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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023

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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!

सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बाबू किस बात को लेकर संशय में थे !! 
अंततः उन्होनें सुजान बाबू के गृह जाकर उनसे मिलने का निर्णय लिया था और अगले दिवस ही सुजान बाबू के गृह पर पहुँच गए थे ।
गृह का दरवाजा एक स्त्री ने खोला था -- सांवला वर्ण, भरा भरा चेहरा , चौडे़ माथे पर बडी़ सी बिंदी , खिचडी़ से केशों में भरा हुआ सिंदूर , हल्की नीली साडी़ में सामने  खडी़ स्त्री ने हाथ जोड़कर पूछा था --"जी क्षमा चाहती हूँ ,आप कौन हैं पहचाना नहीं !!किससे भेंट करनी है आपको !!"


वे हाथ जोड़कर बोले थे -"जी मैं सरस्वती चरण दास हूँ ,,सुजान बाबू अपनी कन्या के विवाह का प्रस्ताव लेकर मेरे गृह पधारे थे ,उसी सिलसिले में कुछ वार्तालाप करना था ।"
इतना सुनते ही वो स्त्री ,जो सँभव था कि सुजान बाबू की सहधर्मिणी हो ,वो एक तरफ होकर बोली थी --"जी आइए ,मैं अभी 'इन्हें'बुलाती हूँ " और वो भीतर की तरफ जाने लगी थीं और वो भी उनके पीछे जाने लगे थे ।बैठक में उन्हें बैठाकर वो भीतर के कक्ष में गमन कर गई थी जिसका एक द्वार बैठक में ही खुलता था ।
वो बैठक में आसीन थे और भीतर के कमरे से जो सुजान बाबू व उनकी सहधर्मिणी के स्वर आ रहे थे वे उनके कानों में पड़ रहे थे --- "कहा था न आपसे कि उनके घर किसी के द्वारा पता भिजवा दीजिए कि हमें ये संबंध न करना है मगर आप सुनते ही कहाँ हैं !! अब देख लीजिए ये यहाँ आ गए !! अब इन्हें स्पष्ट बता दें जाकर ,,हमारी एकलौती पुत्री है और ये ,,, इनके बेटी नहीं है ,,तो ये क्या हमारी बेटी को अपने यहाँ सही से रख पाएंगे !! और इनके घर में इनके अतिरिक्त इनकी माँ ही तो हैं ,,ये तो संगीतशाला चले जाएंगे ,,रह जाएगी मेरी बेटी और इनकी माँ ,, मेरी बेटी को बिन बेटी वाले  घर में सुख मिल भी पाएगा या नहीं !!

बस भी करो तुम !! अरे ये महान संगीतज्ञ हैं ,दो चार जिलों में इनका नाम है ,बहुत संभ्रांत परिवार है और ये भी बहुत नेकदिल इंसान हैं ऐसा लोगों द्वारा सुना है ,,,अपनी बेटी वहाँ बहुत सुखी रहेगी ,, मैं बात करके आता हूँ ,तुम पर्दे की ओट से शीतल जल व मिष्ठान्न दे देना " सुजान बाबू कहते हुए बाहर आ गए थे और हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया था ।
उनके चेहरे पर दुविधा के भाव आ रहे थे जो ये संकेत दे रहे थे कि वो उनके यहाँ अपनी बेटी को ब्याहें या नहीं तय न कर पा रहे हैं ,एक ऊहापोह की स्थिति में हैं ।
वे उन्हें बताना उचित न समझते थे कि आप लोगों के वार्तालाप का स्वर बाहर तक आने के कारण वो न चाहते हुए भी सुन लिए हैं ,अतः उन्होने उनसे ही पूछना श्रेयस्कर समझा था और उनके घुटने पर हाथ रखकर पूछा था --"सुजान बाबू , जो भी बात हो वो स्पष्ट कर दें ताकि मुझे भी एक राह मिल सके !!"
सुजान बाबू की आँखें डबडबा गई थीं जिससे ये प्रतीत हो रहा था कि ये अपनी बेटी का विवाह उनके पुत्र से करना तो चाहते हैं मगर बेटी के सुख के प्रति आश्वस्त न हैं ।
सुजान बाबू कुछ  बोलने ही वाले थे कि भीतर से उनकी सहधर्मिणी ने  शीतल जल व मिष्ठान्न पकडा़या था और सुजान बाबू ने अपनी जीवनसंगिनी से लेकर उनके समक्ष रख दिया था ।
वो उनकी आँखें पढ़ने का प्रयास करने लगे थे ।कुछ क्षण वातावरण में निस्तब्धता पसर गई थी पर उसके पश्चात उनके पुनः पूछने पर उन्होनें अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा था -- "आपके यहाँ अपनी बेटी का विवाह करना चाहता हूँ किन्तु,, ,,," 
"किन्तु क्या सुजान बाबू !!" वे उनकी आँखों में आँखें डालकर पुनः पूछने लगे थे और फिर सुजान बाबू आगे बोले थे --" किन्तु आपके बेटी नहीं है तो,,,,"कहते कहते सुजान बाबू रुक गए थे ।
"समझ गया आप क्या कहना चाहते हैं !!आपको ये लगता है कि मैं बेटी का बाप न हूँ तो बेटी की कदर करना न जानता होंगा ,पर आपको एक बात बता दूँ कि भले ही मैं बेटी का बाप न हूँ पर आपको वचन देता हूँ कि आपकी बेटी को बेटी ही मानकर उसकी हर सुख व सुविधा का ध्यान रखूँगा ,उसका श्वसुर बनकर नहीं पिता बनकर उसे वात्सल्य दूँगा ,मेरे लिए जैसा मेरा वागीष वैसे ही आपकी पुत्री होगी ,फिर भी आप मुझपर या मेरे दिए गए वचन पर विश्वास न कर सकें तो फिर मेरे लिए जो आज्ञा हो वो बताएं !!"
उनके द्वारा  इतना सुनने के पश्चात सुजान बाबू उनके करबद्ध हाथों को अपने हाथों में लेकर अश्रुपूरित आँखों से बोले थे --" विवाह की तारीख निकलवा कर आपको सूचित करता हूँ ।"

इंसान कितना मूर्ख होता है जो वो सोचता है कि उसने जो सोचा वो होगा ,,वो ये विस्मृत कर देता है कि होता वो है जो ईश्वर चाहता है और ईश्वर तो कुछ और ही चाहे बैठा था।

वे गृह आगमन कर गए थे और कुछ दिवस पश्चात विवाह की तारीख निकल आई थी और दोनों पक्ष की ओर विवाह के आयोजन की तैयारियां प्रारंभ हो गई थीं ।
वो दिवस भी आ गया था जब उनका पुत्र वागीष घोडी़ चढ़ रहा था और माँ बलाएं ले रही थी ।
वे वागीष और अन्य लोग सब बारात लेकर तय समय पर सुजान बाबू के द्वार पहुँच गए थे और विवाह के सारे कार्य विधिविधानपूर्वक संपन्न हो गए थे ।
भोर में कलेवा के पश्चात  विदाई होने वाली थी ।वे विदाई के पूर्व ही सुजान बाबू के गृह से विदा ले लिए थे ताकि वागीष की गाडी़ पहुँचने से पूर्व अपने गृह पहुँच कर बेटे व बहू का माँ के साथ स्वागत कर सकें ।
यहाँ उनके यहाँ माँ अपने पोते व पोत बहू की आरती के लिए थाल सजा रही थी और वहाँ सुजान बाबू के गृह से वागीष अपने कुछ मित्रों के साथ बहू को लेकर आ रहा था।

BBL

BBL

very nice

21 जुलाई 2023

20
रचनाएँ
बहू की विदाई
5.0
मैं आप लोगों के लिए एक नई कहानी लेकर आई हूँ-'बहू की विदाई' ।मेरी ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है । एक रुढि़वादी ,दकियानूसी ,व स्त्रियों को अपने से नीचे समझने वाले समाज के एक व्यक्ति द्वारा अपनी बहू के विवाह करने पर मेरी ये कहानी है 'बहू की विदाई' । मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र सरस्वती चरण दास अपने इकलौते पुत्र के निधन के पश्चात अपनी बहू का विवाह करता है वो भी अपनी माँ की नाराजगी झेलकर।वो खुली सोच रखता है । कैसे वो अपनी विधवा पुत्रवधू के साथ खडा़ होता है और उसका विवाह करता है ये पढे़ं मेरी कहानी 'बहू की विदाई ' में ।
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बहू की विदाई-भाग 1

31 मई 2023
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भगवान भास्कर आसमान में और ऊपर चढ़ आए थे और मुदित होकर सरस्वती चरण दास के कमरे की खिड़की से अपनी रश्मियों द्वारा आकर मानों उनके शीश पर अपना वरद हस्त रखकर उन्हें कह रहे हों !!बेटी की विदाई हो गई !! तुमन

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बहू की विदाई-भाग 2

31 मई 2023
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"ऐसा न कहो माँ !!" कहते हुए सरस्वती चरण दास अंदर कमरे में आए और माँ के समीप बैठकर माँ के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए बोले -" तुमने रात से भोजन न गृहण किया माँ !! चलिए चलकर साथ में भोजन करते हैं।"

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बहू की विदाई-भाग 3

31 मई 2023
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सरस्वती !!! ये क्या !! तू गुरु महाराज के विछोह जनिक शोक से उबर ही न रहा !! संगीत जो तेरे रक्त की हर बूंद में मिलकर तेरी हर श्वास में तेरे हर स्पंदन में रचा बसा है तू उसी से मुख मोड़कर शोक सागर में डूब

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बहू की विदाई-भाग 4

31 मई 2023
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।प्रांगण में दरे बिछवाकर ढो़लक रखी गई थी जिसे एक स्त्री ने बजाना और अन्य स्त्रियों में देवी भगौती के भजन गाना प्रारंभ कर दिया था ।शन्नों मौसी ,माँ के साथ सभी के लिए चाय व नाश्ते का प्रबंध करने में लगी

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बहू की विदाई-भाग 5

31 मई 2023
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-"सरस्वती ,तू इस समय यहाँ बाहर !!तुझे तो ,,,,, मन में कोई शंका उपज रही है क्या ???""हाँ मौसी ,आपसे एक प्रश्न का उत्तर चाहिए था ,आप दे सकेंगी ?"उन्होने प्रश्न किया था ।"हाँ क्यों नहीं !!पूछ !!" क

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बहू की विदाई-भाग 6

1 जून 2023
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बहू की विदाई -भाग 7

1 जून 2023
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"वही तो मैं कह रहा हूँ !! आखिर ये नियम किसने और क्यों निर्मित किए !! पति के देवलोक गमन के पश्चात स्त्री के जीवन का रथ संसार मार्ग पर रुक जाता है क्या !!!नहीं ना !! वो तो अनवरत तब तक गतिमान रहता ह

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बहू की विदाई -भाग 8

1 जून 2023
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उस समय विवाह से पूर्व कन्या देखने का चलन न था ।कुण्डली मिलान हो गया था और साढे़ चौंतिस गुण मिल रहे थे और क्या चाहिए था !!सुजान बाबू प्रस्थान कर गए थे मगर उनके मन में बार बार विचार आ रहा था कि सुजान बा

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बहू की विदाई -भाग 9

1 जून 2023
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कुछ घण्टों पश्चात उनके गृह के दरवाजे को किसी ने बहुत तेज खटखटाना प्रारंभ कर दिया था ।उन्होनें चपला से कहा था कि देखो तो जरा बारात आ गई क्या !!और चपला ने दौड़ कर गृह का मुख्य द्वार खोला तो सामने

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बहू की विदाई -भाग 10

1 जून 2023
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वे गाडी़ का दरवाजा खोलकर अपनी पुत्रवधू वत्सला के समीप बैठकर उसके शीश पर हाथ फेरकर बोले थे -" चलो गृह चलते हैं मेरी बच्ची !!"चपला भी गाडी़ का दरवाजा खोलकर वत्सला के दूसरी तरफ उसके समीप बैठ गई थी ।किसके

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बहू की विदाई-भाग 11

4 जून 2023
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उनको देखते ही सबकी आँखें उनकी तरफ देखने लगी थीं जिनमें प्रश्न तैर रहा था जिसका उत्तर वे पाने को लालाइत थे, उनके मन की धरती में प्रश्न का अंकुर था और वे उसके उत्तर की वृष्टि हेतु उनके मुखाकाश में

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बहू की विदाई-भाग 12

4 जून 2023
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--"वो क्या अपने पति के अंतिम दर्शन करने भी न आएगी !! तू अपनी मनमानी कर रहा है !! उसे यहाँ लेकर आ !!लोकलाज का तो ध्यान दे !! "पुत्र वागीष का अंतिम संस्कार संपन्न करने बाद वे सुजान बाबू के स

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बहू की विदाई-भाग 13

4 जून 2023
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उसे ज्ञात होता है कि ठहराव में जड़ता है और गति में आनंद है !!किसी के गमन से किसी का जीवन न रुकता ,,वो तो यथावत गतिमान रहता है जब तक स्वयं परमब्रह्म उसकी गति को रोकना न चाहें ।अच्छा ,कोई वाहन होता है ज

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बहू की विदाई-भाग 14

4 जून 2023
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आपने मेरी बात न मानी पर मैं अपनी पुत्री के साथ ये सब कदापि न होने दूँगा,,,,न वो केशविहीन होगी और न ही श्वेत वस्त्र धारण करेगी,,वो यहाँ ऐसे ही रहेगी जैसे एक बेटी अपने पिता के गृह में रहती है " माँ से क

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बहू की विदाई -भाग 15

4 जून 2023
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रात्रि में उन्होने अपना बिस्तर पुत्री वत्सला के कक्ष के बाहर लगवाया था और पुत्री वत्सला से कहा था -"बेटी ,तू निश्चिंत होकर निंद्रागत हो ,तेरे लिए नवगृह है ,नव वातावरण है तो तुझे किसी भी प्रकार का भय न

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बहू की विदाई-भाग 16

7 जून 2023
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ये सब देखकर उन्होने एक निर्णय लिया था और फिर वो संगीतशाला जाते,आते लोगों से मिलने बैठने व वार्तालाप करने लगे थे ।जिससे भी वे अपने लिए गए निर्णय के संबंध में बात करते वो उन्हें हैरान होकर द

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बहू की विदाई-भाग 17

7 जून 2023
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आपने जो किया वो बहुत प्रशंसनीय कार्य है पर ये रुढिवादी और दकियानूसी समाज कोई भी परिवर्तन स्वीकार करना ही न चाहता है ।" श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी की सहधर्मिणी ने कहा था और वे बोले थे--"ये

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बहू की विदाई-भाग 18

7 जून 2023
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शाम को वे माँ के कक्ष में गए थे और माँ के समीप बैठकर बोले थे -"माँ ,आपको कुछ बताना चाहता हूँ ।"अपने कपडे़ तह करती हुई माँ बोली थीं -"यही बताना चाहता है न कि वहाँ रुड़की में सब कैसा क्या रहा !! मुझे जा

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बहू की विदाई-भाग 19

7 जून 2023
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उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।तभी एक दिवस प्रमो

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बहू की विदाई-भाग 20 अंतिम भाग

7 जून 2023
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"क्यों !क्यों परिवर्तन न होगा !! क्यों सदा स्त्री ही आप लोगों की संकुचित सोच और रुढिवादिता के तले पिसती रहेगी !! " चपला कह ही रही थी कि पीछे से शन्नों मौसी ने उसका हाथ खींचकर कहा था -"तू क्यों नेता बन

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