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प्रियाम्वर और प्रीतम भाग (1)

13 सितम्बर 2022

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'बहुत सोच विचार किया कि मैं एक उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह कोई निश्चय ना कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के दौर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी इसलिए थोड़ा असर हुआ फिर उन चिट्ठियों को पढ़ने लगा तो देखा कि उनको जरा ढंग से सजाकर छपवा देने से बढ़िया उपन्यास बन जाएगी | 

मेरी इस दीदी का नाम है कविता चौधरी न्यूयॉर्क में रहती है यूनाइटेड नेशनल में नौकरी करती है यूनाइटेड नेशनल की स्पेशल कमेटी के काम से दीदी को विभिन्न देशों में जाना पड़ता है यूनाइटेड नेशनल की कैफेटेरिया में इनसे मेरा पहले बार परिचय हुआ था उसके बाद दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते गए निकटता बहुत बढ़ गई आज दीदी मुझसे जितना प्यार करती है उतना शायद किसी से नहीं करती मुझ पर उनका जितना विश्वास है उतना किसी पर नहीं मैं सिर्फ दीदी से प्यार नहीं करता बल्कि उनका आदर भी करता हूं सच में मेरी दीदी अतुलनीय है ।  

दीदी चाहे जहां रहे मुझको जरूर चिट्ठी लिखेंगे कभी-कभी वह चिट्ठी छोटी भी होती है उस कार्ड के पीछे ही सही लेकिन दो चार लाइनें जरूर लिखेंगे लिखने की सिंगापुर एयरपोर्ट में एक घंटे भर रुक कर कोलंबो होते हुए काहिरा जा रही हूं कहा पहुंचकर चिट्ठी लिखूंगी दीदी कहती है तुमको जब चिट्ठी लिखने लगती हूं तब मुझे ऐसा लगता है कि तुम मेरे सामने बैठकर अथवा मेरे पलंग पर लेट कर मेरी बात सुन रहे हो इस कारण तुम्हें चिट्ठी लिखे बिना नहीं रह सकती । 

कभी-कभी हम दोनों भाई बहन बड़ा तमाशा करते हैं दीदी अपनी व्यस्तता के कारण मुझे चिट्ठी नहीं लिख पाती तो कई दिनों की डायरी के पन्ने फाड़कर भेज देती है मैं भी तुरंत अपनी डायरी के कुछ पन्ने फाड़कर दीदी को भेज देता हूं |  

कुछ भी हो दीदी का जीवन बड़ा विचित्र है इस संसार में एक सामान्य मनुष्य जिन वस्तुओं की कामना करता है वह सभी कुछ दीदी के पास है दीदी के रूप में या वन और विद्या बुद्धि से कोई भी मनुष्य मुक्त होगा धन और प्रभाव की भी कमी नहीं है इष्ट मित्रों को भी कम नहीं है इतना कुछ पाकर दीदी को बड़ा कष्ट है बहुत दुख है इस संसार के लोगों के विरुद्ध दीदी के मन में बहुत शिकायत है । 

शिकवा-शिकायत है । लेकिन दीदी को एकाएक देखते अथवा उनसे थोडी देर बात करमे पर यह सव पता नहीं चलता । पतता नहीं चलता कि मेरी दीदी एक शान्त ज्वालामुखी है । । 

अव इसमे गधिक कुछ नहीं लिखना चाहता । दीदी के पत्रो गौर डायरी  फाडे गये पश्नों को पदुने से सव कुछ पता चल जायेगा । दीदी के नाम-पता भौर अन्य पत्र-मितरों के नाम~पते धी वदल विरह) एेसान करता तो मेरे देश के धनेक प्रतिष्ठित भौर प्रभावशाली व्यक्ति सचमचं वड़ी `परेणानी मे पड़ जाति 1" 

सोचा था कि यह सब बातें कभी किसी से नहीं कहूंगी किसी हालत में नहीं कहूंगी कहना संभव ही नहीं है यह सब बातें कहने लायक भी नहीं है कहीं भी नहीं की जा सकती शायद कहता उचित भी नहीं कुछ भी हो अभी इस धरती पर मर्दों का ही राज है हम और तुम तो बहुत कुछ मिला है हमने बहुत कुछ दिया है लेकिन राजा के आसन पर अभी तुम मर्द लोग बैठे हुए हो भारत चीन जापान यूरोप अमेरिका हर जगह यही बात है |   

फिर मैंने कभी यह नहीं सोचा कि किसी पुरुष से प्यार करूंगी या उस पर विश्वास ही करूंगी लेकिन मेरे जीवन में आकर तुमने सब कुछ गड़बड़ आ गया ना जाने कितने पुरुषों से मेरी जान पहचान है कईयों से धनिष्ठा भी है लेकिन अधिकांश पुरुष मेरे पास आते ही ना जाने क्यों कीचक पशुओं की तरह मेरी तरफ देखते देखने लगते हैं मैं कोई अच्छी नहीं बच्ची नहीं हूं मैं उनकी लोलुप दृश्य को भाप समझ सकती हूं इसके अलावा वह सब के सब ना जाने कैसी दुविधा और संकोच के साथ एकदम बच्चों की तरह घुटनों के बल चल कर मेरे पास आते हैं लेकिन तुम ऐसी नाटक इयत्ता के साथ अप्रत्याशित ढंग से आंधी की तरह मेरी सामने आप पहुंचे कि मैं किसी तरह तुम्हें दूर ना हटा सकें उस दिन की बात सोच कर मुझे आज भी हंसी आती है |   

 दीदी मैं इस महाद्वीप में एक नवागत बंगाली पत्रकार हूं मैंने आश्चर्य से तुम्हारी तरफ देखा तुम तुमने पूछा आप ही तो कविता चौधरी है हां फिर तुमने यह सब कुछ एक प्याला काफी मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा बस फिर तो मैंने गलती नहीं की काफी ले लेकिन दीदी कह कर जब पुकारा तब फिर यार लेकिन क्यों इसके अलावा आप बहुत खूबसूरत हो सकती है लेकिन मेरे मन में कोई बुरा ख्याल नहीं है आपका छोटा भाई हूं |   

सो काडंड माव यू, बट-- फिर वही बट ? लीजिए, कांफी पीजिए ।

आप-- छोटे भाई को क्या कोई माप कहता है ? वहत अधिक आदर देना चाहती

हतो तुम कहिए । तु भी करगौ तो को एतराज नहीं है।

तुम्हारी बात सुन कर्भ हसे विना न रह सकी हसते हृए  हुए   कोफी का प्याला हाथ  मे लिया ।

नहीं दीदी, नहीं, यह् कोई हसी की वात नहीं है । 

क्यो ?

अभी वताऊं ¡

अगर आपत्ति न हो तो--

जीर्हा, दोश कहु कर जव पुकारा है तव कृ भी कहने म आपत्ति नही हो

सकती 1

तो वतयं ।

फिर वताय ?

जरा मूस्करायी । कुछभी हो, मेरी उप्र कोई अधिक नहीं है । फिर जेव, मे करई. सौ डालर के दैवेलसं चेक पडेहुए ह । कहा नहीं जा सकता किसके  ` दिमाग मे कैमी दुर्बुद्धि  आ  जाय !

 काफी पीते हृए पूछा, लेकिन भेरी भूमिका कैसी रहेगी, यह तो नहीं समक्त  सकी।

हं भगवान ! छोटा भाई अगर भमघःपतन के रास्ते चला जाय तो दीदी की  क्या  भूमिका होगी, यह् भी बताना पड़ेगा ?

काफी के प्यालि की अन्तिम  चुस्की  लेते हुए  तुमने कहा था, ओर भीः  एक , -विशेष कारण से मूह्ञे आपकी जरूरत है ।

वह कैसा विशेष कारण है ? 

तुमने जेव से पसंजेब  से  पर्स निकाल कर उम से एक सूवसूरत लडकी का फोटो निकाला ओर कहा, इस कालो-कलूटी लड़की से अँख कोई खास प्यार नहीं करता, -  लेकिन वहं लडकी सचमुच अपते प्राणों से ज्यादा मुझसे  प्यार करती ह ! उसका ख्याल है कि अमरीका की सभी खूवसूरत लङ्कां मुद्से प्यार करने लगेगी । इतना सीरियस हौ कर तुमने ये वाते कहीं कि वहत कोशिश करने पर भी मद हेसी रोक न सकी।

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प्रियाम्वर और प्रीतम
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बहुत सोच विचार किया क्या मैं उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह निश्चय कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के ड्रॉर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ फिर उन चिट्ठियों को पढ़ने लगा तो देखा कि उनको जरा ढंग से छपवा देने से बढ़िया उपन्यास बन जाएगी मेरी दीदी का नाम है कविता चौधरी न्यूयार्क में रहती है और यूनाइटेड नेशनल में नौकरी करती है यूनाइटेड नेशनल की स्पेशल कमेटी में के काम से दीदी को विभिन्न देशों में जाना पड़ता है यूनाइटेड नेशनल की कैफेटेरिया में इनसे मेरा पहली बार परिचय हुआ था इसके बाद दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते गए निकटता बढ़ गई आज दीदी मुझसे जितना प्यार करती हैं उतना शायद किसी को से नहीं करती है मुझ पर उनका जितना विश्वास है उतना किसी पर नहीं मैं सिर्फ दीदी से प्यार नहीं करता बल्कि उनका आदर भी करता हूं सचमुच मेरी दीदी अनमोल है |
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