( यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है )
एक अज्ञात व्यक्ति किस तरह किसी की जिंदगी को नर्क बना देता है यह इस कहानी से पता चलेगा ।
अशोक और आहना की शादी अभी दो महीने पहले ही हुई थी । दोनों ही पति पत्नी बड़े खुश थे । दोनों व्यक्ति एक दूसरे को जी जान से प्यार करते थे । दोनों ही जने चेन्नई रह रहे थे । अशोक का स्थानांतरण चेन्नई से मुंबई हो गया । अशोक को मुंबई आना पड़ा ।
अशोक ने मुंबई में नौकरी शुरू कर दी और एक फ्लैट किराए पर ले लिया । सब व्यवस्थाएं हो जाने पर उसने आहना को कहा कि अब वो भी मुंबई आ जाये । आहना का मन भी चेन्नई में कहां लग रहा था । वह तुरंत तैयार हो गई ।
अशोक ने उसकी टिकट करा दी । एक एक्सप्रेस ट्रेन से उसे आना था । सब कुछ सही सलामत हो गया और आहना अपनी बोगी में अपनी सीट पर बैठ गई । उसने अशोक को फोन करके बता दिया कि वह अच्छी तरह से सीट पर बैठ गई है और ट्रेन चल पड़ी है ।
सामने की सीट पर दो अजनबी लोग बैठे हुए थे । वे आपस में भी अपरिचित से लग रहे थे । धीरे धीरे उन दोनों में बोलचाल होनी शुरू हुई । दोनों ने एक दूसरे का परिचय किया और बातें करने लगे । आहना उनकी बातें सुन रही थी और बीच बीच में वह अशोक से बातें करके बता रही थी कि अब वह कहां तक पहुंच गई है ।
दोनों व्यक्तियों ने अब आहना से भी बात करना शुरू कर दिया था । बातों ही बातों में आहना ने बता दिया था कि उसे मुंबई जाना है । दोनों अजनबी व्यक्तियों ने भी कहा कि उन्हें भी मुंबई ही जाना है इसलिए आहना को चिंता करने की जरूरत नहीं है ।
मुंबई से लगभग 100-150 किलोमीटर पहले आहना ने अशोक से बात की और अपनी लोकेशन बता दी । इतने में आहना ने अपना कुछ खाने का सामान निकाला और उन दोनों अजनबियों को ऑफर कर दिया खाने के लिए । उन दोनों ने थोड़ा सा ले लिया और सब लोग खाने लगे ।
बाद में दोनों अजनबियों में से एक ने अपना कुछ सामान निकाला और आहना को भी दिया । आहना ने यद्यपि बहुत मना किया मगर उन्होंने कहा " जब आपने हमें खिलाया था तो हमने मना नहीं किया इसलिए अब आप भी मना मत कीजिए" । इस तरह आहना को न चाहते हुए भी वह खाद्य पदार्थ लेना पड़ा । आहना उसे खाने के बाद सो गई ।
जब उसकी नींद खुली तो उसने अपने आप को एक कार में पाया । वो दोनों अजनबी आदमी पीछे की सीट पर उसके अगल बगल में बैठे थे । कार कोई तीसरा व्यक्ति चला रहा था ।
"आप लोग मुझे कहां ले जा रहे हैं" ? आहना ने आश्चर्य से पूछा ।
उनमें से एक आदमी ने एक जोर का थप्पड़ आहना के गाल पर रसीद किया और रिवाल्वर निकाल कर बोला "चुप कर साली । अब अगर एक शब्द भी बोला तो यहीं ढ़ेर कर दूंगा" । और उसने फिर से एक थप्पड़ दूसरे गाल पर रसीद कर दिया । अब आहना की हिम्मत जवाब दे गई थी ।
दोनों व्यक्ति उसे एक कोठे पर ले गए और 50000 रुपये में उसे बेच दिया । कोठे में बीस पच्चीस औरतें और लड़कियां थीं । सब लोग उत्तेजक कपड़े पहन कर ग्राहकों को आकर्षित कर रहे थे ।
कोठे की मालकिन के सामने आहना बहुत रोई, गिड़गिड़ाई मगर पत्थरों के दिल कहां होते हैं । अगर उसके पास दिल ही होता तो इतनी लड़कियों की जिंदगी वह बर्बाद नहीं करती ।
कोठेवाली ने एक मुस्टंडे को बुलाकर आहना को उसके सुपुर्द कर दिया । मुस्टंडे ने आहना की खूब पिटाई की मगर आहना वेश्यावृत्ति के लिए तैयार नहीं हुई ।
उधर अशोक आहना को लेने रेलवे स्टेशन पर गया लेकिन उसे आहना नहीं मिली । पूरी ट्रेन छान मारी मगर आहना कहीं भी नजर नहीं आई । उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ बता रहा था । थक हार कर अशोक ने एक थाने में आहना की गुमशुदगी की रिपोर्ट करा दी । पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली । इसके अलावा पुलिस और क्या करतीं है ?
इस तरह पंद्रह दिन गुजर गए मगर आहना का कोई सुराग हाथ नहीं लगा । अशोक रोज थाने जाता और निराश लौट आता था । आहना का मोबाइल नंबर अभी भी स्विच ऑफ ही आ रहा था ।
सोलहवें दिन जब अशोक अपने घर आ रहा था तो एक अनजान कॉल आई । उसने उसे रिसीव नहीं किया । दुबारा उसी नंबर से कॉल आई तो उसने उसे रिसीव कर लिया । घबराई हुई एक आवाज आई ।
"मैं आहना बोल रही हूं । कहां से बोल रही हूं, पता नहीं । बस इतना पता है कि मैं एक कोठे से बोल रही हूं । मैं बड़ी मुसीबत में पड़ गई हूं । आप इस आदमी से लोकेशन समझ लो और मुझे यहां से छुड़ा कर ले जाओ । मैं निर्दोष हूं । आप विश्वास कीजिए । और अभी तक पवित्र हूं । बाकी लोकेशन ये समझा देंगे" ।
आहना ने फोन उस ग्राहक को दे दिया जो उसके पास आया था । उसने लोकेशन समझा दी । अशोक ने आहना को ढांढस बंधाया और कहा कि वह उसे वहां से निकाल लेगा । बस, वह चुपचाप रहे ।
दूसरे दिन अशोक एक ग्राहक बनकर उस कोठे पर गया और उसने कोई सुंदर सी लड़की की डिमांड की । पैसा मुंहमांगा देने को तैयार हो गया था वह । अशोक के सामने सभी लड़कियों की परेड करवाई गई । अशोक ने आहना को पहचान लिया और उसे पसंद कर लिया । उसके दस हजार रुपए मांगे गए जो अशोक ने दे दिये ।
दोनों एक कमरे में आ गए । आहना ने सारी कहानी उसे सुना दी और यह भी बता दिया कि कल वाला ग्राहक बहुत भला था । उसने फोन पर उसकी बात करा दी थी और वह फिर चला गया था ।
अशोक ने फोन करके थानेदार को सब बातें बता दी और पूरे जाब्ते के साथ आने को कहा । पुलिस ने पूरे जाब्ते के साथ उस कोठे को घेर लिया और आहना समेत सभी लड़कियों को मुक्त करा दिया । कोठेवाली और दूसरे कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया गया ।
अशोक और आहना दोनों की बुद्धिमानी से सब ठीक हो गया । मगर इस घटना ने अज्ञात व्यक्तियों के विषय में एक संदेश छोड़ दिया कि किसी पर भी विश्वास मत करो और किसी की दी हुई चीजें मत खाओ, पीओ । इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
26.4.22