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मै कौन हुँ ?

23 नवम्बर 2022

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                           मैं कौन हूँ ? भाग - १३ 

         तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि अब अनाम अपने बारे में सोचने लगा है, अब अनाम अपनी ज़िंदगी दूसरों की सेवा में गुज़ारना चाहता है। डॉ.सुमन को भी ये सुनकर अच्छा लगा। डॉ.सुमन को लगता है, कि अनाम सच में एक समझदार लड़का है। तभी उसके साथ इतना सब कुछ होने के बाद भी वह बहुत जल्दी संभल रहा है और अपना जीवन अपने तरीके से जीने की शुरुआत करना चाहता है। डॉ.सुमन अनाम को अपने घर में ही कुछ दिन रहने को कहती है। अनाम के पास और कोई रास्ता भी नहीं है, इसलिए अनाम डॉ.सुमन की बात मान जाता है।  अब आगे... 

          डॉ.सुमन उस अस्पताल के डॉ.प्रशांत से अनाम के बारे में बात करती है, उस डॉ.प्रशांत ने पहले तो अनाम को उनके अस्पताल में सेवा करने से मना कर दिया। लेकिन डॉ.सुमन के भरोसा दिलाने पे वो डॉ.प्रशांत  अनाम को वहाँ आने की इजाज़त दे देते है। डॉ.सुमन ने सोचा, अच्छा चलो इसी बहाने अनाम का  मन भी लगा रहेगा और उसका वक़्त भी कट जाएगा। कुछ देर बाद अभी शाम होने को थी, डॉ.सुमन के पापा का फ़ोन आता है। 

पापा : हेल्लो, सुमन। 

डॉ.सुमन : हाँ, पापा कहिए, मैं थोड़ी देर बाद घर आ जाऊँगी। बस समझिए में निकल ही रही हूँ। 

पापा : ऐसी कोई जल्दी नहीं, मैंने आज फ़ोन इस लिया किया था, कि आज रात हम सब दोस्त ने साथ में खाना खाने का सोचा है और शायद रात को ज़्यादा देर हो जाए। तो मैं वहीं अपने दोस्त के घर रुक जाउंगा। मेरा  इंतज़ार मत करना।  मीना ने तुम्हारे लिए खाना बना लिया है, वक़्त पे खा लेना। 

डॉ.सुमन : ओह्ह, तो ये बात है। आप आराम से जाइए। और मेरी परवाह मत कीजिए और हाँ आज अनाम मेरे  साथ घर आ रहा है, बाकि की बात कल करेंगे। 

पापा : ओके. तो मैं फ़ोन रखता हूँ। 

      डॉ.सुमन को वक़्त  का होश नहीं रहता, डॉ.सुमन  कुछ सोच में पड़ जाती है, या तो किसी काम में जुड़ जाती है, तब वह घड़ी के सामने नहीं देखती। इसलिए डॉ.सुमन के पापा उसे बार-बार फ़ोन करते रहते है, खाना खाया की नहीं ? वक़्त पे घर आ जाओगी या देर होगी ? ये पूछने के लिए, आखिर उनकी ज़िंदगी में डॉ.सुमन के अलावा वह जिसे अपना कह सके वैसा कोई था भी तो नहीं। अब आगे... 

          घड़ी में देखा तो सच में घर जाने का वक़्त हो चूका था। डॉ.सुमन अनाम के कमरे में जाकर उसे साथ चलने को कहती है। अनाम और डॉ.सुमन साथ में घर जाते है। घर जाते ही डॉ.सुमन मीना को आवाज़ लगाती है। 

डॉ.सुमन : मीना, खाने में क्या बनाया है, बहुत भूख़ लगी   है। 

मीना : जी दीदी, आपकी मन-पसंद इडली सांभर बनाया है। अभी टेबल पे लगा देती हूँ।

डॉ.सुमन : अरे, वाह... आज तो खाने में मज़ा आ जाएगा। 

           अनाम का हाथ खींचते हुए 

डॉ.सुमन : चलो अनाम, तुम थोड़ी देर बैठो, तब तक मैं  fresh होके आती हूँ। 

       डॉ.सुमन अपने कमरे में जाती है, मीना खाना गरम  कर टेबल पे लगा रही है और अनाम t.v के पास रखा रेडियो चालू  करता है। रेडियो चालू करते ही तुरंत  एक गाना बजता है, 

     " ज़िंदगी का सफ़र,

       है ये कैसा सफ़र, 

       कोई समझा नहीं, 

       कोई जाना नहीं... " 

     अनाम को आज ये गाना कुछ जाना पहचाना सा लगा।  अनाम गौर से गाने के बोल जैसे सुन रहा था। डॉ.सुमन तभी fresh होकर कमरे से नीचे आ जाती  है, अनाम को ऐसा  गाना सुनते देख डॉ.सुमन ने सोचा, " सच में अनाम की ज़िंदगी का शुरू होनेवाला ये नया सफ़र कैसा होगा ? कोई नहीं जानता। " एक पल ऐसा सोचने के बाद डॉ.सुमन अनाम को आवाज़ लगाकर  बुलाती है। 

डॉ.सुमन : चलो, अनाम खाना खा लेते है। 

     अनाम टेबल की ओर जाता  है, कुर्सी पे बैठते हुए 

अनाम : आज  आपके पापा कहीं नज़र नहीं आ रहे ? वो कहाँ है ? ठीक तो है ना ?

डॉ.सुमन : ओह्ह ! sorry मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गई, कि मेरे पापा आज अपने दोस्तों के साथ खाने पे जा रहे है और शायद वही रुक जाए, शाम को उनका फ़ोन आया था।

अनाम : अच्छा... दोस्त, 

       बोलते हुए अनाम एक पल सोच में पड़ जाता है, जैसे कि वह सोच रहा होगा, कि दोस्त भी ज़िंदगी में होते है, मेरा भी कोई दोस्त होगा, मगर कौन ? मेरा कोई दोस्त मुझे भी तो  ढूँढ रहा होगा, या नहीं ?

     डॉ.सुमन अनाम के चेहरे को पढ़ लेती है, उसे पता चल जाता है, अनाम किसी दोस्त के बारे में सोच रहा है, डॉ.सुमन बात को घुमाते हुए 

डॉ.सुमन : चलो  अनाम,  अब क्या सोच रहे हो ? इडली सांभर ठंडा हो रहा है। जल्दी से चख़ के बताओ, कैसा  बना है ?

      अनाम इडली-सांभर चखते हुए, जी बहुत अच्छा बना है।  मुझे तीखा खाना ही अच्छा लगता है।  इस से पता चलता है, कि अनाम को तीखा  चटपटा खाना अच्छा  लगता है। डॉ.सुमन और अनाम खाना खाकर घर के बाहर गार्डन में थोड़ी  देर बैठते है। डॉ.सुमन अपने झूले पे और अनाम  कुर्सी पे बैठ  जाता है। थोड़ी देर बात करने के बाद डॉ.सुमन कहती है, मुझे तो नींद आ रही है। तुम भी सो जाओ। सुबह अस्पताल भी तो जाना  है। कल तो मैं तुम्हारे साथ आ जाऊँगी और तुम्हें सब कुछ समझा दूँगी। डॉ.सुमन और अनाम दोनों अपने-अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर नॉवेल पढ़ के सो जाते है। सुबह अनाम जल्दी उठ के नाहा-धोके तैयार हो जाता है, तब तक डॉ.सुमन के पापा भी घर वापस आ जाते है। मगर शायद डॉ.सुमन आज भी सो रही है, इसलिए मीना डॉ.सुमन को जगाने के लिए ऊपर डॉ.सुमन के कमरे में जाती है, तो डॉ.सुमन सच में सो रही थी।  मीना ने आवाज़ लगाकर डॉ.सुमन को जगाया, और कहा, 

मीना : आपका टिफ़िन और नास्ता तो तैयार है मगर आप अब तक सो रही हो, आपके पापा आ गए है और आपको बुला रहे है। जल्दी से नीचे आ जाइए। 

डॉ.सुमन : ( अँगड़ाइयाँ लेते हुए ) अच्छा, तुम चलो मैं आती हूँ। 

     मीना डॉ.सुमन का बिस्तर ठीक करती है और कपडे अपनी जग़ह रखकर फ़िर से नीचे रसोई में जाती है। मीना नास्ता टेबल पे लगाती है और डॉ.सुमन के पापा और अनाम उतनी देर बात करते है। डॉ.सुमन फ्रेश होकर नीचे आती है और अपने पापा से अनाम की बात करती है, कि वह अस्पताल में सब की सेवा करना चाहता है। डॉ.सुमन के पापा ये सुन खुश हो जाते है और कहते है, कि ये तो बड़ी अच्छी बात है।  अनाम का मन भी लगा रहेगा और दुसरो की सेवा भी हो जाएगी और सेवा का फल भगवान हमेंशा देते ही है, सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। डॉ.सुमन और अनाम दोनों नास्ता करके घर से निकलते है। डॉ.सुमन अनाम को लेकर उस अस्पताल जाती है, जहाँ अनाम जाना चाहता है। डॉ.सुमन ने अनाम के बारे में सब कुछ पहले से डॉ.प्रशांत को बता दिया था। 

डॉ.सुमन : हेल्लो, डॉ.प्रकाश कैसे है आप ?

डॉ.प्रकाश : मैं बिलकुल ठीक हूँ, आजकल काम बहुत ज़्यादा रहता है, इसलिए कभी-कभी आपको याद करना पड़ता है, और तो कुछ नहीं। 

डॉ.सुमन : इसीलिए तो मैं अनाम को यहाँ लेके आई हूँ, इसका वक़्त भी गुज़र जाएगा और आप की मदद भी हो जाएगी। 

डॉ.प्रकाश : जी ज़रूर। 

         डॉ.सुमन अनाम को यहाँ अस्पताल में क्या करना होगा, सब समझा देती है और ज़रूरत पड़ने पर वह कभी भी उसे फ़ोन कर सकता है, रात को वह उसे लेने आ जाएगी। ऐसा डॉ.सुमन अनाम को समझा कर वहाँ से निकल जाती है। डॉ.प्रकाश फ़िर से अनाम को पूरा अस्पताल दिखाते हुए, कौन से कमरे में कौन रहता है और उसको क्या करना है, सब समझा देते है। अनाम बिलकुल वैसा ही करता है। अनाम हर एक मरीज़ को समझने की कोशिश करता रहता है और उसके हिसाब से सब से बर्ताव करता है। डॉ.प्रकाश भी उसका काम देख खुश थे। सच में अनाम एक समझदार लड़का है। 

         कुछ दिन तक तो ऐसा ही चलता रहा डॉ.सुमन अनाम को सुबह उसके अस्पताल छोड़ देती और रात को अनाम को वापस लेने आती फ़िर खाना खाकर सब साथ में अनाम, डॉ.सुमन और उनके पापा सब साथ बैठ के बातें करते। अनाम पुरे दिन में अस्पताल में क्या-क्या किया  वो सब डॉ.सुमन और उनके पापा को बताता है, अनाम की बातों से डॉ.सुमन को लगता था, कि अनाम भी कहीं psychatrist डॉक्टर तो नहीं ? क्योंकि अनाम सब के मन को और बातों को अच्छे से समझ जाया करता है, जैसे की मैं। कभ-कभी तो कुछ ऐसी बातें कह जाता, जो एक डॉक्टर ही समझ सकता। जो अनाम को खुद पता नहीं, कि वो क्या कह रहा है। डॉ.सुमन को अब अपने अस्पताल में अनाम के बिना कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, डॉ.सुमन दिन में भी बार-बार अनाम के उस कमरे तक बिना बजह जाती रहती और कुछ पल वहां रूकती, एक नज़र कमरे को देखा करती, अब डॉ.सुमन सोचती की सब कुछ वैसे का वैसा है मगर सिर्फ़ अनाम ही नहीं है, उसकी जगह अब किसी और ने ले ली है, मगर अनाम ने डॉ.सुमन के दिल में जो जगह बना ली है, उसकी जगह अब शायद ही कोई ले सके। थोड़ी देर वहां रुक के डॉ.सुमन फ़िर से अपने consulting room में जाकर  डायरी निकाल कर कुछ लिखने लगती है। 

     " तुम थे, तो सब कुछ था, तुम नहीं तो फूल भी बेजान लगते है। किस से बातें करूँ ? अब तो  जिन पंछी, परबत और हवाओं से में बातें करती थी, उनसे अब कहने को  मेरे पास कुछ भी नहीं। ऐ अजनबी, एक मीठा सा सपना  इन आँखों को देकर, पंछी बनकर एक दिन उड़ मत जाना, अब तेरा साथ मुझे अच्छा लगने लगा है। "

         डॉ.सुमन लिखते-लिखते अपनी डायरी बंद कर देती है।  कुर्सी पे से खड़ी होकर डॉ.सुमन खिड़की से बाहर  एक तक देखे रहती है। 

    उस तरफ़ कुछ ही वक़्त में अनाम अस्पताल में  सब का चहिता बन गया था, वहां के डॉक्टर्स, नर्स, स्टाफ, मरीज़ सब से अनाम अच्छे से घुलमिल गया था। ऐसा लगता था, अब वह पहले से भी ज़्यादा खुश रहने लगा है, डॉ.प्रकाश अनाम को महीने के अच्छे खासे पैसे भी दे रहे थे। कुछ महीने के बाद अनाम वह सारे पैसे लेकर डॉ.सुमन के पास जाता है और डॉ.सुमन को पैसे देते हुए " ये लीजिए, डॉ.सुमन आपके अस्पताल में मैं जितने दिन रहा उसका और मेरे इलाज के पीछे आपने जो खर्च किया उसका। अब मैं अपना नया घर लेने के बारे में भी सोच रहा हूँ।

                   ( डॉ.सुमन ख़ुश होते हुए ) 

डॉ.सुमन : अरे वाह ! ये तो बड़ी अच्छी बात है, लेकिन ये पैसे अब तुम रखो अपने पास, उस दिन तो मैं तुम से बस ऐसे ही मज़ाक कर रही थी।

अनाम : नहीं डॉ.सुमन। ये पैसे तो आपको लेने ही होंगे, मैं किसी का एहसान अपने सिर पे रखना नहीं चाहता, चाहे तो आप इन पैसो को अस्पताल का फण्ड समझकर रख लीजिए, ये पैसे मेरी मेहनत के है, अगर किसी के काम आएँगे, तो मुझे अच्छा लगेगा। 

     अनाम की ऐसी बात सुन डॉ.सुमन पैसे लेने से इनकार ना कर सकी। मगर डॉ.सुमन ने पैसे लेते हुए अनाम से कहा, कि तुम्हें मेरी एक और बात माननी है। 

अनाम : जी डॉ.सुमन, क्या मैंने कभी आपको मना किया है ?  आप सिर्फ़ हुकुम कीजिए। 

डॉ.सुमन : ( हस्ते हुए ) अरे, इस में हुकुम करने वाली कोई बात नहीं है। दो दिन बाद मैं और पापा मेरी पुरानी दोस्त के वहाँ शादी में जा रहे है, तो तुम भी हमारे साथ आ  जाना। 

अनाम :  मैं भला कैसे आ सकता हूँ, आपकी दोस्त के वहां। आप अपने पापा के साथ चले जाना, मेरी फ़िक्र मत करना, दो दिन मैं अस्पताल में ही रुक जाऊंगा। 

डॉ.सुमन : अरे, बाबा ! मैंने तो इसलिए कहाँ, की ज़रा बाहर आओगे, तो तुम को भी अच्छा लगेगा। नए लोगों से मिलना  होगा और जान पहचान भी हो जाएगी।

अनाम : ठीक है, अगर आपका यही कहना है, तो यही सही।  मैं भी चलूँगा, आप लोगो के साथ। 

       तो दोस्तों, डॉ.सुमन की बातों से लगता है, कि डॉ.सुमन मन ही मन अनाम से प्यार करने लगी है मगर शायद अनाम के दिल में ऐसा कुछ नहीं है, या  तो अनाम  अपना प्यार दिखाना नहीं चाहता। अनाम भी डॉ.सुमन से प्यार करता है या नहीं ? 

                           अब आगे क्रमशः। 

                                                                   Bela... 

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रचनाएँ
मैं कौन हुँ ?
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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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