प्रेमा प्रतिलिपि पर अभी नयी नयी आई थी । बहुत सारे लेखक थे यहां । एक से बढकर एक । लेखिकाएं भी थीं , सब की सब नायाब । प्रेमा को बड़ा अच्छा लगा था यहां आकर । बड़े मनोयोग से वह सब रचनाएं पढ़ती थी ।
एक दिन एक रचना बड़ी अच्छी लगी थी उसे । किसी "अनाम" लेखक की थी । प्रोफाइल में कोई विवरण भी नहीं और कोई फोटो भी नहीं । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह कौन बंदा है या बंदी है जिसका ना तो कोई नाम है और ना ही कोई फोटो । उसे थोड़ी उत्सुकता हुई । उसने उन लेखक महोदय की समस्त रचनाएं पढ़ डालीं । उन रचनाओं को पढ़ने से यह तो स्पष्ट हो गया था कि वह कोई पुरुष है, महिला नहीं । मगर है कौन , यह पता नहीं चला ।
प्रेमा ने एक बार सोचा कि मैसेज भेजकर पता किया जाये । मगर उसे लगा कि "अनाम" साहब पता नहीं क्या क्या सोचेंगे उसके बारे में ? उसने अपनी उत्कंठा को अपने मन में ही दबा लिया । मगर वह उनकी रचनाएं नियमित रूप से पढ़ती रही और समीक्षाएं भी लिखती रही ।
थोड़े ही दिनों में उन दोनों में एक अनजाना सा रिश्ता बन गया । प्रेमा को वह लेखक पसंद आ गया । हालांकि वह उसके लिए अनदेखा अनसुना सा था मगर अपरिचित नहीं । उसकी रचनाओं के माध्यम से प्रेमा ने जान लिया था कि वह "लंपट" तो नहीं है ।
कमेंट सैक्शन में ही कभी कभार उन दोनों में चैट हो जाती थी । प्रेमा "अनाम" को अपना दिल दे बैठी । वह अपने इश्क का इजहार करना भी नहीं चाहती थी । लड़कियों की ये समस्या पैदाइशी है । इश्क भी करेंगी मगर इजहार नहीं । लड़कों से यह अपेक्षा करतीं हैं कि वे ही इजहार करें , पहल करें । ना इजहार करते बन रहा था और ना इनकार । करे तो क्या करे प्रेमा ? बड़ी मुसीबत हो गई ।
प्रेमा के दिन का चैन हराम हो गया और रातों की नींद बरबाद । कैसे होंगे ये "अनाम" महाशय ? पता नहीं कितनी उम्र है ? शादीशुदा तो नहीं हैं ना ? वो भी प्यार करते हैं या नहीं ?
इन सबके लिए बात तो करनी पड़ेगी न । आखिर दिल दा मामला था । सब्र की भी एक सीमा होती है न ।
आखिर एक दिन उसने मैसेज भेज दिया
"गुड मॉर्निंग, सर"
उधर से जवाब आ गया । और धीरे धीरे दोनों में मैसेज बॉक्स के माध्यम से बात होने लगी । प्रेमा तो अब उन पर जान देने लगी थी । मगर अनाम महाशय तो कुछ बताते ही नहीं थे । कोई हिंट भी नहीं दिया उन्होंने । प्रेमा परेशान । आखिर उसने मैसेज बॉक्स में एक दिन लिख ही दिया
"आई लव यू, सर"
उधर से दो दिन तक कोई मैसेज नहीं । कोई रचना भी पोस्ट नहीं की अनाम साहब ने । प्रेमा तो जैसे पागल थी अनाम के लिए । उसकी जान हलक में आ गई थी ।
उसे लगा कि उसने अपने इश्क का इजहार करके अच्छा नहीं किया है । उसने एक अच्छा "दोस्त" खो दिया है । अगर वो इजहार नहीं करती तो कम से कम वह दोस्त तो बना रह सकता था । इसी बहाने हंसी मजाक हो जाया करता था दोनों में । लेकिन अब क्या हो सकता है ? उसकी जल्दबाजी ने सब मटियामेट कर.दिया । आखिर उसने एक मैसेज और डाला
"सॉरी सर, आपको बुरा लगा होगा मेरी मूर्खता पढ़कर । मगर मैं दिल के हाथों मजबूर थी । अब भी हूं । मगर आप जैसे हीरे को खोना नहीं चाहती हूं । इसलिए मेरी धृष्टता के लिए मुझे क्षमा करिये और कम से कम मेरे दोस्त तो बने रहिये । बस, इतना काफी है मेरे लिए । आप चाहे प्यार ना करते हों , मगर मैं तो करती हूँ और करती रहूंगी , हमेशा के लिए । प्यार के बदले प्यार हासिल हो, जरूरी तो नहीं । मैंने किसी प्रतिफल की आशा से प्यार किया भी नहीं है । मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए , बस यही ख्वाहिश है कि मैं आपकी रचनाएं पढ़ती रहूं और उन पर समीक्षा भी लिखती रहूं और आप उन समीक्षाओं पर पहले की तरह टिप्पणी करते रहें । यदि मैंने आपका दिल दुखाया हो तो मैं माफी चाहती हूँ" ।
दो दिन और बीत गए । ना कोई जवाब और ना कोई पोस्ट । प्रेमा उदासी में डूब गई । ऐसे ही कई दिन और गुजर गए ।
एक दिन वह किसी नये लेखक की रचना पढ रही थी । उसे वह रचना अच्छी लगी । प्रेमा ने उसकी प्रोफाइल में जाकर उसकी और रचनाएं भी पढ़ी । एक रचना को पढ़कर वह चौंकी । रचना प्रारंभ होने से पहले लिखा था
"मेरे अनाम दोस्त को समर्पित जिसकी मृत्यु अभी कुछ दिन पहले कोरोना से हो गई" ।
अब प्रेमा को सारा माजरा समझ में आ गया था । मगर दिल है कि मानता नहीं । अनदेखे अनजाने अनसुने आदमी से प्यार का क्या यही परिणाम होता है, वह सोचती ही रह गई ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
24.3.22