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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023

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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें  चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने वागीष का एक मित्र खडा़ था । वो भी गृह के मुख्य द्वार पर आ गए थे और माँ के साथ शन्नो मौसी भी उनके ही समीप आकर खडी़ हो गई थीं ।
वागीष के मित्र को अकेले आया देखकर मन कुछ अनिष्ट की आशंका से विचलित हो उठा था ,,,,
वागीष के मित्र ने विलाप करते हुए बताया था --" चाचा जी गजब हो गया !! सब बरबाद हो गया !! सब खत्म हो गया !!!"


"अरे पहेलियां ही बुझाएगा या कुछ स्पष्ट बताएगा भी !!"माँ ने वागीष के मित्र को विलाप करते देखकर घबराकर थोडा़ ऊंचे स्वर में पूछा था ।
"चाची ,अपना गृह  आने को आधा किलोमीटर ही बचा था, वागीष,भाभी को लेकर गृह पहुँचे उसके पूर्व ही उसे ह्रदयाघात हो गया और उसका निधन हो गया है !! शीघ्र चलें" ,,, 
"क्याआआआ" कहती हुई माँ मूर्छित हो गई थीं और शन्नो मौसी व चपला उन्हें सँभालने लगी थीं और वे घटनास्थल की तरफ बोझिल कदमों से जाने लगे थे ,उनके मन सागर में सुजान बाबू से किया हुआ वचन उथल-पुथल मचा रहा था ।

गुरु सस्वर सारस्वत महाराज के निधन से उपजे विछोह से उबरने के पश्चात शनैः शनैः उन्होने सुख व दुख में समभाव से रहने का गुण सीख लिया था ।ये सामान्य मनुष्यों के वश की बात न थी,ये तो तत्व ज्ञान का वो निचोड़ था जिसे आसानी से कोई मन कण्ड में उतार सकता था भला !!और जिसने उतार लिया वो फिर सामान्य मनुष्य रह ही कहाँ गया !!वो तो महात्मा हो गया ,ईश्वर के सन्निकट हो गया ।
अब उल्लास के क्षण उन्हें सद् मार्ग से भटका न पाते थे और ना ही वेदना के क्षणों में आँखों में अश्रु आकर उन्हें कमजोर कर पाते थे,उनका ह्रदय तो चट्टान में परिवर्तित हो गया था,जिसके भीतर आत्मा अपने कर्तव्यों के प्रति उन्मुख अपनी साधना में रत रहती थी,पर इस सूचना ने उनके मस्तिष्क में उथल-पुथल मचा रखी थी ।उन्हें रह-रहकर पुत्रवधू वत्सला के पिता सुजान बाबू से किया हुआ वचन स्मरण हो रहा था।सुजान बाबू की कन्या वत्सला का संसार तो बसने से पूर्व ही उजड़ गया था !!
ये विधाता ने कौन सा खेल खेला था !! पुत्रवधू वत्सला ने तो अभी अपने पति परमेश्वर की तरफ एक दृष्टि भी न डाल पाई होगी और विधाता ने उसे अपने लोक बुला लिया था!!
मन में विचारों का चक्र अपनी गति से गतिमान था और वे अपने कदम बढा़ते जा रहे थे,और उन्हें ये भान भी न था कि उनके पीछे-पीछे उनकी शन्नों मौसी की पुत्री चपला भी आ रही थी।
वे जब घटनास्थल पर पहुँचे तो वहाँ अपार भीड़ लगी हुई थी।उन्हें देखकर लोगों ने तितर-बितर होना प्रारंभ कर दिया था ।
उनके नयनों ने वो दृश्य देखा था जो सामान्य मनुष्यों के लिए ह्रदय को चीरकर रख देने वाला था।उन्होने देखा था--गाडी़ के आगे की गद्दीपर पुत्र वागीष का शव पडा़ हुआ था और उसके दो मित्र गाडी़ के बाहर अपने अधरों पर अपने हाथ की मुट्ठी बनाकर रखे हुए अश्रुपूरित नयन लिए खडे़ थे और पुत्र वागीष के समीप उसकी नवविवाहिता जो ईश्वर के लिए निर्णयानुसार विधवा हो चुकी थी,वो गाडी़ की गद्दी पर बद्हवास सी,ठगी सी बैठी हुई थी ।उसके  विस्फारित नयन शून्य में ताक रहे थे ,सिर की चूनर खिसक कर कंधे पर आ गई थी ।
उसके मुखमण्डल पर जो भाव थे वो उसे भली-भाँति पढ़ सकते थे।
ये कुछ इस भाँति था जैसे मेघों के बरसने से पूर्व ही पवन उन्हें उडा़ ले गई हो और धरा के ह्रदय में विछोह की तड़प से दरारें पड़ गई हों ।
जैसे पराग से परिपूरित पुष्प को चूमने से पूर्व ही भौंरा उड़ गया हो और पुष्प उसके विछोहाग्नि में झुलस कर मुरझा गया हो ।
जैसे अंधकार प्राची का हाथ थामकर उजाले की तरफ पहला कदम बढा़या ही हो और उजालों ने स्याल मेघों से अपना मुखमण्डल ढ़ककर उसकी आशाओं पर तुषारापात कर दिया हो ।
पुत्रवधू वत्सला का मन इस घडी़ में क्या चिंतन कर रहा होगा इसका अंदाजा भी वे भली-भाँति लगा सकते थे।
कहा जाता है कि बेटियाँ पराया धन होती हैं ,मायका तो उनका अस्थाई का घर होता है जिसे एक न एक दिवस तजकर अपने गृह ससुराल गमन करना होता है ।
हा !! अस्थाई  गृह छूट गया और जिसका हाथ थामकर अपने वास्तविक निवास पिय गृह चली वो तो पिय के देवलोग गमन से रूठ गया !
वर बिन कैसा घर!!
जडे़ं ही साथ छोड़ दें तो तने कहाँ जाएं !!
वे हर्ष,शोक,इन संवेगों से ऊपर उठ चुके थे  उनका मन तो ये सोचकर भारी हो गया था कि मैं जाने-अनजाने सुजान बाबू का दोषी हो गया !! 
उनकी पुत्री को  बेटी मानने के साथ-साथ सर्वसुख देने का वचन दिया पर उसके दामन में तो दारुण दुख,क्लेश,वेदना भर गई !!
वे अपने पुत्र वागीष के मित्र के समीप आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले थे -" गाडी़ से वागीष का पार्थिव शरीर निकाल कर दूसरी गाडी़ से गृह जाओ और मैं इस गाडी़ से कुछ ही समय पश्चात गृह आता हूँ ।"

वागीष के दोनों मित्रों ने मिलकर उसका पार्थिव शरीर दूसरी गाडी़ में रख दिया था और गाडी़ लेकर गृह प्रस्थान कर गए थे ,इसी उपक्रम में उन्होने अपने समीप चपला को खडा़ पाया था ।चपला को देखकर वे बोले थे -"चपला मेरे साथ इस गाडी़ में बैठो ,मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता है " पर चपला तो सँभव है कि उनके नयनों की सीपी में अश्रुओं के मोती खोज रही थी ,उनके मुखाकाश में वेदना के स्याह मेघ खोज रही थी, उनके मुख से निकला था -"मैं इन सब चीजों से ऊपर उठ चुका हूँ चपला ।" 

चपला की आँखें आश्चर्य में सँभव है ये चिंतन कर फैल गई थीं कि सरस्वती तो मन पढ़ना भी जानता है !!
चपला उनकी समउम्र थी  और इस हेतु उन्हें सरस्वती ही कहती थी ,वो भी एक बेटी की माँ थी तो इस बेटी के दारुण वेदना को समझ सकती थी ।
उसने कहा था -" मैं तुम्हारी मदद करूँगी सरस्वती ।"

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21 जुलाई 2023

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रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

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बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023
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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

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बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

31 मई 2023
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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
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--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती को तो इस समय भाभी के समीप होना चाहिए था !!""नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझ

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बहू की विदाई -भाग 7

1 जून 2023
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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023
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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023
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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
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उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
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"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन

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