मैं कौन हूँ ? भाग - 5
तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि अनाम का ऑपरेशन होने के बाद भी अनाम कुछ दिनों तक होश में नहीं आया, तब भी डॉ. सुमन ने अनाम का बहुत ख्याल रखा। वो कहते है ना, कि " कभी कभी जो काम दवाई नहीं कर सकती, वो काम प्यार और हमदर्द कर जाता है। " बस शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा अनाम के साथ भी। भले चाहे उसे कुछ भी पता नहीं हो, कि उसके आसपास कौन है और क्या कर रहा है ? मगर फिर भी कुछ एहसास अपना असर छोड़ जाते है और यही अनाम के साथ भी हुआ और कुछ ही दिनों में अनाम को होश आ जाता है। होश आने पर अनाम डॉ.सुमन से पूछता है, कि आप कौन और मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ ? अब आगे...
डॉ.सुमन अनाम को पानी पिलाने के बाद उसका मुँह अपने रुमाल से पोछ लेती है और उसे फिर से अच्छे से बिस्तर पे लेता देती है, अनाम डॉ.सुमन को एक नज़र से देखे जाता है, उसके दिमाग में बहुत सारे सवाल चल रहे होते है, मगर फिर से उसकाे सिर में दर्द होने लगता है।
अनाम : ऊफ्फ, मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है, मेरी समज में कुछ नहीं आ रहा।
डॉ.सुमन : ( अपना हाथ उसके सिर पे रखते हुए ) तुम्हें आराम की सख़्त ज़रूरत है, अपने दिमाग पे इतना ज़ोर मत डालो, अभी तुम दवाई पीकर आँखें बंध करके सो जाओ, बाद में बातें करेँगे।
कहते हुए डॉ. सुमन अनाम को दवाई पिलाकर उसे चद्दर ओढ़ा कर सुला देती है। अनाम आँखें बंध कर गहरी नींद में सो जाता है। डॉ.सुमन को अब जाके तसल्ली हुई की कम से कम अनाम को होंश तो आया, उसका ऑपरेशन सफल रहा। डॉ.सुमन अनाम के कमरे से बाहर निकलती है, तभी सामने से वैदजी अनाम से मिलने आते है।
डॉ.सुमन : ( प्रणाम करते हुए ) कैसे है आप वैदजी ? अच्छा हुआ आप आ गए, मैं अभी आपको ही याद कर रही थी।
वैदजी : मुझे क्या होगा भला ? मैं एकदम बढ़िया हूँ। तुम कैसी हो और वो लड़का अब कैसा है ?
डॉ.सुमन : बस वैदजी आपके आशीर्वाद से सब अच्छा हो रहा है, आज ही उस लड़के को होंश आया है, मगर उसके सिर में अभी भी बहुत दर्द हो रहा है, सो दवाई पीला के फिर से उसे सुला दिया है, धीरे-धीरे शायद अब वो ठीक हो ही जाएगा।
वैदजी : चलो अच्छा ही हुआ, उसने अपने बारे में कुछ बताया क्या ? कि वो कौन है और कहा से आया है ? ताकि उसके घर वालेा को बता सके उसके बारे में। उसके घरवाले भी उसके लिए परेशान हो रहे होंगे।
डॉ.सुमन : जी वैदजी, आपकी बात भी सही है, मगर अभी उसकी हालत इतनी ठीक नहीं है, हम डॉक्टर्स की नज़र से देखे तो, इस ऑपरेशन में बहुत ही ज़्यादा रिस्क था, लेकिन मरीज़ को बचाने के लिए डॉक्टर्स अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते है, इतने दिन कोमा में रहने की वजह से आज तो मैंने उस से कुछ नहीं पूछा, बातों-बातों में पूछ लेंगे और उसके घर भी पता कर देंगे। ताकि वो ठीक होकर अपने घर वापस जा सके।
वैदजी : तू बिलकुल ठीक कह रही है बेटा, मैं भी एक नज़र उसको देख लू, फिर निकलता हूँ, कुछ काम से यहाँ आया था, तो सोचा मिलता चलूँ ।
डॉ.सुमन : अच्छा किया, वैदजी। आइए मैं आपके साथ आती हूँ।
वैदजी उस लड़के के पास जाके उसे गौर से देखते है, अनाम सच में गहरी नींद में सो रहा था। वैदजी को भी उसे ठीक होता देख अच्छा लगा।
वैदजी : देखने पे तो किसी अच्छे घर का और पढ़ा लिखा लगता है, पता नहीं किस्मत को क्या मंज़ूर था की उस तूफानी रात ने इसके जीवन में ही तूफ़ान ला दिया। इसको देख के लगता है, कि ये २१-२२ साल का ही होगा। इतनी छोटी सी उम्र में नाजाने इसके साथ क्या-क्या हो गया ?
डॉ.सुमन : आप सही कह रहे है वैदजी। लेकिन आगे अब जो भी होगा अच्छा ही होगा, देख लेना आप वैदजी।
वैदजी : अच्छा, तो अब मैं चलता हूँ।
डॉ.सुमन : ऐसे कैसे वैदजी ? आज तो आपको घर आना ही होगा। पापा भी बहुत दिनों से आपको याद कर रहे है।
वैदजी : अपने पापा से कहना मुझे भी उनसे मिलना है, मगर इस बार मुझे जाने दे बेटा, दूसरी बार आऊंँगा तो पहले तेरे घर आऊंँगा, बाद में अस्पताल। लेकिन आज मुझे किसी और मरीज़ को देखने जाना है, तो मैं चलता हूँ, जाते-जाते रात हो जाएगी तो वापस घर जाने में भी वक़्त लग जाएगा। तुम तो जानती ही हो की यहाँ तक आने में हम को समंदर पार करके आना होता है।
डॉ.सुमन : ठीक है वैदजी जैसी आपकी मर्ज़ी। ( प्रणाम करते हुए ) मगर अगली बार अगर आप घर नहीं आए तो मैं रूठ जाऊँगी।
वैदजी : ( हस्ते हुए ) अच्छा, बेटी तुझे रूठने नहीं दूँगा। अब की बार वक़्त निकालकर ही तेरे घर आऊँगा और खाना खा के ही जाऊँगा। बस, अब खुश ! मुझे भी तेरे पापा से मिलना है। बहुत दिन हुए उस से बाते किऐ हुए, अपने पापा को मेरी याद ज़रूर कहना।
कहते हुए डॉ. सुमन को आशीर्वाद देकर वैदजी वहांँ से निकलते है।
डॉ.सुमन अपने दूसरे मरीज़ को देखने जाती है, जिसका डॉ.सुमन को आज ऑपरेशन करना था। तो वो उसी की तैयारी में लग गई थी। ऑपरेशन एक लड़की का था, जिसकी एक्सीडेंट में पेेर की हड्डियाँ टूट गइ थी, उसको जोड़ना था। ऑपरेशन के बाद डॉ. सुमन बहुत ही ठक जाती थी। डॉ.सुमन की ज़िंदगी अब तक यही सब टुटा हुआ जोड़ने में बीती जा रही थी और उसको ये अच्छा भी लगता था, उसके लिए ख़ुशी वो थी, जो ठीक होने के बाद यहाँ से जाते वक़्त हस्ते जा रहे थे और उनको ढेर सारा आशीर्वाद भी देते थे। किसी और की ख़ुशी में खुश होना उसे अच्छा लगता था। एक नज़र फिर से अनाम को सोता हुआ देख, डॉ.सुमन अपने घर चली जाती है।
घर जाकर डॉ.सुमन खाना खा के पापा के साथ बाते करने बैठती है। दिन में कभी दोनों को बात करने का वक़्त ही नहीं मिलता, इसलिए डॉ.सुमन के पापा रात को रेडियो पे पुराने गाने सुनते और डॉ.सुमन अपनी किताब पढ़ती रहती और बिच-बिच में दोनों बाते भी कर लेते। लेकिन आज डॉ.सुमन का मन कुछ ठीक नहीं लग रहा था, उसने अपने पापा को कहा,
डॉ.सुमन : ( कुर्सी पे से उठते हुए ) मुझे नींद आ रही है, मैं सोने जा रही हूँ। डॉ.सुमन के पापाने उसे रोकते हुए कहा, कि
पापा : क्या बात है ? बहुत दिनों से तुम कुछ उलझी-उलझी सी रहती हो, कोई तो बात है, क्या अपने पापा को भी नहीं बताएगी ?
डॉ.सुमन : ( फ़िर से कुर्सी पे बैठते हुए अपने पापा को ) हाँ पापा, बात तो है, मगर ये भी समज नहीं आया, कि आपको बताऊ या नहीं ? इसलिए बात ना कर पाई।
पापा : अब बात छेद ही दी है, तो जो भी तुम्हारे दिल में है, आज बता ही दो। बहुत दिनों से में देख रहा हूँ, कि तुम कुछ परेशान सी रहती हो।
डॉ.सुमन : जी पापा, वो बात ये है, कि
( डॉ. सुमन उस अनाम के बारे में सारी बात अपने पापा को बता देती है। ) मुझे बार-बार यही ख़याल आ रहा है, कि इतनी सी उम्र में उस लड़के की किसी के साथ क्या दुश्मनी हो सकती है, कि किसी ने उसको इतना मारा हो। मुझे तो इस वक़्त ये सोच के भी डर लगता है, कि उस वक़्त उस लड़के पे क्या गुज़री होगी, जब कोई उसे इतना मार रहा होगा। बेचारा !!
डॉ.सुमन के पापा ने उसकी हर बात शांति से सुनी फिर कहा
पापा : अच्छा, तो ये बात है, उसमें इतना परेशान होने की क्या बात है ? अब तो वो लड़का ठीक है ना ! और उसे होश भी आ ही गया है, तो अब धीरे-धीरे वह पहले की तरह ठीक भी हो ही जाऐगा और रही बात उसको किसी ने बहुत मारा है, तो हो सकता है, नौजवान लड़का है, किसी के प्यार का चक्कर भी हो सकता है, या फिर किसी को उसके या उसके माँ-बाप से दुश्मनी होगी, या कोई एक्सीडेंट भी हुआ होगा, कुछ भी हो सकता है। ख़ामख़ा तुम क्यों परेशान हो रही हो ? तुम्हारा काम है, उस मरीज़ का अच्छे से इलाज करना, जो तुम कर रही हो। तो अब तुम्हें फ़िक्र करने की कोई जरूरत नहीं। जो होगा अच्छा ही होगा। ठीक है ?
अपने पापा से बात करके डॉ. सुमन को अच्छा लगा।
डॉ.सुमन : हाँ पापा, मैं भी यही चाहती हूँ, कि वो जल्द से जल्द ठीक हो जाए और अपने घर, उसके अपनों के पास चला जाए। जो होगा वो अच्छा ही होगा।
अपने पापा से बात करने के बाद डॉ.सुमन आराम से सोने की कोशिश करने लगी मगर उसकी आँखों के सामने बार-बार अनाम का ही चेहरा आ रहा था। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। इन दिनों उसका मन बार-बार कही और जा रहा था।
दूसरे दिन सुबह वह जल्दी तैयार होके अस्पताल के लिए निकलने लगी। उसके पापा ने कहा की नास्ता तो करके जाओ और आज इतनी जल्दी क्या है अस्पताल जाने की ?
मगर आज डॉ सुमनका मन जैसे कहीं खोया हुआ था।
डॉ.सुमन : आज नास्ता करने का अभी मन नहीं है, पापा। अस्पताल में भूख लगेगी तो नास्ता कर लुंँगी, कुछ ज़रूरी काम याद आया है, सो ज़ल्दी जाना है, रात को बात करेँगे, मुझे देर हो रही है, सो मैं जा रही हूँ, आप नास्ता कर लेना।
कहते हुए डॉ. सुमन घर से निकल जाती है, वह अभी भी उस अनाम के बारे में ही सोच रही थी, अस्पताल पहुँचकर सबसे पहले वो नर्स से पूछती है की अनाम अभी कैसा है ? उसे सुबह की दवाई पिलाई या नहीं ?)
नर्स : जी डॉ.सुमन, मैं अभी उसे दवाई देने ही जा रही थी।
डॉ.सुमन : अच्छा ठीक है, अनाम को मैं दवाई पीला दूंँगी, कल जो लड़की का ऑपरेशन हुआ है, उसे तुम ज़रा देखो, दवाई और नास्ता करा दो, तब तक अनाम को दवाई पिलाकर मैं उसे देखने आति हूँ।
नर्स : जी ठीक है, जैसा आप कहें।
नर्स को पता था की डॉ.सुमन को सब की मदद करना अच्छा लगता था। वह बड़े-छोटे या अपने-पराये में फर्क नहीं करती थी। इसलिए अस्पताल में भी सब उसे बहुत पसंद करते थे, वह सबको मज़ाक करते-करते हसाती रहती थी।
डॉ.सुमन अनाम के कमरे का दरवाजा खोलती है, अनाम अभी भी सो रहा था, उसका चेहरा कितना मासूम और खूबसूरत सा लग रहा था, उसके काळे घने घुंगराले बाल उसे और भी मासूम बना रहे थे, एक पल के लिए डॉ. सुमन की नज़र उस पे से हटती नहीं थी, तो दूसरी तरफ़ आधी खुली हुई खिड़की में से सुबह की सूरज की किरणे सीधे कमरे के अंदर आते हुए अनाम के चेहरे पे पड़ रही थी, सूरज की किरणों से अनाम का चेहरा और भी चमकने लगा था, अनाम धीरे से उसकी आँखों पे आ रहे सूरज की किरणों को अपने हाथो से रोकने की कोशिश कर रहा था, ये देखकर डॉ. सुमन ने खिड़की के परदे को ज़रा सा बंद किया ताकि अनाम आराम से सो सके।
डॉ.सुमन वहीं अनाम के कमरे में टेबल पे रखी किताब को थोड़ी देर पढ़ने लगी, थोड़ी देर बाद डॉ.सुमन ने देखा की अनाम नींद में से जगता हुआ अंगड़ाइयाँ ले रहा है, अपने हाथों से अपनी आँखों को खुजलाते हुए धीरे से अपनी आँखें खोलने की कोशिश कर रहा था, कि जैसे उसे लगा हो की कई दिनों बाद उसने अपनी आंँखें खोली हो। डॉ.सुमन को भी उसे देखकर लगा, कि जैसे एक छोटा सा बच्चा पहली बार अपनी आँखें खोल इस नई दुनिया को देखने की कोशिश में लगा हो। डॉ.सुमन उसे एक नज़र से देखे जा रही थी। अनाम आधी खुली नींद में पानी-पानी पुकारे जा रहा था। डॉ.सुमन ने तुरंत ही उसे होंश में आता देख उसे बिस्तर से उठा के बैठने में उसकी मदद की और उसके सिर के पीछे एक तकिया रख दिया ताकि वो आराम से बैठ सके और उसे फिर से सिर में दर्द ना हो, डॉ.सुमन अनाम को पानी पिलाते हुए
डॉ.सुमन : अब कैसा लग रहा है तुम को ? पानी के साथ ये दवाई भी पी लो इस से तुम जल्दी से ठीक हो जाओगे और कुछ देर बाद नास्ता भी कर लेना।
अनाम : वह तो ठीक है ? मगर मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ ? और मुझे हुआ क्या है ? मेरे सिर पे ये पट्टी क्यूँ बंधी हुई है ?
अनाम के ऐसे सवाल से डॉ.सुमन को लगा, कि अभी शायद इसे कुछ याद नहीं आ रहा। अभी उसको उस तूफानी रात के बारे में बताना, बेवकूफी होगी। ऐसा सोच डॉ.सुमन ने बात बदलने की कोशिश की।
डॉ.सुमन : अरे, देखो तुम्हारे ये बाल, फिर से बिखर गए है, आओ मैं इसे बना लूँ। कहते हुए डॉ.सुमन अपनी उँगलियों से उसके बाल बनाने लगती है, वो भी बड़े प्यार से, जैसे एक छोटे बच्चे के बाल के साथ खेल रही हो। अनाम ने डॉ.सुमन का हाथ पकड़कर फिर से पूछा,
अनाम : आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।
डॉ.सुमन : अरे इतनी भी क्या जल्दी है ? बताती हूँ, आराम से बताती हूँ, पहले तुम थोड़ा फ्रेश हो जाओ और नास्ता भी कर लो। मैं तब तक अपने दूसरे मरीज़ को देखकर आति हूँ।
कहते हुए डॉ.सुमन रामु को आवाज़ देकर कहती है, की
डॉ.सुमन : अनाम के लिए नास्ता लेकर आओ, मैं थोड़ी देर में आती हूँ।
कहते हुए डॉ.सुमन अनाम के कमरे से और उसके पूछे गए सवाल से दूर चली जाती है। अनाम के कमरे से बाहर आकर वो सीधे अपने कंसल्टिंग रूम में जाती है, टेबल पे रखी पानी की बोतल उढ़ाकर एक ही घूँट में सारा पानी वह पी जाती है, डॉ.सुमन रामु को फिर से आवाज़ देकर बुलाती है।
डॉ.सुमन : मेरे लिए अभी एक कप कॉफ़ी लेकर आओ,
डॉ.सुमन अनाम के पूछे गए सवाल से परेशान हो रही थी, वह कमरे में इधर से उधर चक्कर लगाए जा रही थी, क्योंकि डॉ.सुमन को अंदाज़ा लग गया था, कि जिसका उसे डर था शायद वही ना हुआ हो, अनाम को अपनी बीती हुई ज़िंदगी के बारे में कुछ भी याद नहीं और अभी-अभी तो उसे होंश आया है, अभी उसकी हालत इतनी ठीक भी नहीं की वह उसे सब कुछ सच-सच बता दे। क्योंकि शायद इस से उसके दिमाग पे उल्टा असर भी हो सकता है।
तो दोस्तों, सोचो अगर कोई इंसान जो तक़रीबन २१ या २२ साल का होगा, उसे अपने बारे में कुछ पता ना हो, की उसका नाम क्या है ? उसका घर कहाँ है ? उसका परिवार कहाँ है ? उसके माँ-बाप, भाई-बहन, दोस्त कोई तो होगा ? जिसके बारे में उसे कुछ याद नहीं। कितना तूफ़ान चल रहा होगा उसके अंदर ? कितने सारे सवाल, जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं होगा। जैसे की एक छोटा सा लड़का जिसका जन्म अभी-अभी हुआ हो और उसे अपने बारे में कुछ भी पता नहीं, वह कौन है ? कहाँ है ? फिर उसके करीब के सब लोग उसे एक नाम एक नई पहचान देते है। जैसे मैंने अनाम को एक नाम दिया। "अनाम " जिसका कोई नाम नहीं पहचान नहीं। जो अपने आप में खुद एक सवाल है।"
डॉ.सुमन अनाम के बारे में बिलकुल ऐसा ही सोच रही थी। डॉ.सुमन की सबसे बड़ी उलझन अब यही थी की वो अनाम को सब कुछ सच कैसे और कब बताए ? क्योंकि वह जितनी बार उससे मिलने जाती वह हर बार एक ही सवाल करेगा। मैं कौन हूँ ? मेरा नाम क्या है ? और मेरी पेहचान क्या है ? मेरे साथ क्या हुआ था ? जिसका डॉ.सुमन के पास भी कोई जवाब नहीं था। ऐसे में रामु डॉ.सुमन के केबिन में आता है और कॉफ़ी टेबल पे रखते हुए
रामु : जी मॅडम, आपकी कॉफ़ी।
डॉ.सुमन दीवार पे एक छोटे बच्चे की तस्बीर लगी हुई थी उसे देख रही थी। रामु को लगा डॉ.सुमन ने मेरी आवाज़ सुनी नहीं, जैसे वह किसी गहरी सोच में हो, उसने फ़िर से आवाज़ लगाई।
रामु : जी मॅडम, आपकी कॉफ़ी।
डॉ.सुमन रामु की आवाज़ सुनकर जैसे होंश में आति है।
डॉ.सुमन : हाँ, ठीक है, तुम जा सकते हो।
डॉ.सुमन कॉफ़ी का मग उढ़ाकर पीने ही जा रही थी की बाहर से कुछ चिल्लाने की और गिरने की आवाज़ सुनाई देती है, कॉफ़ी का मग वही टेबल पे छोड़कर डॉ. सुमन उस आवाज़ की ओर दौड़ के जाती है, आवाज़ अनाम के कमरे में से ही आ रही थी। डॉ.सुमन गभराई हुई सी थोड़ा और तेज़ दौड के जाती है, अनाम के कमरे में जाके देखती है तो,
" सारा कमरा बिखरा पड़ा हुआ था, अनाम की दवाई की बोतल और उसका नास्ता वही टेबल के नीचे गिरा हुआ था, उसके बिस्तर की चद्दर भी एक और पड़ी हुई थी, टेबल पे जो किताबे रखी थी वो भी उल्ट सुलट गइ थी, जैसे की कोई उसमें से कुछ ढूंढ रहा था, टेबल के ऊपर जो आईना रखा हुआ था, वो भी टूटा हुआ था, जैसे किसी ने किसी चीज़ से उसे गुस्से में आकर तोड़ा हो, अपने सिर को पकड़कर बिस्तर के पास पैर फैलाए अनाम बैठकर रो रहा था और रोते-रोते वह बोले जा रहा था, मैं कौन हूँ ? मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा है ? जैसे अपने आप से ही वह लड़ रहा हो।
डॉ.सुमन को जिस बात का डर था वही हुआ, डॉ.सुमन की आँखों में भी आंँसू आने लगे। फिर अपने आँसुओ को अपने ही हाथों से पोछकर छुपाते हुए डॉ. सुमन अनाम के करीब जाती है और उसे सँभालते हुए अपने गले से लगा के उसके बालो को अपनी उँगलियों से सराह रही थी, अनाम भी हर बात से अनजान डॉ.सुमन के गले लगकर रोऐ जा रहा था। "
तो दोस्तों, एक बार ज़रा सोच के देखिए, कि एक इंसान जो कई दिनों से बेहोश हालत में था, वो कहा था, कैसा था ? होश में आने के बाद उसे ये सब अपने बारे में कुछ भी नहीं याद आ रहा हो और शीशे में अपना चेहरा देख के अपना ही चेहरा, जो पहचान ना सकता हो, उस इंसान की उस वक़्त क्या हालत हुई होगी ? ये ज़रा एकबार सोच के देखिए। क्या आप एक बार ऐसा कुछ महसूस करके देख सकते हो ? या फिर शीशे में अपना ही चेहरा देख एक बार मन ही मन अपने आप से पूछो, की मैं कौन हूँ ? जैसे की आप अपनी पहचान भूल गए हो। अगर तब आप को कोई जवाब ना मिले तब आप अपने आप को क्या नाम देंगे ? " एक अजनबी " बस कुछ ऐसी ही हालत हुई है आज अनाम की। अब आगे...
डॉ.सुमन अनाम को समझाते हुए
डॉ.सुमन : ज़िंदगी में कुछ सवाल ऐसे होते है, जिनके जवाब जानकर भी हमारे पास नहीं होते। कुछ ऐसा ही समझ लो तुम्हारे साथ भी हुआ है, वक़्त ने एक मज़ाक तुम्हारे साथ किया है, तो हस्ते हुए अपनी नई ज़िंदगी को गले लगाकर फिर से एक नई शुरुआत करो और एक मज़ाक तुम वक़्त के साथ कर जाओ। जो वक़्त ने तुम्हारे साथ किया है, उस वक़्त को तुम बदल डालो। जिस वक़्त ने आज तुम को हराया है, उस वक़्त को अब तुम्हें हराना होगा। तुम्हें तुम्हारी मंज़िल एक ना एक दिन ज़रूर मिल जाएगी। डॉ.सुमन की बाते सुन अनाम की समझ में कुछ नहीं आता।
अनाम को जैसे फ़िर से थकन महसूस हो रही थी। अनाम डॉ. सुमन से धीरे से कहता है,
अनाम : मुझे सो जाना है।
डॉ.सुमन अनाम को खड़ा कर फिर से बिस्तर पे चद्दर ओढ़ा कर सुलाती है, अनाम अपने सवाल और अपने बहते हुए आँसुओ के साथ डॉ.सुमन का एक हाथ पकड़कर अपनी आँखें बंद कर देता है, डॉ.सुमन उसके पास बैठकर अपने दूसरे हाथ से उसके बालोको सराह रही थी और उसे एक नज़र देखे जा रही थी। डॉ.सुमन मन ही मन भगवान् से जैसे फरियाद करती है, कि ऐसा क्यों करता है तू सब के साथ ? तूफ़ान में डूबती हुई नाव को यूँ बिच मजधार में लाके क्यूँ छोड़ देता है ? जहाँ से वह ना तो आगे जा सकता है नाहीं पीछे ! सोचते-सोचते डॉ. सुमन ने भी कुछ पल के लिए अपनी आंँखें बंद कर ली, तभी बाहर से नर्स दौड़ के आति है, डॉ.सुमन को आवाज़ लगाती है।
नर्स : क्या हुआ डॉ.सुमन ?
डॉ.सुमन अपने आप को सँभालते हुए अनाम के हाथो से अपना हाथ धीरे से हटाते हुए
डॉ.सुमन : हम्म कुछ नहीं।
इशारे से नर्स को चुप रहने को कहा, क्योंकि अभी-अभी ही तो अनाम आँखें बंद कर सो रहा था।
डॉ.सुमन : रामु को बुलाकर कमरा साफ करा देना।
डॉ.सुमन अनाम के कमरे से बाहर अपने दूसरे मरीज़ को देखने चली जाती है, जिस लड़की का उसने कल ऑपरेशन किया था।
डॉ.सुमन : अब तुम्हारे पैर का दर्द कैसा है मीरा ?
( मीरा के पैर को थपथपाते हुए )
मीरा : कल से थोड़ा बेहतर है मगर अभी भी बहुत दर्द हो रहा है।
डॉ.सुमन : हांँ, दर्द तो होगा ही, चोट इतनी गहरी जो थी। मगर तुम फ़िक्र मत करो, जल्दी ही ठीक हो जाओगी और कुछ ही दिनों में तुम अपने घर जा सकती हो। दवाई वक़्त पे लेती रहना और नर्स जो exercise दिखाए वह रोज़ करते जाना, ठीक है तो मैं चलती हूँ।
( कहते हुए डॉ.सुमन मीरा के फ़ाइल में कुछ ओर दवाइयाँ लिखकर अपनी साइन करके कमरे से बाहर निकल जाती है और फिर से अपने कंसल्टिंग रूम में चली जाती है। फिर से डॉ.सुमन अपने टेबल पे बैठ के एक डायरी में कुछ लिख़ने लगती है, लिखते-लिखते उसके हाथ रुक जाते है और खड़ी होकर खिड़की के पास जाकर वह खिड़की के बाहर एक नज़र देखती रहती है।
" दिन ढला, शाम होने को है, मगर अब तक उनकी कोई खबर नहीं।" वह मन ही मन सोच रही थी।
तभी बाहर से नर्स दौड़ती हुई डॉ.सुमन के कंसल्टिंग रूम में आति है और
तो दोस्तों, क्या अनाम को अपना बिता हुआ कल और उसके साथ क्या, कब और किसने ये सब किया ? ये सब उसे कभी याद आएगा ?
आगे क्रमशः।
Bela...