-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???"
"हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।
"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" कहते हुए शन्नों मौसी उनके समीप वहीं बरामदे में पडे़ तखत पर बैठ गई थीं ।
"मौसी ,माँ की संगीत के प्रति इतनी अरुचि के पृष्ठ में कोई कारण छुपा हुआ है क्या जिससे मैं अनभिज्ञ्य हूँ"उन्होने सीधे सीधे ही शन्नों मौसी से प्रश्न पूछकर उनके चेहरे के भावों को पढ़ना प्रारंभ कर दिया था।
"सरस्वती ,अकस्मात ये प्रश्न पूछना !!और वो भी इस घडी़ !!इस समय तो तुम्हें बहू के समीप होना चाहिए !!" शकुंतला मौसी जिन्हें माँ प्रेम से शन्नों कहती थीं उनके, प्रश्न के उत्तर में प्रश्न सुनकर वो उठकर चल दिए थे ये सोचकर कि सँभव है वे बताना न चाह रही हैं ।
उनका उठकर चलना ही था कि पृष्ठ से शन्नों मौसी का स्वर सुनाई पडा़ था --"हमारे समय में लड़कियों की शिक्षा के प्रति कोई जागरूक न था ,,,,, वे वापस जाकर शन्नों मौसी के समीप बैठकर उनकी बात सुनने लगे थे जिसे जानने को वे व्यग्र हो उठे थे ,,,,,,, हमारे बाबू ने भी इसी हेतु हमें कभी विद्यालय न भेजा था ।मैं और तुम्हारी माँ की उम्र में केवल एक वर्ष की छोटाई,बडा़ई थी अतः हम बहनें कम सखियाँ ज्यादा थे ।
तुम्हारी माँ बचपन से ही शिव भोले के प्रति अपार श्रृद्धा रखने वाली थीं तो वो नित्य ही शिवाले जाती थीं जो हमारे गृह से कुछ ही दूरी पर था ।
जिज्जी सदा मेरे साथ ही शिवाले जाती थीं ।मार्ग में एक महाविद्यालय पड़ता था ,उस महाविद्यालय के बरामदे में ही संगीत का कक्ष था जहाँ संगीत के गुरू जी शिष्यों को संगीत की शिक्षा देते थे । हम जब उस मार्ग से निकलते तो उन शिष्यों में एक शिष्य बहुधा हमें संगीत साधना करते हुए मिलता ।
उसके स्वर में एक खिंचाव था जो जिज्जी महसूस करने लगी थीं ,वे कुछ क्षण उस महाविद्यालय के उस बरामदे में निर्मित संगीत कक्ष के सामने रुक कर उस शिष्य के द्वारा संगीत के स्वर में जैसे सुध बुध विस्मृत कर देती थीं ।
कुछ दिवस ऐसे अनवरत चलने के बाद एक रात्रि जिज्जी ने मुझसे अपने मन की गाँठ खोली जिसके द्वारा मुझे ज्ञात हुआ कि वो उस शिष्य पर आसक्त हो गई हैं ।
मैंने पूछा जिज्जी अब आगे क्या सोचा है !! बाबू को इस सब के बारे में ज्ञात हुआ तो भूचाल आ जाएगा ।
वे और मैं विचार करते रहे कि क्या किया जाए,कुछ क्षणों पश्चात हम इस निर्णय पर पहुँचे कि माँ को सब बता दिया जाए ,वे ही कुछ उचित निर्णय लेंगी ।
माँ को सब बताने के तत्पश्चात माँ ने बाबू से जो कहा वो मैं दरवाजे के ओट से सुन रही थी -- माँ ने बाबू को ये बताया था कि उन्होने कमला के लिए एक सुयोग्य वर देखा है पर वो कौन है !!कहाँ का है !!घर परिवार वो सब आप पता कर लें ।
माँ के कथन पर बाबू उस संगीत महाविद्यालय से उस शिष्य के गृह का पता लगाकर उसके गृह गए थे और जब वापसी की तो उनका मुँह लटका हुआ था ।
माँ ने मुझे पुकार कर बाबू के लिए जल लाने की आज्ञा देकर बाबू से पूछा था --"क्या हुआ !!युवक के बारे में जानकारी कर आए !!"
शन्नो मौसी जैसे बिना श्वास लिए मेरे समक्ष सब वर्णन किए जा रही थीं और वे शांतचित्त मुद्रा में उनको सुनते जा रहे थे।
बाबू ने मेरे द्वारा लाया जल गृहण कर फिर माँ को बताना प्रारंभ किया था ,जो मैं भी वहीं ठहर कर सुनने लगी थी --
बाबू के बताए अनुसार उस युवक के माँ और पिता बचपन में ही देवलोग गमन कर गए थे ।उसके पिता की पूंजी और खेत इत्यादि के सहारे उनके सेवक ने उस युवक का पालन-पोषण ,शिक्षा इत्यादि किया था ।
अब जब उसके गृह में कोई बडा़ न था तो उसी से विवाह की बात बाबू ने प्रारंभ की थी परंतु उस युवक ने ये कहकर अपनी अस्वीकृति प्रकट कर दी थी कि उसने आजीवन विवाह न करने का निर्णय लिया है ।वो अपना सारा समय संगीत को समर्पित करने का अटल निर्णय ले चुका है ।विवश होकर बाबू को वापसी करनी पडी़ थी ।
जिज्जी को ये सब मैंने जब बताया तो वो कुछ क्षण तो निराश हुईं पर पुनः उन्होंने अगले दिवस उस युवक से मिलने का निर्णय किया ।
अगले दिवस मैं और जिज्जी शिवालय से होते हुए वापसी में उस महाविद्यालय के समीप ठहरे और जिज्जी खडी़ होकर उस युवक को गायन करते देखने लगीं ।वो युवक भी सँभव है कि जिज्जी को स्वयं को देखते हुए देख लिया होगा अतः वो अपने संगीत कक्ष से बाहर आने की अनुमति लेकर बाहर जिज्जी के समीप आकर बोला --"आपके यहाँ ठहरने की वजह जान सकता हूँ ??"
जिज्जी ने उससे कहा -" विगत दिवस मेरे पिता आपके पास मेरे विवाह का प्रस्ताव लेकर आए थे ,आपने उसे अस्वीकार कर दिया !! मैं आपसे विवाह को इच्छुक हूँ ।"
वो युवक अपने हाथ जोड़कर बोला --"क्षमा चाहता हूँ बहन ,पर मैंने ब्रह्मचर्य व्रत लिया है और मैं आजीवन इस व्रत का पालन करूँगा क्योंकि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा जन्म ही संगीत की साधना के लिए हुआ है ।"इतना कहकर वो वापस संगीत कक्ष में गमन कर गया ।
मेरी जिज्जी उसके निर्णय से टूट सी गईं और उन्हें संगीत से विरक्ति हो गई ।
"जानते हो वो युवक कौन था !!"
शन्नो मौसी ने पूरा वृत्तांत उन्हें बताकर उनके समक्ष एक प्रश्न उछाल दिया था और वे अनभिज्ञता प्रकट करते हुए पूछ बैठे थे --"कौन ??"
शन्नों मौसी ने बताया था --"तुम्हारे ब्रह्मलीन महान संगीतज्ञ महाराज सस्वर सारस्वत जी ।"
गुरु महाराज !! मैं सुनकर अवाक रह गया था ।वातावरण में निस्तब्धता छा गई थी ।वे अधरों पर मौन बैठाकर आकाश की ओर निश्पलक देखने लगे थे ।शन्नों मौसी ने निश्वास छोड़ उनके हाथ पर अपना हाथ रखकर उनकी तरफ देखना प्रारंभ किया ही था कि चपला आकर बोली थी --..........शेष अगले भाग में
प्रभा मिश्रा 'नूतन'