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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023

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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"
अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जानने की तनिक भी जिज्ञासा नहीं है ,अतः तू तो रहने ही दे मुझे अपने संगीत के आयोजन के बारे में कुछ भी बताने को ।"

"माँ मुझे आपको कुछ और बताना है ,आप एक बार सुन लें " वे बोले थे और माँ ने कपडे़ तह करना छोड़ उनसे कहा था -"अच्छा बता ,क्या बताना है तुझे ??"
"माँ , रुड़की में मैं जिनके यहाँ ठहरा था ,उनका नाम श्री कृष्ण गोपाल स्वामी है ,और उनके एक पुत्र व एक पुत्री है ।वे बहुत भले इंसान हैं और उनकी सोच भी मेरे समान ही है ।उनके पुत्र भास्कर के साथ मैं अपनी पुत्री वत्सला का विवाह तय कर आया हूँ  ।"

माँ को ये सुनकर मानो विद्युत का झटका लगा था और वे खडी़ होकर तीखे स्वर में बोली थीं -" तेरा मस्तिष्क अपनी जगह पर स्थिर तो है ना सरस्वती !! मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि तेरा मस्तिष्क फिर गया है जो तू ऐसा अनर्गल वार्तालाप कर रहा है ।"

"माँ, मैं जो कर रहा  हूँ वो बहुत सोच-समझ कर कर रहा हूँ और वो सत्य और सही है , दो मास पश्चात विवाह है ।" 

वे बोले थे ।
"सरस्वती आखिर तू चाहता क्या है !! क्यों बरसों से चली आ रही रीतियों के विरुद्ध जाकर पुरखों का श्राप लेना चाहता है !!  क्यों वो करने पर तुला हुआ है जो सोचना भी नितांत गलत है !!" माँ क्रोधित होकर बोली थीं ।और वे बोले थे -"माँ मैं जो कर रहा हूँ वो उचित है ,, आप ही बताएं मैं और आप कितने दिवसों तक जीवित रहेंगे !! तत्पश्चात पुत्री वत्सला का क्या होगा !! उसके सुखद भविष्य के लिए जो उचित है वो कर रहा हूँ ,मैं उसके पिता सुजान बाबू को वचन दे चुका हूँ कि उसके सुख के लिए सब कुछ करूँगा।"

"सरस्वती तू मुझे इस समाज में रहने देगा या नहीं! क्यों चाहता है कि ये समाज मेरा बहिष्कार कर दे!  
तुझे तो इस समाज की, समाज के लोगों की कोई परवाह नहीं पर मुझे तो है,,,  अरे मूढ़मति ये तो सोच कि लोगों को जब पता चलेगा तो वे हम पर थूकेंगे! "  माँ क्रोधित होकर बोली थीं।

"माँ , लोगों का क्या है, उन्हें तो बोलने के लिए कुछ न कुछ बहाना चाहिए ही होता है,, पर लोगों की परवाह करने के लिए क्या मैं अपनी पुत्री का जीवन बरबाद होते देखता हूँ!! ये तो मुझसे न हो पाएगा!! "
वे माँ से अपनी बात कह ही रहे थे कि माँ के कक्ष में संध्या की पूजा का प्रबंध करने के लिए पुष्प इत्यादि लेकर पुत्री वत्सला का आगमन हुआ था और माँ उसे आग्नेय नेत्रों से देखने लगी थीं मानो कह रही हों कि ये जो हो रहा है इसका कारण तू ही है!! 
और वो बेचारी, चुपचाप पूजा के पुष्प भोलेनाथ जी के समक्ष रखकर शीश झुकाकर कक्ष से गमन कर गई थी।

और वे भी माँ से कक्ष से निकल गए थे ।माँ ने शन्नों मौसी को पत्र लिखकर सारा वृत्तांत बता दिया था और वे अगले दिवस ही गृह आगमन कर गई थीं ।
गृह के प्रांगण में शन्नों मौसी चारपाई पर बैठी थीं और माँ क्रोध से इधर से उधर अपने हाथ से माला जपते हुए टहल रही थीं ।
गृह का वातावरण बहुत भारी हो गया था । शन्नों मौसी माँ का समर्थन करते हुए उन्हें ही कह रही थीं कि "तुझे अपनी माँ के मान की  लेशमात्र भी चिंता नहीं है सरस्वती !! 
तू जो करने को सोच रहा है उससे जिज्जी की कितनी बदनामी होगी ,ये तूने सोचा है !! 

अरे जो तू सोच रहा है वो हमारी कल्पना से भी परे है ,,,, स्त्री का एक ही पति होता है ,,, यदि उसे कुछ हो जाता है तो उसे अपनी नियति मान स्त्रियां सारी उमर यूँ ही व्यतीत कर देती हैं ,,, सदियों से यही चलता आ रहा है और तू उसे बदलने चला है !! "

"हाँ मौसी सदियों से जो चला आ रहा है उसमें परिवर्तन आवश्यक है ।"वे बोले थे और उठकर अपने कक्ष में आ गए थे ।
रात्रि हो चली थी ।प्रमोद ने भोजन बना दिया था मगर न माँ और न ही शन्नो मौसी ने भोजन गृहण किया था ।
ये सब देखकर पुत्री चपला उनके कक्ष में आई थी और उनके समक्ष हाथ जोड़कर अश्रुपूरित नयनों से बोली थी -"बाबू , आप मुझे पुत्री मानते हैं और मेरे सुख की आपको बहुत चिंता है ,,, आप मुझसे बहुत स्नेह करते हैं ,, ये मुझ अभागन के लिए बहुत है ,, पर आप मेरे लिए दादी  माँ से ,मौसी जी से तनाव न मोल लें ,, मैं न चाहती कि मेरी वजह से आपके दादी माँ और मौसी जी से मनमुटाव हो ,,, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें बाबू ,,, "
वे उसके समीप आकर उससे बोले थे -"तू इस सबकी चिंता न कर मेरी बच्ची ,,, मैं जो कर रहा हूँ वो उचित कर रहा हूँ ,,, तू जा ,,, भोजन कर विश्राम कर ले जाकर ।" और वो अपने कक्ष में चली गई थी ।
माँ व शन्नों मौसी के भोजन गृहण न करने के कारण उन्होने भी भोजन न गृहण किया था और अपने बिछौने पर लेटकर नयन मूँदकर कह रहे थे -- बाबू ,, मुझे विश्वास है  कि आप जहाँ कहीं होगे मुझे सुन रहे होगे ,,, कृपया अपने पुत्र को बताएं कि वो जो करने जा रहा है वो उचित ही है ना !! 
और उनके स्वप्न में आकर बाबू ने उनके शीश पर हाथ फेरकर कहा था - सद् पथ  के मार्ग पर चलने वालों के मार्ग में बहुत बाधाएं आती हैं सरस्वती ,,, पर उनसे भयभीत होकर अपने कदम पीछे न लेने चाहिए ,,, 

उनकी आँख खुल गई थी और उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर भी प्राप्त हो गया था और अगले दिवस से ही उन्होने विवाह की तैयारियां प्रारंभ कर दी थीं । जिसको भी ये सूचना मिल रही थी वो अचरज व्यक्त कर रहा था और लोगों में आपस में काना-फूसी प्रारंभ हो गई थी जिसकी हवा माँ तक पहुँच रही थी और वो अंदर ही अंदर कुढ़ रही थीं ।


.........शेष अगले भाग में ।

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

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रचनाएँ
बहू की विदाई
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मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

31 मई 2023
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भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमन

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बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023
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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

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बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

31 मई 2023
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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
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--"माँ सामान रखना छोड़ तुम यहाँ आ गईं !!और कुछ हुआ है क्या !! सरस्वती को तो इस समय भाभी के समीप होना चाहिए था !!""नहीं कुछ नहीं ,तू चल मैं आ रही हूँ " चपला से कहते हुए शन्नो मौसी मुझ

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बहू की विदाई -भाग 7

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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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बहू की विदाई-भाग 12

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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

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