shabd-logo

बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023

52 बार देखा गया 52
उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे  उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में कृषक की भाँति देख रहे थे कि कब  उनके उत्तर की वृष्टि हो और और मन धरा पर संतोष की फसल लहलहा उठे।

उन्होने उन अपार जनों की आँखों में छुपे प्रश्न को पढ़ लिया था और अपने एक शिष्य के समीप जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा था -

"पुत्रवधू वत्सला को अभी यहाँ लाना उचित न था अतः उसे संगीतशाला छोड़ आया हूँ ,सभी को बताकर सबकी शंका का समाधान कर दो ।"
और इतना कहकर वे गृह के भीतर प्रवेश कर गए थे जहाँ
वागीष का शव रखा गया था और माँ दहाडे़ मार -मार कर विलाप कर रही थी ।
उन्होने जिसका अंदाजा लगाया था वही सब तो हो रहा था !!माँ विलाप करती हुई पुत्रवधू वत्सला को कोस रही थी --  हे विधाता !कैसी कुलक्षिणी बहू दी तूने जो मेरे पौत्र को ही निगल गई !! 
शन्नो मौसी भी विलाप करती हुई ,माँ का शीश अपने कंधे पर रखकर उन्हें धैर्य बँधा रही थीं ।गृह का कोना-कोना मानो  वागीष के देवलोग गमन से उपजे शोक के कारण स्तब्ध हो गया था ।
उन्हें देखते ही माँ विलाप करते हुए बोली थीं --" वो कुलक्षिणी कहाँ है !!  उसे कहाँ छोड़ आया ???
जिसने तेरे पुत्र को ही लील लिया उसे साथ न लाया !! 
वो अपने पितृगृह वापस लौट गई !!
या उसे संगीतशाला छोड़ कर आया है तू !! 
वो अभागन  !! उससे किस घडी़ में मेरे पौत्र के साथ विवाह होना तय हुआ था कि उससे बंधन जुड़ते ही मेरा पौत्र देवलोग गमन कर गया !!


और तुझे उससे सहानुभूति है !!उससे !! जो तू उसे यहाँ न लाया !!  अरे बाहर बैठे अपार जनों के बारे में तो सोचा होता कि वे क्या सोचेंगे ! 
गृह का एकमात्र दीपक ,वो भी बुझ चला !!! " 
माँ की पीडा़ देखकर उन्हें कुछ भी कहना ,उनके प्रश्न का उत्तर देना उचित न जान पडा़ था और वे मूक बनकर दिवंगत पुत्र वागीष के शव के पास बैठ गए थे ,माँ उनकी आँखों में आँसुओं का एक भी कतरा न देखकर रोष में बोली थीं --" रे कैसा मानुष है तू !! मानुष ही है ना !!मुझे तो संदेह होता है !! 


जो अपने बाप और सहधर्मिणी के देवलोक गमन पर अश्रुपात न कर सका ,जो अपने पुत्र के देवलोग गमन पर अश्रुपात न कर सका वो तो  मनुष्य की देह में पाषाण ही हो सकता है "
वे  अपनी चुप्पी तोड़ते हुए माँ की तरफ देखकर बोले थे -"माँ कैसा और क्यों अश्रुपात !! किसके लिए अश्रुपात !!
मानव देह तो नश्वर है ,नश्वर देह के लिए अश्रुपात !!
अश्रुपात करना तो मानसिक दुर्बलता का प्रतीक है !! जो आया है उसे एक न एक दिवस तो जाना ही है !! न कोई हमारी इच्छा से आता है न कोई हमारी इच्छा से जाता है , ईश्वर ही हर प्राणी को धरा पर भेजता है और जब उसका मन करता  है वो वापस बुला लेता है !! जो है वो ईश्वर का है ,हमारा कुछ भी नहीं  है तो जो हमारा नहीं  है उसके लिए शोक करना उचित नहीं है !!

"चुप कर !! ये समय तेरे उपदेश देने हेतु सही नहीं है !! "माँ ने उन्हें झिड़क कर कहा था पर वे माँ को इस वेदना से उबारना चाहते थे सो अपनी बात अनवरत जारी रखते हुए बोले थे--" माँ ये संसार एक कूप है जिसमें हम प्राणी पडे़ हुए हैं और हमारे आसपास मोह,लोभ,क्रोध,ईर्ष्या,छल-कपट,प्रतिस्पर्धा इत्यादि का इतना कीच है कि हम उनमें सने हुए हैं ,,, और देखो हम अज्ञानी ,मूढ़ प्राणी इस कीच में सने होकर भी इससे उबरने का प्रयास तक न करते हैं !! 
वो ईश्वर ही है जो इन समस्त कीच को हटाकर हमें संसार कूप से निकाल सकता है पर हम उन्हें पुकारना भी न चाहते !! 
माँ ,इस सबसे हम उबरेंगे तभी तो ईश्वर के सन्निकट हो पाएंगे !!"

"ईईईईईईईईईई" उनकी इन बातों से खिन्न होकर माँ अपनी आँखें बंद कर अपने हाथों को कानों पर रखकर चीखी थीं ।
तभी पुत्रवधू वत्सला के पिता सुजान बाबू और उनकी सहधर्मिणी ने  विलाप करते ,बिलखते हुए गृह में प्रवेश किया था ।
उनको देखकर माँ का रुदन थम कर क्रोध में परिवर्तित हो गया था और वे चीख कर उन्हें कोसते हुए बोली थीं --" कैसी अभागी पुत्री आपकी थी जिससे विवाह होते ही मेरा पौत्र देवलोकगमन कर गया !! 
मेरा पौत्र तो चला गया अब यहाँ क्या लेने आए हैं !! आपकी पुत्री तो आपके गृह वापस लौट गई होगी ना !! 
इतना सुनते ही सुजान बाबू हैरान होकर विलाप करते हुए बोले थे --"नहीं ,,,मेरी पुत्री मेरे गृह नहीं है !! तो मेरी पुत्री कहाँ है !! 

सुजान बाबू की सहधर्मिणी ने उनके समक्ष आकर विलाप करते हुए पूछा था --" सरस्वती चरण दास जी ,मेरी पुत्री कहाँ है !!कहाँ है मेरी बच्चीईइइ!!!"

"आपकी पुत्री को यहाँ लाने का समय उचित न था अतः उसे संगीतशाला छोड़ आया हूँ ,,वहाँ मेरी बहन चपला उसके समीप है ।"वे बोले थे ।

"यहाँ लाने का समय उचित नहीं है !! मेरे पौत्र की हत्यारिन को संगीतशाला में छोड़ आए सरस्वती !! अपने पुत्र के लिए लेशमात्र मोह नहीं और उसकी इतनी परवाह !!! धिक्कार है तुझ पर !! "कहते हुए माँ जोर जोर से विलाप करने लगी थीं ,और सुजान बाबू  की ससधर्मिणी उनकी कमीज पकड़कर उनसे विलाप करते हुए बोली थीं --" कहा था आपसे ,कि इनके यहाँ अपनी पुत्री का विवाह न करें !! इनके यहाँ अपनी पुत्री सुखी न रहेगी इसका अंदेशा इस माँ को हो गया था पर आपने मेरी एक न सुनी ,,उसका परिणाम प्रत्यक्ष देख लिया !!अपनी पुत्री का संसार बसने से पूर्व ही उजड़ गया !!! सुजान बाबू उनकी आँखों में आँखें डालकर उदास होकर देखने लगे  थे ,मानो कह रहे हों कि आपके यहाँ अपनी पुत्री को ब्याहने का निर्णय सही न था ।

वे समझ गए थे कि जितनी देर वागीष की पार्थिव देह यहाँ रहेगी उतनी देर माँ का विलाप करना थमेगा नहीं अतः वे उठकर बाहर जाकर अपने तीन शिष्यों को भीतर बुलाकर पार्थिव देह के अंतिम संस्कार हेतु शमशान गृह ले जाने लगे थे और माँ कहती रह गई थीं --

Sandhya

Sandhya

वाह वाह

21 अगस्त 2023

BBL

BBL

shandar bhaag

21 जुलाई 2023

20
रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
1

बहू की विदाई-भाग 1

31 मई 2023
90
35
13

भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमन

2

बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
53
31
5

"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

3

बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023
43
31
2

सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

4

बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
39
30
3

।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

5

बहू की विदाई-भाग 5

31 मई 2023
37
28
2

-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

6

बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
36
26
3

--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती को तो इस समय भाभी के समीप होना चाहिए था !!""नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझ

7

बहू की विदाई -भाग 7

1 जून 2023
35
27
1

"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

8

बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
35
28
1

उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

9

बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
36
28
1

कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

10

बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
35
27
2

वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

11

बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
34
26
2

उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

12

बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023
34
27
1

--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

13

बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
33
27
1

उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

14

बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
33
27
0

आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

15

बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
33
27
5

रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

16

बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
32
27
1

ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

17

बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023
32
25
1

आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

18

बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
32
27
0

शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

19

बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
33
27
0

उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

20

बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
32
27
4

"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए