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मैं कौन हुँ ?

23 नवम्बर 2022

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                        मैं कौन हूँ ? भाग -१४ 

     तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि डॉ.सुमन अनाम को अस्पताल ले जाके वहां पे उसे क्या करना है, सब समझा देती है, मन ही मन डॉ.सुमन अनाम से प्यार भी करने लगी है, डॉ.सुमन को  अस्पताल में कुछ अच्छा नहीं लगता। उस तरफ़ अनाम भी शायद डॉ.सुमन को प्यार करने लगा था, मगर उसने ऐसा कभी कुछ ज़ाहिर नहीं होने दिया था। डॉ.सुमन अनाम को अपने साथ उनकी दोस्त के वहां शादी में आने को कहती है, अनाम ने पहले तो मना किया, मगर बाद में डॉ.सुमन के बहुत समझाने पर अनाम उनके साथ जाने के लिए हाँ कहता है, अब आगे... 

         दो दिन बाद अनाम, डॉ.सुमन और उनके पापा शादी में जाने को तैयार हो गए। उन लोगों को जहाँ शादी के लिए जाना था, वह जगह शिमला से थोड़ी दूर थी, तो तीनो साथ में सुबह नास्ता कर के ज़ल्दी ही निकल गए। रास्ते में अनाम एक टक गाड़ी के बाहर देखे जा रहा था, बड़े-बड़े परबत, ठंडी हवाएँ, घने लहराते हुए पेड़, एक दूसरे से जैसे बातें करते-करते गले मिल रहे हो, उनको गौर से देखने पर ऐसा लगता। अनाम को लग रहा था, जैसे वह यहाँ पहले भी आ गया है, कुछ देर बाद अनाम की आँखों के सामने कुछ धुँधला-धुँधला सा याद आ रहा था, जैसे वो खुद किसी लड़की को अपनी बाइक पे लेके कहीं जा रहा है, दोनों बहुत खुश दिखाई दे रहे है, बस हसे जा रहे है।  वो लड़की अनाम को लिपटकर उसके पीछे बैठी हुई थी मगर अनाम उस लड़की का चेहरा साफ़-साफ़ नहीं देख़ पाया। ये बात अनाम के चेहरे पे  आगे बैठ के गाड़ी चला रही डॉ.सुमन ने अपने आईने में से देख ली। कुछ पल तो डॉ.सुमन ने भी कुछ ना कहा, फ़िर थोड़ी देर बाद डॉ.सुमन ने अनाम को धीरे से आवाज़ लगाके बुलाया। 

डॉ.सुमन : अनाम,अनाम। 

      मगर अनाम अब भी जैसे कोई मीठा सपना देख रहा था। डॉ.सुमन ने फ़िर से अनाम को आवाज़ दी। 

डॉ.सुमन : अनाम, अनाम।  क्या देख रहे हो इतनी देर से बाहर ? तुम ठीक तो हो ना...  

             अनाम अपने आप को सँभालते हुए 

अनाम : जी, एक मीठा सा सपना, जो शायद सच था, मगर अब नहीं। क्या वो मुझे आज भी याद करती होगी ?

डॉ.सुमन : कौन ?

अनाम : जिसे मैंने अभी अपने आपको अपनी आँखों के सामने महसूस किया। 

डॉ.सुमन : तुम किस की बात कर रहे हो, अनाम ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा। 

अनाम :  कुछ नहीं, बस ऐसे ही। 

    अनाम को कुछ पता नहीं था, कि उसके साथ क्या हो रहा है और आगे क्या होनेवाला है ? और उसने अभी-अभी डॉ.सुमन से क्या कहा ? 

      हाँ दोस्तों, आप एकदम सही समझ रहे हो, अनाम को अपनी बीती हुई ज़िंदगी के बारे में कुछ धुँधला-धुँधला सा याद आ रहा है, उसकी ज़िंदगी में कोई तो लड़की थी, जो उसके बहुत करीब थी, मगर कौन ? कहाँ, कैसे ? एक तरफ़ डॉ.सुमन अनाम से प्यार करने लगी थी और दूसरी तरफ़ अनाम की ज़िन्दगी में कोई और लड़की ? अब क्या होगा ? अनाम किस के साथ रहना पसंद करेगा ? अगर अनाम को अपना पहला प्यार मिल गया तब अनाम क्या करेगा ? ये जानने के लिए पढ़ते रहिए, मेरी ये कहानी, जिसने अनाम की ज़िंदगी ही बदल दी। अब आगे...  

         रास्ते में डॉ.सुमन ने गाड़ी रोक कर एक अच्छे होटल में चाय-नास्ता भी किया, वहां पे कुछ देर रुक कर सब फिर से वहां से अपनी गाडी में जाने लगे। थोड़ी देर में ही वे लोग शादी वाले घर की और पहुँच जाते है। गाड़ी से उतरते ही अनाम चारो और देखे जा रहा था, एक बड़ी सी हवेली, हवेली के आगे गार्डन, गार्डन के सामने बड़ा सा समंदर जहाँ से तेज़ हवा चल रही थी, जैसे ये हवा अनाम को इतने साल बाद देखके अपने गले लगा रही हो वैसे ही अनाम उस हवा के झोकों से लिपटे जा रहा था, अनाम के बाल भी हवा के तेज़ झोको से उड रहे थे, हवा की तेज़ लहरें और सूरज की किरणे अनाम की आँखे खोलने नहीं दे रही थी, अनाम ने हाथो को अपनी आँखों के आगे कर दिया, ताकि वो आँखें बाद कर के कुछ देर वहां खड़ा रह सके और उस जगह को महसूस कर सके। डॉ.सुमन और उनके पापा भी सामान लेकर गाड़ी में से बाहर निकलते है, वो दोनों भी हवा के तेज़ झोकों से जैसे बच रहे थे, ये अचनाक मौसम ने कैसा बदलाव कर दिया ? समझ नहीं आ रहा था किसी को भी। हवेली के पास खड़े सब लोग परेशान थे।  कुछ देर तक डॉ.सुमन ने अनाम का हाथ पकडे रखा। थोड़ा तूफ़ान शांत होने के बाद अनाम अपनी आंँखें ठीक से खोल पाता है और आगे की ओर  देखता है, उसे वहां सब कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था, मगर कुछ याद नहीं आ रहा।  

      डॉ.सुमन अनाम का हाथ पकड़ के हवेली की तरफ़  बढ़े जाती है, जैसे-जैसे अनाम हवेली की ओर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे अनाम के दिल की धड़कनें तेज़ होती जा रही थी,  मगर अब भी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा ये उसके साथ क्या हो रहा है ? 

      हवेली के अंदर शादी की तैयारियाँ ज़ोरो-शोरों से लगी हुई है। सारी हवेली फूल और रोशनी से सजी हुई है, जैसे आसमान से चाँद-सितारें दिन में ही ज़मीं पर उतर आए हो और खुद खुदा भी फूलो की बरसात कर के शादी की बधाइयाँ दे रहे हो। अमिर घरानों में शादियांँ ऐसी ही होती है।

      जैसे-जैसे अनाम डॉ.सुमन के साथ हवेली के अंदर अभी तो जा ही रहा था, कि हवेली के आस-पास खड़ी कुछ लड़कियों ने अनाम को घूर-घूर के देखा । वो लड़कीयाँ तुरंत ही दौड़ती हुई घर के अंदर जाती है और अनाम के आने की खबर किसी लड़की को देती है, जैसे ही डॉ.सुमन दरवाज़े तक पहुँचती है, सामने से एक लड़की दौड़ती हुई आती है, अनाम को सिद्धार्थ कहते हुए गले से लगा लेती है और रोए जाती है। अनाम की समझ  में कुछ नहीं आता, ये सब क्या हो रहा है और ये लड़की  कौन है ? जो उसे सिद्धार्थ के नाम से पुकारती हुई उसे गले लगा कर रोऐ जा रही है। अनाम का माथा, उसका चेहरा चूमे जा रहे है और सवाल पूछे जा रही है, अब तक कहाँ थे तुम ? मुझे फ़ोन क्यों नहीं किया तुमने ? तुम चुप क्यों हो ? मैंने कितना तुम्हारा इंतज़ार किया ? सब कह रहे थे, कि तुम अब इस दुनिया में नहीं रहे, मगर मैंने किसी की बातों पे यकीं नहीं किया। मुझे पता था, कि तुम एक ना एक दिन ज़रूर वापस आओगे, तुम चुप क्यों हो ? कुछ कहते क्यों नहीं ? वो लड़की जो डॉ.सुमन की दोस्त थी और उस लड़की ने अब तक एक नज़र देखा भी नहीं , कि अनाम ने डॉ.सुमन का हाथ अब भी ज़ोरो से पकड़ा हुआ है और अनाम के पास उसी की सहेली डॉ.सुमन खड़ी है। वो लड़की भले होश खो बैठी हो, मगर डॉ.सुमन तो अपने पुरे होश में थी ना ! वो उस लड़की की सब बातें गौर से सुन रही है, जो उसी की बचपन की सहेली नैना है  और बहुत सालों बाद वो दोनों मिलने वाले है  और जिसकी शादी में वो लोग आए हुए है।

      अनाम अब भी उस लड़की को ठीक से पहचान ना सका, वो कभी उस लड़की को, तो कभी डॉ.सुमन की ओर देखे जा रहा है। अब डॉ.सुमन की बारी थी, अपनी ही दोस्त नैना को सँभालने की। डॉ.सुमन ने अपना हाथ अनाम के हाथ से छुड़ाया और नैना को अनाम से थोड़ा दूर करते हुए, एक कुर्सी पर बैठाते हुए  

डॉ.सुमन : नैना, नैना ! ये तुम क्या कह रही हो ? क्या तुम इस लड़के को जानती हो ? और कैसे ?

नैना : हाँ, सुमन ये वही लड़का है, जिससे मैं प्यार करती हूँ और हम दोनों शादी करनेवाले थे, मगर कुछ महीनो पहले एक तूफ़ानी बारिश की रात में, सिद्धार्थ अपनी बाइक पे मुझ से रुढ़ के कहीं चला गया, उसके बाद दिखा ही नहीं, हम सब ने इसे बहुत ढूंँढा। मगर किसी को पता नहीं, कि ये कहाँ चला गया ? इसकी बाइक एक जंगल में मिली थी, तो सब ने कहाँ शेर आके खा गया होगा। क्योंकि उस जंगल में कभी-कभी शेर आकर लोगों को खा जाया  करता था। नैना को अब भी अपनी आँखों पे यकीं नहीं आ रहा, नैना रोते हुए एक ही सांँस में अनाम के बारे में डॉ.सुमन को बताए जा रही है। 

    डॉ.सुमन नैना को ज़ोरो से गले लगा लेती है, जिसकी उम्मीद ही ना हो मिलने की और वो युहीं एक दिन अचानक से सामने आ जाए, तब इंसान अपने आप पे आपा खो बैठता है। डॉ.सुमन नैना को सराहते हुए, उसे चुप कराते हुए,

डॉ.सुमन : बस नैना, बस। अब बस।  तुम्हारा अनाम... मेरा मतलब है, कि तुम्हारा सिद्धार्थ तुम्हारे सामने है, ना ! तो अब बस रोना बंद। शांत हो जाओ। 

       अनाम भी थोड़ी दूर खड़े ये सब देख़ रहा था, उसे अंदाज़ा हो रहा था, कि यहाँ ये सब उसे पहचानते है। मगर अनाम को अब भी कुछ याद नहीं आ रहा था, कि ये लड़की कौन है ? जो उसे देख इतना रोऐ जा रही है। डॉ.सुमन बात को सँभालते हुए अनाम का हाथ पकड़कर नैना के पास घर के अंदर ले आती है, दोनों को एक सोफे पे बैठाती है, डॉ.सुमन पानी मँगवा के नैना और अनाम दोनों को पानी पिलाती है।  

नैना : ( अनाम से ) मैं सच कह रही हूँ, मैं ये शादी कभी नहीं करना चाहती थी, घरवालों ने बहुत ज़िद्द की, माँ ने अपने मरने की कसम खिला दी, इसलिए मैं इस शादी के लिए राज़ी हो गई, (नैना अनाम का हाथ पकड़ते हुए )क्या तुम मुझ से अब भी नाराज़ हो सिद्धार्थ ? सुमन इसे कहो ना, मैं सच कह रही हूँ। ये  मुझे ऐसे क्यों देख रहा है, जैसे ये मुझे पहली बार देख रहा हो ? ये मुझ से बातें क्यों नहीं कर रहा ? ये मुझे देख़कर ख़ुश क्यों नहीं है ? और ये तुम्हारे साथ कैसे ? 

     अनाम के पास नैना के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं था। 

डॉ.सुमन : शांत हो जाओ, नैना ! सब बताती हूँ, तुम पहले थोड़ा शांत तो हो जाओ, चुप रहो, अब चलो रोना बंद भी  करो। 

      घर के सारे लोग वहां इकट्ठे हो गए थे, सब की आँखों में भी वहीं सवाल चल रहे थे, जो सवाल नैना कर रही थी।  एक तरफ़ अनाम पथ्थर बना सब को देखे जा रहा है, सब जाना पहचाना लगने पर भी अनाम के लिए अब भी सब कुछ अनजान है। जैसे कोई सपना। एक तरफ़ डॉ.सुमन अपनी दोस्त नैना और अनाम को पास बिठाकर दोनों को कुछ पल देखती रही, देखते-देखते आज डॉ.सुमन की आंँखें भी भर आती है। डॉ.सुमन की समझ में अब कुछ-कुछ आने लगा। बात को थोड़ा सँभालते हुए, सब के सामने ही डॉ.सुमन अपनी दोस्त नैना को दूसरे अलग कमरे में लेके जाती है और अनाम को कुछ देर वहीं  रुकने को कहती है, 

डॉ.सुमन : अनाम तुम कुछ देर यहीं रुको, मैं नैना के साथ कुछ बात करके अभी आती हूँ। 

       अनाम सिर्फ़ अपनी आँखों के इशारे से डॉ.सुमन को कहता है, जी, मैं यहीं हूँ। 

डॉ.सुमन : ( नैना को समझाते हुए ) देखो नैना, अब जो भी मैं तुमको बताने जा रही हूँ, उसे गौर से सुनो और हो सके तो समझने की कोशिश करना। डॉ.सुमन नैना को सब कुछ सच-सच बता देती है, जो इतने महीनो में अनाम के साथ हुआ था। नैना सब कुछ गौर से सुनती रहती है। नैना के नैनो से आँसू पानी की तरह बहते ही जाते है  और डॉ.सुमन ने साथ में ये भी बताया, कि अनाम को अभी सब कुछ याद नहीं आया, मगर याद दिलाने पे शायद बीते हुए दिन उसे पूरी तरह याद आ भी जाए या कभी याद ना भी आ सके। कुछ भी हो सकता है। ये अभी हम नहीं कह सकते। मैं तुम्हें झूठ नहीं बताना चाहती। मैं समझ सकती हूँ, तुमने अपने सिद्धार्थ का बहुत इंतज़ार किया, उसे तुमने बहुत प्यार किया होगा।  मगर अब वो बदल चूका है, अब वो शायद पहले की तरह तुम से प्यार ना भी करे, क्योंकि उसे कुछ याद है ही नहीं ! तुम्हारे साथ पहले जैसा प्यार होने में बहुत वक़्त बीत जाएगा या तो कभी वो ऐसा कर पाएगा भी या नहीं ये भी कहना मुश्किल है। तो अब तुम ही ठन्डे दिमाग से सोचो, कि अब तुम्हें क्या करना है ? 

    एक तरफ़ तुम एक ऐसे लड़के से प्यार करती हो जो तुम को अब पहचानता भी नहीं और दूसरी तरफ़ तुम्हारी शादी एक ऐसे लड़के से होने जा रही है, जो तुम को बहुत प्यार करता है। अब तुम चाहे किसी भी और जाओ, दोनों रास्ते पे चलना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा, तुम्हें दोनों  में से किसी एक को चुनना होगा। फैसला तुम्हारे हाथों में ही है, तुम्हारा जो भी फैसला होगा, घरवालों को वो मैं  समझा दूंगी, तुम उसकी परवाह मत करना। 

      नैना बड़ी गौर से डॉ.सुमन की सारी बातें सुनती है। उसे यकीं ही नहीं हो रहा, कि उसके सिद्धार्थ के साथ इतना कुछ हो चूका है। उसकी आँखों से बस आँसू बहते ही जाते है। डॉ.सुमन की बात ख़तम होने पे नैना डॉ.सुमन से गले लग जाती है और कहती है,

नैना : सुमन, अगर तुम नहीं होती तो मेरे सिद्धार्थ को मैं कैसे मिलती ? और इस दुनिया में वो नाजाने किस हाल में होता ? तुम्हारा जितना भी शुक्रिया-अदा करू, कम ही है।

डॉ.सुमन : अच्छा चलो, अब ये रोना बंद करो, घर में बाकि सब को भी ये बात बतानी होगी ना ! क्योंकि अनाम... मेरा मतलब सिद्धार्थ यहाँ किसी को नहीं जानता, तो उसकी जान पहचान करा दी जाए। वैसे मुझे अब तुम ये बताओ, उसके माँ-पापा कौन है ? और कहाँ है ? उनको भी तो ये खबर करनी होगी ना ! 

नैना : जब अनाम छोटा था, तभी उसके माँ-पापा एक कार एक्सीडेंट में चल बसे थे, उनके पापा का बहुत बड़ा बिज़नेस था, जो सिद्धार्थ के पापा के जाने के बाद सिद्धार्थ के चाचा ने सँभाल लिया था। जोकि सारा बिज़नेस और प्रॉपर्टी सिद्धार्थ के नाम था, इसलिए उसके चाचा ने सिद्धार्थ को घर पे रहने दिया था, वर्ना पैसो की लालच में कौन किस का रहता है, आज यहाँ ? ये सब मुझे सिद्धार्थ ने खुद बताया था। मगर जब से सिद्धार्थ १८ साल का हुआ, तब से उसके चाचा उसे विदेश भेजने को कह रहे थे और कुछ पेपर्स पे sign भी करवाना चाहते थे, मगर सिद्धार्थ आज नहीं, कल कहते बात टालता रहता था। सिद्धार्थ को पता चल गया था, कि उसके चाचा उसकी प्रॉपर्टी अपने नाम करवाना चाहते है। मैं और सिद्धार्थ कॉलेज में साथ में पढ़ते थे, पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार और फ़िर एक दिन जुड़ा हो गए। मेरी समझ  में अब कुछ-कुछ आ रहा है। सिद्धार्थ के चाचा ने ही उसकी बाइक का एक्सीडेंट करवाया होगा और उसे गुंडों से पिटवाकर खाई में फ़ेंक दिया होगा। ताकि उसके मरने के बाद उसकी प्रॉपर्टी उनके नाम जो होनी थी, क्योंकि सिद्धार्थ के घूम होने के बाद मैंने पता किया था, उसके चाचा प्रॉपर्टी के मालिक बन गए थे और उन्होंने पुलिस को पैसा खिलाकर केस को बंद कर दिया था। मगर उसके पास पैसा हो या ना हो, मैंने तो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने सिद्धार्थ से ही प्यार किया है, बस मुझे वो मिल जाए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मुझे पक्का यकीं है, कि उसे एक ना एक दिन सब कुछ याद आ ही जाएगा। मेरा प्यार उसे एक दिन सब कुछ याद दिला देगा।  देख लेना तुम। ( नैना अपने प्यार पे इतराते हुए ) कहती है।  

डॉ.सुमन : अगर भगवान् ने चाहा तो तुम जैसा कह रही हो बिलकुल वैसा ही होगा। सिद्धार्थ को एक ना एक दिन सब कुछ याद आ ही जाएगा और वह तुम्हें पहले की तरह प्यार करने लगेगा और तुम दोनों पहले की तरह फ़िर से साथ रहोगे। मगर नैना, आज तो तुम्हारी मेहंदी है, उसका क्या ?

नैना : मुझे कोई मेहंदी नहीं लगवानी और नाही किसी और से शादी करनी है, मुझे अब सिद्धार्थ मिल गया है, मेरे लिए उतना ही काफी है। अगर भगवान् ने उसे मुझ से मिला ही दिया है, तो आगे भी उसे सब याद आ ही जाऐगा। मैं सिद्धार्थ को अपना प्यार याद कराके ही रहूंगी, चाहे कुछ भी हो जाए।  

        डॉ.सुमन को नैना की बातो में सच में प्यार नज़र आता है और उसकी ये ज़िद्द एक ना  एक दिन सिद्धार्थ को अपना बिता हुआ कल याद कराके ही लाएगी ऐसा डॉ.सुमन को लगता है। शायद इसी प्यार के लिए अनाम इतनी चोट के बाद ज़िंदा है और अब वो ठीक है, शायद नैना सच ही कह रही है, भगवान् की भी यहीं मर्ज़ी होगी। ऐसा सोचकर डॉ.सुमन नैना का हाथ पकड़ते हुए नैना को कमरे से बाहर ले जाती है जहाँ अनाम डॉ.सुमन का इंतज़ार कर रहा था। डॉ.सुमन ने नैना को इशारे से बताया, कि तुम अपने माँ-पापा को सब बता दो और मैं अनाम को सारी बात समझाती हूँ। डॉ.सुमन ने अपने पापा को पहले अलग ले जाके सब समझाया, कि 

डॉ.सुमन : आप नैना के साथ रहिए और नैना के पापा को अनाम के बारे में सब बातें बता दीजिए, सच्चाई छुपाने से कोई फायदा नहीं है, नैना अनाम से बहुत प्यार करती है और वह उसके लिए कुछ भी कर सकती है।  मैं अनाम को समझाने की कोशिश करती हूँ। उसको अपने आप से मिलवाने का वक़्त अब आ गया है। अनाम के सारे सवाल के जवाब अब उसे मिल जाएँगे। 

     कहते हुए डॉ.सुमन अनाम को अलग कमरे में लेके जाती है और नैना ने जो भी अनाम के बारे में कहा, वो सब उसे कहती  है। 

     उस तरफ़ डॉ.सुमन के पापा और नैना, नैना के घरवालों को सिद्धार्थ के बारे में सब समझाने की कोशिश करते है। नैना की ज़िद्द के आगे सब हार जाते है और नैना की शादी cancel करवा देते है। नैना के ससुराल वालों तक तुरंत ही ये बात पहुँचाई जाती है।  

       तो दोस्तों, आख़िर डॉ.सुमन को अनाम के बारे में सब पता चल ही जाता है। अब क्या नैना अनाम को अपने बीते हुए कल के बारे में सब कुछ याद करा पाएगी और  अब अनाम नैना के साथ रहने को राज़ी हो जाएगा या नहीं? दोस्तों, आप सब का इस बारे में क्या ख़याल है?  आप के जवाब का मुझे इंतज़ार रहेगा। 

                        अब आगे क्रमशः।         

                                              Bela... 




                                                               

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मैं कौन हुँ ?
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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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