"सुनो, आठ बज गये हैं । अब तो खड़े हो जाओ । आज ऑफिस नहीं जाना है क्या" ?
श्रीमती जी की मिसरी सी मीठी आवाज सुनकर हम हड़बड़ा कर उठे । सामने देखा तो श्रीमती जी चाय के दो प्याले हाथ में लिये खड़ी थीं और आंखों से प्रेम वर्षा कर रही थीं । लबों पर हलकी मुस्कान हमें "हलाल" किये जा रही थीं । जब सामने "गुलाब जामुन" हो और आदमी को "डायबिटीज" भी नहीं हो तो भला वह कब तक मन ललचायेगा ? टूटकर नहीं पड़ेगा वह "गुलाब जामुन" पर । हम भी ऐसा ही करने वाले थे ।
पता नहीं इन औरतों को पतियों के दिमाग को पढ़ने की ट्रेनिंग कहां पर दी जाती है कि आदमी के दिमाग में कभी कुछ कोई विचार आता है उससे पहले ही इन औरतों को पता चल जाता है । काश कि ये ट्रेनिंग सेंटर पतियों के लिए भी होता तो हम भी कुछ हाल ए दिल उनका भी पता कर लेते । मगर इनकी तो फितरत ही ऐसी है कि इनके दिल में क्या है, ये बात भगवान भी नहीं जान.सकते, इंसानों की तो बात ही क्या है ?
श्रीमती जी को पता है कि हम "गुलाब जामुन" के साथ किस तरह से पेश आते हैं इसलिए वे इस परिस्थिति से निबटने के लिए पहले से ही तैयार रहती हैं । शादी के अगले दिन वाली रात को हम दोनों में कुछ संधियां हुईं , कुछ समझौते हुए । कुछ नियम बने और कुछ शर्तें निर्धारित हुईं । उन नियमों के अनुसार हम दोनों के बीच में भारत पाकिस्तान की विभाजन रेखा "रैडक्लिफ" के रूप में वे एक तकिया हम दोनों के बीच में रख देती हैं । हम दोनों में कुछ संधियां हुईं हैं जिनके अनुसार वे पाकिस्तान की तरह कभी भी आक्रमण कर सकती हैं। सीमा रेखा पार कर आतंकवादी (अपना हाथ) भेज सकती हैं । मगर हम भारत की तरह अपने वचन पर अडिग हैं कि चाहे पाकिस्तान कितने भी अतिक्रमण कर ले मगर भारत कभी भी बाउंड्री (तकिया) क्रॉस नहीं करेगा ।
अभी कुछ वर्षों से भारत ने इस नीति को तिलांजलि दे दी है तो हमने भी पासा पलट दिया है । अब हम भी कभी कभी "सर्जीकल स्ट्राइक" और "एयर स्रट्राइक" कर आते हैं । हालांकि उन्हें हमारी सर्जीकल स्ट्राइक से ऊपर ऊपर आपत्ति तो होती है मगर उन्होंने कभी यूनाइटेड नेशंस (मम्मी पापा) में जाकर शिकायत नहीं की वरना हमारी इज्ज़त का फलूदा बन जाता ।
हम लोग चाय "मीठी" किये बिना नहीं पीते हैं । मगर सामने "गुलाब जामुन" देखकर हम उसे मीठी करना भूल गए और चाय का सिप लेने के लिए जैसे ही कप होठों पर लगाने को हुये कि उन्होंने टोक दिया
"बिना मीठी किये ही पी लोगे क्या" ?
तब जाकर पता लगा कि हम कितनी बड़ी गलती करने जा रहे थे । हमने अपना कप उनकी ओर बढ़ा दिया । उन्होंने उसे "मीठा" कर अपना कप हमारी ओर बढ़ाया । हमने उसमें से एक सिप के बजाय दो सिप ले ली तो वे चिंहुक उठीं
"ज्यादा मीठी कर दी ना ! हमें डायबिटीज हो जायेगी ऐसे तो । हां नहीं तो" । आंखों से शिकायत करते हुये वे कहने लगीं ।
"सॉरी, सॉरी, सॉरी" । हम कान पकड़ कर माफी मांगने लगे । "सॉरी से काम नहीं चलेगा मिस्टर । जुर्माना भरना पड़ेगा" । निगाहों से कोड़े बरसते हुये वे बोलीं ।
"जो हुकुम मेरे आका" । सरेंडर करने में ही भलाई समझी हमने । वैसे भी हमरे पिताजी ने यह फंडा शादी वाले दिन ही दे दिया था कि "बीवी के आगे ज्यादा होशियारी मत दिखाना वरना मारे जओगे । और हां, तुरंत सरेंडर कर देना । तकरार बढ़ाने में कोई फायदा नहीं है । तकरार बढ़ेगी तो "सावन का महीना" भी "जेठ" जैसा लगने लगेगा" ।
तो भैया , वो दिन है और आज का दिन है, कभी तकरार नहीं की हमने ।
"जुर्माना यह है कि एक ट्रिप बनाओ और केरल चलो । समुद्र तट पर कभी गये नहीं हैं । चलो, वहां चलते हैं । पिछले दो सालों से कोरोना के कारण घर में ही कैद होकर रह गए हैं । इस बार प्लान करते हैं" । उसके होठों पर मनमोहक मुस्कान बिराजमान हो गई थी । खिलखिलाते चेहरे को देखकर हम तो धन्य हो जाते हैं, जी । ऐसा लगता है कि जैसे दिन बन गया हो ।
मगर यहां तो फंसाने का पूरा इंतजाम कर लिया गया था । अभी थोड़ी माली हालत ठीक नहीं चल रही है और उस पर ये केरल भ्रमण कार्यक्रम ? कोढ़ में खाज वाली बात होने वाली थी । हमारी छठीं इंद्रिय ने हमें सावधान कर दिया था ।
हम भी कलाकार पूरे हैं । बात घुमाते हुए कहने लगे "सच में , समुद्र तट घूमने का मन कर रहा है आज तो । जरा इधर आओ ना" । हमने हाथ के इशारे से उन्हें पास बुलाने की कोशिश की । वे शायद कुछ समझीं नहीं इसलिए प्रश्न वाचक निगाहों से हमें देखने लगीं ।
"अरे, ऐसे मत देखो हमें । डर लगता है बाबा । मैं तो इतना ही कह रहा हूं कि इधर आओ । मेरे पास बैठो । तुम्हारी इन सागर सी गहरी नीली आंखों में डूबने उतरने का आनंद लेने दो ना । मैं जब भी ऐसी कोशिश करता हूं तो तुम "मुलेट" मछली की तरह फिसल कर साफ साफ निकल जाती हो । तो ऐसा करते हैं कि आज यहीं पर बैठे बैठे समुद्र तट का आनंद लिया जाये और सबसे चिकनी मछली"मुलेट" को पकड़ने के लिये कांटा और दाने की व्यवस्था कर ली जाये ।
मेरे इस प्रस्ताव से वे बिदक गईं जैसे शादी की घोड़ी कभी कभी बिदक जाती है । मुझे बिदकी हुई घोड़ी की दुलत्तियों से बहुत डर लगता है । लगता है कि आज की रात "हनुमान चालीसा" पढ़ते पढ़ते ही गुजरेगी शायद । अगर सही सलामत रहे तो कल मिलते हैं फिर ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
30.3.22