माया ने सुदीप को डांटते हुए कहा देख लेकिन तू दिन दिन बड़ा सनकी होता जा रहा है इसने प्रेम आदि ना हो तो संसार कैसे चल रहा है सुदीप ने हंसकर कहा क्यों नहीं चलेगा परस्पर के स्वार्थी से हम इस तरह बन गए हैं कि चलती गाड़ी की तरह समाज धड़ाधड़ चलता चला जा रहा है |
माया के पति डॉ सरकार ने तब हंसते हुए अपनी पत्नी से कहा अब तुम लोग चुप भी हो जाओ मैं अपनी माधवी को लेकर दो 1 घंटे के लिए पार्क में घूम आओ इस पर मैंने हंसते हुए कहा आप जैसे पुरुष के साथ पाक क्या मैं तो आइलैंड जाने को भी तैयार नहीं हूं माया ने जरा गंभीर होकर मेरी तरह तरफ देखा और कहा ठीक कहा शायद के पहले अगर पता होता तो मैं स्वयं की शादी का विरोध करती है |
डॉक्टर सरकार स्वर्गवासी और अपने ही में ही केंद्रित रहने वाले व्यक्ति हैं ऑफिस से घर लौटने के बाद कोई किताब लेकर पूरी शाम बिता देते हैं लेकिन वह बड़े रसीद भी हैं बोले देखिए मिस चौधरी आर्टिफिशियल ज्वेलरी इस्तेमाल करते करते अब लोगों को असली सोने के गहने अच्छे नहीं लगते हम कुछ कहते लेकिन उससे पहले ही सुदीप बोला आपने सही कहा है कमल दा माया कृष्णा नगर की लड़की है सुदीप का भी वह घर वही है
सुदीप की छोटी दीदी और माया एक साथ स्कूल में पढ़ती थी उसी सूत्र के इस घर में सुदीप का आना जाना शुरू हुआ था प्रथम दिन से ही सुदीप मुझे बड़ा अच्छा लगता है आसपास जैसे लोगों को देखते ही सुदीप उनके थोड़ा अलग है एकाएक उसकी बातचीत सुनने से लगेगा कि वह मानो इस संसार से लड़ने के लिए ही संसार में पैदा हुआ है
संसार के सभी लोगों के विरुद्ध उसकी शिकायत है मां-बाप और भाई बहन किसी भी सेवा प्यार नहीं करता लेकिन उनके प्रति अपनी कृतज्ञता निभाने में कोई कमी नहीं देता हर महीने फर्स्ट नेशनल सिटी बैंक ऑफ मार्फत अपने घर में रुपए भेजता इस संसार के विरुद्ध दीप की शिकायत के कारण हैं रेलवे के स्टेशन मास्टर के घरवा पैदा हुआ है |
जैसे और किशोर में उसे गरीबी से परिचित होने का कोई अवसर नहीं मिला लेकिन यह और सिंह द्वार में प्रवेश करते ना करते उसके पिता का रिटायरमेंट हो गया देखते देखते सुखी घड़ियां बीत गई और दुख का समय शुरू हुआ या समय था दरिद्रता का चारों तरफ से यह नृत्य मानो हाहाकार कर उठी सुदीप समझ गया कि पिता की काली कमाई से ही उसके बचपन के दिन इतने सुखमय थे फिर तो उसके जीवन का स्वाद ही मानो बदल गया इस संसार के पर उसका मन घृणा से भर गया |