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भाग (3)

13 सितम्बर 2022

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तुम्हारी चिट्ठी मिली तुम जो इतनी जल्दी मेरी चिट्ठी का जवाब दोगे मैं सोच भी नहीं सकती थी लगता है कि तुम मेरी चिट्ठी पढ़कर बहुत ज्यादा चिंतित हो गए थे | 

जिससे चिट्ठी मिलने की दूसरे ही दिन तुमने उसका जवाब दिया तुम्हारी चिट्ठी पढ़ते हुए बार-बार यह महसूस किया कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो मैं और एक बार समझ सके कि तुमसे प्यार करके मैंने गलती नहीं की मैंने तुम्हारी चिट्ठी को अनेक बार पाड़ा बाहर पड़ा पढ़ते-पढ़ते मानो उसके रख लिया उसके बाद बहुत सोचा दो-तीन दिन सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचा तुमने जो सलाह दी है | 

मन ही मन उस पर सोच विचार किया है हो सकता है कि बीते दिनों में दुख की याद को मन में संजोए रखने कोई लाभ नहीं है लेकिन मेरे भाई अतीत को तो एकदम मिटाया नहीं जा सकता इसके अलावा थी पर भी तो हमारा वर्तमान बना है फिर आज के इस वर्तमान की न्यू पर भी भविष्य का माहौल बनेगा इसलिए अतीत वर्तमान और भविष्य को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता | 

हम अपने कामकाज और आचार व्यवहार क्षेत्र आरा अतीत वर्तमान और भविष्य के इस अविरल क्रम को शिकवा नहीं करते करना नहीं चाहते या हो सकता है कर नहीं सकते लेकिन मन उसको तो धोखा नहीं दिया जा सकता मैं तुमसे उसी मन के बारे में कहूंगी आज अनेक वर्षों से मैं अपने मन से ही लुका छुपी खेल रही हूं | 

खेलते खेलते बहुत पहले ही ही थक चुकी हूं थी लेकिन कोई ऐसा विश्वसनीय आदमी नहीं मिला जिसकी पकड़ में आती लेकिन मैं तुम्हारी पकड़ में आऊंगी आना ही पड़ेगा आए बिना मानो मेरा दम घुटने लगा है अगर मैं तुम्हारी पकड़ में नहीं आऊंगी तो शायद जिंदा भी नहीं रह सकता | 

आऊंगी दूसरा कोई नहीं जानता लेकिन आज मैं तुम्हारे पास स्वीकार कर रही हूं कि मानसिक द्वंद का आसानी कष्ट सहन न कर पाने पर दो-दो बार आत्महत्या करने चली थी लेकिन दोनों ही बार बड़ी विचित्र जंग से बच गई | 

इस बार लंदन से न्यूयॉर्क आते समय जहर लेकर मैं प्लेन के टॉयलेट में घुसी थी लेकिन शहर खाते समय ना जाने क्या सोचने लगी थी सोचते सोचते टॉयलेट का दरवाजा बंद करना भूल गई थी थोड़ी देर बाद अचानक एक महिला यात्री दरवाजा खोलकर टॉयलेट में आई थी उसने चौक पड़ी फिर किसी तरह अपने को संभाल कर जल्दी जल्दी बाहर निकल आई थी

इस संसार में अकेले रहने से बड़ा आनंद मिलता है बड़ी सुविधा रहती है लेकिन दुख भी कम नहीं भोगना पड़ता अकेला आदमी किसी भी चीज का आनंद पूरी तरह नहीं उठा सकता है या तो सही है फिर अकेले दुख भोगने की क्षमता भी उसकी सीमित रहती है किसी आदर्श या किसी प्रयोजन के लिए बहुत दुख उठाया जा सकता है | 

लेकिन अपने लिए कोई उसका सामान हिस्सा भी बर्दाश्त नहीं कर सकता इस संसार में जिंदा रहना भी कम मुसीबत का काम नहीं इसलिए तो कभी कभी मेरे मन में आता है कि मैं अकेले के लिए क्यों इतना झमेला उठा हूं इस संसार में जिसके सदा के लिए विदा होने पर भी कोई आंसू नहीं आएगा उसके जिंदा रहने से क्या लाभ हजार तरह की यही सब उस जुनून बातें सोचते हुए 1 दिन निश्चय किया कि नहीं अब ज्यादा दिन नहीं रहना इस संसार से विदा हो जाना ही अच्छा है | 

अच्छी हो या बुरी किसी बात में उत्साह देने या बाधा डालने के लिए मेरा कोई घनिष्ठ बन नहीं रहा इसलिए मन ही मन निश्चय करने के बाद किसी तरह की देर नहीं की लेकिन इस बार भी में विफल रही एकदम मौके पर वॉशिंगटन से सुदीप और महुआ अतुल को साथ लिए आ पहुंचे क्या वाशिंगटन में उन लोगों से तुम्हारा परिचय हुआ है |  

शायद अभी तक नहीं हुआ लगता है कि उन लोगों से परिचय होता तो मुझे जरूर लिखते मैं जिस वर्ष निवार का ही उसके 2 वर्ष पहले सुदीप इस देश में आया लेकिन 5 वर्ष पहले एक मित्र के यहां दावत पर उससे मेरा परिचय हुआ कमरे में जाते ही देखा कि सुधीर बड़ा उत्तेजित होकर मेरी सहेली माया से कह रहा है देखो छोटी दीदी इस संसार में स्नेह और प्रेम के जितने भी रिश्ते हैं उनके साथ कहीं ना कहीं स्वार्थ जुड़ा हुआ है स्वार्थ ही निसने या प्रेम इस संसार में दुर्लभ है |

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रचनाएँ
प्रियाम्वर और प्रीतम
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बहुत सोच विचार किया क्या मैं उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह निश्चय कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के ड्रॉर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ फिर उन चिट्ठियों को पढ़ने लगा तो देखा कि उनको जरा ढंग से छपवा देने से बढ़िया उपन्यास बन जाएगी मेरी दीदी का नाम है कविता चौधरी न्यूयार्क में रहती है और यूनाइटेड नेशनल में नौकरी करती है यूनाइटेड नेशनल की स्पेशल कमेटी में के काम से दीदी को विभिन्न देशों में जाना पड़ता है यूनाइटेड नेशनल की कैफेटेरिया में इनसे मेरा पहली बार परिचय हुआ था इसके बाद दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते गए निकटता बढ़ गई आज दीदी मुझसे जितना प्यार करती हैं उतना शायद किसी को से नहीं करती है मुझ पर उनका जितना विश्वास है उतना किसी पर नहीं मैं सिर्फ दीदी से प्यार नहीं करता बल्कि उनका आदर भी करता हूं सचमुच मेरी दीदी अनमोल है |
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प्रियाम्वर और प्रीतम भाग (1)

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'बहुत सोच विचार किया कि मैं एक उपन्यास लिखूं लेकिन किसी तरह कोई निश्चय ना कर सका फिर एक पुरानी डायरी ढूंढने लगा तो टेबल के नीचे के दौर में मुझे अपनी दीदी की ढेर सारी चिट्टियां मिल गई उन चिट्ठियों के म

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भाग (2)

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नहीं दीदी नहीं हंसने की बात नहीं है मुझको कहकर सचमुच बहुत परेशान है कैसी परेशानी कहीं मैं उसे भूल न जाऊं कहीं वह मुझे खो ना दे तुम्हारी बातें सुनकर मुझे बड़ा मजा आया पूछा क्या नाम है उसका दीदी अभी सब

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तुम्हारी चिट्ठी मिली तुम जो इतनी जल्दी मेरी चिट्ठी का जवाब दोगे मैं सोच भी नहीं सकती थी लगता है कि तुम मेरी चिट्ठी पढ़कर बहुत ज्यादा चिंतित हो गए थे |  जिससे चिट्ठी मिलने की दूसरे ही दिन तुमने उसका ज

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माया ने सुदीप को डांटते हुए कहा देख लेकिन तू दिन दिन बड़ा सनकी होता जा रहा है इसने प्रेम आदि ना हो तो संसार कैसे चल रहा है सुदीप ने हंसकर कहा क्यों नहीं चलेगा परस्पर के स्वार्थी से हम इस तरह बन गए हैं

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उसके उन सपनों को तोड़ने का अधिकार मुझे नहीं है मुझ में इतना साहस भी नहीं है मेरे मन में अनेक घटनाओं दुख हुई और व्यवस्थाओं का इतिहास छुपा हुआ है अनेक विफलताओं का दर्द भी वहां छुपा हुआ है फिर भी गए गिरे

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अधिक नहीं सिर्फ 3 दिन हम पूरी में थे सच बता रही हूं भाई इसके पहले इतना आनंद मुझे कभी नहीं मिला है मजा जाओ मन में बहुत बड़े थे फिर भी वह सचमुच मेरे घनिष्ठ मित्र हो गए कोलकाता लौटने के बाद मुझे खूब हंसा

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