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मै कौन हुँ ?

23 नवम्बर 2022

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                        मैं कौन हूँ ? भाग - १५  

        तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि डॉ.सुमन अपने पापा और अनाम के साथ अपनी दोस्त की शादी में जाने के लिए निकलती है। रास्ता थोड़ा लम्बा था, अनाम कार की खिड़की में से बाहर एक तक देखे जा रहा था, जैसे उसे कुछ याद आ रहा हो। डॉ.सुमन की दोस्त के घर पहुचने पर सब को पता चलता है, कि अनाम का नाम सिद्धार्थ है और उसे नैना नाम की एक लड़की जो खुद डॉ.सुमन की बचपन की सहेली थी और बड़े लम्बे अरसे बाद वो दोनों भी मिल रहे थे, वह लड़की नैना  अनाम को सिद्धार्थ नाम से पुकारती है और उसे गले मिलकर बहुत रोती हुई कहती है, कि  अब तक तुम कहाँ थे ? लेकिन अनाम के पास अभी इस सवाल  का कोई जवाब नहीं था, या तो उसे खुद कुछ पता नहीं था।  अनाम एक तक उस लड़की को और डॉ.सुमन को देखे जा रहा था।  डॉ.सुमन सारा मामला समझ जाती है, नैना को चुप कराते हुए डॉ.सुमन अनाम के बारे में नैना को सब बतलाती है।  नैना भी अनाम के बारे में डॉ.सुमन को सब बतलाती है। सिद्धार्थ के वापस लौटने पर नैना अपनी शादी के लिए इंकार कर देती है, जिस लड़के से नैना की शादी तय की गई थी। इस तरफ़ डॉ.सुमन अनाम को अलग कमरे में ले जाकर उसे सारी बात समझाती है, जो अभी नैना ने उसे कही थी।  अब आगे... 

           डॉ.सुमन अनाम को कमरे में ले जाकर उसे सब कुछ कहती है, जो थोड़ी देर पहले नैना ने उसे बतलाया था। अनाम भी गौर से सब सुनता रहता है। लेकिन उसे अब भी यकीं ही नहीं हो रहा था, कि इस से पहले उसकी ज़िंदगी ऐसी थी और वह किसी नैना नाम की लड़की से प्यार भी करता था और नैना भी उसे बहुत प्यार करती थी और दोनों की शादी भी होनेवाली थी, मगर शादी के कुछ दिन पहले ही अनाम के साथ ये हादसा हो गया और अनाम की ज़िंदगी ही बदल गई और ज़िंदगी के साथ-साथ अनाम भी अब बदल गया है। उसका रेहन-सेहन, उसकी बातें, उसकी सोच सब कुछ। एक तरफ़ डॉ.सुमन  अनाम को समझाती जाती है और अनाम एक तक डॉ.सुमन को देख़े जाता है। 

डॉ.सुमन : ( अनाम के बालो को सहलाते हुए ) अनाम तुम समझ रहे हो ना, कि मैं  क्या कह रही हूँ ?

      अनाम का ध्यान जैसे वहां होकर भी वहां नहीं था, सब कुछ सुनते हुए भी जैसे उसने कुछ भी ना सूना हो, वैसे एक तक दिवार की ओर देखे जाता है। डॉ.सुमन अनाम को सराहते हुए फ़िर से पुकारती है। 

डॉ.सुमन : अनाम, अनाम ! क्या सोच रहे हो ? मैंने जो कहा, वह सब तुम सुन रहे हो ना ?

     अनाम अपने आप को थोड़ा सँभालते हुए, डॉ.सुमन की गोद में अपना सिर छुपाकर रो पड़ता है और कहता है,  

अनाम : मैंने सब कुछ सूना जो आप ने कहा डॉ.सुमन।  मगर मुझे ऐसा कुछ भी याद नहीं आ रहा, कि सिद्धार्थ नाम का लड़का मैं ही हूँ। अब मुझे अनाम सुनने की आदत सी हो गई है, मुझे मेरी कोई नई पहचान नहीं चाहिए, मुझे डर लगता है अब मेरी नई पहचान और नए रिश्तों से, जिसे अब मैं जानता नहीं।  आप मुझे यहाँ क्यों लेकर आई हो ? मैं वहां ठीक ही था। मैं क्या करू मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा डॉ.सुमन ? आप मुझे अपने साथ अपने घर ले चलो, मुझे यहाँ नहीं रहना है। मुझे किसी से अब प्यार नहीं करना है और नाही किसी से अपना हिस्सा मांगना है और नाही किसी से कोई बदला लेना है। मैं अपनी ज़िंदगी में अकेला था और अकेला ही ठीक हूँ, खुश हूँ। प्लीज डॉ.सुमन, मुझे यहाँ से ले चलो। मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है। 

       डॉ.सुमन ने ऐसा कतई सोचा ना था, कि सच पता चलने पे अनाम ये सब सेह नहीं पाएगा। डॉ.सुमन के लिए अनाम को समझाना अब और भी मुश्किल लगता है। डॉ.सुमन अपने आप से कहती है, " है परवरदिगार ! ये कैसी विपदा में ला दिया है तूने इंसान को, एक ज़िंदगी जो वो भूल गया था, जैसे-तैसे करके उसने अभी-अभी नई  ज़िंदगी शुरू की और अब उसे अपनी ज़िंदगी में लौटने को कह रहा है। " तुम्हारे लिए ये सब आसान होगा।  मगर एक इंसान के लिए ये सब सेह पाना बहुत ही मुश्किल है।  नए रिश्तों को अपनाना, उस लड़की को अपनाना जिसे वह अब जानता तक नहीं। डॉ.सुमन अनाम के बालों को सराहते  हुए 

डॉ.सुमन : मैं समझ सकती हूँ अनाम, कि तुम्हारे लिए इस वक़्त ये सब थोड़ा मुश्किल होगा, लेकिन धीरे-धीरे, जैसे-जैसे तुम इन सब के साथ रहोगे, तुम्हें सब कुछ याद आ जाएगा, नैना बहुत अच्छी और सुंदर लड़की है, वह झूठ क्यों बोलेगी ? वो तो अच्छा हुआ, कि हम वक़्त पे यहाँ आ गए और सब ने तुम्हें पहचान लिया। वर्ना तुम कौन हो ये तुम्हें कैसे पता चलता ? अब तुम अपने प्यार के साथ रह सकते हो। अपने तरीके से अपनी नई ज़िंदगी जी सकते हो। 

अनाम : आप की सब बात सही, डॉ.सुमन, मगर मुझे सोचने के लिए कुछ वक़्त चाहिए। मैं ऐसे ही किसी के साथ शादी नहीं करना चाहता। 

    अनाम की बात सुन डॉ.सुमन हसने लगी और कहा, 

डॉ.सुमन : अच्छा, तो तुम शादी के नाम से डर रहे हो, अब मेरी समझ में आया। तुम्हारी परेशानी की बजह ये है, तुम्हारा पास्ट नहीं। 

  अनाम झुक कर डॉ.सुमन की बातों से सहमत होता है। 

डॉ.सुमन : अरे, बुद्धू, अभी तुम को किस ने कहा, कि अभी तुम्हें नैना से शादी करनी होगी। पहले तुम उस से मिलो, उसको पहचानो, उस से बाते करो, हो सकता है, बातें करते-करते तुम्हें अपना पुराना प्यार याद आ जाए, और ऐसा भी हो सकता है, एक दिन तुम खुद मेरे पास आओगे और मुझ से कहोगे, कि डॉ.सुमन मेरी शादी नैना से करवा दो, मैं उसके बिना नहीं रह सकता। 

   डॉ.सुमन फ़िर से हस पड़ती है। अनाम डॉ.सुमन को एक तक देखे जाता  है।   

डॉ.सुमन : तुम फ़िक्र मत करो, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ। अब चलो बाहर चलते है, सब बाहर हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।  

    डॉ.सुमन अनाम का हाथ खींचते हुए उसे बाहर ले जाने लगी, मगर अनाम डॉ.सुमन को फ़िर से एक बार आशा भरी नज़र से देखता है। अनाम की आँखें अब भी कह रही हो जैसे उसे कोई नया  रिश्ता अब नहीं चाहिए। डॉ.सुमन उसकी आँखें पढ़ लेती है, फ़िर दूसरी बार कहती है, 

डॉ.सुमन : एक बार आओ तो सही फ़िर देखते है क्या करना है ? चलो, अब... 

       अनाम डॉ.सुमन की बात मानकर बाहर आ जाता है। अनाम के बाहर आते ही, फ़िर से सब उसे एक नज़र देखे जाते है, जैसे सब की आँखों में अब भी कई सवाल थे, जिसका अनाम के पास अब भी कोई जवाब नहीं था, उसे और कुछ वक़्त चाहिए, सोचने का, समज़ने का, कुछ फैसला करने का। अब डॉ.सुमन की बारी थी बात सँभालने कि। 

     डॉ.सुमन अनाम से अपना हाथ छुड़ाते हुए नैना के पास जाती है और उसे कहती है 

डॉ.सुमन : देखो नैना, अभी मैंने अनाम को सब कुछ बता दिया है, मगर इस वक़्त उसे ऐसा कुछ भी याद नहीं आ रहा, शायद वक़्त रहते, याद करने पे उसे सब याद आ जाएगा। उसे कुछ वक़्त चाहिए, ये सब सोचने समझने के लिए। 

नैना : हाँ, तो ठीक है, ना ! मैंने कब कहाँ, कि आज के आज ही शादी करनी है। 

     अनाम के पास जाते हुए नैना अनाम का हाथ पकड़ते हुए, 

नैना : देखो, सिद्धार्थ, तुम्हें जितना वक़्त चाहिए, तुम ले लो, मैं कल भी तुम्हारे साथ थी, आज भी हूँ और कल भी रहूंगी। तुम बस अपनी फ़िक्र करो, अपनी तबियत को सँभालो, अब तुम्हारी ज़िंदगी तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी होगी, मेरी आँखों से तुम अपनी पुरानी और आनेवाली ज़िंदगी देखोगे। तुम्हारी सुबह अब से मुझ से शुरू होके, मुझ पे ही तुम्हारी शाम ख़तम होगी। देखना, तुम्हें कुछ ही दिनों में सब कुछ याद आ जाएगा और तुम खुद मुझ से शादी करने को कहोगे और उस दिन का मैं बेसब्री से इंतज़ार करुँगी, कि कब तुम मुझ से दूसरी बार अपने प्यार का इज़हार करोगे। 

     अनाम नैना की बातें सुनता ही रह गया। नैना को जैसे अपनी दुनिया ही मिल गई हो, ऐसे वो खुश थी। नैना की बातों में एक ऐसी सच्चाई और एक ऐसा भरोसा दिखाई दे रहा था, जैसे उसकी बातों पे दो पल के लिए भरोसा करने को मन हो जाए। डॉ.सुमन ने पास आकर कहा, कि   

डॉ.सुमन : चलो अब, मुझे तो बहुत भूख लगी है, नैना कुछ खाना भी खिलाओगी या नहीं ? या ऐसे भूखे ही वापस भेजने का इरादा है तुम्हारा ?

नैना : हाँ, हाँ ज़रूर, क्यों नहीं ? 

        इन सब चक्कर में सब लोग खाने के बारे में सोचना ही भूल गए। सब की उलझन कुछ हद तक सुलझ चुकी थी, सिर्फ़ अनाम को छोड़कर।  

     नैना और उसके घरवाले और उसकी दोस्त खाने का इंतज़ाम करते है और सब साथ मिलकर खाना खाने बैठते है। खाना खाते हुए नैना बार-बार अनाम को देखे जाती और अनाम डॉ.सुमन को। नैना ने कहा,

नैना : सिद्धार्थ, ये लो तुम्हारी पसंद के रसगुल्ले। वैसे भी आज रसगुल्ले ही बनाए है। 

अनाम : जी, मुझे मीठा खाना पसंद नहीं आता, मुझे  तीखा और चटपटा खाना अच्छा लगता है। 

      नैना अपनी दोस्त सुमन की ओर देखें जाती है। डॉ.सुमन नैना की उलझन समझ जाती है, बात को सँभालते हुए डॉ.सुमन अनाम से कहती है,

डॉ.सुमन : मैं भी वैसे तो मीठा उतना नहीं खाती, मगर ये रस भरे रसगुल्ले देख़ कर मेरे तो मुँह में पानी आ रहा है, एक-दो तो बनता है यार, अनाम लो आज बड़ा अच्छा दिन है, तुम्हें खाना ही होगा, कहते हुए डॉ.सुमन एक रसगुल्ला अनाम को अपने हाथों से खिलाती है और दूसरा रसगुल्ला बर्तन से उठाकर नैना को खिलाती है। 

      सब लोग ये देख़ हसने लगते है। नैना की आँखों में भी ख़ुशी के आंँसू आ जाते है। खाना खाने के बाद नैना डॉ.सुमन और सिद्धार्थ को कुछ दिन यहीं रुकने को कहती है। वह ज़िद्द पकड़ के बैठी है, कि अब तुम दोनों मेरे साथ ही यहाँ रहोगे, नैना ऐसी ज़िद्द पकड़के बैठी हुई थी, मगर डॉ.सुमन सिर्फ़ एक दिन ही रुकने को मानती है, अस्पताल भी जाकर संभालना होता है, ऐसे इतने दिनों तक अस्पताल से दूर रहना डॉ.सुमन के लिए मुमकिन नहीं था। अस्पताल की ज़्यादातर ज़िम्मेदारी डॉ.सुमन के सिर पे ही है। इसलिए डॉ.सुमन ने  नैना को समझाते हुए कहा, 

डॉ.सुमन : weekend में मैं फिर से मिलने यहाँ आ जाया करुँगी या तो आप लोग कभी-कबार मुझ से मिलने मेरे घर आ जाया करना, मैंने कब मना  किया ? अनाम को यहीं रुकने के लिए मैं उसे समझा दूंगी, शायद वो समझ जाए। वैसे वह बहुत ही समज़दार और सुलझा हुआ लड़का है। 

नैना : हाँ, वो तो है, तभी तो मैं उससे इतना प्यार करती हूँ। मगर सिद्धार्थ को सब याद तो आ जाएगा ना ? 

डॉ.सुमन : हाँ, हाँ ! क्यों नहीं ? कुछ- कुछ तो उसे कभी-कभी धुंधला-धुंधला सा याद आ रहा है, सो वक़्त रहते सब याद भी आ ही जाएगा, तुम फ़िक्र मत करो, खुश रहा करो, अब तुम्हारे रोने के और इंतज़ार करने के दिन गए, समझो। बस उसे थोड़ा सा वक़्त दो, सब ठीक हो जाएगा। 

        डॉ.सुमन को सब को समझाना बड़ी अच्छी तरह से आता है, हर कोई उसकी बात मान लेता है, कोई मना ही नहीं कर पाता उनको, उतनी अच्छी तरह डॉ.सुमन सब को समझाती है। अब आगे... 

    डॉ.सुमन की बात सुन नैना को हौसला भी मिलता है और वह समझ भी जाती है। रात काफ़ी हो गई थी, इसलिए नैना के माँ-पापा ने सब के रहने का इंतेज़ाम  कर दिया। नैना डॉ.सुमन को अपने साथ अपने कमरे में सोने को कहती है और डॉ.सुमन के पापा और अनाम उनके बगल वाले कमरे में सो जाते है। तो डॉ.सुमन और नैना बहुत सालों के बाद मिले थे, इसलिए दोनों सहेलियांँ देर रात तक बातें करती रहती है। 

     उस तरफ़ अनाम को नींद में फ़िर से सपने आने लगते है, अनाम फ़िर से नींद में ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगता है।डॉ.सुमन के पापा उसके साथ ही थे, तो उनकी भी नींद अनाम के चिल्लाने से खुल जाती है, डॉ.सुमन और नैना जो अब तक जग रहे होते है, दोनों ने अनाम के चिल्लाने की आवाज़ सुनी, तो वो दोनों भी जल्दी से उठकर अनाम के कमरे में जाते है। अनाम नींद में " मुझे छोड़  दो, मुझे मत मारो," बोले जाता है। डॉ.सुमन के पापा अनाम को जगाने की कोशिश कर रहे थे, मगर अनाम की नींद नहीं खुल रही। ये देख़ अनाम को होश में लाने के लिए डॉ.सुमन उसके चेहरे पे थोड़े पानी की छींटे उड़ाती है और उसे आवाज़ देती है, अनाम, अनाम ! क्या हो रहा है ? कौन तुम्हें मार रहा है ? बताओ मुझे। अनाम नींद में ही कहता है, " कुछ दाढ़ीवाले गुंडे, मुझे मत  मारो, " अनाम का पूरा शरीर ठंडा और पानी-पानी हो रहा था। नैना भी ये देख थोड़ी गभरा गई और डॉ.सुमन के कंधे पे हाथ रख उनके पीछे खड़ी रहकर सब देख़ रही। दूसरे ही पल अनाम फिर से नैना कहते हुए ज़ोर से चिल्लाता है और अपने बिस्तर पे बैठ जाता है। अनाम की साँसे तेज़ हो रही थी, जैसे वह भाग रहा हो, किसी से बच के। नैना पंखा तेज़ चला देती है और a.c भी फुल कर देती है, कहीं से मैगज़ीन लाके उसी से अनाम को पंखा लगा देती है। ताकि उसकी गभराहट जल्दी से दूर हो जाए और वह अच्छा महसूस करे। डॉ.सुमन अनाम के गालो पे थपकी लगाते हुए पूछती है,

डॉ.सुमन : तुम ठीक तो हो ना ? इतना क्यों डर रहे हो ? कौन तुझे मार रहा था ? 

   अनाम फिर से डॉ.सुमन की गोदी में अपना मुँह छुपा लेता है, वो लोग मुझे मार रहे है और मुझे जान से मार ही देंगे, साथ में नैना को भी, हमें बचा लो डॉ.सुमन, अब मैं  फ़िर से मार खाना नहीं चाहता। 

  डॉ.सुमन अनाम का चेहरा अपने हाथों से उठाते हुए, 

डॉ.सुमन : अरे बुद्धू, कौन तुझे मारेगा ? किस में इतनी हिम्मत है जो सिद्धार्थ को मारे भला ? अब अगर तुम्हें कोई मारने आऐ तो तुम भी उसे मारना। 

     डॉ.सुमन के पापा, नैना, अनाम सब ये सुनकर हस  पड़ते है। डॉ.सुमन अनाम को कुछ दवाई पिलाकर सुला देती है, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। बाद में डॉ.सुमन और नैना अपने कमरे में जाकर सो जाते है। 

    सुबह होते ही अनाम की नींद जल्दी खुल जाती है, अनाम खड़ा होकर खिड़की के बाहर कुछ देख़ के सोच रहा था। आज उसे याद था, कि कल रात क्या हुआ था ? अनाम सोच रहा था, कि वह यहाँ रहकर भी तो क्या करेगा ? उसे ये तक भी तो पता नहीं, कि वो क्या पढ़ा है, और क्या करनेवाला था ? तभी नैना कमरे में आते हुए उसे आवाज़ लगाती है। 

नैना : सिद्धार्थ, अब तुम कैसे हो ? इतनी जल्दी उठ भी गए ? तुम्हारी जल्दी उठ जाने की आदत अब तक छूटी  नहीं, तुम्हें याद है, कॉलेज के दिनों में तुम रोज़ सुबह मेरा चेहरा देखने, मेरे घर की खिड़की के सामने की और वो जो पेड़, दिख रहा है ना ! वही पे खड़े रहते थे और मैं जब तक खिड़की खोल के तुम्हारी तरफ एक नज़र देखती नहीं, तब तक तुम वही खड़े रहते थे। 

अनाम : ( बड़े ताजुब से ) मैं ऐसा करता था ? मुझे तो ऐसा कुछ भी याद नहीं। 

    अनाम ये बात बड़ी सरलता से कह जाता है, लेकिन नैना के दिल को लग जाती है, उसकी आँखें भर आती है। फ़िर भी बात को सँभालते हुए नैना,

नैना : कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल याद आ ही जाएगा। अगर याद नहीं आया, तो भी कोई बात नहीं, मैं तो हूँ, ही तुम्हारी परछाई बन कर तुम्हारे साथ। 

अनाम : अच्छा ठीक है ! तो मुझे तुम ये बताओ, कि हम अगर कॉलेज में पढ़ते थे, तो क्या पढाई की ? मैं क्या बनना चाहता था ? 

      सिद्धार्थ के सवाल पे नैना थोड़ी खुश हुई, चलो आज से ही ये मुझ से बात तो कर रहा है, ये सोच 

 नैना : अरे, हम दोनों ने साथ मिलके बिज़नेस मैनेजमेंट का कोर्स किया था,  क्या तुम को याद नहीं ? हम दोनों ने साथ में पढाई की और बाद में अपना नया ऑफिस भी खोला, तुम यहीं तो चाहते थे और वो ऑफिस अब भी मैं चलाती हूँ। तुम आओगे मेरे साथ ? 

     आज नास्ता कर के अपने ऑफिस चलते है, सुमन को भी मैं साथ में चलने को कह देती हूँ, पापा आप भी साथ में आ जाना, आप फ़िर कब आओगे यहाँ ? तो सिद्धार्थ तुम फ्रेश होकर नीचे आ जाओ, तब तक मैं  नास्ता लगा देती हूँ। 

अनाम : ठीक है, तुम चलो मैं आता हूँ।  

     कहते हुए अनाम फ्रेश होने चला जाता है और नैना नीचे नास्ते की तैयारी में लग जाती है। कमरे से बाहर से डॉ.सुमन ने उनकी बातें सुन ली।  

    डॉ.सुमन ने अपने आप को भी समझाया, कि अब अनाम नैना से बातें करने लगा है, वक़्त रहते सब ठीक हो जाएगा, ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है। तभी नैना डॉ.सुमन और सिद्धार्थ को आवाज़ लगाके नास्ते के लिए बुलाती है।सब साथ मिलके नास्ता करते है, नैना सुमन को ऑफिस साथ चलने को कहती है। बाद में नैना के साथ ऑफिस जाते है। ऑफिस बहुत ही बड़ा था, अनाम तो ऑफिस देखते ही खुश हो गया, अनाम को तो यकीं हो ही नहीं रहा था, कि ये ऑफिस उसका अपना खुद का ही है, उसे यकीं दिलाने के लिए नैना ने अपने मोबाइल में से कुछ तस्वीरें दिखाई, जो उन दोनों की थी और वह दोनों बहुत खुश दिखाई दे रहे थे और नैना ने दीवार पे लगी दोनों के certificate भी दिखाए। इस से अनाम को अब पक्का यकीं हो गया, कि नैना सब सच कह रही है। उनके केबिन में दो कुर्सियाँ थी, नैना कुर्सियों की ओर इशारा करते हुए, अनाम का हाथ पकड़कर अनाम को उस कुर्सी पे बैठाती है और कहती है,

नैना : आओ सिद्धार्थ, बैठो यहाँ, तुम्हारे चाचाजी का इरादा कुछ और ही था, इसलिए हम दोनों ने पार्टनरसिप में ये ऑफिस ख़रीदी,  ये तुम्हारी ही तो कुर्सि है, जिस पे तुम आज तक बैठ नहीं पाए, क्योंकि जिस दिन हमारी ऑफिस का ओपनिंग था, उसके दूसरे ही दिन तुम्हारे साथ ये हादसा हो गया था। शायद तुम्हारे चाचाजी तुम को आगे बढ़ता देखना नहीं चाहते थे और उन्हें डर था, कि कहीं तुम उनसे उनका सारा बिज़नेस छीन ना लो, जो उन्होंने आज तक अपना मान कर सँभाला था। इसीलिए उन्होंने ही तुम्हें जान से मारने की कोशिश की होगी, उसके दूसरे दिन हम दोनों में इसी बात को लेकर झगड़ा हो गया, मैं तुम से हमेशा कहती, कि अपने हक़ के लिए लड़ना सीखो और तुम मना कर देते, तुम्हें अपने पर पूरा भरोसा था और तुम अपने चाचा से कुछ लेना नहीं चाहते थे, उस दिन तुम्हारे जाने के बाद तुम वापस ही नहीं आए लेकिन मुझे पक्का यकीं था, कि तुम एक ना एक दिन ज़रूर आओगे, इसीलिए मैंने ये जगह तुम्हारी खाली ही रखी है क्योंकि मुझे पक्का यकीं था की तुम ज़रूर आओगे। जब तुम नहीं थे, तब अकेले में मैं इसी कुर्सी से बातें किया करती थी। 

    डॉ.सुमन को भी लगा की शायद ये नैना का प्यार ही था जिसने अनाम को मौत के मुँह से बचाया और जिसके लिए अनाम अपनी मौत के साथ कई हफ्तों तक लड़ता  रहा, आख़िर नैना को अपना प्यार मिल ही गया। वो कहते है ना, " सच्चे प्यार के आगे भगवान को भी एक ना एक दिन झुकना ही पड़ता है। " बस अब अनाम को जल्दी से सब कुछ याद आ जाऐ और वह अपनी ज़िंदगी नैना के साथ प्यार से बिताने लगे, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। 

       नैना की ख़ुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था, इस तरफ़ अनाम भी ऑफिस आकर एकदम खुश हो गया था, उसे जैसे सब कुछ अपना सा लगने लगा था। मगर कुछ देर बाद अनाम को महसूस हुआ, कि ऑफिस  तो है, मगर क्या करना है, ये कुछ याद नहीं था की उसने क्या पढ़ा !

      ये इंसान के लिए सब से बड़ी मुसीबत बन जाती है, जब उसे अपने बारे में कुछ याद ही ना हो। एक बार ऐसा सिर्फ़ सोच के देखिए दोस्तों, की अगर ऐसा कोई हादसा आप के साथ हुआ हो और आप को कुछ भी याद ना हो, कि आपने ज़िंदगी में क्या पढ़ा, क्या पाना चाहते थे, क्या बनना चाहते थे, कौन आप के आगे-पीछे रहता था, जैसे कि आपकी ज़िंदगी एक कोरे कागज़ की तरह रह जाती है, जिस पे कुछ भी लिखा नहीं और अब फ़िर से लिखने की शुरुआत करनी पड़ती है, जो अब हमारी कहानी का अनाम करनेवाला है, अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत, ये सुनकर ही थोड़ा अजीब और मुश्किल सा लग रहा है ना दोस्तों ! अब देखते है, ये  ज़िंदगी अब अनाम को कहाँ ले जाती है।   

                          अब आगे क्रमशः। 

                                                                  Bela...   









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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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