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बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023

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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूबा हुआ है !!.......
ऐसा करके तो तू गुरू महाराज की आज्ञा की अवहेलना कर रहा है !! तूने विस्मृत कर दिया क्या कि गुरू महाराज ने अपने अंतिम समय में तुझसे क्या कहा था !! 
तेरे साथ मैं भी तो गया था गुरु महाराज सस्वर सारस्वत जी से अंतिम भेंट करने ,,,,,, मुझे तो वैसे ही स्मरण है ,,,,अपनी गद्दी तुम्हें सौंप रहा हूँ सरस्वती चरण ,
मेरे द्वारा प्राप्त संगीत के ज्ञान को अपने तक सीमित न कर इसको असंख्य जनों तक पहुँचाना ,शुभ आशीर्वाद ।
वे तुझे अपनी गद्दी देकर गए हैं सरस्वती !! तुझे विछोह जनित पीडा़ से उबर कर उनकी गद्दी सँभालनी है ,उनके द्वारा प्रदत्त संगीत के ज्ञान को असंख्य युवाओं,युवतियों तक पहुँचाना है ,अपने तक सीमित न रखना है ।

सरस्वती ,,,,और अब तो तू गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने योग्य भी हो गया है ,, तेरे लिए एक संस्कारी परिवार की सुशील कन्या चुनी है ,,, शीघ्र ही तेरा उनके साथ लगन कर दूँगा फिर अपने गुरू महाराज की संगीत की शिक्षा को सभी में विस्तार करते हुए तुझे अपना गृहस्थ जीवन भी प्रारंभ करना है ,,,, इतना कहकर शीश पर हाथ फेरते हुए बाबू कक्ष से प्रस्थान कर गए थे और उनका मन चिंतन करने लगा था --सत्य तो कह रहे थे बाबू ,,,, मैं अपने गुरु महाराज को ऐसे श्रृद्धांजलि दे रहा हूँ !! उनके विछोह की पीडा़ में स्वयं को कमजोर कर !! गुरु महाराज कहा करते थे कि सरस्वती शोक करना तो अज्ञानी मनुष्यों का स्वभाव होता है ,,,चाहे कैसी भी परिस्थिति हो ,हमें समभाव से रहना चाहिए और अपने कर्तव्यों से कभी भी मुख न मोड़ना चाहिए !! और मैं !!मैं क्या कर रहा हूँ !!! 

अपने कर्तव्यों से मुख ही तो मोड़ बैठा हूँ !! गुरु महाराज कहा करते थे -सरस्वती ठहरे हुए जल में ही विकार उत्पन्न होते हैं ,,,, सदा प्रवाहमान रहना चाहिए ,,, 
मैं भी तो ठहरा हुआ जल ही हो गया हूँ जिसमें शोक ,पीडा़ रूपी विकार उत्पन्न हो रहा है !!
नहीं ,,,,मैं ऐसे नहीं कर सकता ,,,मैं अपने कर्तव्यों से मुख न मोड़ सकता ,,,, और वे अपने अश्रु पोछकर कक्ष से बाहर की ओर निकले थे कि उनके कानों में माँ और शन्नों मौसी का घर की पाकशाला से वार्तालाप पडा़ था -- जिज्जी तुम्हारी तो नाक न कटी मुँह बन गया ।गुरु महाराज सस्वर सारस्वत जी ब्रह्मलीन हो गए और उनके शोक में उनका सरस्वती चरण दास शोकाकुल होकर संगीत से मुख मोड़ बैठा है ,,,, अब जीजा जी ने उसके लिए सुयोग्य कन्या तो चुन ही ली तो एक बार विवाह हो जाए फिर सरस्वती चरण दास अपनी गृहस्थी में ऐसा रमेगा कि संगीत को विस्मृत ही कर देगा ,फिर तुम उसे शिव चरण दास से ही पुकारना जो कि उसका वास्तविक नाम है ।

उनको ये वार्तालाप सुनकर क्षणिक आघात लगा कि चलो शन्नो मौसी तो पराई हैं पर जिनकी कोख से जन्म लिया वही माँ अपने बेटे की रुचि किसमें है ,न देख रहीं या देखना ही न चाहतीं !!
उन्होने वहीं से अपने पिता को पुकार कर कहा था --बाबू , मैं गुरुवर के गृह  'संगीतशाला' जा रहा हूँ संगीत की साधना करने ,लौटते लौटते विलम्ब हो जाएगा ,और वे तीव्र गति से गृह से प्रस्थान कर गए थे ।
जहाँ पिता उनके निर्णय से प्रसन्न थे वहीं माँ का मन खिन्न हो गया था ।रात्रि को भोजन परोसते हुए उनकी माँ ने उनकी तरफ दृष्टि तक न डाली थी जिसे गृह आई शन्नों मौसी भी महसूस कर रही थीं और जाते जाते वे माँ से धीमे स्वर में कह गई थीं -जिज्जी दुखित क्यों हो !!एक बार विवाह तो होने दो ,बहू के गृह में कदम पड़ते ही संगीत धरा का धरा रह जाएगा ,दिखेगी तो बस बहू ही ,,हा ,,हा,,,हा,,,

अगले दिन वे भोर से ही अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर गुरु महाराज के गृह , जिसे उन्होने 'संगीतशाला' नाम दिया था और जो वे उन्हें ही सौंप गए थे क्योंकि परिवार के नाम पर  उनके आगे-पीछे कोई न था , वहाँ गए थे,गुरु महाराज की रिक्त गद्दी भी जैसे उनके विछोह में सूनापन लिए नीरस प्रतीत हो रही थी ,वो कक्ष जहाँ संगीत के विविध वाद्य यंत्र सुशोभित थे, वो कक्ष भी आज बहुत गमगीन प्रतीत हो रहा था ,वे गुरु सस्वर सारस्वत महाराज के बडे़ से तखत पर बिछे नर्म गद्दे जिसपर श्वेत सुंदर चादर बिछा हुआ था और उसपर कुछ गिरदे रखे हुए थे ,विराजमान होकर उसपर अपना हाथ फेरने लगे थे ,ऐसा करके उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों वे उनके बिस्तर व गद्दी को ढा़ढंस बंधा रहे हों ,कुछ क्षण पश्चात वहाँ नित्य की भाँति बहुत से शिष्य व शिष्याओं का आगमन हुआ और वे उन्हें संगीत की शिक्षा देने लगे थे । 

गृह में उनके विवाह की  तैयारियां होने लगी थीं ।पिता ने बहुत प्रयास किया था कि सरस्वती तू चाहे तो एक बार अपनी होने वाली जीवन संगिनी को देख ले मगर उन्होंने स्पष्ट कह दिया था कि नहीं बाबू, आपने मेरे लिए जो चुना वो अच्छा ही होगा ।
दोपहर की बेला में भोजन के उपरांत विश्राम कर संध्या को वे फिर अपने कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए गृह से निकल जाते थे ।
देखते ही देखते वो समय भी आ गया था जब उनका विवाह था ।धूमधाम से सारे विवाह के कार्यों के समापन के साथ गृह में ,उनके जीवन में जीवन संगिनी के रूप में वल्लिका का पदार्पण हो चुका था ।

वल्लिका ,उनकी जीवन संगिनी एक समृद्ध परिवार की इकलौती संतान थी ।शहर के कपडा़ व्यवसाई गिरधर दास की कन्या वल्लिका दिखने में साधारण नयन नक्श वाली ,कंधे तक लहराते हुए केश ,छरहरी काया की स्वामिनी थी ।पूरा दिवस विवाहोपरांत के आयोजन में व्यतीत हो गया था और संध्या बेला होने पर मुख दिखाई के लिए आसपास की स्त्रियों का आगमन होने लगा था ।
..........शेष अगले भाग में 
प्रभा मिश्रा 'नूतन'

BBL

BBL

बहुत सुंदर

16 जून 2023

Pragya pandey

Pragya pandey

Nice story

15 जून 2023

20
रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

31 मई 2023
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भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमन

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बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

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बहू की विदाई-भाग 4

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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

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--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती को तो इस समय भाभी के समीप होना चाहिए था !!""नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझ

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बहू की विदाई -भाग 7

1 जून 2023
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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023
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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

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उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

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"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन

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