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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023

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--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती  को तो  इस समय  भाभी के समीप होना चाहिए था !!"

"नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझसे बोली थीं --"बहुत रात्रि हो गई है सरस्वती !!जा ,बहू प्रतीक्षा कर रही होगी ।" और वे बोझिल कदमों से पुनः अपने कक्ष में लौट आए थे ।


वे अपने कक्ष में तो आ गए थे मगर उनका मस्तिष्क वहीं शन्नो मौसी की बात में रह गया था ।माँ गुरु महाराज के प्रति आसक्त थीं पर उनके आजीवन ब्रह्मचारी रहने के प्रण को सुनकर उन्हें संगीत से विरक्ति हो गई!!
संगीत से विरक्ति !! 

संगीत से मुँह कौन मोड़ सकता है !!संगीत तो वातावरण में ,प्रकृति में हर जगह समाया है ।भोर होते ही खगों के कलरव में संगीत ही तो है ।गायों के रम्भाने में ,बछडे़ के बां बां करने में , देवालयों से आती घण्टी के स्वर में ,पवन के प्रवाहमान होने पर वृक्षों के लहराते पत्रों में, संध्या के समय वाहनों के स्वर में ,पसरी हुई निस्तब्धता में ,रात्रि को जुगनुओं के स्वर में संगीत ही तो है !!
नदियों की कल-कल में ,चापाकल से गिरते जल में ,  चूडियों की खनक में ,पायल की छम-छम में ,हर जगह संगीत ही तो है !!
हास्य में,रुदन में,आती जाती श्वास में संगीत ही तो है !!
मेघों के गर्जन में , धरा पर जलवृष्टि में ,संगीत ही तो है!!

उनके मौन को अवलोक कर वल्लिका भी समझ गई थी कि शन्नो मौसी से इन्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया है मगर उसने पूछना उचित न समझा था ।
भोर होते ही वे दैनिक कार्यकलाप से निवृत्त होकर वे संगीत शाला जाने को उन्मुख हुए थे और अपने गृह प्रस्थान करती हुई ,शन्नों मौसी वल्लिका से पूछ बैठी थीं --"ये सरस्वती कहाँ प्रस्थान कर रहा है ??"
वल्लिका ने जो  उत्तर दिया था उसकी अपेक्षा शन्नों मौसी ने न की थी ।
वल्लिका ने कहा था -"मौसी नित्य की भाँति 'ये'संगीत शाला जाने को प्रस्थान कर रहे हैं ।"
वे अवाक हो उन्हें देखती हुई चपला के साथ अपने गृह जाने को रवाना हो गई थीं ।
उन्हें ये लगा था कि विगत रात्रि उनकी बात सुनकर सँभव है कि सरस्वती संगीत से मुख मोड़ ले जो कि उनके लिए असँभव था ।
संगीत उनका वो अभिन्न अंग था जिसे वो स्वयं से विलग करने की कल्पना भी न कर सकते थे ।

वल्लिका शनैः शनैः  अपने ससुराल रूपी नवगृह के वातावरण में स्वयं को ढा़लने लगी थी और उसने गृह के कार्य व जिम्मेदारियों का वहन करना भी प्रारंभ कर दिया था ।माँ उसके स्वभाव से प्रसन्न रहती थीं ।
समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था और फिर वो  शुभ समय आया था जब वल्लिका ने उनके पुत्र को जन्म दिया था ।पुत्र आगमन से पूरे गृह में एक नव आनंद की लहर आ गई थी ।जहाँ माँ और बाबू को दादी और दादा बनने की अपार उल्लासमई खुशी थी वल्लिका और वे भी पिता और माता बनकर  हर्ष की अनुभूति कर रहे थे,पर ईश्वर तो कुछ और ही सोचे और तय करे हुए बैठा था ।

पुत्र जिसका उन्होने अत्यंत स्नेह पूर्वक वागीष नाम रखा था वो आठ मास का हुआ था और उस समय पूरे शहर में भयंकर हैजा फैला हुआ था जिसकी चपेट में बाबू और वल्लिका भी आ गए थे ।
हैजा में बाबू और वल्लिका दोनों का प्राणांत हो गया था ।गृह में मातम छा गया था ।गृह से दो -दो अर्थियां उठ रही थीं ,माँ पछाडे़ खा-खाकर गिरती ,मूर्छित हो रही थीं और उन्हें शन्नों मौसी विलाप करते सँभालने ,दिलासा देने का असफल प्रयास कर रही थीं  वहीं वे  !  उनके मुखाकाश में मौन के मेघ छाए थे और अगिन प्रश्नों की चपला गड़क रही थी । अपने शिशु को सीने से चिपकाए वो 
ईश्वर के इस निर्णय पर वे प्रश्नचिन्ह तो न उठा रहे थे पर एक  शिशु के शीश से ममता की छत्रछाया हटा लेना भी तो सर्वथा अनुचित था ।
उन्हें रह -रहकर बाबू के अंतिम शब्द स्मरण हो रहे थे --"सरस्वती मैं तो देवलोक गमन कर रहा हूँ पर तुम शोकाकुल होकर अपने कर्तव्य और अपने लक्ष्य को विस्मरण न करना ,अपने लक्ष्य पर ,अपने कर्तव्यों पर ही ध्यान केंद्रित करना ,शोक मनाना,अश्रु गिराना कमजोर जनों के लक्षण हैं और तुम कमजोर न हो सरस्वती ।"



बाबू और वल्लिका दोनों का अंतिम संस्कार हो चुका था ।

संध्या का समय था ,वे अपने कक्ष में थे कि उनको अपने कक्ष में प्रमोद का स्वर सुनाई दिया था --"बाबू साहब!" 

उन्होने पलट कर देखा था तो आँखों में अश्रु लिए प्रमोद खडा़ था ।प्रमोद उनसे आयु में दो वर्ष छोटा था और उनके गुरु  सस्वर सारस्वत महाराज की सेवा में नियुक्त था और उनके देवलोकगमन के पश्चात संगीत शाला की देखरेख करता और वहीं निवास करता था ।
यही वो संध्या थी जब प्रमोद ने उनसे कहा था -" बाबू साहब ,मैं अभी तक संगीतशाला में  देखरेख करता आया हूँ पर अब से आपके यहाँ सेवाकार्य करना चाहता हूँ !! मैं यहाँ भोजन पकाने से लेकर साफ-सफाई ,हाट से तरकारी लाने इत्यादि हर कार्य करना चाहता हूँ ,, आप मेरी सेवा स्वीकार कर लें  ताकि माँ साहब को इस उम्र में आराम मिल सके,,,  ,,,"और उस दिवस से प्रमोद उनके यहाँ अपनी सेवाएं देने लगा था ।

उस दिवस बाबू और वल्लिका का दसवां था और 
माँ  को आभूषणविहीन किया जा रहा था ।वे कातर नयनों से ये सब देख रहे थे और उनके मन के सागर में तर्क और वितर्क उथल-पुथल मचा रहे थे ।
क्यों !!क्यों एक स्त्री को उसके पति के निधन के पश्चात आभूषण विहीन कर दिया जाता है ,क्यों उसकी माँग का सिंदूर मिटा दिया जाता है ,हाथों की चूडियां तोड़ दी जाती हैं !!क्या दर्शाने के लिए !!
माँ को सफेद साडी़ पहनाकर अब उन्हें केशविहीन करने की प्रक्रिया प्रारंभ होने वाली थी कि उन्होनें अधरों के तख्त पर रखा मौन का वज्र चकनाचूर कर डाला और बोले --" ये सब क्या और क्यों हो रहा है !! 
स्त्रियों के मध्य से एक स्त्री बोली --" तुझे इतना भी न ज्ञात सरस्वती कि पति के निधन के पश्चात स्त्री के अलंकार हटाकर उसे श्वेत साडी़ धारण करवाकर उसे केश विहीन कर दिया जाता है जो उसके विधवा होने का सूचक है ।"

शेष अगले भाग में ।

 Dr.Jyoti Maheshwari

Dr.Jyoti Maheshwari

मार्मिक भाग बहुत अच्छा लिखा आपने 🙏🙏

20 जून 2023

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

20 जून 2023

धन्यवाद बहन 🙏😊

Berlin

Berlin

बहुत मार्मिक भाग

8 जून 2023

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रचनाएँ
बहू की विदाई
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मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

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बहू की विदाई-भाग 2

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बहू की विदाई-भाग 3

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बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
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बहू की विदाई-भाग 5

31 मई 2023
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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
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बहू की विदाई -भाग 7

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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023
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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023
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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
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