आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--
"ये समाज हम से मिलकर बनता है हम एक कदम उठाएंगे तो हमसे प्रभावित होकर कोई न कोई अगला कदम उठाएगा ,उसको देखकर कोई और ,,, कडी़ से कडी़ तो ऐसे ही जुडे़गी ना !!
और जो आज हमारे कृत्य को स्वीकार न कर रहे हैं कल यही हमारे कृत्य की भूरि भूरि प्रशंसा करेंगे आप देखिएगा।"
वो बोले थे और उनका समर्थन कर श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी ने कहा था -"आप सत्य कह रहे हैं ,मेरे और मेरी सहधर्मिणी जी के भी कुछ ऐसे ही विचार हैं और इसी हेतु हमने कन्या महाविद्यालय की नींव डाली ।कन्याएं शिक्षित होंगी तो वो ही अपनी संतानों को सही मार्ग दिखा पाएंगी , दकियानूसी विचारों को दमन करने व सही व नव मार्ग चुनने की शिक्षा दे पाएंगी । "
"जी ,और हमने भी अपने बेटे व बेटी में कोई भेद न किया है ,जो अधिकार मेरे बेटे को हैं वही बेटी को हैं ।"श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने आगे अपनी बात कही थी ।
उनका श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी और उनकी सहधर्मिणी के साथ जलपान-के साथ साथ वार्तालाप जारी था और वे उन दोनों के वार्तालाप के आधार पर उनसे बहुत प्रभावित हुए थे और ये सोचकर मन ही मन मुदित थे कि ये लोग भी उनके समान ही स्वस्थ और खुले विचारों के हैं ।
कुछ समय पश्चात बैठक में एक युवा व एक युवती ,जो उस युवक से आयु में छोटी प्रतीत हो रही थी ,आए थे और युवक ने मुस्कुराकर उनके चरण स्पर्श किए थे और युवती ने उनसे मुस्कुराकर अभिवादन किया था ।
श्री कृष्ण गोपाल स्वामी ने उन दोनों का परिचय देते हुए कहा था -"ये हमारा पुत्र है - सुभाष ।
ये सामाजिक कार्यकर्ता है और अनाथ बच्चों , बुजुर्गों के संरक्षण के लिए इसने संस्था खोली है -
' अपनेपन की छाँव'
इसकी ये संस्था अनाथ बच्चों का पालन उनकी देखरेख, उनकी शिक्षा-दीक्षा, का उत्तरदायित्व तो वहन करती ही है साथ ही ऐसे बुजुर्ग जिनका कोई सहारा न होता है उन्हें संरक्षण देकर उनकी पूरी देखभाल करती है ।"
उन्होने मुस्कुराकर सुभाष की तरफ देखा था -लम्बा कद, साँवला वर्ण, हल्की मूँछ और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी सुभाष कुर्ते व पैजामा धारण किए हुए था ।
"और ये मेरी पुत्री है -सुभाषिनी
ये चिकित्सक है ।"वे बोले थे और उन्होने उनकी पुत्री की तरफ मुस्कुराकर देखा था - सामान्य कद,कंधे तक केश, सलवार और कमीज पहने हुए वो अपनी माँ के समीप ही बैठ गई थी और पुनः वार्तालाप का क्रम जो चलने लगा था।
वार्तालाप का क्रम संध्या तक चला था और ऐसा प्रतीत ही न हुआ था कि वे इस परिवार से प्रथम बार मिल रहे हों ,, बहुत सभ्य परिवार उन्हें लगा था और रात्रि भोज के पश्चात उनके शयन का प्रबंध कर दिया गया था ।
प्रातः नियत समय पर वे श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी के साथ उनके महाविद्यालय पहुँच गए थे जहाँ सभी तैयारियाँ पूर्ण हो चुकी थीं और महाविद्यालय का प्रांगण असंख्य विद्यार्थियों और उनके परिजनों से पूर्ण भर चुका था और उनकी ही प्रतीक्षा हो रही थी ।
उन्हें उनका आसन दिया गया था और उन्होने अपनी गद्दी पर आसीन होकर माँ सरस्वती का ध्यान करके संगीत का स्वर गायन प्रारंभ किया था -- सा रे ग म प ध नि साआआआआ
सा नि ध प म ग रे साआआ
वरदान दे माँ वरदान दे
वर दाआआन दे माँ वर दान दे
मन निर्मल, हों विचार धवल,
सद्पथ पर जीवन,चले प्रतिपल,
ऐसे हमें कर्मविधान दे
वर दान दे माँ वरदान दे
वर दाआआन दे माँ वर दान दे
सृष्टि भँवर में फँसी है नैया,
तेरे सिवा माँ कौन खेवैया!
सुन पुकार संज्ञान ले
वर दान दे माँ वरदान दे
वर दाआआन दे
वर दाआआन दे
वर दाआआन दे
वर दाआआन देएएएए
सारेग रेगम गमप पधनि धनिसा
धनिसा निधप पमग मगरे गरेसा
वर दान दे
वरदाआआन दे
वर दाआआआन देएएएएएएए
और पूरा पांडाल तालियों की गड़गडा़हट से गूँज उठा था ।
आयोजन की समाप्ति हो रही थी और चादर ओढा़कर व स्मृति चिन्ह देकर उनका सम्मान किया गया था ।
महाविद्यालय से निकल कर वे श्री कृष्ण स्वामी जी के साथ उनके आवास पर जा रहे थे जहाँ भोजन के पश्चात उन्हें गृह वापसी करनी थी ।
श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी के गृह पर भोजन के पश्चात उनकी सहधर्मिणी और वे उनके समीप बैठकर बोले थे -"आपका आगमन बहुत सुख दे गया सरस्वती चरण दास जी , हम दोनों आपसे एक निवेदन करना चाहते हैं यदि आप स्वीकार कर लेंगे तो हम समझेंगे कि हमारा मनचाहा वरदान हमें प्राप्त हो गया है ।"
वे बोले थे -"अरे आप दोनों लेशमात्र भी मत झिझकिए !जो कहना है निसंकोच होकर कहिए ।"
" सरस्वती चरण दास जी , हमें ज्ञात हुआ है कि आप अपनी पुत्रवधू ,जिसे आप अपनी पुत्री मानते हैं उसका विवाह करना चाहते हैं ,, यदि आप मेरे पुत्र सुभाष को अपनी पुत्री के योग्य समझें तो हम आपसे जुड़कर धन्य हो उठेंगे ।"
उन्हें तो ऐसा प्रतीत हुआ था कि जैसे स्वयं माँ वीणावादिनी ने उनके मन को पढ़कर उन्हें उनका मनचाहा वर दे दिया हो ।
भला सुभाष से अच्छा वर और श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी जैसा भला सह्रदय, परिवार उन्हें और कहाँ मिल सकता था !!
उन्हें ऐसा आभास हो रहा था कि माँ सरस्वती ने ही उन्हें उनके गंतव्य तक पहुँचा दिया था
और वे बोल उठे थे -"आपने तो मेरे मन की बात कह दी कृष्ण गोपाल स्वामी जी ! आप जैसा परिवार और सुभाष जैसा वर ही तो मैं चाहता था अपनी पुत्री वत्सला के लिए !!
और वे पुत्री वत्सला के विवाह की सारी बातें तय करके प्रसन्न मन से अपने गृह लौट रहे थे ।
उन्हें भली-भाँति ज्ञात था कि ये बात माँ को जब बताऊँगा तो वे बहुत कुपित होंगी , और उनके कोप का भाजन वे बनेंगे मगर वे सब सह लेंगे पर अपने निर्णय से पीछे न हटेंगे ।
वे गृह आगमन कर गए थे और उन्हें आया देखकर पुत्री वत्सला उनके हाथ से पेटी लेकर भीतर उनके कक्ष में रख आई थी और जलपान लेकर उनके समक्ष पुनः उपस्थित हो गई थी ।
माँ ने आकर बस हालचाल लिया था,महाविद्यालय के आयोजन के संबंध में उन्हें तो जानने की कोई जिज्ञासा ही न थी ।वे जलपान करते हुए सोच रहे थे कि संध्या को माँ को अपने निर्णय की सूचना दूंगा तब माँ की क्या प्रतिक्रिया होगी .........शेष अगले भाग में।