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भाग (12)

13 सितम्बर 2022

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अधिक नहीं सिर्फ 3 दिन हम पूरी में थे सच बता रही हूं भाई इसके पहले इतना आनंद मुझे कभी नहीं मिला है मजा जाओ मन में बहुत बड़े थे फिर भी वह सचमुच मेरे घनिष्ठ मित्र हो गए कोलकाता लौटने के बाद मुझे खूब हंसाते चाहे खाती देखकर मैंने पूछा को खुशियां मनाती रही है ना |

मां मैंने मां से निपट कर कहा हां मां मैसेज में बड़ी खुशियां हो रही हूं खूब घूमती रही हो हम तेरे को खाती रही हो वर्दी रही हो छोटी रहे खूब मौज करती रही कुछ रख नहीं छोड़ा हेमंत चाचा ने पिता जी से कहा तुझसे ज्यादा देवी बेटी से मेरी दोस्ती हो गई है पिताजी ने हंसते हुए का जब शादी प्यार नहीं किया तब मेरी बेटी से ही दोस्ती करके बाकी जिंदगी बिता दे |

मां की तबीयत खराब रहने के बाद पिताजी कचहरी इसके अलावा और कहीं नहीं जाते थे दर्जी बाकी समय घर ही पर रहते थे इसलिए मैं कभी-कभी है मन चाचा के साथ कलकत्ते में ही इधर-उधर सिनेमा थिएटर देखने जाती थी तभी तभी छुट्टी के दिन पूरा समय चाचा जी के प्लॉट में मिटा दी थी राधा मेरी 12 से नहीं अभी चाचा जी के यहां बजा हम सब मिलकर घूमने या सिनेमा देखने चले जाते थे उसके बाद मां की तबीयत ज्यादा खराब होने लगी राधा कालेज से लौटकर देती थी |

पिताजी कचहरी नहीं गए मां के बिस्तर के पास बैठे हुए हैं मां मैं भी मां के पास बैठी थी उनके माथे पर छाती पर हाथ भेज दी थी मगर जब तू नहीं घर खाना खा ले मैं गई थी अभी नहीं जाती मां मेरे हाथ अपने कमजोर हाथों से मुक्ति नहीं बेटा देर मत कर इस तरह लापरवाही करने से सेहत बिगड़ जाएगी उन दिनों में एक साथ अधिक बातें नहीं कर पाती इसलिए जरा रुक कर कहती मैं बीमार हूं तो क्यों लापरवाही करेगी फिर मैं कुछ बोले बिना वहां से उठ जाती थी |

एक दिन कॉलेज से लोड कर देखा कि पिताजी जो क्या हुआ मिला बैठे हुए मेरे हाथ पाते उन्होंने मेरी तरफ देखा मैंने भी देखा कि जल भरे बादल बादल भी रहे उनकी आंखें चला रहे थे मुझसे बाद रस मानो सहन ना हो सका मैं उस कमरे में निकलने लगी पिताजी ने मुझ से आवाज नहीं सुनी बेटा सुन पिताजी के पास गई हो तो मुझसे लिपटकर उन्होंने मेरी छाती पर रख दिया और अनाथ बच्चों की तरह रोता है तेरी मां चली जाएगी तो रहेंगे मुन्नी संसार में मेरा कोई दोस्त नहीं |

भाई रिपोर्टेड की ओर गाड़ियों के बातें इतने बरसों बाद लिखते समय मेरी आंखें भर गई पिताजी की जी की बाल्यावस्था किशोरावस्था मैंने नहीं देखी उसके प्रथम वाले दिनों में बारे में नहीं जानती लेकिन जब मैं को संभाला था मैंने देखा की विधि के अलावा इस संसार में और किसी को ना जानते थे होना पहचानते थे पिताजी मेरी मां को सिर्फ प्यार ही नहीं बनता बड़ा तेरी मुझे अच्छी तरह याद है कि कलकत्ते आने के बाद वह 1 दिन पिताजी ने मुझसे कहा जन्म जन्मांतर की तपस्या के तेरी मां की पत्नी के रूप में पाया है लोग तेरी मां के रूप में देखकर कुछ भी नहीं है |

मां को ऐसा साल हो गया कि पिताजी ने अपना सब कुछ और करके उनको बचा नहीं सके मां चली गई मैं उसी समय समझ गई थी पिताजी इस आघात को नहीं खेल सकेंगे मेरी बीए की परीक्षा समाप्त होने के तीन  दिन बाद पिताजी को हार्टअटैक हुआ उत्तर घंटे बीतने के बाद हेमंत चाचा ने कहा अब कोई डर नहीं संकट  टल गया |

मेरा भाग्य बस मैं थोड़ी देर के लिए चमकता सूरज फिर बताएं बादल की ओट में छिप गया यह भी चले गए उन दिनों के की बातें लिखकर तुम्हारे मन को दुखी नहीं करूंगी तुम तो आसानी से समझ गए होंगे कि उस समय मेरी क्या हालत ही मैं सोच ना सके कि इस तरह अचानक मेरे जीवन में सारी रोशनी है कुछ जाएंगे हेमंत चाचा के विरूद्ध मेरी तमाम शिकायतें हैं फिर भी खुले दिल से यह स्वीकार करूंगी अमावस की पोषण तेरी रात में मेरा कोई संबंध ही नहीं कोई मित्र नहीं सिर्फ वही सहायक बन कर मेरे पास आए थे हेमंत चाचा ने मुझे कहा डोंट फॉरगेट कविता मैं अभी जिंदा हूं |

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रचनाएँ
प्रियाम्वर और प्रीतम
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बहुत सोच विचार किया क्या मैं उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह निश्चय कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के ड्रॉर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ फिर उन चिट्ठियों को पढ़ने लगा तो देखा कि उनको जरा ढंग से छपवा देने से बढ़िया उपन्यास बन जाएगी मेरी दीदी का नाम है कविता चौधरी न्यूयार्क में रहती है और यूनाइटेड नेशनल में नौकरी करती है यूनाइटेड नेशनल की स्पेशल कमेटी में के काम से दीदी को विभिन्न देशों में जाना पड़ता है यूनाइटेड नेशनल की कैफेटेरिया में इनसे मेरा पहली बार परिचय हुआ था इसके बाद दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते गए निकटता बढ़ गई आज दीदी मुझसे जितना प्यार करती हैं उतना शायद किसी को से नहीं करती है मुझ पर उनका जितना विश्वास है उतना किसी पर नहीं मैं सिर्फ दीदी से प्यार नहीं करता बल्कि उनका आदर भी करता हूं सचमुच मेरी दीदी अनमोल है |
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प्रियाम्वर और प्रीतम भाग (1)

13 सितम्बर 2022
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'बहुत सोच विचार किया कि मैं एक उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह कोई निश्चय ना कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के दौर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के म

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भाग (2)

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नहीं दीदी नहीं हंसने की बात नहीं है मुझको कहकर सचमुच बहुत परेशान है कैसी परेशानी कहीं मैं उसे भूल न जाऊं कहीं वह मुझे खो ना दे तुम्हारी बातें सुनकर मुझे बड़ा मजा आया पूछा क्या नाम है उसका दीदी अभी सब

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भाग (3)

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तुम्हारी चिट्ठी मिली तुम जो इतनी जल्दी मेरी चिट्ठी का जवाब दोगे मैं सोच भी नहीं सकती थी लगता है कि तुम मेरी चिट्ठी पढ़कर बहुत ज्यादा चिंतित हो गए थे |  जिससे चिट्ठी मिलने की दूसरे ही दिन तुमने उसका ज

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माया ने सुदीप को डांटते हुए कहा देख लेकिन तू दिन दिन बड़ा सनकी होता जा रहा है इसने प्रेम आदि ना हो तो संसार कैसे चल रहा है सुदीप ने हंसकर कहा क्यों नहीं चलेगा परस्पर के स्वार्थी से हम इस तरह बन गए हैं

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मेरे अपार्टमेंट में एक दो बार आने के बाद एक दिन सुधीर नेमा मां बातों ही बातों में कहा देखे कविता दीदी मैंने अपने हृदय में एक परम सत्य का अनुभव किया है यह परम सत्य क्या है इस संसार में रुपया खर्च करने

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उसके उन सपनों को तोड़ने का अधिकार मुझे नहीं है मुझ में इतना साहस भी नहीं है मेरे मन में अनेक घटनाओं दुख हुई और व्यवस्थाओं का इतिहास छुपा हुआ है अनेक विफलताओं का दर्द भी वहां छुपा हुआ है फिर भी गए गिरे

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भाग (7)

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उस समय मेरे दादा मात्र 13 वर्ष के थे कई वर्षों वहां रहने के बाद दादा स्ट्रीमर कंपनी में बुकिंग क्लर्क की नौकरी लेकर पहले चांदपुर और बाद में ग्वाल नंद आए हुगली जिले में होते हुए भी वह ढाका के निवासी हो

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मेरी छोटी सी दुनिया अचानक अंधेरे में डूब गई मेरे दादा स्वयं काफी पढ़ लिख नहीं सके इसलिए उन्होंने मेरे पिताजी को एम् ए . बी ए . तक पढ़ाया पिताजी ढाका कोर्ट में वकालत करने लगे लेकिन उसकी वकालत कोई खास न

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भाग (9)

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उस दिन थोड़ी देर गपशप करने के बाद हेमंत बाबू चले गए लेकिन उसके बाद  वह बीच-बीच में हमारे यहां आने लगे कभी-कभी वह मुझे लेकर इधर उधर घूमने भी चले जाते थे सच मुझे मन चाचा मुझे बहुत अच्छे लगते थे |  उनके

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हेमंत चाचा ने मोड़ पर एक बार मुझे देख लिया और फिर कहा लगता नहीं कि शादी के लिए मेरा दूर रह पाओगे मैंने जरा अच्छा सहमत चाचा किधर देखा कर पूछा क्यों नहीं रह पाऊंगी हेमंत चाचा ने हंसते हुए मुझे और एक बार

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हेमंत चाचा ने हंसते हुए कहा आज तुम भी तो थोड़ी सी व्हिस्की पी होगी मैंने उसे दम चेक कर कहा नहीं नहीं चाचा मैं विस्की  नहीं पी सकती हेमंत चाचा ने फिर दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़कर गया बड़ी पगली ल

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