प्रिया बड़ी बेचैनी से छत पर चहलकदमी कर रही थी । उसके चेहरे से झुंझलाहट साफ झलक रही थी । वह बार बार घड़ी को देखती । फिर मोबाइल को देखती । घड़ी तेज तेज दौड़ी जा रही थी मगर मोबाइल वैसे ही खामोश पड़ा था । निश्चेतन , निर्विकार, निर्जीव । फिर उसने मैसेज बॉक्स देखा । क्या पता कोई मैसेज छोड़ा हो "शिव" ने ? मगर वहां पर भी निराशा ही हाथ लगी उसे ।
क्या हुआ ? ये शिव फोन क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या अभी तक ऑफिस से घर नहीं पहुंचे हैं ? अगर नहीं भी पहुंचे तो मैसेज तो कर देते ? हम यूं भला पागलों की तरह छत पर चक्कर तो नहीं लगाते ? प्रिया मन ही मन सोच रही थी ।
प्रिया की मजबूरी ऐसी थी कि वह शिव पर गुस्सा भी नहीं कर सकती थी । कितने मासूम जो हैं शिव । निर्मल, सरल, निष्कपट । भगवान ने उन्हें बनाया भी तो फुर्सत से है ना । कभी कभी तो डर लगता है कि कहीं कोई "गौरा" शिव को ले ना उड़े और बेचारी प्रिया पार्वती बनकर यहां इंतजार ही ना करती रह जाये ।
न जाने कितने खयाल मन में आ रहे थे प्रिया के । अब तो रात होने लगी थी । सात बजने को आ रहे थे । छ: बजे का समय तय कर रखा था दोनों ने । मगर आज तो सात बजने को आ रहे हैं । मम्मी ने एक दो बार आवाज भी लगा दी थी । नीचे बुला रही थीं । अब मम्मी को कैसे बताएं कि वो किसके फोन का इंतजार कर रही है ? और उधर वो भोले भंडारी इन सबसे बेखबर ना जाने कैलाश पर धूनी रमा कर किसका ध्यान कर रहे हैं ?
अब उससे रहा नहीं गया तो उसने घंटी खड़खडा दी । उधर से आवाज आई
"गुड इवनिंग प्रिया । सॉरी यार, बात नहीं कर पाया । कहो, कैसी हो" ?
प्रिया कितने गुस्से में थी ? मगर जैसे ही शिव की धीर गंभीर वाणी कानों में घुसी वह मोम की तरह पिघल गई । उस पर तुर्रा यह कि शिव ने पहली लाइन में ही सॉरी बोल दिया था । अब शिव का क्या करें यार ?
"पहले यह बताइए कि जनाब कर क्या रहे थे ? सुडोकू भर रहे थे" ?
प्रिया को पता था कि शिव को "सुडोकू" बहुत पसंद है । अजी, इतनी पसंद है कि उनकी आत्मा बसती है सुडोकू में । एक बार जब सुडोकू भरने बैठ जाते हैं तो फिर खुद का भी होश नहीं रहता है जनाब को । और एक घंटा कब निकल जाता है पता ही नहीं चलता है । इसलिए जब भी कभी शिव की तरफ से फोन नहीं आता है तो प्रिया समझ जाती है कि वे सुडोकू भर रहे हैं । शिव को दो ही तो काम पसंद हैं । एक तो प्रिया से बातें करना और दूसरा सुडोकु भरना ।
"हां यार । सुडोकू भरने बैठ गया था"
"इतनी जुर्रत ? हम तो यहां इंतजार में दुबले हुए जा रहे हैं और जनाब को इतना भी याद नहीं रहा । सुडोकु भरने बैठ गए । लगता है कि हमारा खौफ कम हो गया है । ऐ मिस्टर । खौफ खाइए हमारा वरना ..."
"वरना ... क्या करोगी ? मारोगी" ?
"शिव शिव शिव । ये तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती" ।
"तो डांटोगी ? गाली गलौज करोगी" ?
"कैसी बातें कर रहे हैं आप ? हम ये सब आपके साथ नहीं कर सकते । हां, और कोई होता तो उसे कच्चा ही चबा जाते" ।
"फिर क्या करोगी ? बोलिए" ।
प्रिया सोचती रह गई । वह क्या करेगी ? कुछ भी तो नहीं । वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती है । शिव हैं ही इतने प्यारे कि वह उनसे केवल प्यार ही कर सकती है और कुछ नहीं । कहने लगी "हम चाहे कुछ भी करें या नहीं मगर आपको छोड़ेंगे नहीं" ।
"तो बताइए क्या करोगी" ?
अब प्रिया फंस गई । हमेशा ऐसे ही करते हैं शिव । अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में उसे ऐसे ही फंसा लेते हैं । वह शिव के सामने निरुत्तर हो जाती है । फिर ऐसे में वह एक ही काम करती है । विषय बदल देती है । प्रिया ने वही किया । विषय बदलते हुए कहा
"आप भूल गये ना कि हमसे बात करनी थी । सच बताना । वैसे हमें पता है कि आप कभी झूठ नहीं बोलते पर फिर भी हम पूछ रहे हैं । तो आप सच ही बोलेंगे हम यह मान सकते हैं" ?
"बिल्कुल सच है ये बात । सोलह आने सच । मैं बिल्कुल भूल गया था । और तुम ये बात अच्छी तरह जानती हो कि मैं कितना भुलक्कड़ हूं । इसका सबूत देने की भी जरूरत नहीं है । क्यों है न" ?
"हां, हम अच्छी तरह जानते हैं । मगर हमें विश्वास नहीं हो रहा है कि आप हमसे बात करना भूल जाएं" ।
"मैं पूरे होशोहवास में कह रहा हूँ कि मैं बिल्कुल भूल गया था । मैं बीच चौराहे पर खड़े होकर गंगाजल की कसम खा सकता हूं कि मैं बहुत बड़ा भुलक्कड़ हूं । अब तो खुश" ?
वातावरण में प्रिया की खनखनाती हंसी गूंज उठी । शिव इस हंसी का दीवाना था । जब जब प्रिया हंसती तब तब शिव को लगता जैसे भगवान नारायण अपना पांचजन्य शंख बजा रहे हों । शिव मंत्रमुग्ध होकर उस हंसी में खो जाता था ।
प्रिया के होठों पे कुमार सानू के गाने की कुछ पंक्तियां तैरने लगी
तेरी इसी अदा पे सनम, मुझको तो प्यार आया, हो
"हम कबसे इंतजार कर रहे थे न । अब साढे सात हो गए हैं । मम्मी डांटेगी ना । कहेंगी कि इतनी रात तक छत पर क्या कर रही थी । तब क्या जवाब देंगे उन्हें" ?
" कह देना कि हमसे बात कर रही थी" । बड़ी मासूमियत से शिव ने कहा तो प्रिया को बड़ी तेज हंसी आ गई । "देखना , एक दिन ऐसे ही जान ले लेंगे आप हमारी । आए बड़े" ।
यह प्रिया का पैट डॉयलॉग था । इसे वह बड़ी स्टाइल से कहती थी । शिव भी प्रसन्न हो जाता था इस डॉयलॉग से ।
"अच्छा , सुनो ना" ?
"सुनाइए ना" ।
"आप तो हरदम मजाक के मूड में रहते हैं । कभी सीरियस भी हुआ कीजिए ना" ।
"सीरीयस ? वो क्या होता है भला" ?
"आपको हमें सताने में बहुत आनंद आता है । एक तो हम कबसे इंतजार कर रहे थे । उस पर आप हमें और तंग कर रहे हैं । इतना सताना भी ठीक नहीं है सनम जी" ।
"अच्छा जी । और आप वहीँ से बैठे बैठे नैनों के बाण चलाकर हमें घायल कर देते हो , उसका क्या" ?
"वो तो हमारे नयन हैं ही इतने कंटीले । तो इसमें हम क्या कर सकते हैं" ?
"अच्छा जी । और फोन पर जो "आई लव यू" कहकर भीषण प्रहार करती हो, उसका क्या" ?
"तो करते तो हैं आपसे प्यार । और जिंदगी भर करते रहेंगे । आप चाहें या ना चाहें" । मीठी झिड़की के साथ कहा उसने ।
"हम क्यों नहीं चाहेंगे" ?
"अच्छा सुनो । होली आ रही है । आपके साथ खेलनी है । केवल आपके साथ । कुछ ऐसा जुगाड़ करो कि हम दोनों होली खेल सकें" ।
"आपके घर आ जाएं होली खेलने" ? शिव ने शरारत से कहा
"देखो कभी ना ऐसा करना । देखो कभी ना ऐसा कहना"
"यही अदा तो एक सितम है"
"सुनो , तुम्हें मेरी कसम है" ।
गाने की ये पंक्तियां गाकर दोनों हंस पड़े । इतने में मम्मी की आवाज आई "प्रिया । आठ बज गए बेटा । नीचे आ जा अब तो" ।
"सुनो, मम्मी आवाज दे रही है । अब जाना होगा । देखो । होली खेलने का जुगाड़ जरूर कर लेना । हां नहीं तो" ।
"जी, जरूर" ।
शिव ने उसे आश्वस्त कर दिया । दोनों अगले दिन का वादा करके अपने अपने काम में मशगूल हो गए ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
5.3.22