मानहानि के मामले में सजा के बाद संसद की सदस्यता गवा चुके राहुल गांधी के समर्थन में कांग्रेस ने रविवार को देशभर में संकल्प सत्याग्रह किया ।दिल्ली में राजघाट से इसकी शुरुआत हुई। महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह शुरू किया था। आज राजनीतिक दल किसी भी विरोध प्रदर्शन के लिए सत्याग्रह का आश्रय लेते हैं। ऐसा लगता है की आज सत्याग्रह सत्य के लिए आग्रह ना होकर विरोध प्रदर्शन का तरीका बन गया है। और जब राजनीतिक दल इस तरह का सत्याग्रह करते हैं तो समझ नहीं आता कि वे जनता से क्या चाहते हैं। वे जनता का समर्थन जुटाना चाहते हैं वे अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बयान करते हैं। क्या हमारे देश में विरोध प्रदर्शन का यही तरीका रह गया है? बे जनता से अपने पक्ष में वोट मांगते हैं। ऐसा लगता है जैसे राजनीति आज ड्रामा बन गई है। विपक्ष सरकार की आलोचना करता है। सरकार विपक्ष की आलोचना। दोनों एक दूसरे पर आरोप-पत्यारोप लगाते ही रहते हैं।
वास्तव में जनता आज यह सच्चाई जान गई है। इसलिए राजनीतिकरण के इस खेल में किसी भी राजनीतिक दल को ज्यादा फायदा नहीं होता। क्योंकि अब राजनीति की भाषा जनता भी समझ रही है। वह भी उसी बोल देती है जहां से फायदा होता है। अतः जरूरी है कि हम देश की राजनीति को सत्याग्रह से दूर ही रखें । अगर हमारे राजनेता वास्तविक जीवन में जनता का समर्थन चाहते हैं तो उन्हें जनता के बीच जाकर जनता की समस्याओं को समझना पड़ेगा उन्हें जनता ने चुना है और जनता की समस्याओं को हल करना उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि वे ऐसा करते है तो कोई कारण
नहीं की जनता उनके समर्थन में न उतरे। तभी वे जनता के जनप्रतिनिधि बन पाएंगे। सत्याग्रह में बहुत शक्ति होती है अगर सत्याग्रह का वास्तविक अर्थ समझना है तो उसे जीवन में उतार ना होगा। अपने कर्मों में उसे दिखाना होगा।
( ©ज्योति)