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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023

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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!
किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।


अच्छा ,कोई वाहन होता है जिसपर हम सवार होकर अपने गंतव्य तक जाते हैं ,,, उस पर मध्य राह में कितने ही पथिक चढ़ते और कितने ही उतरते हैं !! 
क्या चढ़ने वाले से मोह हो जाता है और उतरने वाले की पीडा़ हमें व्यथित कर जाती है ,,,,,नहीं ना !! 

हमारा ये मन भी वाहन की भाँति है जिसमें कोई न कोई पथिक आता है ,कुछ क्षण,दिवस,वर्ष बैठता है फिर उतर कर चला भी जाता है तो क्या हम उसके आगमन पर हर्ष मनाएं या उतरने पर शोकाकुल हो जाएं !!!
हमें समभाव से रहना चाहिए मेरी बच्ची !!!
हर्ष न हमारे मस्तिष्क पर सवार हो मनमानी करे और न विषाद में हम व्यथित हो जीवन के प्रति अपने कर्तव्य विस्मृत कर बैठें !!


वे जानते थे कि एक दिन उनका प्रयास अवश्य रंग लाएगा ,,,,आज उसके कान श्रवण तो सब कर रहे हैं मगर मन तक पहुँचा न रहे पर वो दिवस भी शीघ्र आएगा जब उसके कान ,उनकी बातों को उसके मन के भीतर भी प्रविष्ट होने देंगे और वो पुनः सामान्य जीवन जिएगी।

गृह से संगीतशाला और संगीतशाला से गृह करते हुए दिवंगत पुत्र वागीष का दसवां का दिवस भी आ गया था जब पुत्री वत्सला के सुहाग के समस्त चिन्हों को हटाना था।
और उस दिवस माँ उनके कक्ष में प्रविष्ट होते हुए रुष्ट स्वर में बोली थीं --"देख सरस्वती ,,, तू सदा मनमानी करता आया है और कर रहा है पर मैं आज कहे देती हूँ ,,,आज मेरे पौत्र का दसवां है और आज अभागिन पुत्रवधू की उपस्थिति यहाँ अनिवार्य है ,,, आज उसे यहाँ न लाया तो मैं,,,,, माँ कह ही रही थीं कि उन्हें चपला का स्वर सुनाई पडा़ था --" मौसी, अभी पुत्रवधू को किस कक्ष में बैठाना है ?? कहाँ हो आप मौसी ???"



वे चपला से विगत रात्रि को ही कह आए थे कि भोर में पुत्रवधू को गृह लेकर आ जाना ।
चपला का स्वर सुनकर माँ उनके कक्ष से बाहर चली गई थीं और वे भी माँ का अनुगमन करते बाहर आ गए थे जहाँ चपला पुत्रवधू को लिए खडी़ थी ।

बेचारी मुरझाई लतिका सी वत्सला माँ के कोप का भाजन बनने जा रही थी !!


माँ उसे देखते ही बरस पडी़ थीं --"अपने मनहूस कदम लेकर आ गईं महारानी साहिबा !! विराजिए!!आपके सम्मान में क्या प्रस्तुत करूँ !! 

पुत्रवधू वत्सला की आँखों की कोर से अश्रु ढुलक पडे़ थे और वे माँ से कुछ न कह चपला से बोले थे --"चपला ,बेटी को प्रांगण में बैठाओ !!"

"बेटी !!बेटी !! माँ ने उनकी तरफ नयन तरेर कर कहा था पर वे मौन ही रहे थे क्योंकि अभी वो होने वाला था जिसे उन्हें रोकना था ।
प्रांगण में आस-पास की महिलाएं एकत्रित हो गई थीं और पुत्रवधू वत्सला के पिता सुजान बाबू और उसकी माँ भी पधार गई थीं ।अपनी पुत्री को ऐसी स्थिति में देखकर उनका कलेजा फट रहा था ।


सुजान बाबू की सहधर्मिणी पुत्री वत्सला के समीप जाकर उसे आलिंगनबद्ध कर विलाप करने लगी थीं पर उसे तो जैसे भान ही न था कि माँ उसे आलिंगनबद्ध किए हैं !!या वो कोई प्रतिक्रिया व्यक्त ही न करना चाहती थी ।

पुत्रवधू वत्सला से सुहाग चिन्हों को विलग कर दिया गया था और अब केशहीन करने का प्रारंभ होने ही वाला था कि वे आगे आकर हाथ दिखाकर बोल उठे थे --"बस !! जो उचित था वो हो गया पर ये कदापि न होगा !!"
"तेरा दिमाग तो अपने स्थान पर है या फिर गया  !!
आखिर करना क्या चाहता है तू ! जो सदियों से चलता चला आया है उसे रोकना चाहता है तू !! पति के देवलोक गमन के पश्चात उसकी सहधर्मिणी को केशविहीन किया ही जाता है ,,,, तेरे पिता परलोकवासी हुए तो मेरे साथ भी तो हुआ !! हमारे पूर्वज जो नियम बना गए,,जो राह बना गए ,,उसमें बाधा डाल रहा है रे मूरख !! 

जा यहाँ से ,,तेरा यहाँ कोई कार्य नहीं,, जो हो रहा है उसे होने दे !!" माँ झिड़क कर बोली थीं पर वे पराजय स्वीकार न करने वाले थे ,उन्होने माँ से कहा था --" नहीं माँ ,,,,  पूर्वज जो नियम बना गए ,वो उनकी पुरुषवादी सोच थी जो नितांत गलत है !! 

समता का नियम होना चाहिए ,,, ईश्वर ने तो कोई भेद न किया !!उसके लिए तो स्त्री और पुरुष समान हैं फिर ये पूर्वज भेद करने वाले कौन होते हैं ???

जब किसी पुरुष की सहधर्मिणी देवलोकगमन कर जाती है तो पुरुष तो इस भाँति शोकाकुल न होता जैसे ये मासूम लतिका सी पुत्री है इस समय !!
कोई पुरुष तो सदा के लिए केशविहीन न होता !! किसी पुरुष से उसके जीवन के रंग न न छीन लिए जाते हैं !! 
हर नियम स्त्रियों के लिए ही क्यों !!
पुरुषों के लिए क्यों नहीं !!

कभी तो स्त्रियों को भी बराबरी का दर्जा दिया जाए !!
सदा से जो रीति चली आई उसमें परिवर्तन न होना जड़ता का प्रतीक है ,माँ !
किसी को तो प्रथम कदम बढा़ना ही होगा !!किसी को तो इन रीतियों में परिवर्तन करने हेतु पहल करनी होगी !!

नियम हों या कानून,रीति हों या रिवाज ,परिवर्तन तो होना ही चाहिए !!
परिवर्तन किसमें न होता !!
क्या समय सदा एक सा रहता है !! 
क्या ऋतुओं में परिवर्तन न होता !!
क्या दिवस और रात्रि में परस्पर परिवर्तन न होता !!
क्यों पुरुषवादी सोच और उनके बनाए नियमों में परिवर्तन न हो !! क्यों हर बार स्त्री से ही उसके जीने का अधिकार ,उसके प्रसन्न रहने का अधिकार,उसके हिस्से के रंग का त्याग करना उससे बलात लिया जाए !!
मैं इन रीतियों को न मानता हूँ ,न इन सबमें विश्वास रखता हूँ और न मैं ये होने दूँगा !!"

"तेरे मानने या न मानने से कुछ न होता है !! समाज को भी देखना पड़ता है ,उसके अनुसार चलना पड़ता है ,, सदियों से ऐसे ही चलता आ रहा है और सदियों तक ऐसे ही चलते रहना है !!" माँ ने उनकी तरफ आँखें तरेर कर कहा था ।
"नहीं माँ ,,, सदियों से चलता आ रहा होगा पर मैं न चलने दूँगा ,,, बाबू के देवलोगगमन के पश्चात मैंने आपको भी केशविहीन होने ,श्वेत वस्त्रों का वरण करने से रोकने का भरसक प्रयास किया था पर ..........शेष अगले भाग में।

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21 जुलाई 2023

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रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 2

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बहू की विदाई-भाग 3

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बहू की विदाई-भाग 4

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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई-भाग 11

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बहू की विदाई-भाग 19

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

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