उन्होने चपला को पत्र लिखकर बुला लिया था और चपला ,पुत्री वत्सला के लिए वस्त्र व आभूषण इत्यादि की खरीददारी करने लगी थी ।आसपास के लोगों में सुगबुगाहट होने लगी थी कि कोई तो बात है ।
तभी एक दिवस प्रमोद आकर उन्हें एक पत्र दे गया था और उन्होने पत्र खोला तो पत्र रुड़की से श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी का था ।वे अपनी सहधर्मिणी व पुत्री सुभाषिनी के साथ उनके गृह आकर उनका गृह देखना चाहते थे ।
उन्होने माँ के कक्ष में जाकर उनसे कहा था -"माँ ,रुड़की से श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी का परिवार आ रहा है हमसे मुलाकात करने तो आपसे नम्र निवेदन है कि अपना थोडा़ सा समय उन्हें दे दीजिएगा ,,, आप उनसे मिलेंगी तो आपको भी पता चलेगा कि वे बहुत सभ्य और भले लोग हैं ।"
माँ उनसे कुछ न बोलकर अपना माला ही जपती रही थीं और वे उनके कक्ष से निकल आए थे ।
कुछ दिवस पश्चात श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी का परिवार उनके गृह आया था ।
अतिथि देवो भवः में विश्वास रखने वाली माँ उनकी अपेक्षाओं पर खरी उतरी थीं पर अपने वार्तालाप से उन्होने उनको प्रकट कर दिया था कि वे इस विवाह के पक्ष में नहीं हैं और जो उनके पुत्र ने निर्णय लिया है वे इससे बहुत कुपित हैं ।वे जानते थे कि श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी उन्हें समझेंगे पर फिर भी उन्होने अपनी तरफ से उनसे कहा था -"माँ के किए वार्तालाप के लिए मैं खेद प्रकट करता हूँ ,,,"पर उनकी सहधर्मिणी ने कहा था --आप कुछ न सोचें सरस्वती चरण दास जी ,,, आप की माँ भी तो उसी रुढि़वादी ,दकियानूसी सोच की जंजीरों में जकडी़ हुई हैं ,, और उन्हीं जंजीरों से तो हमें उन्हें व सबको मुक्त करना है।
"मैं तो 'हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा'वाली विचारधारा वाला हूँ ।"श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी ने अपनी सहधर्मिणी की बात का समर्थन करते हुए कहा था और उन्हें बहुत आत्मिक संतुष्टि मिली थी कि इन लोगों के विचार बिलकुल उनके विचारों जैसे हैं ।
चपला ने उनकी आवभगत में कोई कसर न छोडी़ थी और वे बहुत प्रसन्न व संतुष्ट होकर रुड़की प्रस्थान कर गए थे।
अगले दिवस उन्होने विवाह के निमंत्रण पत्र छपने को दे दिए थे और लोगों को भी ज्ञात हो गया था कि वे अपनी बहू का विवाह करना चाहते हैं और लोग आकर माँ को उलाहना देने लगे थे कि ये जो कुछ हो रहा है ये सही न हो रहा है ,, उनके इस कृत्य को देखकर हमारी बहू और बेटियाँ भी बिगड़ जाएंगी उसका जिम्मेदार कौन होगा !!
उलाहना देने वालों में उम्रदराज लोग ही थे और उनकी उलाहनाओं से माँ का उनके प्रति क्रोध बढ़ता ही जा रहा था मगर उन्होने तो सोच लिया था कि अभी माँ को मनाने या समझाने का कोई लाभ नहीं !! एक बार विवाह हो जाए फिर ही माँ को मना लूँगा ।
विवाह के निमंत्रण पत्र छप कर आ गए थे और उनका वितरण भी उन्होने करवाना प्रारंभ कर दिया था ।अभी लोगों ने सीधे उनसे कुछ न कहा था तो वे भी कुछ न बोले थे और विवाह की तैयारियों में लगे हुए थे ।
देखते ही देखते विवाह का दिवस भी आ पहुँचा था और नियत समय पर बारात उनके द्वार पर आ गई थी और उम्रदराज लोग भी उनके द्वार पर आकर खुल कर विरोध करने हेतु आ गए थे ,उनके हाथों में लाठी थीं और स्त्रियां भी उनके साथ थीं ।
वे बारात का स्वागत करने के लिए आए थे पर इतने सारे जनों को देखकर समझ गए थे कि आज सारी बात तो ये लोग करके ही रहेंगे ।
उन लोगों में सबसे बुजुर्ग बाबू सागर शरण जी सबसे आगे अपनी लाठी लिए हुए खडे़ थे ।
बारातियों ने उन लोगों को देखकर नृत्य करना बंद कर दिया था और श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी अपने सुपुत्र सुभाष के साथ उन लोगों के समक्ष आकर खडे़ हो गए थे।
वे भी आकर श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी व उनके सुपुत्र सुभाष के समीप खडे़ हो गए थे ।
बाबू सागर शरण जी ने उनसे अपनी लाठी ठोंक कर कहा था -"देखो जी ,ये विवाह तो न होगा ,,, ये बारात जहाँ से आई है ,इज्जत से वहीं लौट जाए इसी में भलाई है ।"
"क्यों न होगा बाबू सागर शरण जी !! जरा बताने का कष्ट करेंगे !!"उन्होने पूछा था यद्यपि उन्हें कारण ज्ञात था मगर वे उनके श्री मुख से ही श्रवण करना चाहते थे ।
"सीधी सी बात है ,,, आपकी पुत्रवधू विधवा है और एक विधवा का विवाह हमारा ये समाज तो स्वीकार न करेगा ,,, ये उल्टी रीति तो न चलने वाली है !!" वे अपने काँपते स्वर में बोले थे ।
चपला ,भीतर पुत्री वत्सला का श्रृंगार कर रही थी ,तीव्र स्वर सुनकर वो भी बाहर आ गई थी और उसका अनुगमन करती माँ और शन्नों मौसी भी आ गई थीं ।
उन लोगों और बारातियों के अतिरिक्त उनके शिष्य व शिष्याओं का विशाल हुजूम भी विवाह में सम्मिलित होने आया था और इन लोगों की बात को मौन रखकर श्रवण कर रहा था ।
वे बोले थे -"देखिए ,जिन रीतियों और परम्पराओं की आप बात कर रहे हैं वे अब जीर्णशीर्ण हो चुकी हैं ,, उनमें परिवर्तन समय की माँग है ,, समय के अनुसार सबको बदलना पड़ता है वरना दुनिया आगे निकल जाती है और हम पीछे ही रह जाते हैं ,, "
"ये तो कोई तर्क न हुआ सरस्वती !! ऐसे तो हम भी बुजुर्ग हो गए हैं तो हमें भी कहीं पटक आया जाएगा और हमारा स्थान कोई और ले लेगा !! उनमें से एक बुजुर्ग पीछे से बोले थे।
"देखिए आप कुतर्क कर रहे हैं ,,, आप सबकी सोच पुरुषवादी सोच है जिसके नीचे स्त्रियां पिसती आई हैं !!
ईश्वर ने स्त्री व पुरुष को एक समान बनाया है तो उन्हें भी बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए ,, और उसके लिए इन रीतियों में परिवर्तन आवश्यक है जिनमें संकुचित सोच और दकियानूसी विचारों की जंग लग गई है ।"श्री कृष्ण गोपाल स्वामी जी ने कहा था ।
उन जनों के संग जो स्त्रियाँ आई थीं वे अपने हाथ से अपना पल्लू मुँख पर रखे मौन होकर सब सुन रही थीं ।
" अरे सदियों से जो चलता आया है उसमें परिवर्तन नहीं होगा तो नहीं होगा ।"पीछे से तीव्र स्वर आया था जिसको सुनकर चपला ने आगे आकर कहा था -............शेष अगले भाग में ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'