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बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023

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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!
लोकलाज का तो ध्यान दे !!  "
पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू  के साथ वापस लौट रहे थे ।सुजान बाबू आँखों में अश्रु लिए बार बार उनकी तरफ देखते और फिर आँखें झुका लेते थे ,जैसे कुछ कहना चाह रहे हों पर कह न पा रहे हों ।
उन्होने मार्ग में ही रुककर सुजान बाबू के समक्ष हाथ जोड़कर कहा था -


-"सुजान बाबू ,एक माँ के ह्रदय की पीडा़ को आप भली-भाँति समझ सकते होंगे अतः मेरी माँ के कहे अपशब्दों को ह्रदय पर न लगाइएगा,,,, जो हुआ वो दैव की इच्छा थी ,इसमें आपका ,मेरा या किसी का भी कोई वश न था ,,, जो करता है वो ईश्वर ही करता है पर हम मूढ़ प्राणी ,उसका दोष दूसरे प्राणी पर मढ़कर अपनी पीडा़ को कम करने का प्रयास करते हैं ,, आपकी पुत्री को प्रसन्न रखने,उसका हर तरह से ध्यान रखने ,उसको बेटी मानने का जो वचन मैं आपको दे चुका हूँ उस वचन पर मैं अडिग हूँ ,,,,,मेरा विश्वास करें ,,, बाकी सुख और दुख तो एक सिक्के के दो पहलू हैं ,,, दिवस और रात्रि की भाँति हैं ,,,एक गमन करेगा तो दूसरे का आगमन निश्चित ही है !!
आपकी पुत्री अब मेरी पुत्री है ,,उसकी हर सुखसुविधा का ध्यान रखना अब इस पिता का उत्तरदायित्व है ,,, आपका मेरे साथ संगीतशाला जाकर उसके समक्ष जाना उसे द्रवित कर देगा ,,, अतः मेरी मति अनुसार आपका उससे भेंट करना अभी उचित नहीं है !!!"
सुजान बाबू को उनकी बात सही लगी थी और वे अपनी सहधर्मिणी के साथ अपने गृह प्रस्थान कर गए थे और वे संगीतशाला  पहुँचे थे।संगीतशाला चूंकि कभी  गुरु सस्वर सारस्वत महाराज का गृह हुआ करता था अतः



वहाँ पाकशाला,भोजन इत्यादि की सारी व्यवस्था थी ।
वे जब संगीतशाला के भीतर प्रविष्ट हुए तो देखा कि चपला ,पुत्रवधू वत्सला के लिए भोजन पका चुकी थी और उनकी ही राह देख रही थी ।"सरस्वती ,मैंने पुत्रवधू वत्सला के लिए भोजन पका दिया है ,,, उसे भोजन करा दिया जाए ,,, 
बेचारी वैसे ही बैठी है जैसे तुम छोड़ कर गए थे !!" चपला ने थाल में भोजन परोसते हुए कहा था और वे भोजनथाल लेकर वत्सला के समीप जाकर बैठे थे जहाँ वो  बैठी शून्य में ताक रही थी ।
उन्होने उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा था --

--"मेरी बच्ची ,चल कुछ खा ले " और भोजन का निवाला उसके मुँह के समक्ष किया था पर उसे जैसे कुछ भान ही न था कि कोई मेरे समक्ष बैठा है ,,,मुझसे कुछ कह रहा है !!
"वत्सला बेटी ,, देखो मैं अब तुम्हारा पिता हूँ ,,, अपने पिता की बात का मान रखकर कुछ खा ले ,थोडा़ सा ही सही ,खा ले  मुँह खोल बच्ची!!" उन्होने फिर वात्सल्य से कहा था ।

बहुत प्रयास करने पर उसने दो ,चार निवाले ही खाए थे परंतु उसे जैसे सुध-बुध ही न थी ,,,
उनकी प्राथमिकता अब पुत्रवधू वत्सला थी जिसे हर भाँति प्रसन्न रखने का वचन वो सुजान बाबू को दे दिए थे ,,उन्हें अपने वचन पर खरा उतरना था ,जिसमें चपला ने पूरा सहयोग करने का उन्हें वचन दिया था ।


वे वत्सला को चपला की देखरेख में छोड़कर संगीतशाला से गृह आ गए थे जहाँ उनकी माँ कमला देवी अपना मन  उनसे अत्यंत खिन्न किए हुए थीं ,गृह में माँ का रोष था और संगीतशाला में सुध-बुध विस्मृत किए हुए पुत्री वत्सला !! 
वे स्वयं को जैसे रणक्षेत्र में पाते जहाँ माँ उनसे कुपित ,आग्नेय नेत्रों से भर्त्सना के तीर लिए उनके समक्ष नज़र आतीं ,वे तो अपने तर्कों से माँ के ह्रदय पर विजय पाना चाहते थे मगर माँ पर उनके तर्कों के तीरों का असर ही न होता था ।
अभी तो  एक अहम समर माँ से करना शेष था ,वो न जानते थे कि विजयश्री उन्हें मिलेगी या नहीं पर वे अपना सम्पूर्ण प्रयास करने में चूकने वाले न थे ।

वे अपने गृह आए थे जहाँ माँ अपने कक्ष का द्वार बंद किए हुए थीं ।
संगीत की साधना उनका स्पंदन थीं जिनके बिना जीवन असँभव है , संगीतशाला में वत्सला की स्थिति के कारण वे वहाँ संगीत साधना न कर पाए थे और गृह में उन्होने उस दिवस से साधना करना तज दिया था जिस दिवस उन्हें शन्नो मौसी के द्वारा माँ की संगीत के प्रति अरुचि की वजह ज्ञात हुई थी ।
अब आज तो गृह के संगीत महाकक्ष में साधना करना उनकी विवशता थी ,,,उनका उद्देश्य माँ की भावनाओं को ठेस पहुँचाना कदापि न था ।
वे संगीत महाकक्ष में गए और सितार लेकर साधना करना प्रारंभ किया --

" पधारोओओओ माँ मानस के द्वार,,,
पधाआआरो माँ मानस के द्वार,,,
सुनकर करुण पुकाआआआर 
सुनकर करुण पुकाआआर,,,,
पधारोओओओ माँ मानस के द्वार"

उनकी साधना के स्वर माँ के कक्ष तक पहुँच गए थे और वे 
हाथ में जपमाली के भीतर से माला जपती हुई अपने कक्ष से निकलकर उनके कक्ष के भीतर प्रविष्ट होती हुई तीव्र स्वर में,आँखों में अश्रु भरे हुए बोली थीं --"बंद कर !बंद कर!बंद कर!!
शिव!शिव!शिव!!!
हे भोलेनाथ कैसा कपूत दिया जिसे लोकलाज की तनिक भी परवाह नहीं !! 
अभी कुछ घण्टे पूर्व अपने पुत्र का दाह संस्कार करके आया है और संगीत साधना करने बैठ गया !! 
अपना नहीं तो समाज का तो ध्यान दे !! लोक क्या कहेंगे !!क्या सोचेंगे !! "

"समाज !! ये समाज तो हम लोगों से ही बना है न माँ !! और लोगों की परवाह करने के लिए हम श्वास लेना त्याग दें !! जीना त्याग दें !! " वे कहते ही रह गए थे और माँ तीव्र गति से पुनः अपने कक्ष में जाकर उसका द्वार भीतर से बंद कर ली थीं ।
शन्नों मौसी के स्वर आ रहे थे -"जिज्जी !!क्या हुआ जिज्जी!!द्वार खोलकर मुझे भीतर प्रविष्ट तो होने दो !!!"
उस दिवस के बाद से माँ ने उनसे कोई वार्तालाप न किया था और उन्होने उन्हें मनाने का कोई प्रयास भी न किया था क्योंकि अभी  माँ के साथ मुख्य समर तो शेष था !!!

वे संगीतशाला जाते और वत्सला  को ,जो जीवन से मुख मोड़ बैठी थी ,समझाते --"बेटी वत्सला , देखो जलधार होती है ना !! उसके समक्ष कोई रुकावट आती है तो क्या वो प्रवाहमान होना त्याग देती है !! नहीं ना ! कैसी भी परिस्थिति हो ,कितनी ही रुकावटें हों वो अपना रास्ता बना ही लेती है क्योंकि ........शेष अगले भाग में।

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Vaah

21 जुलाई 2023

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रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

31 मई 2023
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भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमन

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बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023
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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

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बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
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--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती को तो इस समय भाभी के समीप होना चाहिए था !!""नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझ

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बहू की विदाई -भाग 7

1 जून 2023
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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023
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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023
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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
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उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
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"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन

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