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मैं कौन हुँ ?

23 नवम्बर 2022

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                              मैं कौन हूँ ? भाग -१६ 

      तो दोस्तों अब तक आप सब ने पढ़ा, कि नैना ने अनाम के बीते हुए कल के बारे में सब कुछ डॉ.सुमन को बतलाया और डॉ.सुमन ने अनाम को बतलाया। मगर अनाम की याददास्त जाने की बजह से अनाम को कुछ भी याद नहीं आ रहा था, दूसरे दिन नैना अनाम को ऑफिस ले जाती है, जो उसका उसका खुद का था, ऑफिस देख़ अनाम बहुत खुश हो जाता है, मगर परेशानी ये थी, कि अनाम को ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा था, कि उसने ऐसी कोई पढ़ाई की हो और उसे एक बड़ा बिज़नेस मेन बनना था, इसलिए उसने बिज़नेस मैनेजमेंट को कोर्स कम्पलीट किया था। अब आगे... 
       
        ऑफिस से निकलने के बाद नैना डॉ.सुमन और अनाम को पास वाले मंदिर लेके जाती है, जहाँ कान्हा जी की मूर्ति है, 

नैना : रोज़ शाम को हम इस मंदिर में आते थे और तुम यहीं इसी मंदिर की चोख़त पे बैठ मुझे अपनी सारी बात बताया करते थे, मुझे तुम्हारी हर बात सुनना बहुत अच्छा लगता था, जब तुम इतने महीनो तक यहाँ नहीं थे, तब भी मैं यहाँ आके रोज़ बैठती थी और कान्हाजी से तुमको वापस माँगा करती थी और आज देख लो, कान्हाजी ने मेरी बात सुन ही ली, उन्होंने तुमको मेरे और सिर्फ़ मेरे लिए  लौटा दिया, अब मैं तुम्हें मुझ से दूर कभी नहीं जाने दूँगी। कहते हुए नैना अनाम के गले लग जाती है और उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसु आ जाते है... 

      डॉ.सुमन नैना कि सब बातें बडे़ गौर से सुनती है, फिऱ मन ही मन सोचती है। 
      
     " सच्चे प्यार करनेवालों को भगवान् आख़िर मिला ही देता है।" डॉ.सुमन गले में खराश लाते  हुए उह्हू.. उह्हू... करती है और 

डॉ.सुमन : चलो, अब सारी बातें आज ही करोगी या घर भी जाना है,
    
      नैना हस्ते-मुस्कुराते अनाम से दूर होती है। अनाम को  थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन नैना की बातों पे भरोसा करने को भी मन करता है... नैना अनाम का हाथ पकड़के चलने लगती है और डॉ.सुमन दोनों के पीछे-पीछे चलती है। सब साथ में कार में घर जाते है, रास्ते में नैना और भी बातें अनाम के बारे में कहती रहती है, घर जाते-जाते रात होने को थी, घर जाकर खाना खा कर सब पुराने गाने सुनते है, नैना को भी रात को रेडियो पे पुराने गाने सुनने की आदत सी थी। अनाम थकान की बजह से  कुछ देर में वही बैठे-बैठे सो जाता है। 
      
      एक तरफ डॉ.सुमन कुर्सी पे बैठ के अपनी नॉवेल पढ़ रही होती है, वैसे भी डॉ. सुमन को जल्दी नींद नहीं आती इसलिए वह हमेशा अपनी नॉवेल अपने पास रखती ही है ताकि वक़्त मिलने पे वह कुछ पढ़ सके।     
     
     नैना अनाम को आराम से सोता देख़ उसके लिए कमरे में से एक चद्दर लेके आती है और उसे ओढ़ा देती है। फिर नैना अपनी सहेली सुमन के पास जाती है, जो अब भी अपनी नॉवेल पढ़ रही होती है, जिसका नाम था, 
" एक उलझन "
   
             नैना डॉ.सुमन का हाथ पकड़ते हुए 

नैना : सुमन, तुम्हें नहीं पता, सिद्धार्थ को मुझे लौटाकर तुमने मुझे नई ज़िंदगी दी है, तुम्हारा ये एहसान मैं कैसे चुकाऊँगी और किस जन्म में चुकाऊँगी, ये मैं खुद कह नहीं सकती। 

डॉ.सुमन : अरे नहीं, मैं कहाँ ? मैंने तो इंसानियत के नाते सिर्फ उसका ख़याल रखा, और तो क्या ? हम दोनों अब अच्छे दोस्त बन गए है। तो मुझे लगा, कि उसे मेरे साथ आना चाहिए, इसलिए मैं अनाम को अपने साथ लेकर आई, मुझे नहीं पता था, कि वो तुम ही हो जिसके लिए अनाम मरते-मरते बचा है, ये तुम्हारे प्यार और तुम्हारी दुवाओ का ही असर है, जो आज अनाम मेरा मतलब है, सिद्धार्थ, तुम्हारे सामने है और ठीक है। वो तुम्हारा है और तुम्हारा ही रहेगा, तुमसे ज़्यादा प्यार उसे और कोई नहीं कर सकता... 
    
     कहते हुए डॉ.सुमन नैना के गले लग जाती है। अनाम , मेरा मतलब है, सिद्धार्थ सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारा ही है, उसका ख्याल रखना। और हाँ, मैं तुम को बताना ही भूल गई, कि कल सुबह मैं और पापा यहाँ से चले जाएँगे, तुम सिद्धार्थ का ख्याल ऱखना और किसी भी वक़्त मेरी ज़रूर पड़े, तो मुझे फ़ोन ज़रूर करना। 
         
          I am always being there for you. 

नैना : नहीं सुमन, मैं तुम्हें इतनी जल्दी यहाँ से ऐसे नहीं जाने दूँगी। अभी-अभी तो हम मिले है, मुझे अभी तो तुमसे बहुत सी बातें करनी है। 

डॉ.सुमन : मेरी बात समझने की कोशिश कर नैना, मैं यहाँ क्या करुँगी ? उधर अस्पताल में मुझे कितना काम है, दो दिन तो मैं जैसे-तैसे कर के वक़्त निकाल के आ गई, लेकिन अब नहीं, नैना। अस्पताल से फ़ोन भी आने लगे है, कल एक emeragancy ऑपरेशन भी करना है। मुझे जाना ही होगा, वैसे अब तुम और अनाम जब भी चाहो मुझ से मिलने आ ही सकते हो, चाहो तो हम वीकेंड साथ में ही बिताएँगे। पक्का वादा रहा ये हमारा । 

नैना : अच्छा ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। लेकिन तुमने ये बात सिद्धार्थ को बताई क्या ?

डॉ.सुमन : नहीं, अभी तक तो नहीं, मैं उसे बताने ही जा रही थी, मगर देखा, कि वो तो चैन की नींद सो रहा है। अभी कल सुबह उसे बता देंगे।  तुम उसकी फ़िक्र मत करो। उसे यहाँ रोकने के लिए कैसे समझाना है, वह मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। 

नैना : अच्छा, ठीक है, तो अब सो जाते है। रात बहुत हो चुकी है। 
     
       डॉ.सुमन और नैना साथ में ही बातें करते-करते सो जाते है। मगर डॉ.सुमन को आज नींद नहीं आती, कुछ ही देर में डॉ.सुमन की आँख खुल जाती है। डॉ.सुमन को बार-बार बस अनाम से अब दूर हो जाने का गम सताए जाता है, डॉ.सुमन को पता नहीं था, कि इतनी जल्दी अनाम को यूँ छोड़ना पड़ेगा, उस से दूर रहना होगा, मगर जो मेरा था ही नहीं, उस पे कैसा हक़ ?
    
      सोचते-सोचते डॉ.सुमन बाहर के कमरे तक जाती है, जहाँ अनाम आराम से चद्दर ओढ़े सो रहा था, डॉ.सुमन अनाम के पास जाकर उसके करीब बैठ जाती है, धीरे से अनाम के बालो को सहलाते हुए, उसका मासूम सा चेहरा एक तक देखे जाती है, जैसे की उसका चेहरा आज आँखों में इस तरह बसा लेना है, जिसे कभी भुला ना सकू। उसके दिल की धड़कन ऐसे महसूस करना चाहती हूँ, कि जैसे जब भी अनाम मुझे याद करे, तब मेरे दिल की धड़कन तक उसकी आवाज़ सुनाई दे। 
     
       थोड़ी सी आहत से अनाम की नींद खुल जाती है, वैसे भी अब सुबह होने को थी, अनाम अपनी आँखें धीरे से खोलता है, सामने डॉ.सुमन उसके बालो को सराह रही होती है, ये देख अनाम भी एक पल को ये पल अपने अंदर जैसे समां लेना चाहता हो, अनाम डॉ.सुमन को देखे जाता है।  कुछ पल बाद 

अनाम : डॉ.सुमन, क्या हुआ ? आप सोऐ नहीं आज ? नींद नहीं आई ?

डॉ.सुमन : नींद चुरानेवाला खुद पूछता है, नींद आई नहीं ? दिल चुरानेवाला खुद कहता है, आप कहाँ हो ?

अनाम : जी, क्या कहा ? 
      
     अनाम को जैसे कुछ समझ  मैं नहीं आया हो। 

डॉ.सुमन : कुछ नहीं, बस यूँही, तुम नहीं समझोगे। 

अनाम : तो समझा दो आप। 

डॉ.सुमन : अब मैं तुम्हें समझाते-समझाते थक गई हूँ, इसलिए अब मैं जा रही हूँ, तुम्हें अब जो भी पूछना कहना, सुनना है वो नैना से कहना। अब किसी को जितना परेशान करना हो, जितना उधम मचाना हो यहाँ मचाना, हम तो चले, 
 
     कहते हुए डॉ.सुमन बात को बदलते हुए वहां से खड़ी होकर जाने लगती है। तभी अनाम डॉ.सुमन का हाथ पकड़ते हुए उन्हें रोकता है। 

अनाम : डॉ.सुमन, आप कहाँ जा रहे हो ? कुछ तो बताओ, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा ? 

     डॉ.सुमन अनाम के पास फिर से बैठते हुए, कहती है, 

डॉ.सुमन : अरे, बुद्धू, कहाँ जाउंगी मैं ? अस्पताल जाना है ना, और अपने घर।  तुम्हें तुम्हारा घर मिल गया, अब मैं और पापा आज जा रहे है।  तुम यहीं अपनी नैना के साथ रहना। 
   
      अनाम डॉ.सुमन की बात सुनते ही फट से खड़ा हो जाता है, 

अनाम : मैं भी आपके साथ चलूँगा। मुझे यहाँ अच्छा नहीं लगता, मैं यहाँ क्या करूँगा। 

डॉ.सुमन : अनाम, तुमने फ़िर से ज़िद्द शुरू कर दी ना ! बात को समझो, तुम्हें तुम्हारी पहचान, तुम्हारा प्यार,  तुम्हारा घर, तुम्हारा नया ऑफिस सब मिल गया है, तो अब तुम्हें अपनी ज़िंदगी  शुरू करनी चाहिए। वैसे भी नैना बहुत अच्छी लड़की है, वह तुमसे बहुत-बहुत प्यार करती है, उसने तुम्हारा कितना इंतज़ार किया है, उसके प्यार और प्रार्थना की बजह से ही आज तुम ज़िंदा हो और यहाँ उसके पास हो, भगवान् की भी यहीं मर्ज़ी होगी, तभी तो तुम मेरे साथ यहाँ आए और तुम्हें तुम्हारी मंज़िल मिल गई। 

अनाम : आपकी सब बातें सही, मानता हूँ, लेकिन मैं आपके साथ रहना चाहता हूँ।  मुझे आपकी एक आदत सी हो गई है, जैसे प्यासा पानी के बिना नहीं रह सकता, वैसे ही मैं आपके बिना कैसे जीऊँगा ?

डॉ.सुमन : जैसे मुझ से मिलने से  पहले जी रहे थे, बिलकुल वैसे, नैना के साथ। 

अनाम : डॉ.सुमन। ( अनाम हाथ छुडाके रूठता हुआ )

डॉ.सुमन : अच्छा चलो, ऐसा करते है, मैं भी यहाँ तुम दोनों के साथ रह जाती हूँ। अस्पताल का और मेरे मरीज़ का जो होगा, देखा जायेगा। 

अनाम : मैंने ऐसा तो नहीं कहा, मैं जानता हूँ, आप अपने काम से कितना प्यार करती हो। मगर.... 

डॉ.सुमन : अगर, मगर, अब कुछ नहीं, मैं तुम से दूर नहीं हूँ, जब चाहो मुझ से मिलने आ जाना। मैंने नैना को भी बता दिया है। जब चाहो मुझ से बात कर लेना। तुम्हारी तरह वहां अस्पताल में और भी तो पेशेंट आए होंगे, उन्हें भी तो मुझे बचाना है, मेरी ज़िंदगी सिर्फ़ एक की मोहताज नहीं, मुझे अभी अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ करना है, मुझे ऐसे तुम बांध के नहीं रख सकते।  मुझे जाना ही पड़ेगा।  बात को समझो। 

अनाम : अगर आप की यहीं मर्ज़ी है, तो यही सही। 
    
     दूर खड़ी नैना ने दरवाज़े के पीछे से डॉ.सुमन और सिद्धार्थ दोनों की बातें सुन ली।  नैना समझ गई, कि अब उसका सिद्धार्थ सिर्फ़ उसका नहीं रहा, उसकी ज़िंदगी में कोई और भी है, अब नैना को सिद्धार्थ के दिल को दो हिस्सों में बाँटना होगा, जो एक औरत के लिए बहुत मुश्किल है।  नैना अपने आप को संभालते हुए, हाथों में चाय की ट्रे लेकर दोनों की ओर बढ़ती है, जहाँ डॉ.सुमन और अनाम बैठ के बातें कर रहे थे। 
 
नैना : गुड मॉर्निंग, फ्रेंड्स ! क्या मेरी बातें चल रही है यहाँ ? 
      डॉ.सुमन और अनाम एक पल के लिए एक दूसरे की और देखते रहे, दोनों एक दूसरे से जैसे पूछ रहे थे, कि  कहीं नैना ने हमारी बातें तो नहीं सुन ली ? मगर वह ऐसे मुस्कुराई जैसे उसे कुछ पता ही नहीं था। 

डॉ.सुमन : अरे, नहीं बस ऐसे ही, मैं अनाम को यहाँ रुकने के लिया समझा रही थी, और वह मान गया है। 
    
     डॉ.सुमन अनाम के सामने यहाँ रुकने का इशारा करते हुए। 

नैना : ( सच सिद्धार्थ ? ) 

अनाम :   ( अपना सिर हिलाते हुए ) हाँ। 
     
     नैना सब कुछ भूल के खुश होते हुए फ़िर से सिद्धार्थ के गले लग जाती है, मुझे पता था, तुम कहीं नहीं जाओगे।

अनाम : जी, कैसे जाता, डॉ.सुमन का हुकुम जो आया है, मानना ही पड़ेगा। 
  
         अनाम डॉ.सुमन की ओर देखते हुए। 
   
     उतनी देर में डॉ.सुमन के पापा भी आ जाते है, डॉ.सुमन अपने पापा से 

डॉ.सुमन : आप आ गए, पापा ! आप रुकिए, मैं अभी फ्रेश होकर आती हूँ और अपना सामान लेकर अभी आई, हमें अभी निकलना होगा, कहीं देर न हो जाऐ। 

पापा : जी, मुझे कोई जल्दी नहीं, आराम से। 
 
डॉ.सुमन : लेकिन मुझे तो है। अभी आई, पापा।  
      
    जैसे डॉ.सुमन अब ज़्यादा देर यहाँ रुकी, तो वह रो पड़ेगी, इसलिए वह जाना चाहती थी, अनाम से दूर, अपने आप के करीब। 

     ऊपर जाके डॉ.सुमन कमरे में सामना पैक करने लग जाती है, तभी नैना भी वहां आती है, नैना ने अचनाक से सुमन का हाथ पकड़ लिया, उसे कुर्सी पे बिठाया, फ़िर 

नैना : मैंने तुम्हारी आँखों में सिद्धार्थ के लिए प्यार देख लिया है, तुम भी सिद्धार्थ से प्यार करती हो ना ? सच बताना सुमन। 

      डॉ.सुमन अपनी नज़रें चुराते हुए, नैना से अपना हाथ छुड़ाते हुए, अपना सामान पैक करते हुए 

डॉ.सुमन : तुम भी क्या बातें लेकर बैठ गई ? अनाम और मैं सिर्फ अच्छे दोस्त है, ये मैंने तुम को पहले ही बता दिया था।  फिर क्यों ? 
    
       बस तेरी यही बात मुझे सब से ज़्यादा पसंद है, अपनी ख़ुशी हस्ते हुए किसी की झोली में दाल देना। ये बहुत कम लोग कर पाते है, सुमन। और उन सब में तुम बस एक ही हो, तुम्हारा मन बहुत बड़ा है, काश... मैं भी ऐसा कर पाती। मगर मेरा दिल तुम्हारे जितना बड़ा नहीं है, सुमन। मैंने सिद्धार्थ से बहुत-बहुत प्यार किया है, उसके बगैर शायद अब मैं मर ही जाऊँ। 

             कहते-कहते नैना रोने लगती है। 

डॉ.सुमन : अरे, पगली, ऐसा क्यों कहती हो ? वो है ना यहाँ तेरे साथ, तुम्हारे पास, अब उसे सँभालने की ज़िम्मेदारी तेरी, समझी ? अब तुम ऐसे रो दोगी, तो कैसे चलेगा ?
    
     डॉ.सुमन नैना के आँसू पोछते हुए उसके गले लग जाती है।  

डॉ.सुमन : सब ठीक हो जाएगा, सिद्धार्थ तुम्हारा है, और रहेगा।  चलो अब मुझे जाना है, हस भी दो। और हर sunday को वक़्त मिले तो मुझ से मिलने आ जाया करना। 
    नैना मुस्कुरा देती है। डॉ.सुमन और नैना नीचे ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ते है। डॉ.सुमन के पापा को उसी का  इंतज़ार  था। 

डॉ.सुमन : ( अनाम से ) चलो मैं चलती हूँ। 
 
               अनाम कुछ कह नहीं पाता। 
 
     अब मुझे जाना होगा, कहते हुए डॉ.सुमन और उनके पापा कार में बैठ जाते है। अनाम की नज़रें डॉ.सुमन की ओर से हटती ही नहीं। अनाम दूर तक डॉ.सुमन की कार जाते हुए देख रहा होता है, जैसे उसकी ज़िंदगी ही उस से दूर जा रही हो। नैना मुस्कुराते हुए 

नैना : चलो, सिद्धार्थ, तुम फ्रेश हो जाओ। बाद में हम अपनी ऑफिस चले ? 
    
     अनाम दो पल सोचता रहता है। ज़िंदगी ने ये मुझे किस दौराहे पे लाकर खड़ा कर दिया है, जिसका मुझे इंतज़ार था, वो पहचान मिलने पे मैं उतना खुश नहीं और जो मुझ से दूर जा रही है, जो मेरी कुछ भी नहीं थी, उसे जाता देख दिल मायूस है। वो कहते है ना,

   " कभी-कभी पराए अपने लगने लगते है और अपने पराए से लगने लगते है। "  ऐसा क्यों होता है, पता नहीं। मगर जीना तो है, चाहे डॉ.सुमन नहीं, नैना ही सही। अनाम नैना की ओर मुस्कुराते हुए 

        अनाम : जी, मैं अभी आया। 
    
    कहते  हुए अनाम फ्रेश होने अपने कमरे में जाता है। 
                         
                          ४  महीनो के बाद 

       अब अनाम सिद्धार्थ बनकर नैना के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहता है, भले ही चाहे अनाम के दिल में कहीं ना कहीं डॉ.सुमन का प्यार छुपा हो, वो दर्द हो, मगर उस दर्द को दिल में ही छुपा दिया था अनाम ने। 
     
      उस तरफ़ डॉ.सुमन ने भी अपने प्यार को, अपने दर्द को अपने अंदर कहीं कोने में दबाए रखा था। अपने आप को अपने काम में और अपनी नॉवेल में खोए रहती थी। क्योंकि डॉ.सुमन जानती थी, कि नैना अनाम को बहुत ख़ुश रखेगी और अनाम को भी कभी ना कभी तो अपने बीते हुए कल के बारे में याद आ ही जाएगा। तब शायद उसके लिए हम दोनों में से किसी एक को चुनना और भी मुश्किल हो जाएगा। डॉ.सुमन अनाम के लिए अभी एक ओर मुसीबत बनना नहीं चाहती। डॉ.सुमन सिर्फ़ आज का नहीं, आनेवाले कल के बारे में भी उतना ही सोचती है और हाँ, सिर्फ़ अपने बारे में नहीं, बल्कि सब के बारे में सोचती है। 

      नैना ने ऑफिस में अनाम को bussines management के बारे में सब सीखा दिया, कुछ महीनो में ही अनाम की कंपनी टॉप कंपनी में से एक नंबर की हो गई। मगर अनाम को अब भी अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में कुछ याद नहीं, फ़िर भी नैना और सिद्धार्थ ने शादी भी कर ली और उनकी शादी में सब से ज़्यादा खुश डॉ.सुमन ही है। अब नैना और सिद्धार्थ ख़ुशी-ख़ुशी अपनी ज़िंदगी जी रहे है, कभी-कभी डॉ.सुमन भी उनसे मिलने चली जाती।  बातों-बातों  में वक़्त कहाँ बीत जाता है, सब को पता ही नहीं चलता। 
   
      वैसे ही एक दिन डॉ.सुमन के अस्पताल में एक लड़का आता है, जिस के सिर पे चोट लगने से उसकी भी याददास्त चली जाती है, डॉ.सुमन उसे भी अनाम की तरह ही संभालती है। उसका इलाज करती है और अपने डॉक्टर होने का फ़र्ज़ निभाती जाती है.... 
  
     किसी के होने ना होने से ज़िंदगी रूकती नहीं, ज़िंदगी तो चलती ही जाती है। लोग मिलते है, बिछड़ जाने को, सिर्फ़ और सिर्फ़ यादें ही रह जाती है, कुछ भी हाथ ना आता है, ख़ाली हाथ आए थे इस दुनिया में, खाली हाथ ही तो जाना है, बस काम तू ऐसा कर, कि मरके भी रोशन रहे इस जहाँ में नाम तेरा। 
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मैं कौन हुँ ?
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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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