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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023

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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से कहते हुए वे पुत्रवधू वत्सला के समीप जाकर उसका हाथ थामकर उसे उठाते हुए बोले थे --" चल मेरी बच्ची,,, "

प्रथम बार तब पुत्रवधू वत्सला ने उनकी आँखों में आँखें डालकर अश्रुपूरित नयनों से उनकी तरफ देखा था ,,,, ये कुछ ऐसा था जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो ,,,,,, 
वे उसकी तरफ देखकर बोले थे-"ना मेरी बच्ची!! तू निश्चिंत रह ,,,,तेरे साथ मैं कुछ गलत न होने दूँगा,,,"

और वे पुत्रवधू वत्सला को लेकर उसके कक्ष की तरफ जाने लगे थे और पृष्ठ से माँ का तीखा स्वर सुनाई दिया था --"ये तू सही न कर रहा है सरस्वती !! अरे मेरी कोख से जन्म लेते ही तू स्वर्ग क्यों न सिधार गया !! 

सदियों से चले आ रहे रीति -रिवाजों को बदलने का प्रयास मत कर मैं कहे देती हूँ ,,,"मगर वे माँ की बात का कोई उत्तर न देकर पुत्रवधू वत्सला के कक्ष की तरफ बढ़ गए थे ,और 

उनका अनुगमन करती चपला भी सँभव है आ रही थी क्योंकि शन्नों मौसी का स्वर उन्हें सुनाई दिया था -"तू कहाँ वहाँ जा रही है !! गृह प्रस्थान न करना है क्या ??"पर वो बोली थी-"माँ आप गृह जाएं,मुझे तो अपनी ससुराल गमन करना है ,वो मैं अपने अनुसार कर लूँगी।
वे पुत्रवधू वत्सला को लेकर उसके कक्ष में आकर उसे बैठाकर मुडे़ ही थे कि देखा था कि चपला खडी़ है ।चपला उनसे बोली थी -सरस्वती अब मुझे भी अपने ससुराल गमन करना होगा ,पर मेरे लायक कोई भी सेवा हो तो एक पत्र लिखकर डाल देना ,मिलते ही मैं आ जाऊँगी ।"
वे कुछ कहते इसके पूर्व ही सुजान बाबू की सहधर्मिणी उस कक्ष में प्रविष्ट हुई थीं और उनके समक्ष हाथ जोड़कर,अश्रुपूरित नयन लिए हुए बोली थीं
समधी जी,मुझे क्षमा कर दें अपने उस दिवस के शब्दों के लिए,,, मैं गलत थी ,नितांत गलत थी जो ये सोचती थी कि आपके पुत्री नहीं है तो आपके गृह में मेरी पुत्री को सुख न मिलेगा ,,, जो हुआ वो इसकी नियति थी पर आज जो आप मेरी पुत्री के लिए खडे़ हुए उससे मुझे पूरा विश्वास हो चला है कि आपके रहते मेरी पुत्री को यहाँ कोई तकलीफ न होने पाएगी ,,, पुनः क्षमा प्रार्थी हूँ ।" 


"अरेएएए ये आप क्या कह रही हैं ,,,, क्षमा माँगने की आवश्यकता नहीं है ,,, आप बस अगर हो सके तो इसके एक,दो सलवार-कमीज किसी के हाथों भिजवा दें ताकि उसकी नाप के अनुसार इसके लिए सलवार-कमीज सिलवा दूँ,,, यहाँ भी ये वही पहनेगी जो आपके गृह में पहनती थी ,,, ये उसके पिता का ही गृह है ,श्वसुर का नहीं !"

वे उनसे संतुष्ट होकर सुजान बाबू के संग अपने गृह प्रस्थान कर गई थीं और शन्नों मौसी व चपला भी अपने गृह प्रस्थान कर गई थीं ,, गृह में कोई रह गया था तो वो ,उनकी माँ और पुत्री वत्सला ।
माँ तो अपने कक्ष में जाकर अंदर से द्वार बंद कर ली थीं ।
उन्हें मनाने या उनसे कुछ कहने का ये समय उचित न था , उस समय उनको मनाने जाना उनके क्रोधाग्नि में घृत डालने के समान था ।
वे भोजन थाल लेकर वत्सला के कक्ष में जाकर उसके समीप भोजन थाल रखते हुए उसे समझाते हुए बोले थे-"अच्छा पुत्री बता ,तूने जो ये वस्त्र पहन रखे हैं ये मैले हो जाएंगे तो तू क्या करेगी ???

उनकी बात सुनकर वत्सला ने उनकी तरफ आँखें उठाकर देखा था तत्पश्चात  बिना कोई उत्तर दिए अपने नयन झुका लिए थे ।
वे बोले थे -" तुम उन मैले वस्त्रों को त्याग कर नवीन व स्वच्छ वस्त्र धारण करोगी ना ! आत्मा भी तो वही करती है ,,,, अपनी जीर्णशीर्ण हो चुकी देह का ,मैली-कुचैली या रुग्ण देह का त्याग कर नवीन देह प्राप्त करती है ,,,, अब इसमें विलाप करने या व्यथित होने का क्या औचित्य है भला !! 
बेटी ,जीवन रथ के पहिए किसी के गमन से स्थिर न होते हैं ,वे यथावत गतिमान रहते हैं तब तक जब तक स्वयं सारथी परमब्रह्म उसकी गति को स्थिर न करे !! 
चलो भोजन गृहण कर विश्राम कर लो " पर उसने भोजन थाल की तरफ देखा भी नहीं था ,,,, अंततः उन्होने ही स्वयं अपने हाथों से उसे भोजन खिलाया था और उसके शीश पर हाथ रखकर कक्ष से बाहर आकर अपने कक्ष में आ गए थे ।
रात्रि की बेला हो गई थी ,माँ अपने कक्ष में ही बैठी हुई भोलेनाथ को भज रही थीं ,, प्रमोद से अपना भोजन उन्होने अपने कक्ष में ही मँगवा लिया था ।

उन्होने माँ के कक्ष में जाकर उनसे विनय की थी -"माँ पुत्री वत्सला के संग भोजन कर लो चलकर ,उसे भी अच्छा प्रतीत हो ,, माँ तुम्हें तो भली-भाँति ज्ञात है कि जब एक पौधा एक जगह से निकाल कर दूसरी जगह रोपा जाता है तो उसे विशेष ध्यान की ,देखरेख की आवश्यकता होती है तभी वो पनप पाता है वरना कुम्हला जाता है ,,,, 
अपने पितृगृह से आई बेटी भी उसी पौधे के समान होती हैं जिन्हें हमें विशेष देख-रेख और स्नेह व अपनेपन की धूप,खाद व पानी देना होता है ,,, 
तुम पुत्री वत्सला से यूँ रुष्ट रहकर उससे स्नेह वार्तालाप करने का प्रथम प्रयास न करोगी तो वो सहमी ही रहेगी और ....बस कर सरस्वती!! माँ ने उनकी बात को मध्य में ही स्थगित कर कहा था -" जिस बंधन की नींव की ईंट ही कष्ट दे गई हो उस बंधन से स्नेह संबंध की इमारत कैसे खडी़ हो सकती है !! 
और फिर तूने जो किया वो अक्षम्य है ,,, अरे तुझे न ज्ञात है कि इसका परिणाम क्या होगा !! तुझे तो अपने मन की करनी थी तूने कर ली तो फिर मेरे कक्ष में मुझसे क्या आशा लेकर आया है !! जा यहाँ से !"

वे माँ के कक्ष से निकल आए थे और उन्हें माँ के कक्ष से निकलकर आते देखकर  प्रमोद ने पूछा था -"बाबू साहब , आपका भोजन लगा दूँ और बहू रानी का भोजन उनके कक्ष में देकर आना है क्या !!"
उन्होने प्रमोद की बात का उत्तर न दे पुत्री वत्सला के कक्ष में जाकर उसे अपने साथ लिवाकर फिर प्रमोद से कहा था -"एक भोजन थाल लगाओ,पिता और पुत्री एक थाल में ही खाएंगे ।"...............शेष अगले भाग में।

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रचनाएँ
बहू की विदाई
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मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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31 मई 2023
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भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमन

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बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023
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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

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बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

31 मई 2023
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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
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--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती को तो इस समय भाभी के समीप होना चाहिए था !!""नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझ

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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023
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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
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उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
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"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन

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