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भाग (6)

13 सितम्बर 2022

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उसके उन सपनों को तोड़ने का अधिकार मुझे नहीं है मुझ में इतना साहस भी नहीं है मेरे मन में अनेक घटनाओं दुख हुई और व्यवस्थाओं का इतिहास छुपा हुआ है अनेक विफलताओं का दर्द भी वहां छुपा हुआ है फिर भी गए गिरे से इस संसार मुझे अच्छा लग रहा है समझ रही हूं | 

 संसार के सभी लोगों का मन अभी तक विषैला नहीं हुआ है सुंदर और प्रेम की अमृतधारा चरण होने पर भी पूरी तरह दुख नहीं हुई सो सके भाई रिपोर्टर जी संसार से विदा होने इसके लिए कभी भी मैं आगम हो की थी आज तुम्हारे कारण वही मुझे फिर से अच्छा लगने लगा है मैं जिंदा रहना चाहती हूं | 

 प्यार पाना और देना चाहती हूं इसलिए पुराने लोगों का कह रहे थे आज तुम्हें सुना कर मैं पश्चाताप से मुक्त होना चाहती हूं कभी-कभी इस संसार की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले समस्त हलाहल को अपने कंठ में धारण कर महादेव नीलकंठ हुए और आज क्या तो अपनी दीदी के लिए इतना समझ नहीं हूं जो तुम्हारे सुख और तुम्हारी सफलता के लिए जिन लोगों की आवश्यकता होती जीवन का सब कुछ दाव पर लगाया है | 

उसका एक फोटो मुझे भेजो तुम दोनों को मेरा हार्दिक प्यार अपनी बात को कहने से पहले अपने परिवार के बारे में मुझको कुछ बता देना जरूरी है हमारा आदि निवास घूमनी है | 

उस समय उस क्षेत्र के बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति भी थे उन दिनों आज की तरह स्कूल कॉलेज नहीं थे फिर भी वह बड़े शिक्षित है वह कहां तक अंग्रेजी जानते थे या तो नहीं बता पाऊंगी लेकिन इससे कोई शक नहीं है कि वह फ्रांसीसी भाषा के प्रकांड विद्वान थे उन्होंने फ्रांसीसी भाषा में कोई पुस्तकों की रचना की भी थी | 

 उनमें गंगा नदी की पौराणिक कथा पर लिखी गई पुस्तक बारिश से प्रकाशित हुई थी और विद्वानों ने उसे उसकी बड़ी प्रशंसा की थी बचपन में मैंने अपने दादा से उनके बारे में अनेक कहानियां सुनी थी दादा जी कहते थे एक विश्वास करो दीदी मेरी दादाजी के समान जो पुरुष और 2 पंडित बहुत कम थे दादा जी जब पेरिस गए थे तब एक प्रसिद्ध चित्रकार ने उनका फुल साइज आयल पेंटिंग बना दिया था उस आयल पेंटिंग के सामने खड़े होकर हम मुक्त हो गए हो जाते थे | 

 मेरे दादाजी जब अपने दादाजी के बारे में कहना शुरु करते तब मानो रुकना नहीं चाहते बाय के बाद एक कहानी सुनाते जाते फिर अचानक वह चुप हो जाते साथ ही साथ उनका खिला हुआ चेहरा एकदम मुरझा जाता उसके बाद लंबी सांस छोड़ कर कहते मेरे पिताजी ने भाई साहब महापुरुष की संतान होकर भी ना जाने क्यों वैसा छिछोरापन किया था | 

मैं उन दिनों स्कूल में भर्ती हुआ था उम्र अधिक नहीं थी इसीलिए मैं दादाजी के दुखी रहने का सही कारण समझ नहीं पाता था लेकिन इतना तो समझ जाता था कि मेरे दादाजी के बाप ने कुछ ऐसा काम किया था जिससे उनकी लंबी सांस भरनी पड़ती थी धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ सब कुछ समझने लगा मात्र 45 वर्ष की उम्र में ईश्वरी प्रसाद का स्वर्गवास हुआ था | 

उनकी मौत अचानक आई थी ईश्वरी प्रसाद के मध्य पुत्र गंगा प्रसाद चौधरी उस समय सिर्फ 21 वर्ष के थे साल भर पहले गंगा प्रसाद का विवाह हुआ था पिता की मृत्यु बाद जमीन जायदाद और उसे पैसे का हिसाब समझने में ही उनके साल 2 साल लग गए तब तक मेरे दादाजी पैदा हुए थे | 

प्रचुर धन संपत्ति के एकमात्र उत्तर आजाद होने के बाद गंगा प्रसाद की परिवार परिवर्तन शुरू हुआ पहले वा परिवर्तन चोरी छुपे आया और बाद में अंत तक एक दिन भाई प्रांशु चौधरी को साथ लिए घर आए अपनी विवाहिता पत्नी के सामने उसे सुनकर बड़े गर्व से कहा आई विल बे न्यू वाइफ उस घटना के बाद उसी दिन उसी समय गंगा प्रसाद की पत्नी बेटे का हाथ पकड़कर उस घर महल से निकल आए उस समय मेरे दादा मात्रा 12 वर्ष के थे |  

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रचनाएँ
प्रियाम्वर और प्रीतम
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बहुत सोच विचार किया क्या मैं उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह निश्चय कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के ड्रॉर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ फिर उन चिट्ठियों को पढ़ने लगा तो देखा कि उनको जरा ढंग से छपवा देने से बढ़िया उपन्यास बन जाएगी मेरी दीदी का नाम है कविता चौधरी न्यूयार्क में रहती है और यूनाइटेड नेशनल में नौकरी करती है यूनाइटेड नेशनल की स्पेशल कमेटी में के काम से दीदी को विभिन्न देशों में जाना पड़ता है यूनाइटेड नेशनल की कैफेटेरिया में इनसे मेरा पहली बार परिचय हुआ था इसके बाद दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते गए निकटता बढ़ गई आज दीदी मुझसे जितना प्यार करती हैं उतना शायद किसी को से नहीं करती है मुझ पर उनका जितना विश्वास है उतना किसी पर नहीं मैं सिर्फ दीदी से प्यार नहीं करता बल्कि उनका आदर भी करता हूं सचमुच मेरी दीदी अनमोल है |
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प्रियाम्वर और प्रीतम भाग (1)

13 सितम्बर 2022
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'बहुत सोच विचार किया कि मैं एक उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह कोई निश्चय ना कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के दौर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के म

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भाग (2)

13 सितम्बर 2022
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नहीं दीदी नहीं हंसने की बात नहीं है मुझको कहकर सचमुच बहुत परेशान है कैसी परेशानी कहीं मैं उसे भूल न जाऊं कहीं वह मुझे खो ना दे तुम्हारी बातें सुनकर मुझे बड़ा मजा आया पूछा क्या नाम है उसका दीदी अभी सब

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भाग (3)

13 सितम्बर 2022
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तुम्हारी चिट्ठी मिली तुम जो इतनी जल्दी मेरी चिट्ठी का जवाब दोगे मैं सोच भी नहीं सकती थी लगता है कि तुम मेरी चिट्ठी पढ़कर बहुत ज्यादा चिंतित हो गए थे |  जिससे चिट्ठी मिलने की दूसरे ही दिन तुमने उसका ज

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भाग (4)

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माया ने सुदीप को डांटते हुए कहा देख लेकिन तू दिन दिन बड़ा सनकी होता जा रहा है इसने प्रेम आदि ना हो तो संसार कैसे चल रहा है सुदीप ने हंसकर कहा क्यों नहीं चलेगा परस्पर के स्वार्थी से हम इस तरह बन गए हैं

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भाग (5)

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मेरे अपार्टमेंट में एक दो बार आने के बाद एक दिन सुधीर नेमा मां बातों ही बातों में कहा देखे कविता दीदी मैंने अपने हृदय में एक परम सत्य का अनुभव किया है यह परम सत्य क्या है इस संसार में रुपया खर्च करने

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उस समय मेरे दादा मात्र 13 वर्ष के थे कई वर्षों वहां रहने के बाद दादा स्ट्रीमर कंपनी में बुकिंग क्लर्क की नौकरी लेकर पहले चांदपुर और बाद में ग्वाल नंद आए हुगली जिले में होते हुए भी वह ढाका के निवासी हो

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मेरी छोटी सी दुनिया अचानक अंधेरे में डूब गई मेरे दादा स्वयं काफी पढ़ लिख नहीं सके इसलिए उन्होंने मेरे पिताजी को एम् ए . बी ए . तक पढ़ाया पिताजी ढाका कोर्ट में वकालत करने लगे लेकिन उसकी वकालत कोई खास न

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उस दिन थोड़ी देर गपशप करने के बाद हेमंत बाबू चले गए लेकिन उसके बाद  वह बीच-बीच में हमारे यहां आने लगे कभी-कभी वह मुझे लेकर इधर उधर घूमने भी चले जाते थे सच मुझे मन चाचा मुझे बहुत अच्छे लगते थे |  उनके

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हेमंत चाचा ने मोड़ पर एक बार मुझे देख लिया और फिर कहा लगता नहीं कि शादी के लिए मेरा दूर रह पाओगे मैंने जरा अच्छा सहमत चाचा किधर देखा कर पूछा क्यों नहीं रह पाऊंगी हेमंत चाचा ने हंसते हुए मुझे और एक बार

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हेमंत चाचा ने हंसते हुए कहा आज तुम भी तो थोड़ी सी व्हिस्की पी होगी मैंने उसे दम चेक कर कहा नहीं नहीं चाचा मैं विस्की  नहीं पी सकती हेमंत चाचा ने फिर दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़कर गया बड़ी पगली ल

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अधिक नहीं सिर्फ 3 दिन हम पूरी में थे सच बता रही हूं भाई इसके पहले इतना आनंद मुझे कभी नहीं मिला है मजा जाओ मन में बहुत बड़े थे फिर भी वह सचमुच मेरे घनिष्ठ मित्र हो गए कोलकाता लौटने के बाद मुझे खूब हंसा

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