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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023

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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"
चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।

किसके गृह चलूँ !! किसके साथ चलूँ !!
कौन से गृह चलूँ !!
मायके का छूटा साथ,
पिय का छूटा हाथ,
खडी़ मध्य मझधार,
मिट चला जो खेवनहार।
बद् हवास सी वो कहती -कहती चुप हो गई थी ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो स्वयं से ही कह रही थी ,उसकी आँखें पलकों के द्वार बंद करने व खोलने का उपक्रम ही विस्मृत कर बैठी थीं ,

जिनमें कुछ क्षणों पूर्व लाज मिश्रित हर्ष की चमक होगी ,वे अब विलाप करना है या नहीं ,ये भी न समझ पा रही थीं।
उन्होने गाडी़ चालक को संगीतशाला चलने का आदेश दिया था और गाडी़ गंतव्य की ओर चल दी थी और उनका मन भी चिंतन करने  चल दिया था कि कितनी बेसब्री से गृह की देहरी पलकें बिछाए अपनी लक्ष्मी की प्रतीक्षा कर रही होगी पर उसे अंदाजा भी न लगाया होगा कि लक्ष्मी तो आएगी पर निपट अकेली,,, लुटी-पिटी,, अपने विष्णु के बिना ही !!! 
क्या होगा जब माँ अपने पौत्र का शव देखेंगी !!

क्या होगा जब माँ देखेंगी कि गृह तो पौत्र का शव ही आया है ,,, जिसे ब्याहने गया वो तो आई ही नहीं !!
वो पुत्रवधू वत्सला को  चपला के साथ संगीतशाला ले जा रहे थे क्योंकि वो न चाहते थे कि वत्सला ,जिस पर उनके गृह में स्नेहवृष्टि होनी थी उस पर अपशब्दों की महावृष्टि हो और वो उन अपशब्दों की धार,बौछार का आघात सह न पाने के कारण टूट कर इतना बिखर जाए कि फिर उसे सँभालना भी दुरूह हो जाए !!

कहा जाता है कि औरत ही औरत की बैरी होती है ,, यहाँ तो माँ का एकलौता पौत्र देवलोक गमन कर गया है तो उसका सारा दोष तो बेचारी ,मासूम वत्सला पर ही मँडा़ जाएगा !! 
उसे ही कुसूरवार ठहराया जाएगा !! और मन के भीतर  वेदना से उपजे अश्रुओं का बांध उस वत्सला पर खोल दिया जाएगा जिसमें से वो सँभव है कभी उबर न पाए !!
इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ था जो माँ के द्वारा कराया जाना निश्चित था और जिसे उन्हें कभी भी हालत में रोकना ही था ।
यही कुछ वजहें थीं जो वो पुत्रवधू वत्सला को संगीतशाला ले जा रहे थे ताकि माँ के वेदना का झंझावत गुजर जाए तभी वत्सला को तभी गृह ले जाया जाए ।

"बाबू जी , संध्या होने वाली है ,  रात्रि के भोजन में क्या पकाऊँ !! माँ साहब से पूछ लेता परन्तु......  "
प्रमोद का स्वर सरस्वती चरण दास को अतीत से वर्तमान में खींच लाया ।
" कुछ माँ की रुचि का पका लो"इतना कहकर वे अपनी कुर्सी से उठने ही वाले थे कि स्थूल देह का कमीज व पैजामा धारण किए,कंधे पर अँगौछा डाले हुए प्रमोद उनके पैरों के समक्ष पलथी मारकर बैठते हुए बोला-"बाबू साहब आपने जो कार्य करने की हिम्मत दिखाई है वो बहुत प्रशंसनीय है ,,,सराहना योग्य है ,, अपना समाज तो वो समाज है जो स्त्रियों को अपने पैरों की जूती समझता है ,, और विडम्बना तो ये है कि औरत ही औरत को न समझती है !! जानते हैं बाबू साहब,,,,  आगे कहते  हुए प्रमोद के नयन के कोरों में अश्रु आ गए थे ,,,,, "जब मेरे बाबू परलोकवासी हुए तब मेरे बाबा साहब थे और दादी साहब ने माँ ने कहा था --" जब तेरे प्राणनाथ न रहे तो तू ये निष्प्राण देह लेकर क्या करेगी !!बोल !"और उन्होने मेरी माँ को बाबू की प्रज्वलित चिता में जबरन झोंक दिया था ,,, 
बाबू साहब , वो सब देखकर मेरा ह्रदय बहुत खिन्न हो गया था और मैंने अपना गृह त्याग दिया था ,,, फिर मुझे सस्वर सारस्वत महाराज से भेंट हुई और उन्हीं के यहां मैं सेवाकार्य करने लगा .......... कहते हुए प्रमोद का स्वर भरभरा गया था और वो अपने अँगौछे से अपने अश्रु पोछते हुए आगे बोला था --"बाबू साहब ,,, आपने सदियों से चली आ रही रीति के विरुद्ध प्रथम कदम उठाया है ,, जो लोगों को आसानी से पचने वाला नहीं है ,,, पर आप निराश मत होइएगा,, माँ साहब भी शनैः शनैः आपने वार्तालाप प्रारंभ कर ही देंगी ,,, कोई माँ अपने बेटे से अधिक दिवस रूठी न रह सकती है ,,, 
लोग आपको समझें,उनकी सोच में परिवर्तन हो और औरतें बहू को बेटी मानने लगें तो किसी  बेटी के साथ जबरदस्ती कोई कृत्य न हो जैसा मेरी माँ के साथ हुआ था........ 
प्रमोद कहते हुए उनके कक्ष से गमन कर गया था और वे

अपने कक्ष की खिड़की खोलकर वे उसके परदे सरकाकर उसके समीप खडे़ हो गए थे और बाहर से आती शीतल पवन हर्ष से उनका मस्तक चूमने लगी ,मानो कह रही हो कि तुमने प्रशंसनीय कार्य किया है सरस्वती ।

अतीत के पृष्ठ पुनः उनके नयनों के समक्ष फड़फडा़ कर खुलने लगे थे --
वे पुत्रवधू को लेकर संगीतशाला पहुँच गए थे ।संगीतशाला का मुख्य द्वार खोलकर वे चपला के साथ पुत्रवधू को भीतर कक्ष में बैठाकर चपला के साथ बाहर बरामदे में आकर चपला से बोले थे -"चपला ,अभी बेटी वत्सला को गृह न ले जा सकता क्योंकि ये मुझे उचित न जान पड़ता है ,मुझे तुम्हारे कुछ दिन चाहिए ,, तुम यहाँ बेटी वत्सला के साथ रहकर उसका ध्यान रखो और मैं आता-जाता रहूँगा फिर उचित समय देखकर ही इसे गृह ले जाऊँगा तब तुम अपने गृह प्रस्थान करना ,,, मेरे लिए इतना करोगी ना !!"

"कैसी बात कर रहे हो सरस्वती !! मैं पुत्रवधू को यहाँ लाने के पृष्ठ में तुम्हारी मंशा को समझ गई हूँ ,तुम निश्चिंत होकर गृह प्रस्थान कर माँ को धैर्य बंधाओ और यहाँ की चिंता मुझपर छोड़ दो ,गृह प्रस्थान करो सरस्वती ।"चपला ने कहा था और वे गृह प्रस्थान कर गए थे ।

जब वे अपने गृह पहुँचे तो देखा कि उनके गृह के बाहर अपार जन एकत्रित हो चुके थे जिनमें उनके असंख्य शिष्य व परिचित  इत्यादि थे ।गृह के बाहर सँभव है उनके किसी शिष्य ने ही कुर्सियां डाल दी थीं जिनपर उनके सम उम्र जन बैठे हुए थे और उनका शिष्य समुदाय  अधरों पर मौन धरे इधर से लेकर उधर दोनों छोरों पर धीमे कदमों से टहल रहा था ।

Neeraj Agarwal

Neeraj Agarwal

सच और आज के परिवेश को सहयोग करती हैं अब सभी की सोच हो ईश्वर के साथ जीवन मरण फिर नारी उम्र के साथ जीवन जी सकती है ऐसा चरण दास ने सही किया।

1 जून 2023

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

1 जून 2023

🙏🙏🙏🙏

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रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

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बहू की विदाई-भाग 2

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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

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बहू की विदाई-भाग 4

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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

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बहू की विदाई -भाग 7

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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

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बहू की विदाई-भाग 11

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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
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उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
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