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भाग (7)

13 सितम्बर 2022

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उस समय मेरे दादा मात्र 13 वर्ष के थे कई वर्षों वहां रहने के बाद दादा स्ट्रीमर कंपनी में बुकिंग क्लर्क की नौकरी लेकर पहले चांदपुर और बाद में ग्वाल नंद आए हुगली जिले में होते हुए भी वह ढाका के निवासी हो गए और गंगा प्रसाद बाहुबली और चांद नगर की सारी संपत्ति बेचकर उस प्रांशु सुंदरी के साथ पेरिस चले गए 10 वर्ष बाद उनकी मृत्यु हो गई ढाका में मेरा जन्म हुआ वह संभालने के बाद मेरे दादा स्टार कंपनी में नौकरी करते नहीं देखा सुना है | 

कि जिस दिन मेरा जन्म हुआ उसी दिन दादा दे एक बार खरीदी बचपन में उन कई वर्षों की याद को भी मैं कभी नहीं भूल सका मां-बाप दादी से अधिक प्रिय मेरे दादा ही थे | 

 उन्होंने मेरी सबसे ज्यादा दोस्ती थी खाना पीना और उठना बैठना सब कुछ दादा के साथ यहां तक कि मैं दादा के पास होती थी बहुत पहले की बात है फिर भी मुझे अच्छी तरह याद है कि रोज शाम को मैं सदर घाट पर जाती थी यात्रियों से यदि हमारी लांच को दूर से देखते दादा कहते यह देखो तुम्हारी लांच आ रही है | 

दादा की बात सुनकर मैं खुशी से मारे नाचने लगती थोड़ी ही देर में लांच सदरघाट पर आती यात्रियों के उतर जाने के बाद दादा मुझे साथ लेकर जो भी लांच पर जाते गयासुद्दीन चाचा मुझे कंधे पर उठा देते मुझे अभी अच्छी तरह याद है चाचा मेरे लिए रोज कुछ ना कुछ जरूर लाते किसी दिन मिठाई किसी दिन फल तो किसी दिन आज उस समय मैं नहीं समझती कि चाचा मुझसे क्यों इतना प्यार करते हैं लेकिन बाद में समझ गई थी उन दिनों मैं कुछ बड़ी हो गई थी | 

 क्लास फाइव या सिक्स में पढ़ती थी किसी दिन किसी कारण से दादा के साथ सदरघाट नहीं जा पाती तो गया सुधीन चाचा हमारे घर आकर मुझसे बस 20 मिनट बात करते थे चाचा कहते थे दीदी तुम्हारी लाइन चलाकर पेट पालता हूं इसीलिए किनारे आकर तुम्हारा मोहरा देखे बिना घर नहीं लौट पाता | 

मैं हंसती थी लेकिन गयासुद्दीन चाचा नहीं आते थे वह गंभीर ही कर कर कहते थे वह गंभीर ही कर कहते थे नहीं दीदी यहां से की बात नहीं तुम्हें देखने पर मेरी जेब जली हुई छाती जुड़ा जाती थी प्लीज मैं कुछ पूछती ना थी लेकिन खूब समझती थी क्या सुनील चाचा के मन में बहुत दुख इसके अलावा मैं समझती थी की चाचा सचमुच मुझे प्यार करते हैं तुम कलकाते पैदा हुए हो कभी पूर्व बंगाल नहीं गए वर्षा काल में पूर्वी बंगाल का रूप ना देखते पर विश्वास करना कठिन है | 

 लेकिन गयासुद्दीन चाचा बारिश के दिनों में मुझे देखने आते थे कभी-कभी मैं कहती थी चाचा इस बारिश में कभी भी कोई आता है क्या चाचा को भास्कर कहते हैं वह अब आर्गन के पहले तो बारिश नहीं चलेगी फिर यह कई महीने तुम्हें नहीं देख पाऊंगा दादा ने मुझसे कहा कालरा हो जाने से गयासुद्दीन चाचा के किलो की बेटी मर गई थी | 

फिर दूसरे साल उसी के जन्मदिन पर तुम पैदा हुई थी उसी दिनों से मेरे स्कूल में कविता पाठ प्रतियोगिता हुई थी और पुरस्कार में मुझे यह पुस्तक मिली थी मेरे दादा ने यह खबर सुनकर का शूटिंग चाचा बहुत खुश हुए फिर फिर जब भी चाचा को थोड़ा वक्त मिलता हुआ मुझसे कहते एक बार वह कविता गजला सुनाओ | 

 जिसके लिए तुम को पता कि मिला गयासुद्दीन चाचा मेरे कविता पाठ की इतनी प्रशंसा करते कि मैं बहुत खुश हो जाती वहीं एक कविता  पचास सौ बार सुनते सुनते मेरे घर के लोग उठ जाते हैं मेरी मां और दीदी हंसने लगती लेकिन गयासुद्दीन चाचा की बात याद कर मैं किसी को उगने हंसने की भी परवाह नहीं करती थी | 

उसके बाद एक दिन मैं सदरघाट पर घंटों खड़ी रही लेकिन हमारी लांच नहीं आई धीरे-धीरे रात हो गई हल्का अंधेरा गहरा होता गया लेकिन ब्याज भी ज्यादा लंच लेकर नहीं लौटे फिर काफी रात को सर्वनाश की खबर आई फिर मुझे किसी को गजला दीदी कविता सुनाने का मौका नहीं मिला उसके बाद दादा महीने भर बिस्तर पर पड़े पड़े जिंदा रहे फिर वह भी एक भी चले गए साल भर भी तो थे या बीतने दादी भी दादा के पास चली गई | 

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रचनाएँ
प्रियाम्वर और प्रीतम
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बहुत सोच विचार किया क्या मैं उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह निश्चय कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के ड्रॉर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ फिर उन चिट्ठियों को पढ़ने लगा तो देखा कि उनको जरा ढंग से छपवा देने से बढ़िया उपन्यास बन जाएगी मेरी दीदी का नाम है कविता चौधरी न्यूयार्क में रहती है और यूनाइटेड नेशनल में नौकरी करती है यूनाइटेड नेशनल की स्पेशल कमेटी में के काम से दीदी को विभिन्न देशों में जाना पड़ता है यूनाइटेड नेशनल की कैफेटेरिया में इनसे मेरा पहली बार परिचय हुआ था इसके बाद दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते गए निकटता बढ़ गई आज दीदी मुझसे जितना प्यार करती हैं उतना शायद किसी को से नहीं करती है मुझ पर उनका जितना विश्वास है उतना किसी पर नहीं मैं सिर्फ दीदी से प्यार नहीं करता बल्कि उनका आदर भी करता हूं सचमुच मेरी दीदी अनमोल है |
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प्रियाम्वर और प्रीतम भाग (1)

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'बहुत सोच विचार किया कि मैं एक उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह कोई निश्चय ना कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के दौर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के म

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भाग (2)

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नहीं दीदी नहीं हंसने की बात नहीं है मुझको कहकर सचमुच बहुत परेशान है कैसी परेशानी कहीं मैं उसे भूल न जाऊं कहीं वह मुझे खो ना दे तुम्हारी बातें सुनकर मुझे बड़ा मजा आया पूछा क्या नाम है उसका दीदी अभी सब

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भाग (3)

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तुम्हारी चिट्ठी मिली तुम जो इतनी जल्दी मेरी चिट्ठी का जवाब दोगे मैं सोच भी नहीं सकती थी लगता है कि तुम मेरी चिट्ठी पढ़कर बहुत ज्यादा चिंतित हो गए थे |  जिससे चिट्ठी मिलने की दूसरे ही दिन तुमने उसका ज

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अधिक नहीं सिर्फ 3 दिन हम पूरी में थे सच बता रही हूं भाई इसके पहले इतना आनंद मुझे कभी नहीं मिला है मजा जाओ मन में बहुत बड़े थे फिर भी वह सचमुच मेरे घनिष्ठ मित्र हो गए कोलकाता लौटने के बाद मुझे खूब हंसा

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