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बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023

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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर  ये  रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--

"ये समाज हम से मिलकर बनता है  हम एक कदम उठाएंगे तो हमसे प्रभावित होकर कोई न कोई अगला कदम उठाएगा ,उसको देखकर कोई और ,,, कडी़ से कडी़ तो ऐसे ही जुडे़गी ना !! 
और जो आज हमारे कृत्य को स्वीकार न कर रहे हैं कल यही हमारे कृत्य की भूरि भूरि प्रशंसा करेंगे आप देखिएगा।" 
वो बोले थे और उनका समर्थन कर श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी ने कहा था -"आप सत्य कह रहे हैं ,मेरे और मेरी सहधर्मिणी जी के भी कुछ ऐसे ही विचार हैं और इसी हेतु हमने कन्या महाविद्यालय की नींव डाली ।कन्याएं शिक्षित होंगी तो वो ही अपनी संतानों को सही मार्ग दिखा पाएंगी , दकियानूसी विचारों को दमन करने व सही व नव मार्ग चुनने की शिक्षा दे पाएंगी । "
"जी ,और हमने भी अपने बेटे व बेटी में कोई भेद न किया है ,जो अधिकार मेरे बेटे को हैं वही बेटी को हैं ।"श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने आगे अपनी बात कही थी ।

उनका श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी और उनकी सहधर्मिणी के साथ जलपान-के साथ साथ वार्तालाप जारी था और वे उन दोनों के वार्तालाप के आधार पर उनसे बहुत प्रभावित हुए थे और ये सोचकर मन ही मन मुदित थे कि ये लोग भी उनके समान ही स्वस्थ और खुले विचारों के हैं ।
कुछ समय पश्चात बैठक में एक युवा व एक युवती ,जो उस युवक से आयु में छोटी प्रतीत हो रही थी ,आए थे और युवक ने मुस्कुराकर उनके चरण स्पर्श किए थे और युवती ने उनसे मुस्कुराकर अभिवादन किया था ।
श्री कृष्ण गोपाल स्वामी ने उन दोनों का परिचय देते हुए कहा था -"ये हमारा पुत्र है - सुभाष ।
ये सामाजिक कार्यकर्ता  है और अनाथ बच्चों , बुजुर्गों के संरक्षण के लिए इसने संस्था खोली है -
' अपनेपन की छाँव'
इसकी ये संस्था अनाथ बच्चों का पालन उनकी देखरेख, उनकी शिक्षा-दीक्षा, का उत्तरदायित्व तो वहन करती ही है साथ ही ऐसे बुजुर्ग जिनका कोई सहारा न होता है उन्हें संरक्षण देकर उनकी पूरी देखभाल करती है ।"
उन्होने मुस्कुराकर सुभाष की तरफ देखा था -लम्बा कद, साँवला वर्ण, हल्की मूँछ और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी सुभाष कुर्ते व पैजामा धारण किए हुए था ।
"और ये मेरी पुत्री है -सुभाषिनी 
ये चिकित्सक है ।"वे बोले थे और उन्होने उनकी पुत्री की तरफ मुस्कुराकर देखा था - सामान्य कद,कंधे तक केश, सलवार और कमीज पहने हुए वो अपनी माँ के समीप ही बैठ गई थी और पुनः वार्तालाप का क्रम जो चलने लगा था।

वार्तालाप का क्रम संध्या तक चला था और ऐसा प्रतीत ही न हुआ था कि वे इस परिवार से प्रथम बार मिल रहे हों ,, बहुत सभ्य परिवार उन्हें लगा था और रात्रि भोज के पश्चात उनके शयन का प्रबंध कर दिया गया था ।
प्रातः नियत समय पर वे श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी के साथ उनके महाविद्यालय पहुँच गए थे जहाँ सभी तैयारियाँ पूर्ण हो चुकी थीं और महाविद्यालय का प्रांगण  असंख्य विद्यार्थियों और उनके परिजनों से पूर्ण भर चुका था और उनकी ही प्रतीक्षा हो रही थी ।

उन्हें उनका आसन दिया गया था और उन्होने अपनी गद्दी पर आसीन होकर  माँ सरस्वती का ध्यान करके संगीत का स्वर गायन प्रारंभ किया था -- सा रे ग म प ध नि साआआआआ 
सा नि ध प म ग रे साआआ 

वरदान दे माँ वरदान दे 
वर दाआआन दे माँ वर दान दे
मन निर्मल, हों विचार धवल,
सद्पथ पर जीवन,चले प्रतिपल,
ऐसे हमें कर्मविधान दे 
वर दान दे माँ वरदान दे 
वर दाआआन दे माँ वर दान दे
सृष्टि भँवर में फँसी है नैया,
तेरे सिवा माँ कौन खेवैया!
सुन पुकार संज्ञान ले
वर दान दे माँ वरदान दे 
वर दाआआन दे 
वर दाआआन दे 
वर दाआआन दे 
वर दाआआन देएएएए 
सारेग रेगम गमप पधनि धनिसा 
धनिसा निधप पमग मगरे गरेसा 
वर दान दे 
वरदाआआन दे 
वर दाआआआन देएएएएएएए 
और पूरा पांडाल तालियों की गड़गडा़हट से गूँज उठा था ।
आयोजन की समाप्ति हो रही थी और  चादर ओढा़कर व स्मृति चिन्ह देकर उनका सम्मान किया गया था ।
महाविद्यालय से निकल कर वे श्री कृष्ण स्वामी जी के साथ उनके आवास पर जा रहे थे जहाँ भोजन के पश्चात उन्हें गृह वापसी करनी थी ।

श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी के गृह पर भोजन के पश्चात उनकी सहधर्मिणी और वे उनके समीप बैठकर बोले थे -"आपका आगमन बहुत सुख दे गया सरस्वती चरण दास जी , हम दोनों आपसे एक निवेदन करना चाहते हैं यदि आप स्वीकार कर लेंगे तो हम समझेंगे कि हमारा मनचाहा वरदान हमें प्राप्त हो गया है ।" 
वे बोले थे -"अरे आप दोनों लेशमात्र भी मत झिझकिए !जो कहना है निसंकोच होकर कहिए ।"
" सरस्वती चरण दास जी , हमें ज्ञात हुआ है कि आप अपनी पुत्रवधू ,जिसे आप अपनी पुत्री मानते हैं उसका विवाह करना चाहते हैं ,, यदि आप मेरे पुत्र सुभाष को अपनी पुत्री के योग्य समझें तो हम आपसे जुड़कर धन्य हो उठेंगे ।"

उन्हें तो ऐसा प्रतीत हुआ था कि जैसे स्वयं माँ वीणावादिनी  ने उनके मन को पढ़कर उन्हें उनका मनचाहा वर दे दिया हो ।
भला सुभाष से अच्छा वर और श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी जैसा भला सह्रदय, परिवार उन्हें और कहाँ मिल सकता था !! 
उन्हें ऐसा आभास हो रहा था कि माँ सरस्वती ने ही उन्हें उनके गंतव्य तक पहुँचा दिया था 
और वे बोल उठे थे -"आपने तो मेरे मन की बात कह दी कृष्ण गोपाल स्वामी जी ! आप जैसा परिवार और सुभाष जैसा वर ही तो मैं चाहता था अपनी पुत्री वत्सला के लिए !! 
और वे पुत्री वत्सला के विवाह की सारी बातें तय करके प्रसन्न मन से अपने गृह लौट रहे थे ।
उन्हें भली-भाँति ज्ञात था कि ये बात माँ को जब बताऊँगा तो वे बहुत कुपित होंगी , और उनके कोप का भाजन वे बनेंगे मगर वे सब सह लेंगे पर अपने निर्णय से पीछे न हटेंगे ।
वे गृह आगमन कर गए थे और उन्हें  आया देखकर पुत्री वत्सला उनके हाथ से पेटी लेकर भीतर उनके कक्ष में रख आई थी और जलपान लेकर उनके समक्ष पुनः उपस्थित हो गई थी ।
माँ ने आकर बस हालचाल लिया था,महाविद्यालय के आयोजन के संबंध में उन्हें तो जानने की कोई जिज्ञासा ही न थी  ।वे  जलपान करते हुए सोच रहे थे कि संध्या को माँ को अपने निर्णय की सूचना दूंगा तब माँ की क्या प्रतिक्रिया होगी .........शेष अगले भाग में।

Sandhya

Sandhya

वाह वाह बहुत खूब

21 अगस्त 2023

20
रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

31 मई 2023
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भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमन

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बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023
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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

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बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

31 मई 2023
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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
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--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती को तो इस समय भाभी के समीप होना चाहिए था !!""नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझ

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बहू की विदाई -भाग 7

1 जून 2023
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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023
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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023
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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
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उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
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"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन

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