shabd-logo

ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022

65 बार देखा गया 65

*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण नहीं हुआ जा सकता | जब हम अपने पैरों पर नहीं चल पाते थे तो इन्हीं माता-पिता के कंधों पर बैठकर गांव घूमते थे | दोनों हाथ पकड़कर यही माता आंगन में हम को चलना सिखाती थी | ईश्वर के स्वरूप को देखना है तो इन्हीं माता-पिता में देखा जाता था क्योंकि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा एवं पालन करता विष्णु को तो शायद ही किसी ने देखा हो परंतु गर्भ में बालक का सृजन करके उसका पालन करने वाली माता को सब ने देखा है | माता पिता का महत्व हमारे अनेक पौराणिक व्याख्यानों में देखने को मिलता है | जिस समय भगवान गणेश एवं कुमार कार्तिकेय से सृष्टि की परिक्रमा करने की शर्त रखी गई उस समय भगवान गणेश ने माता पिता के महत्त्व को स्थाप्त करते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा करके सृष्टि के परिक्रमा का फल प्राप्त कर लिया था |  बालक श्रवण कुमार ने अंधे माता पिता को अपने कंधे पर बैठाकर तीर्थ यात्रा कराई ! माता कैकेई एवं पिता दशरथ के वचनों का पालन करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चौदह वर्षों तक अयोध्या से दूर वनवास में रहे | माता पिता का जीवन में बड़ा महत्व है | हमारी संस्कृति हम को यही सिखाती है कि आजीवन माता पिता की सेवा करनी चाहिए | हमारे बुजुर्ग माता-पिता अपनी आयु के अनेक अनुभवों को स्वयं में आत्मसात किए रहते हैं और समय-समय पर उनके अनुभव का मार्गदर्शन प्राप्त करके हम जटिल से जटिल समस्याओं को परास्त करते रहे हैं | इसीलिए सनातन संस्कृति में माता पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया था परंतु कालांतर में कुछ अद्भुत परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं जो कि भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है |*


*आज प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को आधुनिक दिखाना चाहता है , और आधुनिकता की सबसे बड़ी पहचान एकल परिवार बनता चला जा रहा है | पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर आज हमारी युवा पीढ़ी अपनी सनातन संस्कृति को भूल कर अपने वृद्ध माता-पिता को स्वयं से अलग करके वृद्ध आश्रम की राह दिखा रहे हैं | जिस माता की उंगली पकड़कर चलना सीखा था , जिस पिता के कंधे पर बैठकर गांव घूमा था उन्हीं माता-पिता के झुके हुए कंधे को सहारा देने के स्थान पर उनको घर से बाहर निकाल दिया जा रहा है | जो वृद्ध माता-पिता परिवार का अभिमान / सम्मान समझे जाते थे आज वही उपेक्षित होकर दयनीय एवं तिरस्कृत जीवन जीने को विवश हो रहे हैं | एकल परिवार के सिद्धांत की विचारधारा के चलते ही इन वृद्ध माता पिता के जीवन का अंतिम पड़ाव पड़ाव नारकीय बनता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" विचार करता हूं कि जो माता पिता अपनी संतान के सुखद भविष्य के लिए दिन रात एक कर देते हैं , स्वयं भूखे रहकर उनके भोजन की व्यवस्था करते हैं ,  उन्हीं संतानों के द्वारा जब उनको तिरस्कृत किया जाता है तब उनके हृदय पर क्या बीतती होगी ! ऐसा करने वालों को यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि यह संसार कर्मक्षेत्र है यहां जिस प्रकार के कर्मों का बीज डाला जाएगा उसी प्रकार का फल प्राप्त होगा ! कहने का तात्पर्य यह है कि इतना अवश्य ध्यान रखा जाय कि आज जो हम अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं कल वही हमारी संतान हमारे साथ भी करेगी ! अपनी सनातन संस्कृति को भूल कर हमने क्या खोया क्या पाया यह विचार करने का विषय है !*


*हम क्या थे क्या हो गए ! हम आधुनिकता के चक्कर में ना इधर के रहे ना उधर के ! कभी-कभी मन में यह विचार उठता है कि आखिर "ये कहां आ गए हम" !*

article-image


15
रचनाएँ
ये कहाँ आ गये हम
0.0
आदिकाल से हमारे संस्कार बहुत ही दिव्य रहे हैं इन्हीं संस्कारों को आधार बना कर हमने विश्व पर शासन किया है ! जहां संस्कारों की बात होती थी सारा विश्व हमारी ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था परिवार , समाज , राजनीति , कूटनीति आदि की शिक्षा सारे विश्व ने हमारे देश भारत से ही प्राप्त किया है परंतु आज हम अपनी मूल संस्कृति को भूलकर आधुनिक होने का दिखावा करने में लगे हुए हैं जिसके कारण आज हम संस्कार विहीन होते चले जा रहे हैं और मन में यह विचार उठता है कि हम क्या थे और क्या हो गए ! आखिर "ये कहां आ गए हम" |
1

ये कहाँ आ गये हम - १

2 फरवरी 2022
1
0
0

*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस जीवन को पाकर जिसने अपने कर्मों के द्वारा अपना लोक परलोक नहीं सुधार लिया समझ लो उसने खाने और सोने में पूरा जीवन व्यतीत करके व्यर्थ ही इस जीवन को गवा दिया | मानव जीवन में

2

ये कहाँ आ गये हम - २

3 फरवरी 2022
2
0
0

*संसार में जीव माता पिता के माध्यम से आता है , इसीलिए सनातन धर्म में माता-पिता को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है ! और "मातृ देवोभव पितृ देवोभव" की उद्घोषणा की गई थी ! माता पिता के ऋण से कभी भी उऋण न

3

ये कहाँ आ गये हम - ३

4 फरवरी 2022
0
0
0

*इस संसार में चौरासी लाख योनियों के बीच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ कहा गया है और मनुष्य ने अपनी वीरता , बुद्धि - विवेक के बल पर समस्त सृष्टि पर शासन भी किया है | सबको एक सूत्र में बांधकर चलने का विवेक ईश्वर न

4

ये कहाँ आ गये हम - ४

5 फरवरी 2022
0
0
0

*यह संसार बड़ा रहस्यमय है ! पग पग पर रहस्यों से भरा हुआ यह संसार एक अबूझ पहेली सिद्ध होता रहा है | सृष्टि के विषय में , समाज के विषय में , धर्मग्रंथों में वर्णित विषयों के विषय में मनुष्य सदैव से जिज्

5

ये कहाँ आ गये हम - ५

6 फरवरी 2022
0
0
0

*मानव जीवन एक यात्रा है | इस जीवन यात्रा में मनुष्य अनेकों पड़ावों को पार करता है | इसी जीवन यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है विवाह संस्कार | सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया है जि

6

ये कहां आ गए हम - भाग ६

12 मार्च 2022
1
0
0

*इस समाज में अनेको प्रकार के लोग होते हैं जो एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करते हैं ! किसी कार्य के लिए मनुष्य की प्रशंसा होती है तो किसी कार्य के लिए उसकी निंदा भी की जाती है ! प्रशंसा और निंद

7

ये कहाँ आ गये हम - भाग - ७

12 अप्रैल 2022
0
0
0

*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

8

ये कहाँ आ गये हम भाग - ८

25 अप्रैल 2022
0
0
0

*इस संसार में बिना आधार के कुछ भी नहीं है ! जिस प्रकार एक वृक्ष का आधार उसकी जड़ होती है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का भी एक आधार होता है | सनातन धर्म के आधार हनारे धर्मग्रन्थ माने जाते हैं

9

ये कहाँ आ गये हम - ९ (अहंकार)

7 मई 2022
1
0
0

*मनुष्य इस संसार में जन्म लेने के बाद अनेक कर्म करता है और उसके सभी कर्म सुख प्राप्त करने की दिशा में ही होते हैं | मनुष्य का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता है | येन केन प्रकारेण मनुष्य के सुख की कामना

10

ये सहाँ आ गये हम भाग - १० (जीवन एक परीक्षा)

5 जुलाई 2022
0
0
0

*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को सुंदर मनुष्य का तन मिलता है !  मानव जीवन पाकर के मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार सुंदर जीवन यापन करता है ! इस मानव जीवन में पग पग पर मनुष्य को परीक्षाएं देनी होती है

11

वर्ण व्यवस्था एवं समाज :- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 अक्टूबर 2022
0
0
0

*सृष्टि के आदिकाल में विराट भगवान के शरीर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई ! हमारे वेदों के अनुसार भगवान के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र का प्राकट्य हुआ ! इस प

12

दृष्टिकोण :- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2023
0
0
0

*चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है मानव योनि ! बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है ,&

13

फिल्म जगत एवं सनातन :- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जून 2023
1
0
0

*भारत का इतिहास बहुत ही समृद्धशाली रहा है

14

आज का समाज एवं ब्राह्मण: - आचार्य अर्जुन तिवारी

28 दिसम्बर 2023
1
0
0

*सनातन धर्म की दिव्यता एवं भव्यता आदिकाल से ही रही है ! यदि सनातन धर्म इतना दिव्य एवं भव्य रहा है तो उसका कारण है सनातन के संस्कार एवं संस्कृति ! सनातन के प्रत्येक अनुष्ठान , पूजा पद्धति एवं संस्कारों

15

शुक्र एवं गुरु अस्त होने पर न करें विवाह :- आचार्य अर्जुन तिवारी

9 मई 2024
0
0
0

*सनातन धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है ! सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान बताया गया है ! जन्म के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत यह सोलह संस्कार मानव जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ! इन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए