"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन रही है !! मौन रह ना !!"
"क्यों मौन रहूँ माँ !! मैं मौन न रहूँगी !! सरस्वती जो कर रहा है वो शत प्रतिशत सही है ,, और आप लोग ,,,, मुझे ये बताएं कि आप मेरे किसी के पुत्र की सहधर्मिणी देवलोक गमन कर जाती है तो आपका पुत्र दूसरा विवाह क्या न करता है !!
"ऐ ऐऐऐ पुत्र की बात अलग होती है !!" उनमें से एक बोला था ।
"क्यों पुत्र की बात अलग क्यों होती है भला !! पुत्रवधू को वो अधिकार क्यों न दिए जाते ,,, सिर्फ इस हेतु कि वो दूसरे के गृह से आई होती है !!वाह ,, अपनी पुत्री तो आपके लिए पुत्री होती है पर पराए गृह की बेटी !! वो भी तो किसी की पुत्री होती है और अपना गृह ,परिजन सबको छोड़कर आपके परिवार के प्रति समर्पित हो जाती है पर फिर भी आपकी सहानुभूति ,आपका स्नेह पाने से वंचित ही रहती है ,, ये कैसे नियम हैं !!"उन्होने कहा था ।
"मैं अपनी बात करती हूँ ,,, मेरी पुत्री का विवाह मैंने अगले वर्ष तय कर दिया है ,,ईश्वर न करे कि उसके पति के साथ कल को कुछ हो जाए तो क्या मेरी पुत्री सारी उम्र यूँ ही बिता देगी !! मैं उसे उसके हाल पर छोड़ दूँगी !! लोगों के द्वारा उसे बेचारी कहलाने हेतु ,,, उससे मिथ्या सहानुभूति जताकर उसकी पीडा़ पर नमक छिड़कने हेतु !! मैं उसे केशविहीन कर उसके हिस्से की सारी खुशियां सारे रंग उससे विलग कर उसे श्वेत वस्त्र में लपेट दूँगी !!
मैं तो कदापि ऐसा न करूँगी !!" चपला ने कहा था और उनमे से एक बुजुर्ग तीखे स्वर में उनसे बोले थे -"देख सरस्वती ,, तूने अपनी पुत्रवधू को केशविहीन करने से रोक लिया था ,उसे श्वेत वस्त्रों को धारण करने से रोक लिया था उस समय हम सब ये सोचकर मौन रह गए थे कि तुमने अपना इकलौता पुत्र खोया था मगर ये पाप हम तुम्हें न करने देंगे "
"हाँ ,नहीं करने देंगे । "बाकी सब अपनी लाठियाँ ठोंक कर बोले थे ।
" तू सूर्य पश्चिम से उगाना चाहता है !! अरे सूर्य देव भी अपने नियम में परिवर्तन न कर सदैव पूर्व दिशा में उदय होते हैं ,तू उनसे भी बडा़ बनना चाहता है जो हमारे सदियों से चली आ रही परम्पराओं में परिवर्तन का इच्छुक है !!" सामने खडे़ एक जन बोले थे ।
"अच्छा !! पर सूर्य देव को भी परिवर्तन स्वीकार कर पूर्व छोड़कर पश्चिम में गमन करना ही पड़ता है ,,,, क्योंकि उन्हें भी ज्ञात होता है कि ठहराव जड़ता का प्रतीक है,,गति में ही आनंद है ,,, जिस परिवर्तन का आज आप सब विरोध कर रहे हैं उसी का आगे चलकर समर्थन करेंगे ।"
वे बोले थे और उनका असंख्य शिष्य व शिष्याओं का दल एक स्वर में नारे लगाने लगा था -" ये विवाह तो होकर रहेगा ,,होकर रहेगा ,,, स्त्री कब तक सहे अत्याचार!! इन रुढियों के कारण क्यों रहे वो लाचार!! बह कर रहेगी परिवर्तन की धार !! पुत्र व पुत्रवधू को मिलने ही चाहिए अब तो एक समान अधिकार !!
पुरुषवादी सोच पर प्रहार ,, होकर रहेगा !!होकर रहेगा!!
और इन असंख्य शिष्य व शिष्याओं के समूह के बुलंद नारों के कारण उन सभी जनों ने उस समय वहाँ से चले जाना ही श्रेयस्कर समझा था और वे सभी उन्हें आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए गमन कर गए थे जिससे स्पष्ट था कि वे उनके साथ अपना दाना-पानी,उठना-बैठना बंद कर रहे हैं।
पर उन्हें अटूट विश्वास था कि ये सब एक दिवस उनके कृत्य व उनकी सोच कर खुले मन से स्वीकारेंगे।
विवाह के आयोजन प्रारंभ हो गए थे , माँ और शन्नो मौसी अनिच्छा से वहाँ पर अपनी उपस्थिति दे रही थीं ,ये वो समझ रहे थे पर उन्होने सोचा था कि विवाह हो जाए फिर माँ को समझाने का पुनः प्रयास करेंगे ।
विवाह के समस्त आयोजन विधिविधान से संपन्न हो गए थे और उस सबमें भोर हो गई थी और कलेवे के पश्चात बहू की विदाई हो रही थी और चपला मौसी ने व्यंग्यात्मक तरीके से माँ को उलाहना दिया था -"जिज्जी ,सरस्वती ने अपने मन की कर ली,आपकी एक न चली !!"
चपला को अपने गृह कुछ आवश्यक कार्य था अतः वो भी विदाई के पश्चात अपने गृह गमन कर गई थी और शन्नो मौसी भी अपने गृह प्रस्थान कर गई थीं ।
माँ कुपित होकर अपने कक्ष में चली गई थीं और वे अपने कक्ष में आ गए थे ।
रात्रि को वे माँ से भोजन करने के लिए कहने व उन्हें समझाने व मनाने उनके कक्ष में गए थे मगर उनके बहुत प्रयास करने पर भी वे भोजन करने अपने कक्ष से न बाहर आने को तैयार हुई थीं और न ही उनसे बात ही की थी ।उन्होने प्रमोद से उनके कक्ष में भोजन ले जाने को कहा था और स्वयं अपने कक्ष में आ गए थे ।
" बाबू साहब, संध्या हो गई है ,संगीतशाला न जाएंगे क्या??"प्रमोद का स्वर सुनकर वे अतीत से वर्तमान में लौट आए और अपनी सदरी पहन कर छडी़ उठाकर संगीतशाला पहुँचे जहाँ उनके सभी शिष्य उपस्थित हो चुके थे ।
सरस्वती चरण दास अपने आसन पर विराजमान हुए और संगीत की स्वर साधना करना प्रारंभ किया --
श्याम मोहन मोरा,
चित्त चुराआआए,
श्याआआम मोहन मोरा,
चित्त चुराआआए
बंसी बजाकर मोरीईई,,,ईईईईईईई
बंसी बजाकर मोरी,,
निंदियाआआआ उडा़ए
श्याम मोहन मोरा
श्याआआम मोहन मोरा
चित्त चुराआआआए
श्याम मोहन मोराआआआआआ
उनके साथ साथ सभी शिष्यों ने साधना की पर आज सरस्वती चरण दास को अपने शिष्यों के गायन में वो बात न लगी और वे बोले -"क्या बात है !!आप सबका मन आज कहां है ??"
"गुरु जी हम लोग जो हुआ उसके बारे में चिंतन कर रहे थे ,, आपकी बहू की विदाई और रुढि़वादी चिंतन के लोगों के विरोध वाली बात समाचार पत्र में प्रकाशित हुई है ,,आपने सँभव है पढा़ न हो पर हम सब आपके साथ हैं गुरुवर ,,, "
"मुझे जानकर बहुत हर्ष हुआ कि आप सब मेरे साथ हैं ,, ये समाज सबसे मिलकर ही पूर्ण होता है और आप लोग परिवर्तन की लहर के साथ हैं तो सदियों से चली आ रही रुढिवादिता ,पुरुषवादी सोच व दकियानूसी विचारों की जंजीरें टूटने में देर नहीं है ।"सरस्वती चरण दास बोले ।
और वही हुआ ,, युवावर्ग सरस्वती चरण दास की सोच ,उनके कृत्य से प्रभावित होकर अपने अपने गृहों में अपनी बहन,बेटियों व बहू को अपने समान दर्जा देने लगा ,, थोडे़ समय उनके गृह के बुजुर्गों ने उनका विरोध किया पर शनैः शनैं उन्हें भी समझ आने लगा और वे भी परिवर्तन की लहर के साथ बहने का निर्णय खुले मन से स्वीकारने लगे जिससे कमला देवी भी अछूती न रह पाईं । और ये सब सरस्वती चरण दास की
बहू की विदाई से सँभव हुआ ।
दो वर्ष पश्चात ---
"अरे सरस्वती ,, सुन पौत्री वत्सला का पत्र आया है !!वो अपने पुत्र को लेकर अपने मायके,, हमारे गृह आगमन कर रही है ,,, इस सूचना से अपार हर्ष की प्राप्ति होने के कारण समझ न आ रहा कि पौत्री वत्सला के लिए क्या पकाऊँ !!"
"माँ ,पर भोजन तो प्रमोद पकाता है !!"
"अरेए मेरी पौत्री आ रही है !!उसके लिए मैं स्वयं भोजन पकाऊँगी और हाँ फिर हम दादी और पौत्री को अपना वो संगीत का भजन सुनाना --
छेड़ गयो मोहे ,
श्याम साँवरियाआआ
गाते हुए कमला देवी पाकशाला की तरफ बढ़ चलीं।
समाप्त ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'