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मैं कौन हुँ?

23 नवम्बर 2022

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                 मैं कौन हूँ ? भाग - 3 

   तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि वैदजी की  औषधि से भी उस लड़के में कोई ज़्यादा फ़र्क नहीं दिख  रहा था, इसलिए वैदजी ने मछुआरे से कहा, कि "हमें इस लड़के को दूसरे गाँव में बड़ा सा अस्पताल है, वहाँ उसे ले जाना चाहिए और उस अस्पताल में मेरी पहचान भी है, तो अंग्रेजी दवाई से शायद ये ठीक भी हो जाए। " मछुआरे को भी ये बात सही लगी, वैदजी और मछुआरे ने जाने की तैयारी शुरू कर दी। अब आगे... 
 

         सुबह होते - होते मछुआरा, उसका दोस्त और  वैदजी उस लड़के को नाव में लेकर दूसरे गाँव पहोंच गए, नाव वही किनारे पर छोड़ कर  मछुआरा और उसके दोस्त  उस लड़के को उठाकर अस्पताल ले जाने लगे। समंदर से अस्पताल ज़्यादा  दूर भी नहीं था। वैदजी भी उसके पीछे-पीछे चले। अस्पताल पहुँचकर उन्होंने लड़के को बिस्तर पे लेटा दिया।  ( वैदजी नर्स से )

वैदजी : डॉक्टर सुमन कहाँ  है ? 

नर्स : डॉक्टर सुमन अपने घर पे है। आज शाम को ही अस्पताल आएगी, कल रात को उन्होंने किसी का ऑपरेशन किया था, तो वो बहुत ठक गइ है, अभी तो डॉक्टर अजित है, वो मरीज़ को देख रहे है। 

वैदजी :  डॉ. सुमन का अभी यहाँ आना बहुत ही ज़रुरी  है, किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है, उनसे कहिए की कसोल गाँव से वैदजी आपसे मिलने आए है और उन्हें आप से एक बहुत ज़रुरी  काम है। मेरी आप से ये गुज़ारिश है, कि आप अभी उनको ये बात बता दे। 

नर्स : अभी तो वो आराम कर रही होगी, पता नहीं वो फ़ोन उढ़ाएगी भी  या नहीं। अगर आप इतना कह रहे है तो मैं  अभी उनको फ़ोन करती हूँ। 

( तब तक नर्स ने अपने साथ काम करते लोगो से कहा ) 

नर्स : इस लड़के को अंदर कमरे में ले जाओ और डॉक्टर अजित को दिखाओ, जब तक वो  मरीज़ को  देखते है,  तब तक मैं डॉक्टर सुमन को फ़ोन करती  हूँ। 

     ( नर्स डॉक्टर सुमन को फ़ोन लगाती है, मगर पहले तो डॉ. सुमन ने फ़ोन नहीं उठाया। नर्स दुसरी बार फ़ोन लगाती है, तब डॉ सुमन फ़ोन उठा लेती है। )

 नर्स : हेल्लो, जी डॉ, सुमन मैं अस्पताल से बोल रही हूँ, वो आपसे.....  ( नर्स की बात बिच में ही काटते हुए )

डॉ. सुमन : मैंने आज कहा था ना, की अभी मुझे कोई परेशान ना करे, मैं  शाम को अस्पताल आनेवाली हूँ, तब देख लूंगी। रखो फ़ोन। ( कहते हुए डॉ. सुमन ने फ़ोन रख दिया। )

नर्स : ( वैदजी से ) मैंने कहा था ना आपको, की अभी डॉ. सुमन किसी से बात नहीं करेगी। उन्होंने मेरी बात भी नहीं सुनी और फ़ोन रख दिया। 

वैदजी : एक बार फिर से फ़ोन कर के बता दीजिऐ,  सिर्फ एक बार। 

नर्स : ठीक है, आप इतना कह रहे हो तो एक बार मैं फ़िर से फ़ोन करके देख लेती हूँ, 
 
    ( नर्स फिर से एक बार डॉ. सुमन को फ़ोन लगाती है। ) हेल्लो, डॉक्टर सुमन, कसोल गाँव से वैदजी एक मरीज़ को लेकर आए है, बता रहे है, कि आपको ही उसे देखना पड़ेगा। 

डॉ.सुमन : कौन ? कसोल गांव से वैदजी ? अस्पताल आए हे ? पहले क्यों नहीं बताया मुझे ? उनको कहो मेरा इंतज़ार करे, मैं अभी घर से निकलती हूँ।

      ( डॉ.सुमन तुरन्त ही फ्रेश होकर घर से निकलती है, और अस्पताल आती है। वैदजी को देखते ही,  प्रणाम करती है। ) 
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डॉ.सुमन : वैदजी, कैसे  है आप ? आज अचानक  यहाँ,  इतनी सुबह सुबह ?

वैदजी : मैं  तो ठीक हूँ, डॉ. सुमन। 

        ( वैदजी की बात बिच में ही काटते हुए ) 

डॉ.सुमन :  (  रूठते हुए ) मैंने आपको कितनी बार बताया है, कि आप मुझे डॉ. सुमन कहकर मत बुलाया करो, मुझे अच्छा नहीं लगता। 

वैदजी : ( हस्ते हुए ) आगे से ध्यान रखूँगा सुमन बेटा, मगर पहले तुम उस लड़के को देख लो जिसे मैं  यहाँ लेकर आया हूँ, बाकि की बाते बाद में करेंगे। 

डॉ.सुमन : जी ज़रूर, जैसा आप कहे, मैं  अभी जाके उसे  देखती हूँ। आप इधर ही रुकना। 

( तो दोस्तों, आपको पता चल गया होगा की वैदजी और डॉ.सुमन के बिच बहुत गहरा रिश्ता होगा, जैसे एक बाप और  बेटी  का  होता है। हाँ, क्योंकि इसी वैदजी के पास से डॉ. सुमन ने बहुत कुछ सीखा है। डॉ. सुमन के पापा और वैदजी एक ज़माने के बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे और अक्सर उन दोनों के घर आना जाना लगा रहता था। तो बातों-बातों  में वैदजी डॉ. सुमन को अपनी औषधि के उपचार भी बताया करते थे और डॉ. सुमन को भी ये सब जानना अच्छा लगता था। ) 

     ( डॉ.सुमन उस लड़के को देखकर कमरे से बाहर आति है। )

डॉ.सुमन  : आप इसे बहुत सही समय पे यहाँ लेकर आए  है, आपकी औषधि और उपचार से इसकी चोट तो ठीक होने लगी है, मगर इसके सिर के पीछे की जो चोट है, वो बहुत ही गहरी है, इसका ऑपरेशन करना पड़ेगा। लगता है किसी ने इस लड़के को बहुत ज़ोर से किसी चीज़  से मारा होगा। इस वज़ह से इसकी नसे  एकदूसरे से छूटती जा रही है, इसी वजह से इसको होश भी नहीं आया होगा। क्योंकि हमारे सिर के पीछेवाले ब्रैन की  जो नसे  हमको मैसेज पहुँचाती है, वही अगर छूटने लगे, तो कभी-कभी इंसान को होश आने में महीने या सालो भी लग सकते है और ये मेरे अकेले का काम नहीं  है, मुझे एक ओर  डॉ. की भी ज़रूरत पड़ेगी। 

वैदजी : मुझे  ऐसा ही लगा था, इसीलिए में इसको तुरंत तुम्हारे पास लेकर चला आया।  ताकि इसका इलाज शुरू हो सके। 

डॉ.सुमन : जी ज़रूर, क्यों नहीं ? इसीलिए  तो हमने ये सफ़ेद कोट पहना है। आप फ़िक्र मत कीजिए  वैदजी, मैं  इसको देख लुंँगी।  मगर ये लड़का आपको मिला कहा ? और उसकी ऐसी हालत हुई कैसे ? 

वैदजी : वो बात ये है न बेटा की, 
    
        ( वैदजी डॉ. सुमन को सारी बात बताते है। )

डॉ.सुमन : अच्छा, तो ये बात है ! में एक अच्छे डॉ. को जानती हूँ, उससे बात करके ऑपरेशन का  इंतेज़ाम करवा लेती हूँ, हमारे अस्पताल के फण्ड में से इसका इलाज हो जाएगा। इसलिए तो हम सब ने मिलके डोनेशन फण्ड  खोल रखा  है और कभी-कभी कुछ अमिर लोग से डोनेशन भी मिल जाता  है, तो वो भी हम इसी में रख देते है,  जिसमें से हम सब डॉ. अपनी कमाई के हिस्से में से कुछ इस फण्ड में रख देते है, जिससे ऐसे लोगो को हम बचा सके। आख़िर इस सफ़ेद कोट की भी तो कुछ ज़िम्मेदारी होती है ना, इसे पहनते वक़्त जो कसमें खाई थी, वो भला कैसे भूल सकते है हम लोग ? 

 वैदजी : तेरी इसी समज़दारी भरी बातों पे ही तो हमें  तुम पे इतना नाज़ है बेटा, मेरा आशीर्वाद हमेंशा तुम्हारे  साथ रहेगा। अच्छा, चलो अब मैं चलता हूँ, इस मछुआरे को भी अपने घर जाना है।  

डॉ. सुमन : अरे ऐसे  कैसे वैदजी ? आप यहाँ तक आए है तो घर भी चलिए, पापा से मिलकर जाना।  वैसे भी बहुत दिन हो गए, आप से बाते  किऐ  हुए, खाना भी साथ मिलके  खा  लेंगे।   

वैदजी : हांँ , तेरी बात तो सही है बेटा, मगर इस बार नहीं, अगली बार  इस लड़के को देखने आऊंँगा, तब तेरे घर भी आऊंँगा, साथ बैठकर खाना भी खाएँगे और तेरे पापा से भी मिल लूँगा, अभी मेरा गाँव जाना  ज़रूरी है बेटा। 

डॉ.सुमन : ठीक है वैदजी, मैंने कभी आपकी बात टाली है क्या ?
  
    ( वैदजी डॉ.सुमन को आशीर्वाद देकर मछुआरे और उसके दोस्त के साथ नाव में अपने गाँव के लिए निकल जाते है। डॉ. सुमन अपनी मदद के लिए  डॉ. प्रभाकर को फ़ोन करके उनको  बुला लेती  है, क्योंकि  उस  लड़के का ऑपरेशन जल्द से जल्द होना ज़रूरी है और ये शायद वो अकेले ना कर पाए। ) 

        तो दोस्तों, क्या डॉ. सुमन उस लड़के का सही इलाज कर पाएगी ? और क्या वो अजनबी लड़का ठीक हो जाएगा ?
               आगे क्रमशः। 
                                                                 Bela... 

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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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