।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।
शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी हुई थीं ।
शन्नों मौसी ,छोटे कद की गौर वर्ण की ,सीधे पल्ले की साडी़ पहने हुए ,कमर तक लहराती चोटी ,कमर में घर की चाभियों का गुच्छा लगाए ,मुँह में पान दबाए ,हँसते हुए आवभगत में लगी थीं ।
शनैः शनैः कर संध्या बेला भी विवाह के आयोजनों का आनंद उठाकर प्रस्थान कर गई थी और रात्रि का आगमन हो गया था ।सबके भोजन करने के पश्चात शन्नों मौसी की बेटी चपला ,वल्लिका को लेकर उनके कक्ष में ,हँसती हुई छोड़ गई थी ।वल्लिका सहमी,सकुचाई, लजाई हुई उनके कक्ष के दरवाजे के समीप ही सिर झुकाए खडी़ हो गई थी और लाज के कारण अपने एक पैर के अँगूठे को दूसरे पैर के अँगूठे पर फेर रही थी ।
वो अपने बिस्तर पर बैठे हुए बोले थे -"वहाँ क्यों खडी़ हो ?आओ ,यहाँ आओ ।"
उसने आने को कदम बढा़ए ही थे कि कक्ष के दरवाजे पर किसी ने खटखटाहट की थी ।
"भाभी को मौसी जी ने बुलाया है " स्वर सुनकर वो समझ गए थे कि माँ के आदेश पर चपला अपनी भाभी को लिवाने आई है ।उन्होंने दरवाजा खोल दिया था और चपला वल्लिका को लेकर प्रस्थान कर गई थी और वो चिंतन करने लगे थे कि माँ ने इस समय वल्लिका को क्यों बुला भेजा !!
कुछ क्षणों पश्चात चपला वल्लिका को पुनः उनके कक्ष में छोड़ गई थी और वल्लिका सकुचाते हुए उनके समीप बैठ गई थी ।
"देखो, तुम्हारे साथ अपना वैवाहिक जीवन प्रारंभ करने से पूर्व तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ "वे बोले थे ।
"यही कि संगीत का स्थान आपके जीवन में सर्वोपरि है।"वल्लिका ने शीश झुकाए हुए ही कहा था ।
"तुम्हें किसने बताया !!मां ने !!"उन्होने एक प्रश्न वल्लिका की तरफ उछालते हुए उसका सँभावित उत्तर भी बताया था और उनका वो उत्तर सही ही था जिसका प्रमाण वल्लिका का शीश हिलाकर हामी भरना था ।
वल्लिका का ऐसा कहना उन्हें बहुत कुछ बता गया था ,वे समझ गए थे कि माँ ने वल्लिका को क्यों बुलाया था ।
"ओह !!समझ गया"उन्होने कहा था ,फिर आगे अपनी बात रखी थी --"देखो वल्लिका अब जब तुम्हें ज्ञात ही हो गया है कि संगीत मेरा प्रथम प्रेम है ,तो मेरे प्रेम से प्रेम कर सकोगी !!! ऐसे नयन झुकाकर नहीं अपितु मेरे नयनों में नयन डालकर उत्तर दो वल्लिका !!
वल्लिका ने इस बार नयन उठाकर उनके नयनों की तरफ देखते हुए कहा था --" मैं आपकी जीवन संगिनी हूँ ,आपके साथ जीवन पथ पर चलने हेतु ही अपना गृह ,परिवार,सारे रिश्ते-नाते छोड़कर आई हूँ , तो मैं आपकी हर रुचि में ,हर कार्य में,हर सुख-दुख में सदा आपके साथ खडी़ रहूँगी ।
उन्हें बहुत सुकून मिला था वल्लिका का उत्तर सुनकर पर वो जानते थे कि माँ के ह्रदय को एक बार पुनः आघात लगेगा और वही तो हुआ था !!
भोर की प्रथम किरण फूटने के साथ ही वल्लिका उठकर स्नान-ध्यान में लग गई थी और वे स्नान ध्यान के पश्चात जलपान करके गुरु महाराज के गृह जाने हेतु तैयार होने लगे थे ।
श्वेत कुर्ता-पैजामा ,उसके ऊपर काली सदरी धारण कर सिर पर टोपी लगाकर अपनी छडी़ लेकर वे गृह से गमन करने ही वाले थे कि शन्नो मौसी के साथ जलपान करती माँ वल्लिका से पूछ बैठी थीं -"ये सरस्वती कहाँ जा रहा है ??"
वल्लिका ने शीश झुकाकर कहा था -"माँ वो शिष्यों व शिष्याओं को संगीत की शिक्षा देने हेतु गुरु महाराज के गृह संगीतशाला जा रहे हैं ।"और माँ ने शन्नों मौसी की तरफ देखते हुए सिर पकड़ लिया था ।
स्पष्ट था कि रात्रि को वल्लिका को आदेश हुआ था कि तुम सरस्वती की जीवन संगिनी हो तो उसे अपने प्रेम में बांधों ताकि उसका मन संगीत से हटे ,मगर वल्लिका ने उनके दिए वचन के लिए माँ के आदेश की अवहेलना कर दी थी।
शन्नों मौसी मंद मंद मुस्कुरा रही थीं जिसका तात्पर्य था कि जिज्जी एक ही रात्रि में बहू भी आपके बेटे के रंग में आपादमस्तक रंग गई है ,, अब कुछ न हो सकता !!
वे अपनी छडी़ उठाए गृह से प्रस्थान कर गए थे ।
दोपहर की बेला में भोजनोपरांत विश्राम के समय वल्लिका ने उनके समीप बैठते हुए प्रश्न किया था --"एक बात पूछूँ, माँ आपके संगीत के प्रति रुचि से इतना अप्रसन्न क्यों रहती हैं ??उन्हें संगीत से इतनी अरुचि क्यों है !!
वे वल्लिका का प्रश्न सुनकर अवाक रह गए थे ,उन्होंने कभी इस पर विचार भी न किया था कि माँ की संगीत के प्रति अरुचि का कोई कारण भी हो सकता है !!
वे वल्लिका से बोले थे --" कभी जानने की जिज्ञासा ही न हुई तो माँ से कभी पूछा ही नहीं "और उठकर कक्ष के झरोखे के पास खडे़ हो गए और रात्रि को निहारने लगे - कितनी गहन अँधियारी रात्रि है !! अपने भीतर जैसे कुछ अनकहा समेटे हुए ! इसके संग प्रियतम चाँद व नक्षरों रूपी असंख्य पुत्र हैं फिर भी कुछ न कुछ है जो अनकहा है !कुछ है जो अपने ह्रदय में समेटे रहने की वजह से वो स्याह हो गई है !
उन्हें आभास हो रहा था जैसे उनकी माँ उस रात्रि में प्रतिबिंबित हो रही थीं ।
माँ भी क्या कुछ अनकहा अपने भीतर समेटे हैं जिसकी कसक उनके पसरे मौन में है !!
क्या करूँ !!किससे पूछूँ !!
कहते हैं कि वास्तविक जीवन संगिनी वो होती है जो प्रियतम के मन की बात उसके कहे बिना ही सुन ,समझ लेती है ।वल्लिका वैसी ही तो जीवन संगिनी थी ,वो पीछे से आकर उनके कंधे पर हाथ रखकर बोली थी --शन्नों मौसी, शन्नों मौसी से पूछिए ,दो बहनें आपस में सबसे अच्छी मित्र भी होती हैं ,मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि शन्नों मौसी को सब ज्ञात होगा ।
वे वल्लिका की तरफ देखते हुए मुस्कुराकर कक्ष से बाहर प्रस्थान कर गए थे ।
शन्नों मौसी चपला के साथ अपना सामान बाँध रही थीं ,उन्हें भोर में अपने गृह प्रस्थान करना जो करना था ।
शन्नों मौसी ने उन्हें अपने कक्ष से बाहर गमन करते देखकर उनके समीप आई थीं और पूछ बैठी थीं ...
शेष अगले भाग में ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'