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मैं मां बनना चाहती हूं, जज साहब

17 अप्रैल 2022

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( राजस्थान में भीलवाड़ा जिले की सत्य घटना पर आधारित कहानी )

राजस्थान उच्च न्यायालय में आज एक अजीब सा केस लिस्टेड था । हत्या के अपराध में सजा काट रहे अपराधी की पैरौल का मामला राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष आज विचाराधीन था । दो जजों की खंडपीठ के द्वारा इस पर सुनवाई की जानी थी । 

अदालत परिसर खचाखच भरा हुआ था । ज्यादातर वकील वहां पर उपस्थित थे । मामला ही कुछ ऐसा था कि वकील अपनी जिज्ञासा छुपा नहीं सके और इस विषय पर अदालत क्या सोचती है, क्या निर्णय देती है, यह जानना चाहते थे । मीडिया भी वहां मौजूद था । 

दरअसल मामला यह था कि नौरत के हाथों एक हत्या हो गई थी । उस समय नौरत की शादी को छ: महीने ही हुए थे । उसकी पत्नी सीमा इस अवधि में ज्यादातर समय अपने मैके ही रही थी । दोनों ने दांपत्य जीवन लगभग न के बराबर ही भोगा था इसलिए बच्चे होने का कोई प्रश्न ही नहीं था । एक दिन अचानक वह घटना घटी जिसने नौरत और सीमा की जिंदगी में उथल पुथल मचा दी । किसी विवाद के कारण नौरत ने आवेश में आकर एक आदमी की पिटाई कर दी और उस पिटाई से वह आदमी मर गया था । नौरत को हत्या के जुर्म में पुलिस पकड़कर ले गई और जेल में बंद कर दिया । 

अपराध संगीन था इसलिए नौरत की जमानत भी नहीं हुई थी । उसे उम्र कैद की सजा हो गई । अब नौरत की जिंदगी जेल में ही गुजरनी थी । और सीमा ? उसने तो कोई अपराध नहीं किया था मगर सजा तो उसे भी मिल गई थी । अपने पति से दूर रहने की सजा । प्रेम विहीन जिंदगी जीने की सजा । विरह के आंसुओं में डूबने की सजा । अकेले अकेले घुट घुटकर , रो रोकर जीने की सजा । और तो और बिना संतानोत्पत्ति किये मर जाने की सजा । बिना मां बने अपूर्ण स्त्री बनी रहने की सजा । क्या ये सजाएं कम हैं ? 

एक नारी तभी पूर्ण मानी जाती है जब वह मां बनती है । नारी का सबसे सुंदर रूप "मां" का ही होता है । पूर्ण, ममतामयी, वात्सल्य जनित और आनंद दायक । हमारे शास्त्रों में भी गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों के बारे में लिखा है कि संतानोत्पत्ति करना एक गृहस्थ का परम कर्तव्य है । अपने वंश को आगे बढ़ाना उसका धर्म है । तो क्या सीमा इस कर्तव्य का पालन कर सकती थी ? तो क्या वह धर्म विमुख आचरण कर रही थी ? 

इस कर्तव्य का पालन करने में सबसे बड़ी बाधा उसका पति ही था । वह तो जेल में था । और उसे तो आजीवन कारावास की सजा हुई थी । जीवित रहते हुए तो वह जेल से बाहर आ नहीं सकता था । फिर सीमा और नौरत का "मिलन" कैसे हो सकता था ? क्या पति पत्नी के मिलन के बिना बच्चा पैदा हो सकता है ? शायद हां । पर उसके लिए सीमा को किसी पर पुरुष का संसर्ग करना पड़ेगा । मगर सीमा तो एक भारतीय नारी थी जो किसी पराये मर्द के साथ संसर्ग करना तो दूर उसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी । तब ऐसी स्थिति में वह अपना सतीत्व बचाते हुए  अपने पति के बच्चे कि मां कैसे बन सकती थी ? बड़ा ही कठिन प्रश्न था ।

ऐसे में दो ही रास्ते थे । पहला , सीमा को नौरत के साथ उसी जेल की कोठरी में बंद कर दिया जाये जिसमें नौरत रह रहा था ।  जिससे वे दोनों पति पत्नी की तरह साथ साथ रह सकें और गर्भाधान कर सकें । और जब वह गर्भवती हो जाये तब उसे जेल से बाहर कर दिया जाये । पर क्या ऐसा संभव हो सकता है ? बिना अपराध किये ही किसी को क्या जेल में एक दिन तो क्या एक घंटे के लिए ही रखा जा सकता है ? सीमा तो इसके लिये तैयार थी मगर कानून इसकी इजाजत नहीं देता है । अतः यह विकल्प कानूनन उपलब्ध नहीं था । तो इस तरह से पहला विकल्प सिरे नहीं चढ़ पाया था । 

अब दूसरा विकल्प देखते हैं । अपराधियों को थोड़े समय के लिए पैरौल पर छोड़ा जाता है । जैसे किसी अपने की मृत्यु हो जाए या बेटे बेटी के विवाह के अवसर पर उसे उसमें शामिल होने की अनुमति पैरौल पर छोड़कर दी जा सकती है । मगर बच्चे पैदा करने के लिए तो पैरौल पर छोड़ने का कोई भी मामला अभी तक सामने नहीं आया था । सीमा के वकील ने कहा "हम प्रयास कर सकते हैं मगर सफलता की संभावना लगभग न के बराबर है" । 

"मगर कोशिश तो करनी ही चाहिए न वकील साहब । अगर कोशिश ही नहीं करेंगे तो संभावना तो शून्य ही रहेगी मगर यदि कोशिश करेंगे तो कुछ तो संभावना बनी रहेगी पैरौल मिलने की । और गीता में भी तो भगवान कृष्ण ने यही कहा है कि "निष्काम कर्म" करो । फल देना ईश्वर के हाथ में है । अतः हमें तो निष्काम कर्म करते रहना ही होगा । इसके अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है हमारे पास" । सीमा की आंखों में आंसू थे ।

वकील ने नौरत के पैरौल के लिए जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन पत्र प्रस्तुत कर दिया । पैरौल समिति में अध्यक्ष जिला मजिस्ट्रेट होते हैं और सदस्य पुलिस अधीक्षक और जेलर होते हैं । नौरत के भयानक अपराध को ध्यान में रखते हुए जिला पैरौल समिति ने वह आवेदन पत्र खारिज कर दिया । 

अब सीमा के पास राजस्थान उच्च न्यायालय जाने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं था । और उसने इस विकल्प को चुन लिया था । राजस्थान उच्च न्यायालय में आज उसी पर सुनवाई होने वाली थी । 

ठीक समय पर दोनों जज पधारे । सबसे पहले नंबर पर यही केस था । दोनों वकील उपस्थित थे । एक तो सीमा का वकील और दूसरा सरकारी वकील । अदालती कार्यवाही प्रारंभ हुई । अदालत ने अपना पक्ष रखने के लिए पहले सीमा के वकील को अवसर दिया । सीमा के वकील ने संपूर्ण घटनाक्रम बताते हुए मानवीयता के आधार पर नौरत की 15 दिनों की पैरौल मांगी । 

सरकारी वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा "नौरत एक हत्या के जघन्य अपराध में सजायाफ्ता कैदी है । ऐसे खूंखार अपराधी को पैरौल कैसे दिया जा सकता है ? पैरौल पर छूटने के बाद वह गवाहों पर आक्रमण भी कर सकता है । ऐसे भयंकर अपराधी का समाज के बीच में रहना उचित नहीं है । फिर , हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह एक अपराधी है । और अपराधियों को "रंगरेलियां" मनाने का कोई अधिकार नहीं है । वह चाहे पत्नी के साथ ही क्यों न हो ? अब तक ऐसा कोई न्यायिक दृष्टांत भी नहीं है जिसमें बच्चे पैदा करने के लिए किसी हत्या के अपराधी को पैरौल पर छोड़ा गया हो ? अतः बच्चे पैदा करने के लिए नौरत को पैरौल पर नहीं छोड़ने का जिला स्तरीय समिति का निर्णय पूर्णतः न्यायोचित है । यह आवेदन पत्र खारिज किये जाने योग्य है" । 

सरकारी वकील की धांसू दलीलें सुनकर सीमा दहल गई थी । उसे लगा कि अब नौरत को पैरौल नहीं मिलेगी । वह अदालत में ही चीत्कार कर उठी । जोर जोर से कहने लगी "जज साहब, अपराध मेरे पति ने किया है, मैंने नहीं । फिर मुझे दंड क्यों दिया जा रहा है ? क्या मां बनना मेरा अधिकार नहीं है ? क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं है ? मैंने कब "रंगरेलियां" मनाने की मांग की है ? मैंने तो भारतीय शास्त्रोचित मांग की है । एक नारी बिना बच्चे के अधूरी होती है जज साहब । मैं अधूरी नारी की मृत्यु नहीं चाहती हूं । मैं एक पूर्ण नारी बनना चाहती हूं और यह मेरा अधिकार भी है । मैं अपना यह पहाड़ सा जीवन किसके सहारे गुजारूं ? आपको क्या पता जज साहब कि एक सजायाफ्ता पति की पत्नी होने पर समाज में उसे क्या क्या झेलना पड़ता है ? हर मर्द की वासना भरी आंखें उसका हरदम पीछा करती रहती हैं । सब मर्द उसे कच्चा निगलने के लिए तैयार बैठे रहते हैं । किस तरह अपना दामन पाक रखती है वह औरत , यह मुझसे पूछिए । मैंने मांगा ही क्या है ? अपने पति के साथ 15 दिन गुजारने का अवसर ही तो मांगा है कोई रियासत तो नहीं मांग ली । इस अवधि में क्या पता मुझे एक बच्चा लग जाये ? अगर मेरे नसीब में होगा तो मैं मां बन जाऊंगी और नसीब में नहीं होगा तो नहीं बनूंगी । अगर मैं मां बन गई तो मेरी सारी जिंदगी उस बच्चे के सहारे सहारे गुजर जायेगी । और मर्दों की निगाहें भी फिर मुझे नहीं घूरेंगी क्योंकि तब मैं एक मां कहलाऊंगी और मां की ओर निगाहें इज्ज़त से ही उठती हैं , वासना से नहीं । यदि मैं मां नहीं बन पाई तो इसे अपने अपराधों की सजा मानकर संतुष्ट होकर बैठ जाऊंगी । फिर मैं कभी भी आपके पास नहीं आऊंगी । हो सका तो अपना जीवन ही समाप्त कर लूंगी । ऐसे जीवन से फायदा भी क्या है जो चौबीसों घंटे लोलुप निगाहों के बीच गुजरे । अब आपकी जैसी मर्जी हो वैसा फैसला सुना देना । मैं अब कुछ नहीं कहूंगी । मैं बस इतना ही कहना चाहती हूं जज साहब कि मुझे मां बनने का एक अवसर दे दो । मैं मां बनना चाहती हूं जज साहब । बस और बस , मां बनना चाहती हूं । और कुछ नहीं" । और वह फूट फूट कर रोने लगी । 

अदालत परिसर में अजीब परिदृश्य उत्पन्न हो गया था । अदालत ने सीमा के वकील को कहा "अपने मुवक्किल का ध्यान रखिए वकील साहब । अदालतें महज भावनाओं में बहकर निर्णय नहीं सुनाती हैं । कानून, परंपराओं को ध्यान में रखकर भी फैसला करती हैं । अदालत की पूरी सुहानुभूति है फरियादी के साथ । इसलिए अभी थोड़ी देर में ही न्यायोचित निर्णय सुना दिया जायेगा" । यह कहकर अदालत उठ गई । 

सीमा भी थोड़ी शांत हुई और अपने आंसू पोंछकर खड़ी हो गई । अदालत परिसर में ही बने हुए मंदिर में जाकर वह बैठ गई । मंदिर में "बाल गोपाल" की मूर्ति लगी हुई थी । भगवान श्रीकृष्ण मैया यशोदा की गोदी में मुस्कुरा रहे थे । सीमा ने मन ही मन अरदास की "हे प्रभु ! क्या आप मुझे "यशोदा मैया" बनने का अवसर नहीं देंगे ? क्या मैं अपनी संतान के लिये तड़पती हुई ही मर जाऊंगी ? क्या आप मेरी फरियाद सुनेंगे ? क्या मुझे एक पूर्ण नारी बनने का अवसर देंगे" । वह वहीं पर बैठी बैठी प्रार्थना करती रही । 

थोड़ी देर में उसे ढूंढते हुए उसका वकील आ गया और कहने लगा "भगवान ने आपकी प्रार्थना सुन ली है मोहतरमा । अदालत ने नौरत को 15 दिन का पैरौल स्वीकार कर दिया है । यह एक ऐतिहासिक फैसला है । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि एक अपराधी को केवल बच्चे पैदा करने के लिए ही पैरौल दिया गया हो । मगर ऊपरवाला बहुत महान है । वह आप पर बहुत मेहरबान है । उसने जजों के हृदय में ऐसी संवेनाएं भर दीं और उन्होंने धारा के विपरीत जाकर ऐसा फैसला सुनाया है । अब यह ईश्वर की लीला है कि तुम मां बन पाओगी या नहीं । पर मेरा मानना है कि जब उसने "दांत दिये हैं तो रोटियों की व्यवस्था" भी वही करेगा । अब तुम घर जाओ । मैं कोर्ट का आदेश लेकर नौरत को लेकर घर पर आऊंगा । तुम दोनों भगवान को याद करते हुए प्रेम से रहना । आगे हरि इच्छा" । 

सीमा ने भगवान और अदालत दोनों का शुक्रिया अदा किया और अपने घर चली आई । दूसरे दिन नौरत को लेकर वकील साहब भी आ गए । सीमा ने उनका कृतज्ञता से धन्यवाद ज्ञापित किया । वकील साहब ने भी उसे अपनी बेटी की तरह आशीर्वाद दिया । फीस भी नहीं ली थी वकील साहब ने  । 

सीमा और नौरत 15 दिनों तक साथ रहे । पैरौल की अवधि बीत जाने पर नौरत अजमेर जेल चला गया । सीमा खुशखबरी सुनाने के लिए जेल में नौरत से मिलने गई । वह पल भी बहुत खुशनुमा था । ठीक नौ माह बाद एक प्यारा सा बच्चा उसकी गोदी में आ गया । भगवान ने उसकी अरदास पूरी कर दी । अब वह उस बच्चे के सहारे अपना पूरा जीवन व्यतीत कर सकती थी । अब वह एक अधूरी नहीं बल्कि संपूर्ण नारी बन गई थी । एक मां बन गई थी । स्नेहिल, ममतामयी, वात्सल्या, प्रकृति स्वरूपा, गौरा, यशोदा मैया । ईश्वर पर भरोसा हो तो सब कुछ संभव हो सकता है । 

जय श्री कृष्ण ।

हरि शंकर गोयल "हरि" 
17. 4.2022 


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