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जीना इसी का नाम है

18 जनवरी 2022

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जीना इसी का नाम है 

आज सुबह सुबह श्रीमती जी ने पनीर सैंडविच बनाई नाश्ते में । बहुत ही स्वादिष्ट थीं बस थोड़ी मिर्च तेज थीं । कह भी नहीं सकते कि मिर्च तेज है वरना हमें पुरुषवादी सोच और नारी उत्पीड़क कह कर गरिया दिया जाता । इसलिए खामोश रहना ही बेहतर समझा । 

लेकिन आंखों का क्या करें ? ये सब राज खोल देतीं हैं । टप टप आंसू गिरने लगे । श्रीमती जी का ध्यान जैसे ही आंसुओं पर गया वे घबरा गई । 
पास आकर बोली "क्या हुआ " 
हमने कहा " आपकी सैंडविच इतनी शानदार हैं और हमने इनकी प्रशंसा नहीं की तो आंखों को बुरा लग गया । वे प्रशंसा कर रहीं हैं तुम्हारी " । हमने मुस्कुराते हुए कहा । 

वे मेरे आंसू पोंछने लगीं । मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की कि देखो तुम मुझे फिर से पुरुष वादी घोषित करा रही हो । लोग कहेंगे कि मैं तुम पर अत्याचार कर रहा हूं । इसलिए मुझे ही पोंछने दो न " 

मेरे आंसू पोंछते पोंछते वे रोने लगीं । मैंने कहा " हे देवी , अब मैंने कौन सा ऐसा पुरुषवादी काम किया है जिससे आपके कोमल दिल को ठेस पहुंची है ? मैं अपने जाने अनजाने गलत कार्यों के लिए क्षमा याचना करता हूं " 

मेरे मुंह पर हाथ रखते हुए वे बोलीं " खबरदार जो अब एक शब्द भी मुंह से निकाला तो । मैं आपके सब व्यंग्य समझती हूं । माना कि आप अच्छे व्यंग्यकार हैं लेकिन इतने सालों से आपके साथ रह रहकर आपको और आपके व्यंग्यों को समझने लगी हूं । मेरी ही मति मारी गई थी जो मैंने गुस्से में आकर मिर्च ज्यादा डाल दीं" 

मेरे लिए यह आठवां आश्चर्य से कम नहीं था । धड़ाम से जैसे धरती पर गिरा । अब समझ आया कि आज इतनी तीखी सैंडविच क्यों बनी हैं । मैंने कहा " हे देवी , आपके दास से ऐसा कौन‌ सा गुनाह हो गया है जिसकी ऐसी भयंकर सजा मिल रही है उसे । कम से कम हमारा अपराध तो बता दो जिससे आगे हम ऐसी धृष्टता करने की हिम्मत नहीं कर सकें " 

हमारी चिकनी चुपड़ी बातों से वे खुश हो गई और नीची नजरें करके पास ही बैठ गई । कहने लगी " हमसे बहुत बड़ा अनर्थ हो गया जी । हमें माफ कर दो ना " 

हमने कहा "आप भी हमारी तरह गोल गोल घुमाना सीख गई हो । सही मायने में हमारी अर्द्धांगिनी हो । अब तो खुलासा कर दो कि सेवक से क्या खता हो गई है " 

आंखें तरेरते हुए कहने लगी कि पहले ये दास , सेवक शब्द अपने शब्द कोष से निकाल कर फेंको । आप तो हमारे हृदय सम्राट हैं । हमें ये सब सुनना अच्छा नहीं लगता है " 

हम फूलकर कुप्पा हो गये । चलो, हम वो तो नहीं हैं जो हम समझते हैं । पर आज श्रीमती जी को अचानक क्या हो गया है । कभी हमें पाषाण हृदय कहा करतीं थीं , आज हृदय सम्राट कह रहीं हैं । कैसी बहकी बहकी बातें कर रहीं हैं । हमने कहा " देवी , पहेलियां बुझाने में ही आज इतवार की छुट्टी गुजर जाएगी क्या ? फिर इश्क की वर्षा कब करोगी " ? 

किस्से का पटाक्षेप करते हुए कहने लगीं " आपने कल परसों एक कविता लिखी थी ' औरत और पतंग' उसे पढ़कर हमें अच्छा नहीं लगा । हम औरत हैं । सजीव । कोई निर्जीव थोड़ी ही हैं , पतंग की तरह " ? 

मैंने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा " बीच में बोलने की गुस्ताखी के लिए क्षमा प्रार्थी हूं देवी । मगर ये तो उपमा है देवी । हम तरह तरह से उपमा देते रहते हैं देवी । हर उपमा का वस्तुत: वही अर्थ निकले , आवश्यक तो नहीं , देवी । आप हमें न जाने कितने बार 'पत्थर' कह चुकीं हो , मगर हमने तो इसे कभी अन्यथा नहीं लिया " 

" हां हां , जानती हूं । बस, उसी बात को लेकर मन में गुस्सा था इसलिए आज सबक सिखाने के इरादे से सैंडविच में जानबूझकर मिर्च ज्यादा डाल दीं । मुझे पता नहीं चला कि इतनी ज्यादा हों जाएंगी कि आपके आंसू आ जाएंगे " । उनका गला भर आया था । 

हमने उन्हें अपने सीने से लगाते हुए कहा " देवी , जब मैं आपकी आंखों की तुलना शराब के प्याले से करता हूं । आपकी चाल को तीखा खंजर बताता हूं , तब तो आप बहुत खुश होती हैं । ये दोनों चीजें भी तो निर्जीव हैं । लेकिन तब तो आपने मुझे पुरुषवादी सोच , नारी उत्पीड़क नहीं कहा । आप हो सकता है कि मेरे बिना रह जाएं पर मैं आपके बिना बिल्कुल नहीं रह सकता हूं । आप तो नारी हैं । महान हैं । सक्षम हैं । आपको हम पुरुषों की क्या आवश्यकता है । मगर हम तो पुरुष ठहरे ।  हमारा तो पत्ता भी आपके बिना नहीं खड़कता है ।आप हमें कुछ भी कह लेतीं हैं मगर हम आपको कुछ नहीं कहते । न रूठ सकते हैं न गुस्सा हो सकते हैं । इन सब पर आपने पेटेंट करा रखा है । और तो और आपके पास तो "एक कोप भवन" भी है मगर हम मर्दों के पास तो वो भी नहीं हैं । आप तो चार औरतें मिलकर हमारे बारे में जली कटी सुनाकर अपनी भड़ास निकाल लेती हो । अगर गलती से भी आपके बदन पर हमारा हाथ लग जाए तो आप डोमेस्टिक वायलेंस का प्रकरण तुरंत थाने में दर्ज करा देती हो । और तो और भारतीय दंड संहिता की धारा 498 में दहेज मांगने के आरोप में सीधा अंदर करा सकती हो । आप हमें जली कटी रोटी खिलाकर अपना मूड बतला देती हो । बिस्तर पर तकिये से दीवार खेंच देती हो । हम तो इनमें से कुछ भी नहीं कर सकते हैं न । फिर भी हम पुरुष निर्दयी , पत्थर , असभ्य , असंस्कृत , दुष्ट , निर्लज्ज और न जाने क्या क्या हैं । देवी , आप ही हमारा मार्गदर्शन करें कि हम किस तरह से जिंदा रहें " हमारा गला रुंध गया । 

वो हमसे बुरी तरह लिपट गई । कहने लगी " हमने नारीवाद पर एक लेख पढ़ लिया था उसी से ऐसे विचार आ गए थे । मुझसे भूल हुई जो मैंने भावावेश में सैंडविच तीखी बनाईं । मुझे क्षमा कर दो न " 
और वे सुबकने लगीं । 

हमने कहा " हे प्राणेश्वरी , आपकी तीखी सैंडविच भी हमें उतनी ही प्रिय हैं जितने तीखे आपके नैन । आपकी टेढ़ी मेढी बातें भी उतनी ही प्रिय हैं जितनी टेढ़ी आपकी नाक । आपके लंबे बालों की तरह ही आपके लंबे लंबे सीरियल देखने की आदत । अब और कैसे तारीफ करें आपकी ? हमको तो ऐसे ही तारीफ करना आता है । इतनी सी बुद्धि है हममें । हम आप स्त्रियों की तरह महा ज्ञानी तो हैं नहीं " ।

हमारे मुंह पर अपनी उंगली रखकर उन्होंने हमें खामोश कर दिया । 

हरिशंकर गोयल "हरि"
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