सन 1993 की बात है । दिल्ली जयपुर के बीच मिडवे पर एक शहर है जिसका नाम है बहरोड़ । राजस्थान के अलवर जिले में आता है । मेरा स्थानान्तरण वहां के राजकीय कॉलेज में हो गया था । तब मैं राजकीय कॉलेज में प्रोफेसर हुआ करता था । स्थानांतरण के पश्चात किराये के मकान में हम लोग वहां पर रहने लगे थे । श्रीमती जी तब मेरे पुत्र के विद्यालय में हीं इंग्लिश पढ़ातीं थीं ।
एक दिन स्कूल से आते ही श्रीमती जी ने फरमान सुना दिया । लायन्स क्लब , बहरोड़ एक अंत्याक्षरी प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है और इसमें हमको भाग लेना है । मैं एकदम से चौंका " ऐ हैलो, ये क्या कह रही हो? बोलने से पहले कुछ तो सोचा करो।"
" मैंने ऐसा क्या कह दिया जो सोचने की आवश्यकता हो ? अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए ही तो कहा है। कोई पहाड़ तो उखाड़ने के लिए नहीं कहा है "?
" वो तो ठीक है पर मैं इसमें भाग नहीं ले सकता हूँ । हमारी कॉलेज के छात्र भी तो वहां उपस्थित होंगे । वो लोग मुझे वहां पर देखेंगे तो क्या सोचेंगे "?
" जो भी सोचेंगे, सोचने दो । हमको उनसे क्या मतलब? "
" मतलब कैसे नहीं है। मेरी कॉलेज के विद्यार्थी हैं । मैं पढ़ाता हूं उनको वहां पर । मेरी कॉलेज में क्या इज्जत रह जायेगी"?
" अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में भाग लेने से इज्जत लुट नहीं जायेगी आपकी ? और वैसे भी कौन सी इज्जत है आपकी ? मैंने तो अपना नाम भी लिखवा दिया है । अब कोई विकल्प नहीं है आपके पास "
पति की बड़ी शामत है यार । बीवी की निगाह में उसकी कोई इज्जत नहीं, ससुराल में भी कोई इज्ज़त नहीं । और तो और बच्चों के सामने भी कोई इज्जत नहीं । कितना भी कर ले वह लेकिन उसे दो कौड़ी का ही भाव मिलता है घर में । पत्नी बिना पूछे कुछ भी करे तो ठीक मगर पति बिना पूछे करे तो हंगामा । वाह जी वाह ! हमको मौका मिल गया बचने का ।
"फिर ठीक है , चूंकि आपने अपना नाम लिखवा लिया है तो आप ही चली जाना " ।
" हम दोनों को ही भाग लेना है । पति-पत्नी या भाई बहन ही भाग ले सकते हैं । यहां पर मेरा कोई भाई तो है नहीं इसलिए तुम ही मेरे पति, भाई सब कुछ हो । अब कोई बहाना नहीं चलेगा"
" तो यार, किसी और को पति बना लो पर मेरा पीछा छोड़ो" । मैंने भी झल्लाकर कह दिया ।
भगवान ने औरतों को यूं तो बहुत सारे हथियार दे रखे हैं नाखून जो नोंचने के काम आते हैं । आंखें जिनसे दनादन गोलियां चलती हैं । जुबान जो कैंची की तरह चलती है । हाथ पांव जो गाहे बगाहे अपने करतब दिखाते रहते हैं । लेकिन एक ब्रह्मास्त्र और भी है और वह ब्रह्मास्त्र है "आंसू" । जो काम किसी हथियार से नहीं हो वह इस हथियार से जरूर हो जाता है । कैकेयी को तो जानते ही होंगे आप सब । इसी हथियार से राम जी को चौदह साल का बनवास दिलवा दिया था उसने । बस, श्रीमती जी ने उस अस्त्र का इस्तेमाल कर लिया और शुरू हो गई आंसुओं की बरसात ।
" मेरी तो घर में कोई कद्र ही नहीं है । सुबह से शाम तक खट खट खटते रहो । झाड़ू पोंछे से लेकर बर्तन तक सारे काम करो। बच्चों को भी संभालो । उसका होमवर्क भी करवाओ। नौकरी भी करो । पति को भु संभालो । किचन भी संभालो ।थोड़ा मनोरंजन के लिए मैंने अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में हम दोनों का नाम क्या लिखवा दिया कि नाक ही फूल गई साहब जी की" ? उनकी नाक और मुंह से झाग निकलने लगे । दोहरी मार पड़ रही थी हम पर । एक तो आंसू रूपी ब्रह्मास्त्र दूसरी कैंची रूपी जुबान । कब तक बचता मैं बेचारा ।
इसके साथ साथ उनका गांधीवादी सत्याग्रह भी प्रारंभ हो गया था। ये ब्रह्मास्त्र से भाभी खतरनाक हथियार है । पलंग पर तकिये की दीवार खींच दो और पलंग पर ही भारत पाकिस्तान बना दो । तकिया कंटीली बाड़ से भी ज्यादा खतरनाक साबित होता है । उसे पार करने की गुस्ताखी कर ली थी हमने । हाथ पर जो दांतों कुछ निशान बना दिये उन्होंने, तो फिर कभी हिम्मत ही नहीं हुई इस दीवार को पार करने की ।
माना कि पुरुष हृदय के थोड़े कठोर होते हैं लेकिन पलंग पर दीवार बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं वे । इसलिए स्त्रियां सारे महत्वपूर्ण निर्णय वहीं पर करवातीं हैं। कैकेई जी यह कला सब स्त्रियों को सिखा गई थीं । पुरुषों की स्थिति ऐसी है कि वैसे बहुत लंबा बिछोह सह लेंगे लेकिन पलंग पर बिछोह सहना उनके बस की बात नहीं है । वे एक पल में पिघल जाते हैं ।
आखिर वही हुआ जो सदियों से होता आया है । पुरुष कभी जीता है क्या किसी नारी से ? यदि किसी के पास ऐसा उदाहरण हो तो कृपया बताना अवश्य।
अब हमने उस प्रतियोगिता के बारे में पूछना शुरू कर दिया। हमने सोचा कि जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो अब मूसल की चोट से क्या डरना ? तब उन्होंने बताया
यह प्रतियोगिता " जी टीवी की अंत्याक्षरी प्रतियोगिता" के अनुसार होगी । उन दिनों में अन्नू कपूर जी टी वी पर यह प्रतियोगिता आयोजित करवाते थे ।
मैंने कभी देखा नहीं था जी टी वी का कोई प्रोग्राम तब तक । क्योंकि तब हमारे घर में केबल नहीं लगा था । एंटीना ही लगा हुआ था। उसी से दूरदर्शन के कार्यक्रम देखा करते थे । मैंने टालने की गरज से कहा कि
बिना जी टी वी देखे उस प्रतियोगिता में कैसे भाग लेंगे ?
औरतों के पास हर समस्या का समाधान होता है । पता नहीं भगवान ने सारी बुद्धि, मेहनत और लगन औरतों को ही दे दिया है क्या कि वे सब समाधान ढूंढ लेती हैं और मर्दों के हिस्से में आया केवल आलस्य, निठल्ला चिंतन, बॉस और बीवी की गुलामी।
श्रीमती जी कहने लगी कि पडौस में शर्मा जी के केबल लगी हुई है । आज वहां पर आयेगा वो अंत्याक्षरी का कार्यक्रम । आज उसे देखने चलेंगे । मैंने मान लिया कि ये देवी मानने वाली नहीं हैं। मेरी फजीहत करवा के ही मानेगी । जब मरना ही है तो शहीद का दर्जा ही क्यों न पाया जाये ? इसलिए "चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम" वाली तर्ज पर वह प्रोग्राम देखने उनके घर पहुंचे ।
शर्मा जी के सारे घरवाले हमको आश्चर्य से देख रहे थे और मुस्कुरा भाभी रहे थे । शायद मन ही मन सोच रहे होंगे कि "गुरुजी" को भी अंत्याक्षरी वाला कार्यक्रम पसंद आने लगा है । वहां पर लोग मुझे गुरू जी ही कहते थे। पूछने लगे कि हम कैसे आये हैं। जब बताया कि अंत्याक्षरी कार्यक्रम देखने आये हैं तो मन ही मन बहुत हंसे । पर इससे हमारी श्रीमती जी को कोई फर्क नहीं पडा ।
हमने वह कार्यक्रम पूरा देखा और बड़े ध्यान से देखा । पांच राउंड होते थे उस समय । पहला राउंड साधारण था। दूसरे में एक शब्द दिया जायेगा । गाने के मुखड़े में वह शब्द आना चाहिए। तीसरे राउंड में कोई एक सिचुएशन दी जाती है जिस पर गाना गाना है । चौथे राउंड में कोई धुन बजेगी जिसे पहचानना है और पांचवें राउंड में टी वी पर एक गाना चलेगा जिसकी आवाज म्यूट कर दी जायेगी, उसे पहचान कर गाना है । इस प्रकार ये पांच राउंड होते थे उसमें । श्रीमती जी ने कहा था कि इसी के अनुसार वह प्रतियोगिता भी होगी ।
शेष अगले अंक में