भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमने जो किया है वो बहुत ही सराहनीय कार्य है ,हर किसी के वश की बात नहीं !!
तुमने सही मायने में एक पिता होने के कर्तव्य का निर्वहन किया है
वे आँखों में कर्तव्यवहन की चमक,मन में सुकून लिए अपनी कुर्सी पर सिर टिकाए आँखें मूँदे बैठे हुए थे और उन्हें अपना वात्सल्य देने को आतुर शीतल पवन बार बार आकर उनके केश सहला रही थी ।उन्होने मुस्कुराकर उठते हुए खिड़की का पर्दा एक तरफ कर खिड़की को बंद कर दिया और पुनः उसी कुर्सी पर नयन मूँद कर बैठ गए । कल उन्होने अपने पिता होनें का उत्तरदायित्व निभा तो दिया था पर बेटी के विदा होकर चले जाने से स्वयं को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे ।
सरस्वती चरण दास ,संगीत की दुनिया का वो महान हस्ती जिसके बिना शायद संगीत की ,उसके सात स्वरों से उपजी मधुर तान की कल्पना भी न की जा सकती थी ।
सरस्वती चरण दास को ऐसे नयन मूंदे देखना उनके आसपास की स्थिति ,उनके कमरे में बिखरी नीरवता,निस्तब्धता को शायद गवारा न था और इसीलिए वो उनके मन की उँगली को थामकर उन्हें अतीत की गलियों में ले गई ।
बचपन से उन्हें संगीत के प्रति असीम रुचि थी और उनकी रुचि को देखते हुए उनके पिता जो कि एक सेठ के अदने से मुंशी थे , ने प्रोत्साहित करने हेतु उन्हें संगीत के गुरु सस्वर सारस्वत जी के श्री चरणों में डाल दिया कि महाराज संगीत का ज्ञान आपके अलावा और कौन है जो दे सकता है !!
महाराज ने बालक शिव चरण दास में एक अलग ही आभा देखी ,संगीत के प्रति समर्पण की भावना देखी और उसे अपना शिष्य बनाना सहर्ष स्वीकार कर लिया ।
भगवान शिव की भक्ति रस में डूबी रहने वाली उनकी माँ कमला देवी को जब ये ज्ञात हुआ तो उन्होने तो सिर ही पीट लिया ।उन्हें तो ये संगीत के सप्त स्वर का आखिरी साआआआआ गला फाड़ते हुए सुनना बिलकुल ही न भाता था क्योंकि उन्हें संगीत में तनिक भी रुचि न थी ।वो तो अपने बेटे के मन में पढा़ई-लिखाई के साथ -साथ अपने जैसे ही शिव चरणों में प्रीति का अंकुरण करना चाहती थीं और यही वजह थी कि उन्होने बहुत प्रेम के साथ उसका नाम शिव चरण दास रखा था ,पर वो न जानती थीं कि ईश्वर को उनका सरस्वती चरण दास होना स्वीकार्य है ।
जहां पिता शिव चरण दास की प्रतिभा को देख-देख कर गदगद थे वहीं माँ गृहकार्य करते हुए इधर से उधर घर में चहलकदमी करते हुए मन ही मन भुनभुनाया करतीं -- करम फूट गए भोलेनाथ !! इस शिव चरण दास को बस गला फाड़ने को दे दो --साआआआआ
सस्वर सारस्वत जी की तपस्या और बालक शिव चरण दास की संगीत के प्रति लगन रंग ला रही थी और वो बहुत शीघ्रता से सुर और ताल को समझता हुआ संगीत के ज्ञान में प्रखर होता जा रहा था। और उसकी संगीत के प्रति लगन लेख उन्होने उसका नाम सरस्वती चरण दास रख दिया था ।
सस्वर सारस्वत महाराज देख कर मंत्रमुग्ध हो उठते , उनको संगीत की स्वर साधना में डूबे हुए देखकर । शनैः शनैः उनकी प्रतिभा की किरण रश्मियां दूर दूर तक पहुंच कर उनको विख्यात करने लगी थीं और जिसके फलस्वरूप लोग अपने यहां संगीत का कार्यक्रम रखते तो उन्हें प्रस्तुति देने के लिए उनके घर व महाराज सस्वर सारस्वत के यहां अनुमति लेने जाते ।वो तो सहर्ष अनुमति दे देते मगर उनकी मां न हाँ कहतीं और न ही ना , उनकी उनके पति के आगे चलती जो न थी पर उनके चेहरे के भाव स्पष्ट प्रकट कर देते कि उनका मन इससे खिन्न है ।
अब वो बालक से युवा हो गए थे और उनकी पढा़ई के साथ -साथ संगीत की शिक्षा भी पूर्ण हो चुकी थी । और इस अवधि के मध्य में ही सस्वर सारस्वत महाराज उम्र हो जाने के कारण अस्वस्थ भी रहने लगे थे ।उनकी संगीत की शिक्षा पूरी होते होते वो बहुत बीमार हो जाने के कारण बिस्तर पर आ गए थे ।वे समझ गए थे कि अब तो किसी भी क्षण ईश्वर का बुलावा आ सकता है और उन्होनें उन्हें बुलावा भेजा था ।
वो महाराज सस्वर सारस्वत के घर जाकर उनके चरणों में बैठकर विलाप करने लगे थे और महाराज सस्वर सारस्वत उनके शीश पर अपने कंपित अधरों से बस इतना कह पाए थे -- अपनी गद्दी तुम्हें सौंप रहा हूँ सरस्वती चरण ,
मेरे द्वारा प्राप्त संगीत के ज्ञान को अपने तक सीमित न कर इसको असंख्य जनों तक पहुँचाना ,शुभ आशीर्वाद
"बाबू साहब अपराह्न हो गई ,भोजन परोस दूँ ??"
अपने घर के रसोंइया व सेवक प्रमोद का स्वर सुनकर वो वर्तमान में लौट आए ।
" माँ ने भोजन कर लिया ??" उन्होनें प्रश्न का उत्तर न दे स्वयं प्रश्न किया ।
" नहीं बाबू ,उन्होंने तो कल रात से ही भोजन न किया !!" रसोंइया ने सिर नीचा कर मायूसी से उत्तर दे दिया था जिनको सुनकर सरस्वती चरण दास के ने रसोंइया की तरफ विस्मय से फिर एक प्रश्न उछाल दिया था --
"पर रात को तुम माँ के कमरे में भोजन थाल ले तो गए थे !!"फिर स्वयं से कहने लगे -ओह !इसका तात्पर्य ये है कि माँ ने भोजन किया ही नहीं !!
इसका तात्पर्य ये है कि माँ अब तक मुझसे रुष्ट हैं !!आह!!मुझे अभी माँ के कमरे में जाकर उन्हें मनाना होगा ,और वे तीव्र गति से माँ के कमरे की तरफ बढ़ गए ।
माँ के कमरे में पहुँचने पर देखा कि माँ अपने कमरे में बनाए गए छोटे से मंदिरनुमा अलमारी में विराजे शिव जी के चरणों में सिर टिकाए बैठी हैं ।
सफेद साडी़ में माँ के सिर से लेकर मस्तक तक होता हुआ साडी़ का पल्लू पीठ पर पडा़ था ।
सरस्वती चरण दास ने कातर स्वर में पुकारा --"माँ!"
कमला देवी ने सिर को दरवाजे की तरफ तिरछे अश्रु परिपूरित नयनों से बेटे सरस्वती चरण दास पर एक दृष्टि डाली और पास ही पडे़ पलंग पर बैठ कर अन्यमनस्क भाव से कहा --" क्या लेने आया है !! ..............शेष अगले भाग में ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'