मैं कौन हूँ ? भाग - 9
तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि डॉ.अजित और डॉ.सुमन साथ मिल के सुरेखा की मरहम पट्टी करते है और उसके पैर में टंका भी लगा देते है। डॉ.सुमन बात-बात में सुरेखा से पूछ लेती है, कि ये सब कब, कैसे और किसने किया ? सुरेखाने बताया, कि उसका पति शराब पीके रोज़ रात को उसे मारता है और पैसे मांगता है। डॉ. सुमन डॉ.अजित से कहती है, कि सुरेखा से पैसा ना ले। दवाई का पैसा वो दे देगी। डॉ.अजित डॉ.सुमन के कंसल्टिंग रूम में नॉवेल देख बहुत खुश होते है, डॉ.अजित भी डॉ.सुमन से नॉवेल पढ़ने के लिए मांगते है, अनाम आज फ़िर से दवाई पिने से इंकार कर रहा था और उसे अस्पताल से बाहर जाना था, अब आगे...
डॉ.सुमन अनाम से मिलने उसके कमरे तक जाती है। अनाम के कमरे का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था, थोड़ी देर डॉ.सुमन कमरे के बाहर से ही अनाम को देखें जा रही थी, कि अनाम अंदर क्या कर रहा है ? कमरे के अंदर देखा तो, अनाम अपने बिस्तर पे बैठ, अपने ही हाथो से अपना मुँह दो पाँव के बिच जैसे छुपा के बैठा हुआ था। कमरे में सब कुछ बिखरा पड़ा हुआ था। डॉ. सुमन ने आईने की और देखा तो आइना फ़िर से थोड़ा टूटा हुआ था। दो पल डॉ.सुमन चुपचाप से खुद उस आईने के सामने जाकर अपने आप से ही सवाल किया,
डॉ.सुमन : " मैं कौन हुँ? मेरा ये जो चेहरा है वह मेरा खुद का ही चेहरा है या किसी और का ? " डॉ.सुमन ने दो पल वो खुद महसूस कर के देखा, जो इस वक़्त शायद अनाम महसूस कर रहा होगा। डॉ.सुमन मन ही मन, " सच में कहने में और करने में कितना फर्क होता है, दुसरों को हम कहने को तो कह दिया करते है, सब ठीक हो जाएगा। मगर क्या कभी सब कुछ ठीक होता है क्या ? शायद ही... "
डॉ.सुमन इसी कसमकस में, हस्ते हुए अनाम के पास जाती है, उसे नाम से पुकारती है,
डॉ.सुमन : अनाम, चलो तो जल्दी से अपनी दवाई और नास्ता कर लो, फ़िर आज मैं तुम्हें एक कहानी सुनाती हूँ।
जैसे कि एक डॉ.सुमन छोटे बच्चे को समझा रही हो।
अनाम : डॉ.सुमन के हाथो में से दवाई गिरा देता है। फ़िर जैसे रूठते हुए अपना मुँह दूसरी तरफ़ करके बैठ जाता है और कहता है, मुझे कोई कहानी नहीं सुननी है। मुझे यहाँ से जाना है, अब मैं ठीक हो गया हूँ।
डॉ.सुमन : ठीक है, तुम्हें दवाई नहीं लेनी है, तो कोई बात नहीं, तुम ठीक हो गए हो, आज से तुम्हारी सारी दवाइयाँ भी बंद। अब खुश ? तो चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें दिखाती हूँ, कि ज़िंदगी ऐसी भी होती है। उसके बाद तुम शायद खुद ही कहोगे, " तुम से खुशनसीब दुनिया में कोई नहीं। "
डॉ.सुमन अनाम का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ लेके चलती है, आज बहुत दिनों के बाद या कहूं तो ३ महीने बाद अनाम अस्पताल से पहली बार बाहर निकलता है। अनाम डॉ.सुमन के पीछे-पीछे उसका हाथ पकड़कर जा रहा था।
अनाम : मगर हम कहाँ जा रहे है ? ये भी तो ज़रा बताओ?
डॉ.सुमन : तुम को मुझ पे भरोसा नहीं है ?
अनाम : भरोसा है, तभी तो आज ज़िंदा हूँ, वर्ना !!
डॉ.सुमन : तो फ़िर चुपचाप चलो, जहाँ मैं तुम्हें ले जा रही हूँ।
कहते हुए डॉ.सुमन अपनी कार में अनाम को बैठाकर उसे अपने साथ एक दूसरे अस्पताल लेके जाती है। जहाँ डॉ.सुमन को भी कभी-कभी कुछ केस के सिलसिले में बुलाया जाता था। अस्पताल के अंदर जाते ही सामने ही डॉ.प्रशांत खड़े थे।
डॉ.प्रशांत : अरे डॉ.सुमन आप ? अच्छा हुआ आप आ गए तो, क्योंकि मैं आज आपको फ़ोन करने ही वाला था।
डॉ.सुमन : मैं तो बस ऐसे ही आई थी, सोचा बहुत दिन हो गए, आप सब को मिले, तो सोचा, चलो चलके एक बार मिल ही आऊंँ।
डॉ.प्रशांत : अच्छा किया, मगर आप के साथ ये...
( अनाम की और इशारा करते हुए )
डॉ.सुमन : ये मेरा नया दोस्त अनाम। अभी कुछ दिनों से ये यहाँ घूमने आया है, सोचा यहाँ का अस्पताल भी दिखा दूँ। ठीक किया ना ?
डॉ.प्रशांत : हाँ, हाँ ! क्यों नहीं ? आप पहले इनको अस्पताल दिखा दीजिऐ, बाद में हम आराम से बैठ के बाते करते है, आज मुझे बाहर कहीं visit पे नहीं जाना है। मैं आज पूरा दिन यही हूँ।
डॉ.सुमन : जी जरूर।
कहते हए डॉ. सुमन अनाम का हाथ पकड़कर अनाम को अस्पताल के सारे कमरे एक के बाद एक दिखाती है, उन सब से पहचान कराती है, जो वहां पे एक, दो या तीन नहीं, बल्कि कई सालो से रहते आऐ है।
सब से पहले डॉ.सुमन अनाम को उस कमरे में लेके जाती है, जहाँ एक जवान लड़का हाथो में खिलौना लिए उससे खेल रहा था। उस लड़के ने डॉ. सुमन को देखते ही कहा, " आप मेरे लिए हवा में उड्ने वाला हेलीकॉप्टर लाई क्या ? जो मैंने आप से मंगवाया था ? मुझे उस में बैठ के बहुत ऊपर आसमान में उड के जाना है, जहाँ मेरे मम्मी-पापा चले गए है।
डॉ.सुमन अनाम से कहती है,
डॉ.सुमन : सुना, कुछ समझने की कोशिश करो। इस लड़के के मम्मी-पापा कुछ साल पहले विमानी एक्सीडेंट में मारे गए, तब से इस को भी ऊपर जाना है और सब से कहता है, की " मेरे लिए विमान लाऐ क्या ? " इसे इस सवाल और हादसे के आलावा और कुछ भी याद नहीं।
उसके बाद वहाँ से बाहर निकलकर डॉ.सुमन अनाम को लेकर दूसरे एक ओर कमरे में ले जाती है, जहाँ एक माँ अपने हाथो में गुड़िया लेके उसके साथ खेल रही है।
डॉ.सुमन अनाम को कहती है।
डॉ.सुमन : या कहुँ तो उस गुड़िया के साथ जी रही है, उस गुड़िया को झूला झुलाना, उसके बाल बनाना, उसे खाना खिलाना, उस को प्यार करना, उसके साथ सो जाना। बस यही इसकी ज़िंदगी है। इस ने जब अपनी बच्ची को जन्म दिया, तब वह बहुत कमज़ोर थी, दो महीने तक तो डॉक्टरने उसका बहुत ख़याल रखा, मगर फिर भी कमज़ोरी की वज़ह से डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए। तब से इस औरत को यही लग रहा है, कि उसकी लड़की वही गुड़िया है, इसके पति और घरवाले अब इसको यहाँ इलाज के लिए छोड़ गए है, दो साल हो गए इस बात को, पहले इसे सब मिलने आते थे, मगर तब भी इसको होश ना था, अब इसका पति या तो इसके कोई घरवाले भी इसे मिलने नहीं आते। शायद अब एक पागल औरत के साथ वक़्त बिताने का किसी के पास इतना वक़्त कहाँ ? और ये औरत अपनी गुड़िया को बेटी समझकर जी रही है।
अनाम को दूसरे कमरे की ओर खींचते हुए, ये देखो अनाम
डॉ.सुमन : ७० साल की बुद्धि औरत, उसका बेटा और बहु इसे छोड़कर विदेश जा चुके है, उनका कोई अता पता नहीं, इस औरत को लगता है, कि उसका बेटा एक ना एक दिन ज़रूर आएगा। इसलिए सब से ये रोज़ पूछती रहती है, कि " मेरे बेटे की विदेश से कोई चिठ्ठी आई क्या ? मेरा सामान ला दो, वो मुझे लेने आ रहा है। " मगर उसके बेटे को गए ५ साल हो गए, वो तो क्या उसकी कोई चिठ्ठी भी आज तक नहीं आई, इस औरत के रिश्तेदार इसे पागल कहकर यहाँ छोड़ गए। मगर इस बुद्धि औरत को आज भी अपने बेटे का इंतज़ार है।
डॉ.सुमन अनाम को वहाँ से दूसरे कमरे तक लेकर जाती है, उस कमरे की आधी खुली खिड़की में से ही अनाम को दिखाते हुए, एक जवान लड़की जो एक कोने में छुपके अँधेरे में बैठी थी,
डॉ.सुमन : ये जो वहां अँधेरे कोने में डरी हुई लड़की को तुम देख रहे हो ना ! इस लड़की का रेप ३ या ४ लड़कों ने मिलके किया था, उस हादसे के बाद इस लड़की को अब तक ये याद नहीं, कि इसके साथ क्या हुआ था ? और वो लड़के कौन थे ? और नाही इसके घरवालो को आज तक पता चला, कि वो लड़के कौन थे जिसने इसके साथ रेप किया था ? उस बात को भी ४ साल हो गए, मगर हर किसी को देखकर ये लड़की आज भी डर जाती है, इसलिए पूरा दिन अँधेरे में बैठी रहती है। यहाँ तक की इसे रोशनी से भी डर लगता है। किसी को अपने पास आता देख चिल्लाने लगती है। कमरे में अपने आप को बचाने इधर-उधर भागने लगती है, फ़िर डॉक्टर को इंजेक्शन देके इसे सुला देना पड़ता है। तब जाके ये शांत होती है। इसका खाना-पीना, दवाई सब इस खिड़की में से दिया जाता है, कभी अपने आप खा लेती है तो कभी समझा-बुझाकर खिलाना पड़ता है, तो कभी भूखी भी रह लेती है, बस एक ज़िंदा लाश की तरह बन गई है। एक दिन शायद इसका डर दूर हो जाए और ये ठीक हो जाए। बस हम डॉक्टर्स की यही कोशिश रहती है।
वहांँ से अनाम का हाथ खींचते हुए डॉ.सुमन अनाम को दूसरे एक कमरे में लेके जाती है, जहाँ एक छोटी ८ साल की लड़की है, जो कोमा में चली गई है।
डॉ.सुमन : ये लड़की एक दिन अपने स्कूल में खेलते-खेलते सीढ़ियों से गिर गई थी, सिर में गहरी चोट लगने की वजह से ३ साल से बस सो ही रही है, पहले-पहले तो इसके घरवाले रोज़ मिलने आते थे, फिर एक हफ्ते बाद आने लगे, अब महीने में एक बार आते है, अस्पताल की फीस देके के चले जाते है। पता नहीं, ये अब कब नींद से उठेगी ?
वहाँ से डॉ.सुमन अनाम को एक दूसरे कमरे में लेके जाती है, जहाँ एक लड़का अपने एक ही हाथ से पेंटिंग बना रहा था, क्योंकि
डॉ.सुमन : दूसरा हाथ उसका एक्सीडेंट में कट गया था, उसी एक्सीडेंट में उसके बीवी, बच्चे, माँ सब मर गए। अब ये सिर्फ अपने बीवी, बच्चे और माँ की ही रोज़ तस्वीर बनाता रहता है। इसे इसके अलावा और कुछ भी याद नहीं।
डॉ.सुमन अनाम को एक के बाद एक सब कमरे में सब को दिखाते हुए जा रही है, कोई प्रेम में पागलो सा हो गया है, तो किसी का हाथ नहीं, तो किसी के पैर नहीं, किसी के माँ-बाप नहीं, कोई बोल नहीं सकता तो कोई सुन नहीं सकता। कोई डर रहा है, तो कोई खेल रहा है, तो कोई सिर्फ़ गहरी नींद में सो रहा है, कोई सिर्फ बातें करता है, तो कोई एकदम से चुप हो गया है। सब को कुछ ना कुछ परेशानी है और सब इस परेशानी से लडे जा रहे है और जिए जा रहे है, हमारी बस यही उम्मीद है, कि एक ना एक दिन ये सब पहले की तरह ठीक होके यहाँ से वापस अपने घर, अपने अपनों के पास जाए और फ़िर से ख़ुशहाल ज़िंदगी जीने लगे, जो वो पहले जीते थे।
वहाँ से डॉ.सुमन अनाम का हाथ खींचते हुए अनाम को दूसरे कमरे में लेके चलती है और आगे एक लड़की को दिखाते हुए अनाम को कहती है, कि
डॉ.सुमन : उस लड़की को देख...
( बिच में ही डॉ.सुमन की बात काटते हुए ) उसी वक़्त अनाम डॉ.सुमन का हाथ छुड़ाकर अपनी आँखों में आँसू के साथ, गभराकर कहता है,
अनाम : अब बस मुझे कुछ नहीं सुनना, जानना और नाहीं कुछ देखना है। मुझे यहाँ से जाना है। ये आप मुझे कहाँ लेके आई डॉ.सुमन ? मेरा सिर फ़िर से दर्द से फटा जा रहा है।
डॉ.सुमन अनाम को एक कुर्सी पे बैठाते हुए
डॉ.सुमन : क्यों तुम तो कहते थे, कि तुम अब ठीक हो गए हो, तुम्हें जाना है। तो अब क्या हुआ ?
अनाम : मैं ये सब नहीं देख सकता।
डॉ.सुमन : मैं तुम्हें यहाँ क्यों लेकर आई, अब पता चला ? मैं समज सकती हूँ, कि इस वक़्त तुम पे क्या बीत रही होगी ? मगर अब क्या तुम ये कह सकते हो, कि यहाँ जितने भी लोग है, वो कैसे जी रहे होंगे ? एक तरफ से देखो तो इनके खुद के लिए इनकी भी कोई पहचान नहीं। या फिर कहु तो पहचानवाले नहीं, सब ने इनका साथ छोड़ दिया। इसलिए मैं वक़्त मिलने पर यहाँ आ जाती हूँ, इनके साथ वक़्त बिताने, तब मुझे लगता है, कि हमारा दुःख तो इनके आगे कुछ भी नहीं। हम सब यहीं सोचते है, कि हमारे जितना अकेला, बेबस और दुखी दुनिया में कोई नहीं। मगर अकेलापन क्या होता है, ये मैंने यहाँ आकर महसूस किया। वो लड़का जब मुझे दीदी बुलाता है, तब मुझे लगता है, मैं इसकी बहन हूँ, वो बुद्धि औरत मुझे बेटी कहती है, तब मुझे लगता है की वो सच में मेरी माँ है। वो लड़की जब मुझे माँ कहती है, तब मुझे एक माँ होने का एहसास दिला जाती है, वो चित्रकार मुझे अपना दोस्त मानता है और वो खिड़की के बाहर जो तुम पेड़-पौधे देख रहे हो, वो मुझ से बाते करते है। हवाओ में से संगीत सुनाई देता है। पंछी गीत गा रहे है, गौर से सुनो, तो माँ आज भी मुझे लॉरी गाके सुला रही है, कौन नहीं है हमारे आसपास ? सब कुछ तो है, बस फ़र्क सिर्फ़ इतना है, हम उसे देख नहीं पाते, या तो देखना चाहते नहीं।
अनाम डॉ.सुमन की बाते सुनता ही रह जाता है, अब उसके पास रूठने का कोई बहाना नहीं रहा। शायद अनाम की समझ में थोड़ा आ गया था, जो डॉ.सुमन कई देर से अनाम को समझाने की कोशिश कर रही थी, कि दुनिया में सिर्फ तुम नहीं हो, जिस पे ये मुसीबत आई है, और भी बहुत से ऐसे लोग है, जो इस तकलीफ से गुज़र रहे है। मगर जीना तो पड़ेगा ही। हमें उस मुसीबत का सामना भी करना पड़ेगा। इसलिए हिम्मत रखो, अपने आप को सँभालो।
अभी और भी बहुत कुछ है मेरे पास तुमको दिखाने के लिए। चलो अब मैं तुम को ले चलती हूँ, उस दुनिया में जहाँ, जिस अपनों के बारे में तुम सोच के इतना परेशान हो रहे हो, उन्ही अपनों ने छोड़ दिया है, साथ अपनों का।
डॉ.सुमन अनाम का हाथ पकड़कर जैसे ही बाहर उसे ले जा रही थी, कि सामने डॉ.प्रशांत मिल गए। उन्होंने डॉ.सुमन को कहाँ,
डॉ.प्रशांत : इतनी जल्दी में कहाँ जा रही हो, डॉ.सुमन ? थोड़ी देर हमारे साथ भी तो बैठो, हमें आप से कुछ जरूरी बात भी तो करनी है।
डॉ.सुमन : जी जरूर, क्यों नहीं ? मगर आज नहीं, आज मैं ज़रा जल्दी में हूँ। अगर आप को बुरा ना लगे तो, दो दिन बाद मैं फ़िर से यहाँ अस्पताल आनेवाली हूँ, तब बात करेंगे, तो चलेगा ?
डॉ.प्रशांत : हाँ, हाँ !! कोई बात नहीं। वैसे इतनी भी ज़रूरी बात नहीं, अगर ऐसा कुछ लगा तो मैं कल आपको फ़ोन करके बता दूँगा।
डॉ.सुमन : जी ज़रूर ! अब हम निकलते है। चलो अनाम।
अनाम : जी डॉ.सुमन, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। मैं अभी वापस जाना चाहता हूँ। अभी भी मेरा सिर दर्द से चकरा रहा है। मुझे घर जाना है,
( अनाम एक नज़र डॉ.सुमन पे डालता है फ़िर )नहीं, नहीं अस्पताल जाना है।
डॉ.सुमन : ( मन ही मन थोड़ा मुस्कुराती है। ) ठीक है अनाम, जैसा तुम्हें ठीक लगे। अच्छा तो फिर कल जाएँगे दूसरी जग़ह।
अनाम : (अपना सिर पकड़ते हुए )
हाँ जरूर, जल्दी चलिए।
डॉ.सुमन अनाम को लेकर वापस अस्पताल पहुँचती है। अस्पताल पहुँचते-पहुँचते शाम हो जाती है। अनाम को अपने कमरे तक छोड़ने के बाद डॉ.सुमन नर्स से कहती है,
डॉ.सुमन : अनाम को दवाई और खाना दे देना। साथ में थोड़ा सूप भी देना, उसे अच्छा लगेगा।
नर्स : जी जरूर।
कहते हुए नर्स अनाम के लिए दवाई और खाना लेने चली जाती है।
डॉ.सुमन अपने कंसल्टिंग रूम में जाती है, टेबल पे रखी पानी की बोतल में से एक ही घूंट से सारा पानी पि जाती है।
डॉ.सुमन मन ही मन बड़बड़ाती है," कैसे है ये लोग ? कैसी है ये दुनिया ? जहाँ जरूरत ना पड़ने पर अपने ही अपनों का साथ छोड़ दिया करते है। अपनों को ही अपनों के लिए वक़्त नहीं। तो फ़िर ऐसे अपनों के लिए आँसू बहाना बेवकूफी ही है। "
तभी डॉ.सुमन के पापा का फ़ोन आता है।
पापा : सुमन, ऐसा करो तुम अस्पताल से सीधे मेरे दोस्त नितिन के घर आ जाना। यहाँ सब तुम्हें बहुत याद कर रहे है। तो इसी बहाने तेरा भी सब से मिलना हो जाएगा।
डॉ.सुमन : जी पापा, आप ठीक कह रहे हो, मुझे भी सब से मिलना तो है, मगर आज नहीं, आज मैं बहुत ठक गई हूँ। मेरे सिर में भी बहुत दर्द हो रहा है। मैं यहाँ से सीधे घर जाकर सो जाना चाहती हूँ। आप अंकल से कहना मैं भी उनको बहुत याद करती हूँ, वक़्त मिलने पर ज़रूर मिलने आ जाऊँगी।
पापा : ओके. बेटा। जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। मगर खाना खाके ही सोना। ठीक है, अपना ख्याल ऱखना। मुझे आने में शायद देर हो जाए। घर की चाबी मेरे पास है, तुम फ़िक्र मत करना।
डॉ.सुमन : जी पापा। रखती हूँ फ़ोन।
डॉ.सुमन अपने पापा से बात करके घर जाने की तैयारी करती है, अपना सफ़ेद कोट और पर्स लेकर डॉ.सुमन वहाँ से घर के लिए निकलती है।
इस तरफ़ अनाम दवाई और खाना खाकर सो जाता है, क्योंकि वह भी आज ठक चूका था।
डॉ.सुमन भी घर जाकर खाना खा कर फ्रेश होके अपनी कुर्सी पे नॉवेल पढ़ने बैठ जाती है। डॉ.सुमन को नॉवेल पढ़े बिना नींद नहीं आती। इसलिए डॉ.सुमन रोज़ नॉवेल पढ़के ही सोती है, चाहे कितनी भी ठकान क्यों ना हो ! थोड़ी देर बाद पढ़ते-पढ़ते डॉ.सुमन की आँख लग जाती है।
मीना सुबह होते ही डॉ.सुमन और साहब के लिए चाय नास्ता बना लेती है। रात को अच्छे से नींद आने की बजह से डॉ.सुमन सुबह जल्दी उठके walk पे जाती है। डॉ.सुमन को सुबह-सुबह खुली हवा में walk पे जाना अच्छा लगता है, सुबह की ताज़ा ठंडी हवा, पंछीओ की कलबलाहट, सूरज की शीतल किरणे मन को प्रफुल्लित कर लेती है। walk से आते ही डॉ.सुमन अपने पापा से पूछती है,
डॉ.सुमन : कल कैसी रही आप की पार्टी ?
पापा : बहुत बढ़िया। सब को बहुत मज़ा आ गया। दोस्तों के साथ वक़्त कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।
डॉ.सुमन : एकदम सही कहा, पापा आपने। अच्छा पापा, मैं फ्रेश होके आती हूँ, बाद में साथ मिलके नास्ता करते है, ठीक है, पापा ?
पापा : ओके, बेटा।
मीना उतनी देर में नास्ता टेबल पे लगा देती है। डॉ.सुमन और उसके पापा साथ मिलकर नास्ता करते है, तब पापा ने पूछा, अब वो अनाम कैसा है ?
डॉ.सुमन अपने पापा को हर बात बताती है, इसलिए उसके पापा भी डॉ.सुमन को हर बात पूछते है।
डॉ.सुमन : जी, अब शायद वो ठीक होगा। कल तो मैं उसे लेकर दूसरे अस्पताल... ( डॉ.सुमन ने अस्पताल वाली सारी बात अपने पापा को बताई। )
पापा : बेटा, तुमने जो उसे समझाया, वो ठीक किया, मगर इस उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई ज़िंदगी के बारे में कुछ याद ना आना उस हालत में एक इंसान पूरा टूट चूका होता है, उसके लिए सब से बड़ा सवाल ये रहता है, कि अब वो क्या करे और कहाँ जाए ? इंसान अपने खुद के लिए ही एक अजनबी बन जाता है। यही बात अपने पे लाके एक बार सोचो, कि भगवान् करे, अगर किसी दिन तुम्हारे साथ ऐसा हो तब तुम क्या करोगी ? क्या तुम अपने आप को सँभाल पाओगी ?
पापा की बात सुनकर डॉ.सुमन दो पल के लिए तो सोच में ही पड़ गई और मन ही मन सोचने लगी, कि मैंने कल जो अनाम के साथ किया था, वो सही था या गलत ? अनाम पे उसका कोई उल्टा असर ना हो !!
डॉ.सुमन : हांँ, पापा आपकी बात भी सही है, अब से मैं इस बात का भी ख्याल रखूंगी।
पापा : ऐसा करना सुमन, आज शाम को अगर तुम्हें ठीक लगे, तो अनाम को हमारे घर खाने पे ले आना। मैं भी उस से मिल लूँगा और शायद उसे भी अच्छा लगे।
डॉ.सुमन : ठीक है पापा, अब मैं निकलती हूँ, मुझे देर हो रही है।
पापा : ओके, बेटा।
डॉ.सुमन अपना सफ़ेद कोट, पर्स, नॉवेल और अपना टिफ़िन लेके अस्पताल जाने के लिए घर से निकलती है। अभी तो डॉ.सुमन रास्ते में ही थी, कि अस्पताल से फ़ोन आता है,
नर्स : डॉ. सुमन आप जल्दी आ जाइए, यहाँ एक औरत आई है, जिसका हाथ जल गया है और डॉ.अजित ने कहा है, कि वो आज नहीं आनेवाले, कुछ ज़रूरी काम है। हम उसका इलाज शुरू करते है, तो आप आ रहे हो ना !
डॉ.सुमन : मैं रास्ते में ही हूँ, बस अभी आई।
कहते हुए डॉ.सुमन फ़ोन ऱख देती है।
अब आगे क्रमशः।
Bela...