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मैं कौन हुँ ?

23 नवम्बर 2022

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                             मैं कौन हूँ ? भाग - 4  

            तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि वैदजी और मछुआरा और मछुआरे का दोस्त उस लड़के को लेकर अस्पताल आ जाते है। अस्पताल में  डॉ.सुमन उस लड़के को देख के वैदजी को बताती है, कि इस लड़के के सिर पे भारी चोट लगने की वज़ह से इसके ब्रेन की नशे एक दूसरे से छुटती जा रही है, इस लिए इसे होश नहीं आ रहा। हमें इसका तुरंत ऑपरेशन करना होगा और ये काम वो अकेले नहीं कर सकती, इसके लिए उसे एक दूसरे  डॉ. की जरूरत होगी, अब आगे... 

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         ( डॉ.सुमन डॉ. प्रभाकर को फ़ोन लगाती है। )

डॉ.सुमन : हेल्लो, डॉ. प्रभाकर ?

डॉ.प्रभाकर : डॉ. सुमन आपको मैंने कितनी बार कहाँ है, कि आप मुझे डॉ. कहकर ना बुलाएगी तो भी चलेगा। 

डॉ.सुमन : और आप को भी मैंने कितनी बार कहाँ है, कि आप भी मुझे सिर्फ़ सुमन कहेंगे, तो भी चलेगा। 

            ( दोनों बात करते-करते हस पड़ते है। )

डॉ. प्रभाकर : अच्छा तो बताओ, डॉ. सुमन... मेरा मतलब की सुमन, आपने इस नाचीज़ को इतने दिनों बाद कैसे याद किया ? कुछ तो बात होगी, वार्ना आप हमें यूँ... याद नहीं करते। हमें पता था, कि आपको एक ना एक दिन हमारी याद ज़रूर आएगी, इसलिए आप ने हमें आज फ़ोन किया, सही कहा ना ?

डॉ.सुमन : जी हाँ,  ( फिर थोड़ा चिढ़ते हुए ) ये मज़ाक का वक़्त नहीं है।  आप को हर वक़्त मज़ाक के अलावा कुछ भी सूझता नहीं। 

डॉ.प्रभाकर : ओह्ह ! सॉरी ! अब आप हमसे रूठ मत जाना। तो बताइऐ, आप ने इस नाचीज़ को इतनी सुबह-सुबह याद क्यों किया ? मुझे तो लगा, कि आपको हमारी थोड़ी सी याद.. ( कहते-कहते रुक जाते है। )

डॉ.सुमन : वो बात ये है, कि आज सुबह-सुबह वैदजी किसी लड़के को लेकर अस्पताल आऐ थे और... ( डॉ. सुमन डॉ. प्रभाकर को सारी बात बताती है। ) 

डॉ.प्रभाकर : अच्छा ऐसी बात है, तो आप ऐसा करो, पहले उस लड़के की सब रिपोर्ट मुझे मेल कर दो, मैं देख के बता दूंँगा, कि अब क्या करना है. अगर सच में ऑपरेशन  की जरूरत पड़ी, तो उसके लिए मैं तो हूँ ही। 

डॉ.सुमन : अच्छा ठीक है, मैं बस थोड़ी देर में उस लड़के की फोटोज और रिपोर्ट आप को मेल करती हूँ, आप मुझे देख के बता देना, लेकिन प्लीज ज़रा जल्दी.. किसी की ज़िंदगी का सवाल है। 

डॉ.प्रभाकर : ओके, डॉ. सुमन, जैसी आपकी आज्ञा। 

     ( कहते हुए डॉ.प्रभाकर और डॉ.सुमन दोनों फ़ोन रख देते है। डॉ.सुमन नर्स से कहकर उस लड़के की सारी रिपोर्ट डॉ.प्रभाकर को मेल करवा देती है। मेल देखकर डॉ.प्रभाकर फ़ोन करके डॉ.सुमन को बता देते है, की )

डॉ.प्रभाकर : सच में, डॉ.सुमन आज ऑपरेशन करना ही होगा। आप ऑपरेशन की तैयारी करो, मैं  शाम तक अस्पताल पहुँच जाऊंँगा। ठीक है?

 डॉ.सुमन डॉ.प्रभाकर के कहने पर ऑपरेशन की तैयारी में लग जाती है।     

 डॉ.प्रभाकर शाम होते ही आ ही आ जाते है।

( डॉ.सुमन - डॉ.प्रभाकर से हाथ मिलाते हुए, ) 
 
डॉ.सुमन :  हेल्लो डॉ.प्रभाकर कैसे है आप ? 

डॉ.प्रभाकर :  ( हस्ते हुए ) बस आप जैसे लोगो की महेरबानी, वर्ना हम जैसे  डॉ. को कौन याद करता  है ?

 डॉ.सुमन : बस आप के इसी बड़प्पन पे तो हम मर मिटते  है।   ( दोनों साथ में हस पड़ते है। मज़ाक बहुत हो चूका अब थोड़ी काम की बात हो जाए ? आप चाय नास्ता कुछ लेंगे क्या ? रामु दो चाय लाना तो और साथ में पकोड़े भी, हमारे डॉ.प्रभाकर को यहाँ के पकोड़े बहुत  पसंद है। क्यों  डॉ.साहेब, ठीक कहा ना  मैंने  ? ) 

डॉ.प्रभाकर : हा हा, हो जाए। वैसे हमारी पसंद नापसंद अब तक याद है आपको, ये जान के अच्छा लगा। ये बात तो माननी पड़ेगी  और साथ में  उस मरीज़ के बारे में बात भी कर लेंगे।  तब तक नर्स ऑपरेशन की तैयारी भी कर लेगी।  क्यों  ठीक कहा ना  मैंने ? 

   डॉ.सुमन : आप की मज़ाक करने की आदत अब तक गई नहीं।  और आप कभी गलत हो सकते हो क्या ? 

         दोनों फिर से हस पड़ते है और  चाय-नास्ता करते-करते  डॉ. सुमन उस लड़के के बारे में बात कर लेती  है।  
नर्स : ऑपरेशन की तैयारी हो गई है, डॉ.सुमन। 

 डॉ.सुमन : ओ. के,  तुम चलो हम आते है।  

       ( डॉ.सुमन और डॉ.प्रभाकर दोनों साथ में ऑपरेशन थिएटर में जाते है। दो घण्टे तक ऑपरेशन चलता है। डॉ. सुमन बहार आते  ही  ) 

डॉ.सुमन : आपके बिना मैं अकेले ये ऑपरेशन नहीं कर पाती डॉ.प्रभाकर। Thank you so much for give  your precious time. 

डॉ.प्रभाकर : आप बुलाए  और हम ना आए, ऐसा कभी हो सकता है क्या डॉ.सुमन  ? ( दोनों हस्ते हुए गले  मिलते है। ) 

           तो दोस्तों, आपको बता दे की डॉ.सुमन और डॉ. प्रभाकर  एक ही कॉलेज में पढ़े है, इसलिए उन दोनों में दोस्ताना काफ़ी अच्छा  है। डॉ.प्रभाकर डॉ.सुमन के सीनियर डॉ. भी है, इसलिए कई बार डॉ.सुमन कई decision  डॉ.प्रभाकर से पूछ के ही लेती है। हांँ, ये बात ओर है, कि डॉ. प्रभाकर को हर बात पे मज़ाक करने की बहुत आदत है। मगर ये सही भी तो है, क्योंकि हर वक़्त डॉक्टर्स के पास कोई ना कोई मरीज़ अपना-अपना दर्द लेके ही तो आते है, अब अगर डॉक्टर्स को खुद अपना दर्द कम करना हो तो वो क्या करे ? इसलिए शायद हर डॉक्टर्स मज़ाक किया करते है, ये तो मैंने भी देखा है। अब आगे... 

     डॉ.प्रभाकर : अच्छा, तो अब मैं चलूँ ?  मुझे  किसी और मरीज़  को देखने दूसरे अस्पताल भी तो जाना  है। 

डॉ.सुमन : अच्छा, ठीक है।  कल मैं आपको  इस लड़के  के बारे में  रिपोर्ट कर दूंँगी।

     ( डॉ.प्रभाकर वहांँ  से निकलते है। डॉ. सुमन भी नर्स से उस  लड़के का ध्यान रखने को कहती है और अपने काम में लग जाती है।  देखते ही देखते तीन-चार दिन हो गए मगर उस लड़के की हालत में कोई सुधार नहीं था। डॉ.सुमन ने डॉ.प्रभाकर को फ़िर से एकबार फ़ोन लगाया। )

डॉ.सुमन :  हेल्लो डॉ.प्रभाकर कैसे है आप ? 

डॉ.प्रभाकर : मैं, बहुत अच्छा। आप बताओ क्या बात है ? आज अचानक फिर से हमारी याद कैसे आई ?

डॉ.सुमन : मैंने फ़ोन इसलिए किया था की, उस लड़के की हालत में कुछ सुधार नहीं है,  समज नहीं आ रहा क्या करे ? 

डॉ. प्रभाकर :  ओह्ह तो ये बात है ! फ़िक्र मत करो, ऐसे cases में कई बार ऐसा होता है, कई बार किसी इंसान के ब्रेन की नसे जुड़ने में थोड़ा वक़्त ज़्यादा लग भी सकता है, हमने तो अपनी तरह से पूरी कोशिश की है, की वो ठीक हो जाए। आप अपना इलाज जारी रखो,  आप देख लेना, मेरे मुताबिक कुछ दिन में वो ठीक होने ही लगेगा, )

डॉ. सुमन : ओ. के, अगर  आपका  यही मानना  है तो, ऐसा ही होगा। अच्छा लगा आप से बात कर के, थोड़ी हिम्मत भी मिल गइ मुझे। अच्छा, ठीक है अब मैं फ़ोन रखती हूँ, कुछ काम होगा तो बता दूँगी। 

डॉ. प्रभाकर : ओ. के.  ( डॉ.प्रभाकर फ़ोन रख देते है। ) 

          ( डॉ.सुमन अब खुद उस लड़के का ध्यान रखने लगी थी । माना की  उस लड़के को अब तक होश नहीं आया था।  इसलिए डॉ. सुमन ने उस लड़के का नाम अनाम  रखा था। " जिसका कोई नाम ना हो, पहचान ना हो, वो अनाम । " 
   
      अस्पताल में भी सब उसे अनाम के नाम से ही पुकारते थे। वो रोज़ सुबह अनाम के कमरे की खिड़की खोल के परदे हटाया करती थी, उसे दवाई पिलाती थी। उसके कमरे में फ्लावर पॉट में फ्लावर सजाती थी। जब भी वक़्त मिले डॉ.सुमन अनाम के पास बैठ कर अपनी किताबे पढ़ा करती थी।  डॉ.सुमन को अनाम के पास रहना अच्छा  लगता था, जैसे उससे बरसों की पहचान हो। जब भी उसे अपने काम से फुरसद मिलती, तो वो अनाम के कमरे में जाके उससे बाते किया करती थी, जैसे की वो लड़का सब कुछ सुन रहा हो, कि  उसने आज पूरे दिन में क्या किया और क्या नहीं ? उसे क्या अच्छा लगता है और कया नहीं ? कभी कभी उसके दाढ़ी और बाल भी बना लेती थी। तब अनाम बहुत अच्छा दीखता था।) 

       ( देखते ही देखते कुछ और दिन बित गए, फ़िर एक दिन सुबह-सुबह अनाम के हाथो में जैसे जान आति है, उसने धीरे से अपने हाथो की उँगलियाँ हिलाई, कई दिनों से बंध ऑंखें जैसे खुल रही थी, उसने अपनी आंँखें थपथपाई। उसकी नज़र के सामने एक  खिड़की थी, जो आधी बंद थी और आधी खुली हुई थी।  उस में से सुबह की  रौशनी की किरण धीरे-धीरे कमरे में आ रही थी। खिड़की पे परदे भी लगे हुए थे, जो  हवाओ से लेहरा रहे थे। खिडकी के बगल में एक छोटा सा टेबल था, जिस पे कुछ किताबे और फ्लावर पॉट  रखे थे, जिसमें रखे फूलो से अब भी थोड़ी खुशबू आ रही थी। उस टेबल के पास एक  कुर्सी थी, जिसपे एक सफ़ेद कोट रखा था,  जो डॉ. सुमन अक्सर अनाम के कमरे में भूल जाया करती थी। अनाम ने अपनी नज़रे थोड़ी ओर गुमाई,  तो दूसरी ओर सामने बैठने के लिए सोफा  भी था, उसके बगल में एक छोटा टेबल था जिस पे पानी की  बोतल, गिलास और  कुछ दवाइयाँ रखी हुई थी। उसने अपनी नज़र ऊपर उढ़ाई तो उसके सिर के ऊपर एक पंखा था जो बड़ी तेज़ी से घूम रहा था और आवाज़ भी बहुत कर रहा था, अनाम को कुछ समज नहीं आ रहा था की वो कहा था ? उसने अपने दिमाग पे ज़ोर लगाने की कोशिश की, तो फिर से उसका सिर दर्द से जैसे फ़टने लगा था और उसने अपनी आँखें फिर से बंद कर दी। उसे थोड़ा अच्छा  मेहसूस हुआ। थोड़ी देर में उसे प्यास लगी, तो पानी लेने के लिए वो टेबल  पे रखे पानी की ओर थोड़ा ज़ुकता है, मगर उसका हाथ टेबल तक नहीं पहुँचने की वजह से वो गिरने ही वाला था, की दरवाजे से डॉ.सुमन उसे गिरते हुए देख लेती है और उसे गिरने से बचा लेती है और फिर से उसे सँभालते हुए, उसके साथ बाते करते हुए  उसके बिस्तर पे लेता देती है, ) 

डॉ.सुमन : अरे, अभी गिर जाते तो, पानी ही चाहिए था, तो किसी को आवाज़ लगा देते ना।

     ( डॉ. सुमन पानी का गिलास भर के उसे पानी पिलाती है, अनाम पानी पी लेता है और उसे देखता जाता है, मगर उस लड़के को अब भी कुछ समज़ में नहीं आता है, कि  ये लड़की कौन है ? और वो खुद यहाँ  कैसे और क्या कर रहा है ? )

तो दोस्तों, अब अनाम के साथ क्या हुआ था, ये खुद अनाम सब को बताएगा या नहीं ?
                               
                                  आगे क्रमशः। 
                                                                                     Bela... 
                                                                                      

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                                 मैं कौन हूँ ? सारांश            ये कहानी एक ऐसे इंसान की है, जिसको घर से निकलते वक़्त इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था, कि आज इस तूफा़नी रात में उसके साथ कया होनेवाला है ? क्योंकि जब वह घर से निकला था, तब मौसम एकदम साफ़ था, नाहीं घने काले बादल छाए हुए थे और नाहीं हवा तेज़ थी, खुला आसमान था सिर पे, सूरज भी दिन भर अपनी तेज़ धुप को सब को देते हुए ठक के थोड़ा सा आराम करने के लिए, शांत होते हुए, समंदर में धीरे-धीरे दुब रहे हो, जैसे वह भी अपनों के पास जा रहे हो और आसमान की तरफ़ देखने पे लगता था, कि पंछि शाम होने पे अपने अपने घर लौट के जा रहे थे। मगर बस सिर्फ़ वह लड़का अपने घर ना जा सका और रास्ते में उसके साथ हुए उस हादसे के बाद उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। उस हादसे के बाद वह लड़का बेहोश हालत में किसी समंदर किनारे पे मिलता है, कुछ महीनो तक जब वह लड़का होश में नहीं आता, तब सब को लगता है, कि किसी के प्यार या तो किसी की प्रार्थना का असर है, कि इतनी गहरी चोट के बाद भी ये लड़का अब भी सांस ले रहा है। मगर किसी को ये पता नहीं, कि ना जाने कब ये लड़का अपनी नींद से जगेगा और ना जाने कब अपने अपनों के पास जा पाएगा, जो आज भी इनका इंतज़ार कर रहे होंगे, इसे दरबदर ढूँढ रहे होंगे। फ़िर भगवान् एक दिन उसकी पुकार सुन ही लेता है और कुछ महीनो के बाद वह  होश में आता है, तब उसे अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आता है, कि " वह कौन है ? " वह अपनी पहचान, अपनी याददास्त खो बैठता है। फ़िर वहीं से शुरू होता है, उसकी  ज़िंदगी का नया सफ़र। ज़रा सोचिए दोस्तों, छोटी सी उम्र में अपने आप को भूल जाना और अपनी बीती हुई जिद़गी के बारे में कुछ याद ना आना, उस हालात में उस इंसान की कैसी हालत हुई होगी। वह इंसान अंदर से पूरा टूट जाता है । उसके लिए सबसे बडा़ सवाल ये होता है, कि " कौन उसका है, और कौन नहीं ? उसके माँ-पापा, भाई-बहन, दोस्त कोई तो अपना होगा, जो उसे याद कर रहे होंगे, उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, उसको ढूँढ रहे होंगे ? उसकी फ़िक्र, उसकी परवाह कर रहे होंगे, अब वह कया करे और कहाँ जाए ? " ऐसे कई सवाल उस के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, मगर जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं।  इंसान अपने खुद के लिए ही अजनबी बन जाता है । तब दिल गुज़ारिश करता है अपने भगवान् से, " ऐ खुदा, वक़्त बेवक़्त किसी पे यूँ, ज़ुल्म मत करना,
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