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दीपकनीलपदम्

hindi articles, stories and books related to deepakneelpadam


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लकड़ी जल कोयला बनी,  कोयला बन गया राख़ , अब तो आलू निकाल ले, हो  गए  होंगे  ख़ाक  । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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शीतलहर  है चल रही, रखियो कोयला पास,  जैसी जितनी ठण्ड हो,  उतना लीजो ताप ।  (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                 

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सपना  ऐसा देखिये , नींद नहीं फिर आए ,  सपना हो  साकार जब, चैन तभी मिल पाए । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                

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जीत के पीछे हार है,  हार के पीछे जीत,  रात गए दिन होत है, यही पृकृति की रीत ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"                  

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तकनीकी में अब रखो, हिंदी का उपयोग,  जिसको हिंदी आएगी, वो ही पायेगा भोग ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"                

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ओ ग़रीब क्या  देखी नहीं, तूने अपनी औकात,  किससे पूछकर देखता, आगे बढ़ने के ख़्वाब ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"                 

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उँगली पकड़ कर चल रहा था जो कल  तक,  मैं आज तक   उस बच्चे सा ख़्वाब ढूँढ़ता हूँ ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"             

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कुछ सवाल हैं पेचीदा, जिनके जबाब ढूँढ़ता हूँ, अजी आप रहने दो, मैं अपने आप ढूँढता हूँ । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"

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कल मोहब्बत की,  और  आज ख़तम हुई,  अच्छा है आग, जितनी जल्दी दफ़न हुई ।              (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"       

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साँसें भरी हों आस में, तो सब कुछ होगा पास में,  जब सब कुछ होगा पास में,  तब भी होगा आस में ।   (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                                     

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कोई महल न काम का, इतना लीजो जान, यहीं धरा रह जाएगा,  निकल जायेंगे प्रान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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जाग रहा है रात को, जाग रहा है दिन,  साँसों की चिंता नहीं, पैसे रहा है गिन।         (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"        

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ज्ञानी  ये  कहते खर्च कर, जैसे बहाया पानी, लेकिन एक दिन आएगा,  लेगा बदला पानी । (C)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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मनवा आज उदास है,  जैसे बीच मसान, जगा जागरण जोग सा, जाग गया इंसान ।   (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                   

सर्दी कितनी भी बढ़े,  गर्म रखो अहसास,  सर्दी गर्मी तय करे,  क्या सम्बन्धों में ख़ास ।      (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"               

बंधीं तटों से नाव  तो,  क्या लहरों से सम्बन्ध, इनकी गाँठें खोल दो, हों ये भी तो कुछ उद्दण्ड ।   (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"                          

शीतलहर से हो गए,  सर्द सभी अनुबन्ध, जाने क्या-क्या बह गया,  जब टूटे तटबन्ध ।         (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"             

शीतलहर की शीत से, विचलित मन घबराय,  इस सर्दी में आप क्यों,   रूठे हमसे जाय ।       (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"          

शीत लहर कितनी बढ़ी, हुआ नहीं आभास, ये जादू तब तक मगर,  जबतक तुम मेरे पास ।   (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

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थकती हैं संवेदनाएँ जब तुम्हारा सहारा लेता हूँ, निराशा भरे पथ पर भी तुमसे ढाढ़स ले लेता हूँ, अवसाद का जब कभी उफनता है सागर मन में मैं आगे बढ़कर तत्पर तेरा आलिंगन करता हूँ, सिकुड़ता हूँ शीत में जब

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