिला देना, वक़्त बे वक़्त यूँ, किसी पे ज़ुल्म मत करना। "
तो दोस्तों, अब अनामने अपनी ज़िंदगी में हुए हादसे को स्वीकार कर लिया है और अब वो अपनी ज़िंदगी उन लोगों की सेवा में गुज़ारना चाहता है जिनको सच में किसी की मदद की या किसी के सहारे की ज़रूरत है।
अब आगे क्रमशः।
Bela...