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भाग (4)

13 सितम्बर 2022

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माया ने सुदीप को डांटते हुए कहा देख लेकिन तू दिन दिन बड़ा सनकी होता जा रहा है इसने प्रेम आदि ना हो तो संसार कैसे चल रहा है सुदीप ने हंसकर कहा क्यों नहीं चलेगा परस्पर के स्वार्थी से हम इस तरह बन गए हैं कि चलती गाड़ी की तरह समाज धड़ाधड़ चलता चला जा रहा है  | 

माया के पति डॉ सरकार ने तब हंसते हुए अपनी पत्नी से कहा अब तुम लोग चुप भी हो जाओ मैं अपनी माधवी को लेकर दो 1 घंटे के लिए पार्क में घूम आओ इस पर मैंने हंसते हुए कहा आप जैसे पुरुष के साथ पाक क्या मैं तो आइलैंड जाने को भी तैयार नहीं हूं माया ने जरा गंभीर होकर मेरी तरह तरफ देखा और कहा ठीक कहा शायद के पहले अगर पता होता तो मैं स्वयं की शादी का विरोध करती है | 

डॉक्टर सरकार स्वर्गवासी और अपने ही में ही केंद्रित रहने वाले व्यक्ति हैं ऑफिस से घर लौटने के बाद कोई किताब लेकर पूरी शाम बिता देते हैं लेकिन वह बड़े रसीद भी हैं बोले देखिए मिस चौधरी आर्टिफिशियल ज्वेलरी इस्तेमाल करते करते अब लोगों को असली सोने के गहने अच्छे नहीं लगते हम कुछ कहते लेकिन उससे पहले ही सुदीप बोला आपने सही कहा है कमल दा माया कृष्णा नगर की लड़की है सुदीप का भी वह घर वही है 

सुदीप की छोटी दीदी और माया एक साथ स्कूल में पढ़ती थी उसी सूत्र के इस घर में सुदीप का आना जाना शुरू हुआ था प्रथम दिन से ही सुदीप मुझे बड़ा अच्छा लगता है आसपास जैसे लोगों को देखते ही सुदीप उनके थोड़ा अलग है एकाएक उसकी बातचीत सुनने से लगेगा कि वह मानो इस संसार से लड़ने के लिए ही संसार में पैदा हुआ है

 संसार के सभी लोगों के विरुद्ध उसकी शिकायत है मां-बाप और भाई बहन किसी भी सेवा प्यार नहीं करता लेकिन उनके प्रति अपनी कृतज्ञता निभाने में कोई कमी नहीं देता हर महीने फर्स्ट नेशनल सिटी बैंक ऑफ मार्फत अपने घर में रुपए भेजता इस संसार के विरुद्ध दीप की शिकायत के कारण हैं रेलवे के स्टेशन मास्टर के घरवा पैदा हुआ है | 

 जैसे और किशोर में उसे गरीबी से परिचित होने का कोई अवसर नहीं मिला लेकिन यह और सिंह द्वार में प्रवेश करते ना करते उसके पिता का रिटायरमेंट हो गया देखते देखते सुखी घड़ियां बीत गई और दुख का समय शुरू हुआ या समय था दरिद्रता का चारों तरफ से यह नृत्य मानो हाहाकार कर उठी सुदीप समझ गया कि पिता की काली कमाई से ही उसके बचपन के दिन इतने सुखमय थे फिर तो उसके जीवन का स्वाद ही मानो बदल गया इस संसार के पर उसका मन घृणा से भर गया | 

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रचनाएँ
प्रियाम्वर और प्रीतम
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बहुत सोच विचार किया क्या मैं उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह निश्चय कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के ड्रॉर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ फिर उन चिट्ठियों को पढ़ने लगा तो देखा कि उनको जरा ढंग से छपवा देने से बढ़िया उपन्यास बन जाएगी मेरी दीदी का नाम है कविता चौधरी न्यूयार्क में रहती है और यूनाइटेड नेशनल में नौकरी करती है यूनाइटेड नेशनल की स्पेशल कमेटी में के काम से दीदी को विभिन्न देशों में जाना पड़ता है यूनाइटेड नेशनल की कैफेटेरिया में इनसे मेरा पहली बार परिचय हुआ था इसके बाद दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते गए निकटता बढ़ गई आज दीदी मुझसे जितना प्यार करती हैं उतना शायद किसी को से नहीं करती है मुझ पर उनका जितना विश्वास है उतना किसी पर नहीं मैं सिर्फ दीदी से प्यार नहीं करता बल्कि उनका आदर भी करता हूं सचमुच मेरी दीदी अनमोल है |
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प्रियाम्वर और प्रीतम भाग (1)

13 सितम्बर 2022
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'बहुत सोच विचार किया कि मैं एक उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह कोई निश्चय ना कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के दौर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के म

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भाग (2)

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नहीं दीदी नहीं हंसने की बात नहीं है मुझको कहकर सचमुच बहुत परेशान है कैसी परेशानी कहीं मैं उसे भूल न जाऊं कहीं वह मुझे खो ना दे तुम्हारी बातें सुनकर मुझे बड़ा मजा आया पूछा क्या नाम है उसका दीदी अभी सब

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भाग (3)

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तुम्हारी चिट्ठी मिली तुम जो इतनी जल्दी मेरी चिट्ठी का जवाब दोगे मैं सोच भी नहीं सकती थी लगता है कि तुम मेरी चिट्ठी पढ़कर बहुत ज्यादा चिंतित हो गए थे |  जिससे चिट्ठी मिलने की दूसरे ही दिन तुमने उसका ज

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भाग (4)

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माया ने सुदीप को डांटते हुए कहा देख लेकिन तू दिन दिन बड़ा सनकी होता जा रहा है इसने प्रेम आदि ना हो तो संसार कैसे चल रहा है सुदीप ने हंसकर कहा क्यों नहीं चलेगा परस्पर के स्वार्थी से हम इस तरह बन गए हैं

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भाग (5)

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मेरे अपार्टमेंट में एक दो बार आने के बाद एक दिन सुधीर नेमा मां बातों ही बातों में कहा देखे कविता दीदी मैंने अपने हृदय में एक परम सत्य का अनुभव किया है यह परम सत्य क्या है इस संसार में रुपया खर्च करने

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भाग (6)

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उसके उन सपनों को तोड़ने का अधिकार मुझे नहीं है मुझ में इतना साहस भी नहीं है मेरे मन में अनेक घटनाओं दुख हुई और व्यवस्थाओं का इतिहास छुपा हुआ है अनेक विफलताओं का दर्द भी वहां छुपा हुआ है फिर भी गए गिरे

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भाग (7)

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उस समय मेरे दादा मात्र 13 वर्ष के थे कई वर्षों वहां रहने के बाद दादा स्ट्रीमर कंपनी में बुकिंग क्लर्क की नौकरी लेकर पहले चांदपुर और बाद में ग्वाल नंद आए हुगली जिले में होते हुए भी वह ढाका के निवासी हो

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भाग (8)

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मेरी छोटी सी दुनिया अचानक अंधेरे में डूब गई मेरे दादा स्वयं काफी पढ़ लिख नहीं सके इसलिए उन्होंने मेरे पिताजी को एम् ए . बी ए . तक पढ़ाया पिताजी ढाका कोर्ट में वकालत करने लगे लेकिन उसकी वकालत कोई खास न

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भाग (9)

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उस दिन थोड़ी देर गपशप करने के बाद हेमंत बाबू चले गए लेकिन उसके बाद  वह बीच-बीच में हमारे यहां आने लगे कभी-कभी वह मुझे लेकर इधर उधर घूमने भी चले जाते थे सच मुझे मन चाचा मुझे बहुत अच्छे लगते थे |  उनके

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भाग (10)

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हेमंत चाचा ने मोड़ पर एक बार मुझे देख लिया और फिर कहा लगता नहीं कि शादी के लिए मेरा दूर रह पाओगे मैंने जरा अच्छा सहमत चाचा किधर देखा कर पूछा क्यों नहीं रह पाऊंगी हेमंत चाचा ने हंसते हुए मुझे और एक बार

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भाग (11)

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हेमंत चाचा ने हंसते हुए कहा आज तुम भी तो थोड़ी सी व्हिस्की पी होगी मैंने उसे दम चेक कर कहा नहीं नहीं चाचा मैं विस्की  नहीं पी सकती हेमंत चाचा ने फिर दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़कर गया बड़ी पगली ल

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भाग (12)

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अधिक नहीं सिर्फ 3 दिन हम पूरी में थे सच बता रही हूं भाई इसके पहले इतना आनंद मुझे कभी नहीं मिला है मजा जाओ मन में बहुत बड़े थे फिर भी वह सचमुच मेरे घनिष्ठ मित्र हो गए कोलकाता लौटने के बाद मुझे खूब हंसा

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