उसके उन सपनों को तोड़ने का अधिकार मुझे नहीं है मुझ में इतना साहस भी नहीं है मेरे मन में अनेक घटनाओं दुख हुई और व्यवस्थाओं का इतिहास छुपा हुआ है अनेक विफलताओं का दर्द भी वहां छुपा हुआ है फिर भी गए गिरे से इस संसार मुझे अच्छा लग रहा है समझ रही हूं |
संसार के सभी लोगों का मन अभी तक विषैला नहीं हुआ है सुंदर और प्रेम की अमृतधारा चरण होने पर भी पूरी तरह दुख नहीं हुई सो सके भाई रिपोर्टर जी संसार से विदा होने इसके लिए कभी भी मैं आगम हो की थी आज तुम्हारे कारण वही मुझे फिर से अच्छा लगने लगा है मैं जिंदा रहना चाहती हूं |
प्यार पाना और देना चाहती हूं इसलिए पुराने लोगों का कह रहे थे आज तुम्हें सुना कर मैं पश्चाताप से मुक्त होना चाहती हूं कभी-कभी इस संसार की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले समस्त हलाहल को अपने कंठ में धारण कर महादेव नीलकंठ हुए और आज क्या तो अपनी दीदी के लिए इतना समझ नहीं हूं जो तुम्हारे सुख और तुम्हारी सफलता के लिए जिन लोगों की आवश्यकता होती जीवन का सब कुछ दाव पर लगाया है |
उसका एक फोटो मुझे भेजो तुम दोनों को मेरा हार्दिक प्यार अपनी बात को कहने से पहले अपने परिवार के बारे में मुझको कुछ बता देना जरूरी है हमारा आदि निवास घूमनी है |
उस समय उस क्षेत्र के बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति भी थे उन दिनों आज की तरह स्कूल कॉलेज नहीं थे फिर भी वह बड़े शिक्षित है वह कहां तक अंग्रेजी जानते थे या तो नहीं बता पाऊंगी लेकिन इससे कोई शक नहीं है कि वह फ्रांसीसी भाषा के प्रकांड विद्वान थे उन्होंने फ्रांसीसी भाषा में कोई पुस्तकों की रचना की भी थी |
उनमें गंगा नदी की पौराणिक कथा पर लिखी गई पुस्तक बारिश से प्रकाशित हुई थी और विद्वानों ने उसे उसकी बड़ी प्रशंसा की थी बचपन में मैंने अपने दादा से उनके बारे में अनेक कहानियां सुनी थी दादा जी कहते थे एक विश्वास करो दीदी मेरी दादाजी के समान जो पुरुष और 2 पंडित बहुत कम थे दादा जी जब पेरिस गए थे तब एक प्रसिद्ध चित्रकार ने उनका फुल साइज आयल पेंटिंग बना दिया था उस आयल पेंटिंग के सामने खड़े होकर हम मुक्त हो गए हो जाते थे |
मेरे दादाजी जब अपने दादाजी के बारे में कहना शुरु करते तब मानो रुकना नहीं चाहते बाय के बाद एक कहानी सुनाते जाते फिर अचानक वह चुप हो जाते साथ ही साथ उनका खिला हुआ चेहरा एकदम मुरझा जाता उसके बाद लंबी सांस छोड़ कर कहते मेरे पिताजी ने भाई साहब महापुरुष की संतान होकर भी ना जाने क्यों वैसा छिछोरापन किया था |
मैं उन दिनों स्कूल में भर्ती हुआ था उम्र अधिक नहीं थी इसीलिए मैं दादाजी के दुखी रहने का सही कारण समझ नहीं पाता था लेकिन इतना तो समझ जाता था कि मेरे दादाजी के बाप ने कुछ ऐसा काम किया था जिससे उनकी लंबी सांस भरनी पड़ती थी धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ सब कुछ समझने लगा मात्र 45 वर्ष की उम्र में ईश्वरी प्रसाद का स्वर्गवास हुआ था |
उनकी मौत अचानक आई थी ईश्वरी प्रसाद के मध्य पुत्र गंगा प्रसाद चौधरी उस समय सिर्फ 21 वर्ष के थे साल भर पहले गंगा प्रसाद का विवाह हुआ था पिता की मृत्यु बाद जमीन जायदाद और उसे पैसे का हिसाब समझने में ही उनके साल 2 साल लग गए तब तक मेरे दादाजी पैदा हुए थे |
प्रचुर धन संपत्ति के एकमात्र उत्तर आजाद होने के बाद गंगा प्रसाद की परिवार परिवर्तन शुरू हुआ पहले वा परिवर्तन चोरी छुपे आया और बाद में अंत तक एक दिन भाई प्रांशु चौधरी को साथ लिए घर आए अपनी विवाहिता पत्नी के सामने उसे सुनकर बड़े गर्व से कहा आई विल बे न्यू वाइफ उस घटना के बाद उसी दिन उसी समय गंगा प्रसाद की पत्नी बेटे का हाथ पकड़कर उस घर महल से निकल आए उस समय मेरे दादा मात्रा 12 वर्ष के थे |