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मैं कौन हुँ ?

23 नवम्बर 2022

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                       मैं कौन हूँ ? भाग - 6 

          तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि डॉ.सुमन ने उस लड़के का नाम अनाम रखा है, अनाम को अब होश आने लगा है और अब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं। अनाम हर वक़्त यही पूछ रहा है, कि मैं  कौन हूँ ? और मैं कहाँ हूँ ? जिसका डॉ.सुमन के पास कोई जवाब नहीं। डॉ.सुमन जैसे-तैसे करके अनाम को समजा के अपने कंसल्टिंग रूम में चली जाती है और थोड़ी ही देर में नर्स गभराई हुई सी डॉ.सुमन को वापस बुलाने आती है, अब आगे...


नर्स : डॉ.सुमन जल्दी से चलिए। 

      मगर डॉ.सुमन अपने ही ख़यालो में खोई हुइ थी। नर्स डॉ.सुमन को फिर से आवाज़ लगाती है। 

डॉ.सुमन जल्दी चलिए, बाहर एक माँ अपने छोटे बच्चे को लेके आई है, जिसके सिर पे  बहुत गहरी चोट लगी है और उसके सिर से बहुत खून भी बह रहा है। आप ज़ल्दी चलिए।  

     नर्स गभराई हुइ सी एक ही साँस में सब बोल जाती है। 

डॉ.सुमन : ठीक है। तुम चलो मैं आति हूँ और डॉ.अजित को भी जल्दी से बुला लो। कहते हुए डॉ.सुमन भी अपना सफ़ेद कोट पहनते हुए नर्स के पीछे पीछे ही जल्दी में चलती है।

          एक छोटे बच्चे जिसकी उम्र तकरीबन  १० या १२ साल की होगी, उसके सिर में से बहुत खून बह रहा था, उसकी माँ ने कपडे से उसका सिर दबाए रखा था, उसकी माँ रोए जा रही थी। 

                                 ( उसे सांत्वना देते हुए )

 डॉ.सुमन : आप शांत हो जाइए, देखिऐ  डरिए मत, आप बाहर जाकर बैठिए, हम इसको देख लेंगे।

           कहते हुए डॉ.सुमन दुसरी नर्स को इशारा करके बताती है, कि  इसकी माँ को बाहर लेके जाओ और इसका ख्याल रखना।  नर्स डॉ.सुमन का इशारा समझ  जाती है और लड़के की माँ को बाहर लेके जाती है। )

नर्स : आप बाहर चलिए, डॉक्टर्स को अपना काम करने दीजिए, आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। सब ठीक हो जाएगा,  (नर्स उसको पानी देते हुए ) आप रोइए मत और पानी पि लीजिए। 

( लड़के की माँ थोड़ी शांत हो जाती है।) डॉ.सुमन और डॉ.अजित साथ मिलकर  उस बच्चे के सिर पे टंका लेकर पट्टी कर देते है। मगर खून बहुत बह चूका था, एक तो नन्ही जान और ऊपर से इतना सारा खून बह चूका था, इसकी वजह से लड़का बहुत कमज़ोर पड गया था। कुछ देर बाद डॉ.सुमन और डॉ.अजित हाथ धोकर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आते है, डॉक्टर्स को बाहर आते देख लड़के की माँ उठकर तुरंत उनके पास दौड़ी चली आती है, और पूछती है की अब मेरे मुन्ना की तबियत कैसी है ? वह ठीक तो हो जाएगा ना ? 

डॉ.सुमन : ( लड़के की माँ को समझाते हुए, ) आपके लड़के को कुछ नहीं हुआ है, वह बिलकुल ठीक है, आप उसे कुछ देर बाद मिल सकती है, नर्स उसे कमरे में लेकर चलती है। लड़के की माँ को थोड़ी तसल्ली मिलती है, वह डॉ.सुमन का बहुत-बहुत धन्यवाद करती है और डॉ.सुमन के पैर भी पड़ने लगती है, की अगर आज आप नहीं होते तो मेरे मुन्ना का क्या होता ? 

                      (डॉ.सुमन उसे उठाते हुए, ) 

डॉ.सुमन : ये आप क्या कर रही है, पहले तो अब आप रोना बंद कीजिए, उसमें धन्यवाद किस बात का ? यही तो हमारी ड्यूटी है, जो हमने निभाई है और तो क्या किया ? 

                ( उसे फिर से कुर्सी पे बैठाते हुए।)

  लड़के की माँ डॉ. सुमन को ढेर सारा आशीर्वाद देती है। 

डॉ.सुमन : लेकिन ये सब हुआ कैसे ? वह इतनी ऊपर से गिरा कैसे ? आपका ध्यान नहीं गया ?

माँ : मेरा मुन्ना बालकनी में खेल रहा था, मेरे पति भी कुछ काम से बाहर गाँव गए है, घर में और कोई नहीं था, मैं किचन में खाना बना रही थी। तभी उसकी छोटी सी  कार नीचे  गिर गई, मुन्ना ने मुझे आवाज़ भी लगाई, कि  माँ मेरा खिलौना निचे गिर गया है। मैंने उसे कहा भी कि  तुम रुको मैं अभी लेकर आति हूँ। तो वह बालकनी में रखे टेबल पे चढ़कर अपनी कार को देखने के लिए थोड़ा झुकता है, तो उसका पैर टेबल पे से फिसल जाता है और वह गिर जाता है। उसकी आवाज़ सुनकर मैं दौड़ी चली आई और मैं अपने मुन्ना को सीधे ही अस्पताल लेकर चली आई । 

डॉ.सुमन  : हम्म... तो ये बात है, अच्छा हुआ आप उसे जल्दी लेकर चली आई, अगर थोड़ी देर हो जाती तो.... मगर अब डरने की कोई बात नहीं, अब वह ठीक है, आप उसे मिल सकती है, मैं अब चलती हूँ। मुझे और भी कुछ काम है।  

          कहते हुए डॉ.सुमन फिर से अपने कंसल्टिंग रूम में जाती है और अपना सफ़ेद कोट और पर्स लेकर  घर जाने के लिए निकलती है, तभी उसे अनाम के बारे में ख्याल आता है, मगर आज वह उसे देखे बिना ही नर्स को बतलाकर चली जाती है। 

डॉ.सुमन : ( नर्स को ) अनाम का खयाल रखना और अगर कुछ ज़रूरी काम हो तो मुझे फ़ोन करके बता देना।   

नर्स : जी, डॉ.सुमन आप बेफिक्र होकर जाइए, हम सब देख लेंगे। 

कहते  हुए डॉ.सुमन अपनी कार में घर चली जाती है। 

          घर जाते ही अपना सफ़ेद कोट और पर्स सोफे पे रखते हुए, हाय रे आज तो मैं बहुत ठक गई हूँ। अपनी बाई मीना को आवाज़ लगाते हुए,

डॉ.सुमन : मीना मैं अभी फ्रेश होकर आती हूँ, तुम जल्दी से मेरे लिए गर्मागर्म खाना निकालो, मुझे बहुत ज़ोरो से भूख लगी है और पापा कहाँ है ? पापा को भी बुला लो, साथ में बैठकर खाना खाएँगे।  

मीना : जी, अभी लाती हूँ दीदी।  साहब अपने कमरे में है, मैं  उसे भी खाने के लिए बुला लेती हूँ, आप तब तक फ्रेश  हो जाइए। 

         डॉ.सुमन फ्रेश होकर डाइनिंग टेबल पे खाने के लिए बैठ जाती है, तभी उसके पापा भी वहां आ जाते है।  

पापा : कैसी हो बेटी ? आज आने में बहुत देर लगा दी तुमने ? 

    डॉ.सुमन अपने पापा की बात को अनदेखा करते हुए 

डॉ.सुमन : क्या बनाया है खाने में आज ? 

मीना : जी आपके मनपसंद  गरमागरम आलू के पराठे। साथ में दही और आपकी मनपसंद हरी चटनी। 

डॉ.सुमन : हहममम ववाह, सुनते ही मुँह में पानी आ गया। जल्दी से दे दो। 

मीना : जी दीदी, ये लीजिऐ गरमागरम आलू के पराठे। 

        मीना आलू के पराठे परोसते हुए। डॉ.सुमन पहला  निवाला मुँह में रखते ही, 

डॉ.सुमन : वाह मीना तेरे हाथों में तो जादू है, ऐसे आलू के पराठे तो मैंने कहीं और कभी नहीं खाऐ ।  मुझे और भी देदो।  

             जल्दी जल्दी में कहते हुए। 

पापा : अरे, आराम से खाओ ऐसी भी क्या जल्दी है। 

डॉ.सुमन : जी पापा बहुत भूख लगी है और ऊपर से ये आलू के पराठे इतने टेस्टी बने है की रुका नहीं जाता। 

        पापा डॉ.सुमन की नादानी पे मन ही मन उसे देख के मुस्कुराए जाते है।  तीन चार पराठे खाने के बाद, डकार लेते हुए, अब कहिए, पापा आप क्या कह रहे थे ? 

पापा : आज अस्पताल से आने में इतनी देर क्यों हो गई तुझे ?

डॉ.सुमन : वह बात ये है ना, कि  शाम को एक छोटा बच्चा अपने घर की बालकनी से निचे गिर गया था तो, उसे सिर में चोट लगने की वजह से उसके सिर से बहुत खून बह चूका था, तो उसी में मुझे देर हो गई, वैसे डॉ.अजित भी उस वक़्त मेरे साथ थे तो जल्दी से उसका ऑपरेशन हो गया।  लेकिन अब वो ठीक है।  मगर उसकी माँ बहुत परेशान थी। बहुत रो रही थी, आख़िर माँ तो माँ ही होती है ना ! डॉ.सुमन माँ का शब्द लेते ही उसकी पलके भर आती है, फिर बात को बदलते हुए,

             तो दोस्तों, आपको ये भी बता दे की डॉ.सुमन की माँ भी बचपन में ही एक कार एक्सीडेंट में मर गई थी। इसलिए डॉ.सुमन कभी-कभी अपनी माँ को बहुत मिस करती है। 

पापा : ( बात को बदलते हुए ) और हां उस लड़के को होश आया की नहीं जिसके बारे में तुम दो दिन पहले मुझे बता रही थी। 

डॉ.सुमन : ( उसे याद करते हुए थोड़ा सहम जाती है ) 

हाँ, पापा उस लड़के को होश तो आ गया लेकिन मुझे लगता है, कि उसके सिर में चोट लगने की वजह से उसकी याददास्त चली गई है, उसे अपने पास्ट के बारे में कुछ भी याद नहीं आ रहा है, वह बहुत परेशान रहता है। 

पापा : ओह्ह ये बात है, कोई बात नहीं। शायद कुछ दिनों के बाद उसे सब याद आ भी जाए। कई cases में ऐसा हुआ भी है। 

डॉ.सुमन : हाँ, आप ठीक कह रहे है। काश की ऐसा हो जाए। हम उपरवाले से सिर्फ प्रार्थना कर सकते है, आगे क्या करना वो तो उसकी मर्ज़ी के मुताबिक होगा। चलो आज मैं बहुत ठक गई हूँ, तो मैं अपने कमरे में जाके  सो जाती हूँ।  गुड नाईट पापा। 

पापा : गुड नाईट बेटा। 

      दोनों अपने-अपने कमरे में सोने चले जाते है।  डॉ. सुमन को लेकिन नींद नहीं आ रही, तो वह  खिड़की के पास अपनी कुर्सी पर बैठ के नाेवेल पढ़ने लगती है, मगर नॉवेल पढ़ते-पढ़ते डॉ.सुमन अनाम के बारे में ही सोच रही थी। डॉ.सुमन को नॉवेल पढ़ते-पढ़ते कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला। रात को देर से सोने की वजह से डॉ. सुमन को सुबह उठने में भी देरी हो गई। )

पापा : ( सुबह-सुबह मीना से पूछते हुए ) आज सुमन अब तक निचे क्यों नहीं आई।  जाओ ऊपर जाकर देखो क्या बात है ? शायद सो रही होगी।

मीना : जी साहब, अभी जाती हूँ। मैं भी यही सोच रही थी, कि आज दीदी को आने में इतनी देर क्यों हो गई ? 

         मीना ऊपर डॉ.सुमन के कमरे में जाकर उसे आवाज़ लगाती है। 

पापा : ( अपने आप से  )  कितनी बार सुमन से कहा है, कि  रात को देर तक नॉवेल मत पढ़ा करो, मगर वह सुनती कहा है किसी की ?

मीना : ( कमरे में जाके देखती है, कि )  डॉ.सुमन नॉवेल  पढ़ते-पढ़ते कुर्सी पे ही सो गई थी।  उनका बिस्तर जैसा का तैसा था।   ( डॉ सुमन को आवाज़ लगाते हुए ) दीदी-दीदी साहब आपको बुला रहे है, आज अस्पताल नहीं जाना क्या आपको ? 

डॉ.सुमन : अंगड़ाइयाँ लेते हुए, हा आती हूँ अभी, ऐसी भी क्या जल्दी है ? कितने बजे घड़ी में ? ( डॉ.सुमन के कपडे समेटते हुए ) 

मीना : १० बजने को है दीदी।

डॉ.सुमन :  क्या १० बज गए ? तुमने मुझे पहले क्यों नहीं जगाया ?

       कहते  हुए हरबराती में डॉ.सुमन वाशरूम में फ्रेश होने को चली जाती है, 

डॉ.सुमन : मेरे कपडे जल्दी से निकालो। 

मीना :  हांँ, रखती हूँ।  दीदी भी ना हर वक़्त जल्दी में रहती है, देर से उठती है और सभी को भगाति है अपने साथ, हर वक़्त हरबराती में रहती है, पता नहीं क्या चल रहा होता है दीदी के दिमाग में।  

                ( कपडे टेबल पे रख कर मीना )

 मीना : मैं आपका नास्ता टेबल पे लगा देती हूँ, आप जल्दी से नीचे आके नास्ता कर लीजिए।

 डॉ.सुमन : शायद आज मैं नास्ता नहीं भी करू ! तुम नास्ता पैक कर दो,  वार्ना मुझे जाने में देरी हो जाएगी। 

      और मीना निचे नास्ते की तैयारी में लग जाती है।

 मीना :  जी साहब, दीदी ने नास्ता पैक करने को बोला है। आप नास्ता कर लीजिऐ।

          मीना डॉ.सुमन का नास्ता पैक कर देती है। 

पापा : ( मन ही मन ) ये सब तो  इसका रोज़ का हो गया है, ये लड़की भी ना, अपने बारे में कभी सोचती ही नहीं। 

 डॉ.सुमन : तैयार होकर नीचे आती है,

 ( बड़बड़ाते हुए ) अपना सफ़ेद कोट और पर्स तो ऊपर ही भूल गई, फिर से भागी-भागी ऊपर जाती है और अपना सफ़ेद कोट और पर्स लेकर नीचे आति है, उसे देखकर डॉ.सुमन के  पापा और मीना दोनों ज़ोर से हंस पड़ते है, 

डॉ.सुमन : क्या हुआ अब आप दोनों यूँ मुझे देख इतना क्यों हस रहे हो ? 

पापा : आईने में जाकर देख आज तूने जुटे दोनों पैरो में अलग-अलग पहने है।  ज़रा साँस तो लेले बेटी !

       तीनो साथ में हस पड़ते है। डॉ.सुमन अपनी नादानी पे खुद ही अपने सिर पर हाथ रख कर हस्ती है।

               ( तभी अस्पताल से फ़ोन आता है। ) 

नर्स : डॉ.सुमन, आप जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी अस्पताल आ जाइए। अनाम को संँभालना अब हमारे लिए  मुश्किल हो रहा है। 

डॉ.सुमन : क्या हुआ ? 

नर्स : अनाम ने पूरा अस्पताल सिर पे उठा रखा है, अपने कमरे में सारी  चीज़े फिर से  इधर-उधर फ़ेंक रहा है और हम में से वो किसी की नहीं सुनता है, आप जल्दी से बस अस्पताल आ जाइए।  

डॉ.सुमन : उसे रोके रखो, मैं अभी आति हूँ।  

      डॉ.सुमन अपना सफ़ेद कोट, पर्स  और टिफ़िन लेकर अपनी कार में जल्दी से अस्पताल पहुँच जाती है। अस्पताल जाकर डॉ.सुमन देखती है तो सच में अनाम ने उधम मचा के रखा था। कमरे में फिर से सारी चीज़े बिखरी हुई थी। दवाइयाँ नास्ता, पानी की बोतल सब नीचे  गिरा हुआ था। उसका बिस्तर भी बिखरा हुआ था, खिड़की के परदे भी फ़ट गए थे, अनाम ने पागलो जैसा हाल बना रखा था। वार्ड बॉय और नर्स उसे संँभाल रहे थे। मगर वह अस्पताल से भागने की, जैसे कोशिश कर रहा था। डॉ.सुमन उसके पास जाकर उस से बात करने की कोशिश करती है, 

डॉ.सुमन : देखो अनाम सुनो, मेरी तरफ देखो !

        मगर वह कुछ नहीं सुन रहा, अनाम सारी चीज़े इधर से उधर फेंके जा रहा था। डॉ.सुमन ने जल्दी में आकर उसे रोकने के लिए उसके गाल पर एक ज़ोरो से थप्पड़ मार दिया। डॉ.सुमन के ऐसा करने से कमरे में सन्नाटा  छा गया, अनाम भी गिर के कोने में बैठ गया। डॉ.सुमन का ये रूप अस्पताल में कभी किसी ने नहीं देखा था, इसलिए सब के चेहरे पे एक चुप्पी छा जाती है।  डॉ.सुमन इशारे से नर्स को इंजेक्शन लाने को कहती है और सब को कुछ देर के लिए बाहर जाने को कहती है। डॉ. सुमन के कहने से सब बाहर चले जाते है। डॉ.सुमन अनाम के पास जाती है, उसका चेहरा अपने हाथों से उठाती है और उसके पास बैठ कर उसे समझने की कोशिश करती है। 

डॉ.सुमन : तुम्हें जानना है ना, कि तुम कौन हो ? तो सुनो, अपने आप का सामना करो, तुम्हारा नाम अनाम है और ये नाम मैंने तुझे दिया है। तुम्हें यहाँ एक वैदजी इलाज के लिए लाऐ थे, जब तुम्हारी हालत बहुत ही ख़राब थी उस वैदजी के पास तुम्हें एक मछुआरा बेहोश हालत में समंदर के किनारे से उठा कर लाया था। कई दिन से तुम कोमा में थे। तुम्हारे सिर पे गहरी चोट लगने की वजह से तुम्हारा ऑपरेशन किया था। इसलिए शायद तुम्हें तुम्हारी पिछली ज़िंदगी के बारे में कुछ याद नहीं। डॉ.सुमन ने अपनी बात ख़तम की।

         मगर अब क्या ? अनाम डॉ.सुमन के चेहरे को एक नज़र से देखता ही रह गया। अनाम एकदम से शांत हो गया। ऐसे में नर्स इंजेक्शन लेकर आति है और डॉ.सुमन अनाम को बातो-बातो में इंजेक्शन लगा देती है। नर्स की मदद से डॉ.सुमन अनाम को  बिस्तर पे लेटा देती है। अनाम अभी डॉ.सुमन की बात सुन रहा होता है। 

 डॉ.सुमन : मैं तुम्हें ये सब नहीं बताना चाहती थी, क्योंकि मुझे पता था, कि ये जानकर तुम्हें और भी तकलीफ होगी। मगर मुझसे तुम्हारी ये बैचेनी देखि नहीं गई, अब तुम्हें तुम्हारी ज़िंदगी नए सलीके से शुरू करनी होगी। ऐसा भी  हो सकता है, कुछ दिनों के बाद तुम्हें अपने बिते हुए कल के बारे में सब कुछ याद आ भी जाए। इसलिए तुम अपने दीमाग पे ओर ज़ोर मत दो, वार्ना तुम्हारी तबियत और भी बिगड़ सकती है। अपने आप को सँभालो, मैं हूँ तुम्हारे साथ, किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो तुम मुझे बता सकते हो। अब तुम आराम करो, तुम्हें आराम की सख्त ज़रूरत है और हांँ हो सके तो अपने दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर मत लगाना। मैं थोड़ी देर बाद वापस तुम्हें देखने आती हूँ, 

      कहकर अनाम को चद्दर ओढ़ा कर उसके सिर पे हाथ फेरके डॉ.सुमन कमरे से बाहर जाती है। अनाम डॉ. सुमन को जाता हुआ देख रहा था। 

       डॉ.सुमन कंसल्टिंग रूम में जाती है, उसकी समझ  में नहीं आता की अनाम को सच बता कर उसने सही किया या गलत ? टेबल पर पड़ी पानी की बोतल से डॉ. सुमन पानी पीती है और एक लम्बी गहरी साँस लेती है। अपनी डायरी निकालकर डॉ.सुमन फिर से उस में  लिखती है, ऐसे में उस छोटे बच्चे की माँ डॉ.सुमन से मिलने कंसल्टिंग रूम में आती है, 

माँ : डॉ.सुमन ( डॉ.सुमन अपनी डायरी जल्दी से छुपाके टेबल पे  फाइल के नीचे रख देती है। )

डॉ.सुमन : हाँ जी कहिए, कैसी है आप ? आपका मुन्ना अब बिलकुल ठीक है, दो दिन बाद उसे आप घर ले जा सकती है। मैंने जो दवाई लिखी है, वह आप उसे पिलाते रहना और एक हफ्ते के बाद यहाँ फिर से ड्रेसिंग करवाने आ जाना।  ठीक है ना ?

माँ : वह तो ठीक है, डॉ.सुमन जी, मगर एक दिक्कत है। 

डॉ.सुमन : अब क्या हुआ ?

माँ : वह बात यह है की ऑपरेशन की फीस के पैसे अभी मेरे पास नहीं है, तो... 

डॉ.सुमन : मैंने आपसे अभी पैसे मांगे क्या ? नहीं ना, 

माँ : लेकिन पैसे तो देने होंगे ना ! नर्स ने २५००० का बिल बनाया है और अभी मेरे पास इतना पैसा नहीं है, सिर्फ ५००० ही दे सकती हूँ। 

डॉ.सुमन : तो ठीक है ना, अभी आपके पास जितना पैसा है, उतना दे दीजिए, बाद में हफ्ते के हिसाब से महीने २ या ५००० जितना आप से बन सके जमा कर दीजिएगा। नर्स से बोलकर मैं आपके पैसे थोड़े कम भी करवा दूंगी। आप चिंता मत कीजिए और अपने मुन्ने को संँभालिए। ज़िंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता, पैसो से ज़्यादा एहमियत ज़िंदगी की होती है। 

    ( कभी कभी लगता था, की डॉ.सुमन जितनी नादाँ है, उतनी ही समझदार भी।)

माँ : बहुत-बहुत शुक्रिया आपका। भगवान करे आपकी हर मनोकामना पूरी हो।

       डॉ.सुमन को आशीर्वाद देकर उस छोटे बच्चे की माँ वहां से चली जाती है। 

        तो दोस्तों, इस बार डॉ.सुमन को अनाम को उसके बारे में सब कुछ बता ना ही पड़ा। अब अनाम क्या करेगा ?

                           अब आगे क्रमशः। 

                                                                                      Bela...    

        



 

 



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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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