रवि बस में खिड़की वाली सीट पर बैठ गया । उसके आगे वाली सीट खाली थी । उसकी पुश्त पर सिर टिका कर वह आराम करने लगा । पता नहीं कब उसे नींद आ गई । कंडक्टर ने जब टिकिट मांगा तब उसकी आंख खुली । उसने देखा कि उसके आगे वाली सीट पर एक लड़की बैठी हुई है । नींद में उसका हाथ उस लड़की के कंधे को छू रहा था । उसने झट से अपना हाथ वहां से हटा लिया । इस पर उस लड़की ने पलट कर एक बार उसे देखा । एक सुंदर सी युवा लड़की थी वह । संभवतः कॉलेज में पढने वाली । उसकी काली काली बड़ी बड़ी आंखों में सम्मोहिनी शक्ति थी । रवि का दिल धक से रह गया ।
टिकट लेकर रवि फिर से सोने का उपक्रम करने लगा । मगर अब नींद उससे कोसों दूर थी । आंखों में दो बड़े बड़े नयन समा गए थे । मन ही मन वह उसे चाहने लगा । खचाखच भरी थी बस । बात करने का कोई जुगाड़ नहीं था उसके पास । उसके दिल में भयंकर तूफान उठ रहा था । इस तूफान के आवेश में रवि ने अपना हाथ लड़की के कंधे पर फिर से रख दिया । लड़की की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । इससे रवि का हौसला और बढ़ा । रवि ने अपना हाथ लड़की के कंधे पर रखकर थोड़ा दबाया ।उसका दिल धुकधुकी कर रहा था । वह डर भी बहुत रहा था कि अगर.पड़े तो बेभाव पड़ेंगे । मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ । लड़की ने इस पर एक बार फिर से पीछे मुड़कर देखा । दोनों की नजरें मिलीं । लड़की के होठों पर मुस्कान फैल गई । उसने नजरें भी नीची कर लीं । रवि को जवाब मिल गया था ।
रवि ने धीरे धीरे अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया और उस लड़की ने उसे थाम लिया ।लड़की समझदार थी । उसके बगल में शायद उसके पापा बैठे थे । बस खचाखच भरी थी । किसी की निगाह ना पड़े इसलिए उसने अपने दुपट्टे से हाथ ढक लिए । रवि उसके हाथ को सहलाता रहा । लड़की के हाथों की कंपन्न महसूस कर रहा था रवि । कभी कभी वह उसका हाथ दबा देता तो वह लड़की एक बार फिर से पीछे मुड़कर देखती । फिर से दोनों की नजरें टकराती और फिर से दोनों मुस्कुराते ।
लड़की का गंतव्य स्थल आ गया था । वह खड़ी होने का उपक्रम करने लगी । रवि ने अपना हाथ अपनी सीमा में खींच लिया । उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था । उसे ऐसा लगा जैसे उसकी जान जा रही हो । तब तक मोबाइल नहीं थे । रवि को कुछ नहीं सूझ रहा था । अचानक रवि ने अपनी जेब से एक पॉकेट डायरी निकाली और एक पन्ने पर अपना नाम और पता लिखकर लड़की को पकड़ा दिया । लड़की ने वह पर्ची लेकर अपनी सीक्रेट जगह पर रख ली । वह आंखों ही आंखों में बाय बाय कर के चली गई ।
रवि तो जैसे अपने बस में था ही नहीं । पागलों की तरह रहने लगा था वह । एक पल को भी उस लड़की को भूल नहीं पाया था वह । उसने अपना पता तो उसे दे ही दिया था तो उसे उम्मीद थी कि वह उसे एक पत्र लिखेगी । वह पत्र का इंतजार करने लगा । ज्यों ज्यों दिन बीत रहे थे उसकी आशा जवाब देती जा रही थी ।
एक दिन अचानक पोस्टमैन ने आवाज दी तो वह चौंका । तुरंत बाहर आया तो डाकिए ने एक लिफाफा उसे पकड़ा दिया । उसने लिफाफे को देखा । उसका वही पता लिखा था जो उस लड़की को दिया था । उसकी बांछें खिल गई । दिल का सितार झूमकर बजने लगा । भेजने वाले का कोई नाम पता नहीं लिखा था ।
वह अंदर कमरे में आ गया । धड़कते दिल से उसने लिफाफा खोला और उसमें से पत्र निकाला । फिर वह उसे पढने लगा ।
मेरे दुस्साहसी राजकुमार ।
हाय, इन शब्दों ने कैसा जादू किया उस पर, वह बता नहीं सकता था । दुस्साहसी शब्द पढकर वह चौंका । मगर आगे पढने लगा ।
आप दुस्साहसी शब्द पढकर चौंकेंगे । मगर मैं आपको दुस्साहसी ही कहूंगी । खचाखच भरी बस में , पापा के बगल में बैठी लड़की को छेड़ने से ज्यादा दुस्साहसी काम और कौन सा हो सकता है ? आपके इस दुस्साहस पर मैं तो लुट गई । आप चाहे मुझे चाहें या नहीं मगर उस दिन से मेरे दिल ने आपको मेरा शहजादा बना दिया है । हमारी यह पहली मुलाकात हमेशा हमेशा याद रहेगी ।
मैं आपको अपना पता नहीं दे सकती हूं क्योंकि अगर आपने कोई पत्र भेजा तो वह हमारे घर में किसी के भी हाथ लग सकता है और अपना भांडा फूट सकता है । इसलिए मैं आपको मेरी एक खास सहेली का पता लिख कर भेज रही हूँ । आप इस पते पर प्रेमपत्र भेजना । मैं इंतजार करूंगी ।
आपके दिल की शहजादी
सपना
पत्र पढकर रवि के मुंह से अनायास निकल गया "हिप हिप हुर्रे" । न जाने कितनी बार पढ़ा था उसने वह पत्र । उसका मन नहीं भर रहा था । उसने उस पत्र को न जाने कितनी बार आंखों और होठों से लगाया था, उसे खुद याद नहीं है । उसने भी कलम उठाई और लिखने बैठ गया ।
मेरे दिल की मलिका
हजार हजार बार प्यार ।
आज तुम्हारा पत्र मिला । क्या बताऊं कि आज मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ ? जैसे आज मैं इंद्रलोक का राजा बन गया हूं । यह मेरा सौभाग्य है जो आपने मुझे इस योग्य समझा । इसके लिए हृदय की गहराइयों से शुक्रिया ।
आप मेरे दुस्साहस पर लुट गयीं और मैं आपके हुस्न पर । काश मैं बता पाता कि तुम कितनी सुंदर हो । कभी मिलेंगे तो बतायेंगे कि तुम्हारे आगे चांद भी पानी भरता है ।
एक बार पास आकर इस दिल पर हाथ रखकर इसे समझा जाओ ना । यह बिना तुम्हारे एक पल भी शांत नहीं रहता है । पता नहीं , हम लोग कब मिलेंगे ? पर जब भी मिलेंगे , धमाल मचा देंगे ।
अब तो खतों का यह सिलसिला शुरू हो गया है । इसे बरकरार रखना । हमें याद करते रहना । भूलना नहीं .
सिर्फ तुम्हारा
रवि
इसके बाद तो पत्रों का यह सिलसिला चल पड़ा । कुछ दिन बाद उसका स्थानांतरण दूसरे शहर हो गया । उसने एक पत्र में इसका जिक्र कर लिख दिया कि जैसे ही वहां पर जायेगा, नया पता भेज देगा ।
रवि दूसरे शहर आ गया । कई दिन हो गए मगर सपना का कोई खत नहीं आया । रवि बहुत परेशान हो गया था । क्या हो गया है ? कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई ? पर उसे बताना तो चाहिए था न ? क्या सपना बेवफा है ? उसका दिल यह बात मानने को तैयार ही नहीं था ।
बहुत दिन हो गए । एक दिन अपने ऑफिस के काम से उसे उसी पुराने शहर में जाना पड़ा । वह बुझे मन से अपने पुराने मकान भी चला गया कि क्या पता यहाँ पर सपना ने कोई पत्र भेजा हो ?
उसने डोरबेल बजाई तो मकान मालकिन ने गेट खोला । उसे अंदर ले गई और सोफे पर बैठा दिया । कहने लगी "तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद एक लिफाफा आया था । कहो तो ला दूं" ?
रवि को ऐसे लगा जैसे किसी मुर्दे में जान आ गई हो । उसके मुंह से निकला "ये भी कोई पूछने की बात है आंटी जी । जल्दी लाइए न" ।
और उसने लिफाफा रवि के हाथ में पकड़ा दिया और खुद चाय बनाने चली गई ।
रवि बदहवास होकर वह खत पढ़ने लगा ।
मेरी दुनिया के सरताज
आपका खत आया था । उस दिन मेरी सहेली कहीं बाहर गई हुई थी । वह खत उसकी मम्मी ने ले लिया और खोल लिया । पत्र पढकर वे आग बबूला हो गई । जब सहेली आई तो उसकी जमकर पिटाई हुई । उसने सारा भंडा फोड़ दिया । उसकी मम्मी ने मेरी मम्मी को सारी बात बता दी । उस दिन मुझे मेरे घरवालों ने मुझे रूई की तरह खूब धुना था । मैं अधमरी हो गई थी । घर से बाहर आने जाने पर पाबंदी लगा दी गई है । अब क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा है ? तुम्हारे बिना अब जीना गवारा नहीं है । मगर मेरे मम्मी पापा आपसे शादी नहीं करेंगे । उन्हें तो अपनी जाति वाला लड़का चाहिए । इसलिए शायद इस जनम में तो अपना मिलन हो नहीं सकता है । हां, एक शर्त पर हो सकता है । आप पृथ्वीराज बनकर मुझ संयोगिता को उठाकर ले जाओ तो अपना मिलन संभव है । आप दुस्साहसी हैं , कर सकते हैं । अपने लिए ना सही, मेरे लिए ही सही । करोगे ना" ?
केवल आपकी महबूबा
सपना
इस पत्र को पढकर रवि के पैरों तले जमीन खिसक गई । सपना की निगाहों में तो रवि दुस्साहसी था । मगर इस बार वह दुस्साहस या साहस नहीं दिखा पाया । सपना की शादी कहीं और हो गई । रवि कभी कभी उस आखिरी खत को चुपके से निकाल कर पढकर रख देता है । ये आखिरी खत ही सपना की आखिरी निशानी थी रवि के पास ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
26.2.22