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मैं कौन हुँ?

22 नवम्बर 2022

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                               मैं कौन हूँ ? भाग -1 

           वो  काली अँधेरी,  बरसाती तूफानी रात, गरजते - बरसते  बादल, बड़ी तेज़ी से चलती हवाएँ, जैसे सब को अपने साथ उड़ाए जा रही थी। वो जंगल में इतने बड़े-बड़े पेड़ और उन सबकी इतनी बड़ी-बड़ी और लम्बी-लम्बी   शाखाए होने की वजह से एक दूसरे से जैसे लिपटी हुई  थी। एक दूसरे से जैसे बाते कर रही  हो और तूफानी बारिश की वजह से उनको भी डर था, कि कही एक दूसरे से अलग होके हम आज कही गिर ना जाए, इसलिए अपनी शाखाओ के सहारे गले मिल के एकदूसरे को  ज़ोर से पकड़ के रखा था। आगे जाने के लिए भी कोई रास्ता नज़र ही नहीं आ सके,  ऐसे विशाल पेड़ और शाखाओ से भरा घना काला जंगल था। उसी जंगल के एक ओर एक लम्बी झील थी, जहाँ से बड़ी ज़ोरो से पानी बेह रहा था, वो झील के पानी की आवाज़ इतनी तेज़ थी की जैसे कोई संगीत बज रहा हो, वैसे एक धार से झील से पानी बड़ी ज़ोरो से निचे गिरते हुए समंदर के साथ मिलके लेहरों से जुड़के बड़ी ज़ोरो से आवाज़ कर रहा था।  जो आवाज़ आज बड़ी ही डरावनी और भयावह सी लग रही थी। कुदरत को भी ना जाने आज क्या मंज़ूर था, लड़ रहे थे खुदा से जैसे की आज में नहीं या तो तुम नहीं। जैसे कोई धरती और आसमान के बिच युद्ध हो रहा हो और दोनों झुकने को तैयार नहीं थे। बस ज़िद्द पकड़कर बैठे थे, कि  आज तू नहीं या तो हम नहीं ! तेज़ बारिश की वजह से मिट्टी गीली हो रही थी। जंगल की झील के साथ एक बहोत बड़ी और गेहरी खाई भी थी। 

       अब हुआ यूँ, कि झील के ऊपर परबत से एक लड़के का पाँव फिसल जाता है और वो धड़ाम से उस झील के पानी से टकराता हुआ, नीचे  खाई में से होते  हुए, समंदर की लेहरो से टकराते हुए, समंदर के किनारे तक पहुँच  जाता है, इतनी लम्बी छलाँग के बाद इतना पथ्थरों से टकराने के बाद कोई कैसे ज़िंदा रह सकता है ? यही सोचने की बात है।  


           दूसरे दिन सुबह से शाम होने को थी, मगर तूफ़ान थम ने का नाम ही नहीं ले रहा था।  पता नहीं आज क्या गजब ठाने को था। देखते ही देखते रात भी बित गई,  तिसरे दिन की सुबह होते-होते हवाओ ने अपना थोड़ा सा रुख बदला और बारिश भी थोड़ी देर के लिए थमने लगी, मगर अब भी काळे घने बादल आसमान से गुज़र रहे थे, जैसे की फिर से तूफ़ान आने को है। 

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        बारिश रुकने की वजह से एक मछुआरा अपनी नाव लिए उस समंदर के पास से गुज़रता है, जहाँ वो लड़का झील से गिरते टकराते आ पहुँचा था। उस मछुआरे ने दूर से किनारे पे कुछ पड़ा हुआ हो ऐसा देखा, पास जाके देखा तो वहाँ एक लड़का बेहोश हालत में था। उसे लगा कोई बेचारा तूफ़ान में फस गया होगा और उसकी ये हालत हो गई, वो लड़का उल्टा सोये हुए था, जो उस मछुआरे ने उसे सीधा कर के उसे फिर से एक बार देखा की कौन है ये, ज़िंदा भी है या नहीं ? उसने देखा की, उस लड़के को तो बड़ी चोट लगी थी, उसके कपडे भी फट चुके थे, उसके मुँह से खून अभी भी बह रहा था, चेहरे पे भी किसी ने बहुत मारा हो ऐसे  निशान पड़े थे, उस मछुआरे ने उसे ज़रा थप थपाया, मगर लगा नहीं की वो ज़िंदा है, उसके सिर  पे भी बहुत गहरी चोट लगी थी। फिर उस मछुआरे ने  उसके दिल की धड़कन सुनने की कोशिश की, तो उसके दिल की धड़कन धीरे-धीरे सुनाई दे रही थी, जैसे उसका दिल अब भी किसी और के लिए धड़कता हो, मछुआरे ने सोचा ये तो अभी ज़िंदा है, इसे क्यों ना वैदजी की पास ले चलूँ, शायद ये ढीक हो जाए। और उस मछुआरे ने उस लड़के को उठाया और अपनी नाव में बैठा के अपने गाँव वैद जी के पास लेके चला। अब तक तूफ़ान भी थम चूका था, तो  दूसरा तूफ़ान आए उससे पहले उसे भी जल्दी से घर जाना था और फिर सब से पहले मछुआरा उस लड़के को लेकर वैद जी के पास जाता है।
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मछुआरा : ( वैद जी के सामने उस लड़के  को सुलाते  हुए ) देखो ज़रा वैदजी, इस लड़के को कितनी चोट लगी है, ये बच तो  जाएगा ना ? ये मुझे समुन्दर के पास किनारे पे पड़ा मिला था, मैंने देखा तो इस के दिल की धड़कन सुनाई देती थी, इसलिए मैं इसे आपके पास लेके चला आया, आप ज़रा ठीक से  इसका इलाज करिए ना, शायद ये ठीक हो जाए, इस की जान बच जाए, अगर इस धरती पर इसकी कुछ सांँसे और लिखी होगी तो ये बच भी जाएगा, और तो क्या ! देखिऐ ना वैद जी ज़रा इसे। 

वैदजी : ( उसकी मरहम पट्टी करते हुए ) अच्छा ठीक है, मैं इसे देखता  हूँ, मगर देखने से तो मालूम पड़ता है, कि  अभी ये ज़िंदा है, और इसे किसी ने बहुत बुरी तरह से मारा भी है, कितना खून बह गया है इसका तो, इसके पैरो की हड्डियाँ भी टूट गइ है, इसके सिर पे भी बहुत गेहरी चौट लगी है, तुम भी ज़रा मेरी मदद  कर लो। 

मछुआरा : हा, हा क्यों नहीं ! बताइए क्या करना होगा मुझे ?

वैदजी : तुम इसके कपडे उतार के इसका खून साफ करने में मेरी मदद करो, तब तक मैं इसे मरहम पट्टी लगाकर इसको औषधि भी पीला  देता हूँ।  

           ( दोनों साथ मिलकर उसकी मरहम पट्टी करने लगे, वैद जी ने देखा की उसके सिर पे भी बहुत बड़ी चोट लगी है,  बहुत खून निकल चूका  है । )      

      ज़रुर इसके किसी अपने की दुवाओ का असर है, जो अब तक इसे बचाए  रखा है। 

मछुआरा : ( ऊपर भगवान से हाथ जोड़कर कहता है ) हे, भगवान ! इसे हो सके तो आप ठीक कर देना और इसे इसके अपनों से मिला देना, जिसके लिए शायद अब भी ये ज़िंदा है। 

वैदजी : ठीक कहा तुमने। हम तो सिर्फ़ औषधि दे सकते है, सांँसे देना या ना देना, ये तो ऊपर वाले के हाथो में है। 

मछुआरा :  अच्छा, वैदजी मैं चलता हूँ, मैं कल इसे देखने आ जाऊंँगा। फिर से अगर आज  तूफ़ान आ गया, तो मेरा घर जाना मुश्किल हो जाएगा। बच्चे घर पे मेरा इंतज़ार  कर रहे  होंगे। 

वैदजी : अच्छा ठीक है, तुम जाओ, मैं इस का ध्यान रखूँगा। 

           ( मछुआरा वहांँ से अपने घर चला जाता है। )

          तो दोस्तों, क्या वैदजी की मरहम पट्टी और औषधि से वो लड़का ठीक हो पाएगा या नहीं ? 

          

                    आगे क्रमशः। 

          

                                                                                                                                                     Bela... 

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रचनाएँ
मैं कौन हुँ ?
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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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