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दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023

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    *चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है मानव योनि ! बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ,  मनुष्य का शरीर प्राप्त करके जीव अपने पूर्व के अनेक जनों की गलती को सुधारने एवं इस आवागमन से मुक्ति पाने का प्रयास करता है ! मानव जीवन में वैसे तो कई विषय महत्वपूर्ण होते हैं परंतु किसी मनुष्य के पतित होने या उसकी सफलता में सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है उसका दृष्टिकोण , क्योंकि मनुष्य का दृष्टिकोण सही हो तब सही तथ्य अपने वास्तविक स्वरूप में सामने आ पाते हैं , तभी सही दिशा पर चल पाना और सही प्रक्रिया को अपना पाना संभव हो पाता है ! दृष्टिकोण के अभाव में व्यक्ति इधर-उधर भटकता भ्रांति वृत्ति का शिकार होता है और प्रगति के स्थान पर अवनति को अपनाता दिखाई पड़ता है ! जैसा जिसका दृष्टिकोण होता है उसका जीवन उसी प्रकार बनता चला जाता है ! दृष्टिकोण उन्नत , उच्चस्तरीय एवं उत्कृष्ट हो तो व्यक्ति इस सत्य को अनुभव कर पाता है कि लाखों योनियों में भटकने के बाद तब कहीं जाकर इस मनुष्य जीवन को प्राप्त करने का अवसर मिला है और इसे आत्म परिष्कार और लोक कल्याण में लगाते हुए सार्थक करना चाहिए ! और वहीं पर यदि दृष्टिकोण भोग विलास की ओर मुड़ जाता है तो मनुष्य जीवन भर भटकते हुए इस अमूल्य जीवन को समाप्त कर देता है ! मनुष्य का दृष्टिकोण यदि अच्छा है तो उसे महामानव , देवमानव तक बना सकता है परंतु नकारात्मक दृष्टिकोण मनुष्य के पतन का कारण बन जाता है !  इसलिए मानव जीवन में दृष्टिकोण का विशेष स्थान है !*

*आज के समाज में दृष्टिकोण का परिवर्तन बहुत तेजी से होता दिख रहा है ! किसी के प्रति किसी का दृष्टिकोण कब परिवर्तित हो जाएगा यह कहा नहीं जा सकता ! विश्वसनीय से विश्वसनीय व्यक्ति भी कब अविश्वसनीय लगने लगे यह स्वयं को भी नहीं पता होता ! आज मनुष्यों का जीवन भोग विलास में ही व्यतीत हो रहा है ! जिस दृष्टिकोण को लेकर के वह इस धरती पर आता है उसे भूल जाता है ! आज तो मनुष्यों का दृष्टिकोण इसी पर है कि जीना तो सैकड़ों वर्षो तक है इसलिए इसे भोग विलास में व्यतीत कर दें ! परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि ऐसे सोंच वाले स्वयं के पतन और दूसरों के पराभव का कारण बनते हैं जबकि सही दृष्टिकोण तो यही है कि मनुष्य को अपने भीतर समाहित क्षमताओं के पुञ्ज का जागरण करना चाहिए ! कोई भी शक्ति मनुष्य से बाहर नहीं सब कुछ मनुष्य के भीतर ही समाहित है आवश्यकता है इन शक्तियों को जागृत करने की ! जिस समय मनुष्य का दृष्टिकोण परिवर्तित होता है उसी समय उसका आत्मबल जागृत हो जाता है और आत्मबल के जागृत होने पर व्यक्ति श्रेष्ठता की राह पर चल निकलता है ! मात्र दृष्टिकोण के परिवर्तित होने से सार्थक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं परंतु आज मनुष्य अपने दृष्टिकोण को उचित एवं दूसरों के उचित दृष्टिकोण को भी अनुचित बनाने पर लगा हुआ है क्योंकि मनुष्य के अंदर काम , क्रोध एवं अहंकार की प्रबलता स्पष्ट दिखाई पड़ रही है ! इन्हें हमारे सनातन धर्म में विकार कहा गया है इन विकारों से बाहर निकलकर इस अनमोल जीवन की पहचान करते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है तभी हमारा मानव जीवन सार्थक हो पाएगा !*

*जब तक दृष्टिकोण परिवर्तित नहीं होगा तब तक सार्थक परिणाम नहीं प्राप्त हो सकता ! सार्थक परिणाम प्राप्त करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाना ही होगा अन्यथा अनेक भटके हुए मनुष्यों की तरह स्वयं का जीवन भी पतित होता चला जाएगा !*

     
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रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
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आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
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ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
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*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

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ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
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*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

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ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
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*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

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ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
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*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

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ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
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*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

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ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
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*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

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ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
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*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

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ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
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*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

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ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
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*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

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ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

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*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

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वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अक्टूबर 2022
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*सृष्टि के आदिकाल में विराट भगवान के शरीर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई ! हमारे वेदों के अनुसार भगवान के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र का प्राकट्य हुआ ! इस प

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25 जनवरी 2023
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फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
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*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

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आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
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*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

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शुक्र एवं गुरु अस्त होने पर न करें विवाह :- आचार्य अर्जुन तिवारी

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इंसानियत इंसान की पहचान है ! इंसानियत होने से वह इंसान है !! इंसानियत जिसमें नहीं इंसान क्या ! इंसान होकर भी पशु के समान है !! १ आज करुणा प्रेम गायब हो गये ! मन के सारे भाव शायद सो गये !! कुटिल

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